सिर्फ हारे हुये और हार मान चुके लोगों के लिये!
विपुल मिश्रा
एक बात बताना जरा!
केबीसी बहुत सालों से आ रहा है।
कितने लोग जीते?
जितने जीते होंगे,उससे हजारों गुना ज्यादा हारे ही हैं।
कोई हॉट सीट पर हारा।
कोई फास्टेस्ट फिंगर में हारा कोई उसके पहले और कोई उसके भी बहुत पहले।
मतलब?
जो हारे, दुनिया वही चला रहे हैं।
जीतने वाले अपना इनाम लेकर बैठ गए।
पर जो हारे,उनको पैसा कमाने के लिये समाज में विभिन्न काम करने पड़े होंगे।
करते भी होंगे।आगे जो हारेंगे वो पैसा कमाने को आगे भी अपना काम करेंगे ही।
दुनिया ऐसे ही तो चलती है न?
एक क्लास में एक ही टॉपर होता है।
एक टूर्नामेंट में एक ही टीम ट्रॉफी जीता करती है और एक मैच में एक ही मैन ऑफ द मैच होता है।
पर बाकी 21 खिलाड़ियों और 3 अंपायर का महत्व कम हो जाता क्या?
वो सब ये मैच भी खेलते हैं,और इसके आगे वाला भी।
पराजित व्यक्ति की मौजूदगी के बिना विजेता व्यक्ति भी बेकार ही है।
उपयोगिता तो पराजित की भी है।
महत्व तो पराजित व्यक्ति का भी है।
हर कोई तुरंत नहीं जीत सकता।कुछ पहले हारते हैं और बाद में जीत जाया करते हैं और कुछ तो कभी भी नहीं जीत पाते।
जो कभी नहीं जीत पाते,संख्या उन्हीं की ज्यादा होती है।
लेकिन जीवन उनका भी होता है और बहुत अच्छा और मनोरंजक होता है।
बॉलीवुड का इतिहास उठा के देखें।
अशोक कुमार से लेकर कार्तिक आर्यन तक हद से हद 100 बड़े फिल्मस्टार ही होंगे 90 साल के फिल्म इतिहास में
और देविका रानी से लेकर आलिया भट्ट तक मुश्किल से 100 बड़ी हीरोइन।
क्या 90 साल इंडस्ट्री इन्हीं के भरोसे चली?
लाला अमरनाथ से लेकर ध्रुव जुरेल तक 5 -6 सौ टेस्ट क्रिकेटर ही रहे होंगे।
क्या पूरा भारतीय क्रिकेट इन्हीं लोगों ने चलाया?
नहीं!
बिलकुल नहीं!
हजारों या कहो लाखों लोग 90 सालों के इतिहास में बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े होंगे जिन्हें आप अशोक कुमार या अक्षय कुमार के मुकाबले हारा हुआ कह सकते हैं।पर उनमें से ज्यादातर ने अपना जीवन अपने मतलब भर के पैसे कमाते हुए अपना परिवार पालते हुए इज्ज़त से जिन्दगी बिताई होगी।
और लाखों क्रिकेटर भारतीय क्रिकेटर भारतीय घरेलू और क्लब क्रिकेट के विभिन्न स्तरों पर खेले होंगे और वहां नाम और दाम बनाया होगा अपना।
आप अमोल मजूमदार और ओबैद कमाल,आशीष विंस्टन जैदी और शेल्डन जैक्सन जैसे खिलाड़ियों को सचिन और कोहली न मानें पर फिर भी अपनी जगह उनका नाम है और इज्ज़त है।पैसे भी कमाये।
और ये जैदी और जैक्सन तो फिर भी बड़े खिलाड़ी थे। जाने कितने रणजी खिलाड़ी ऐसे थे जो एक दो मैच ही खेल पाए और फिर न खेले।उनकी गिनती आप हारे लोगों में कर सकते हैं तो रणजी ट्रायल में असफल होने वाले उनसे ज्यादा हारे हुए हैं।
हर साल कई लोग असफल होते हैं ट्रायल में।पर हारने के बाद उनकी दुनिया खत्म नहीं होती
वो सब कोई और क्षेत्र चुन के पैसे कमाते हैं।नाम कमाते हैं।
दुनिया में 99 % लोग हारे हुए ही हैं।
पर वो जीवित रहते हैं और दुनिया चलाते हैं।
आप अगर आज एक क्षेत्र में कहीं हार भी गये तो क्या फर्क पड़ता है?
कल जीतोगे नहीं तो परसों और नहीं भी जीते तो तो भी क्या फर्क पड़ता।
किसी और क्षेत्र में जीतोगे।
आपका शरीर स्वस्थ है।अपनी मेहनत से अपने और अपने परिवार के लिये दो वक्त की रोटी कमा रहे हो , आस पड़ोस में लोग समारोह में बुलाते हैं तो आप जीते हुए लोगों में हैं भी या नहीं,
इसका क्या फर्क ही पड़ता है?
मौजें करो।
बस ऐसे ही लिख दिया जो मन में आया।
शायद बकवास।
विपुल मिश्रा
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