आपका -विपुल
हिन्दू मुस्लिम या अतिक्रमण ?
अभी मैंने देखा हल्द्वानी के मामले पर लोग बहुत ज्यादा उत्तेजित हुये दिख रहे हैं । वजह यह है कि यहां पर अतिक्रमण मुस्लिमों ने किया था। अगर आप सुनना चाहें तो कुछ कड़वे तथ्य आपके सामने रखना चाहूंगा ।अगर आपकी इच्छा है तो आगे पढ़िएगा।
इच्छा ना हो तो यहीं पर रुक जाइएगा, क्योंकि आगे मैं जो लिखने वाला हूं वो शायद आपको बहुत ज्यादा अच्छा ना लगे।
सबसे पहली चीज तो यह है कि हल्द्वानी का जो मामला है यह मामला हिंदू और मुस्लिम से ज्यादा सरकारी जमीन पर अतिक्रमण का मामला है ।अब यहां पर चूंकि अतिक्रमण मुस्लिमों ने किया और उसमें भी रोहिंग्या और बांग्लादेशियों का नाम आ रहा है इसलिए आप लोग ज्यादा उत्तेजित हो रहे हैं।
लेकिन शुरुआत कहां से हुई ?शुरुआत कहां से होती है ? यह बात भी आपको बताना चाहूंगा।
सरकारी जमीनों के प्रकार
सरकारी जमीनें 2 तरीके की होती हैं। विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश उत्तराखंड में। एक होती है श्रेणी 5 और एक होती है श्रेणी 6।
श्रेणी 5 की जमीनों में वन और चारागाह को छोड़कर सारी जमीनों के पट्टे किसी को भी हो सकते हैं और श्रेणी 6 की जमीनों में केवल ऊसर है जिसमें पट्टे हो सकते हैं ।श्रेणी छह की जमीन में ऊसर भूमि को छोड़कर किसी भी जमीन पर अधिकार किसी को प्राप्त नहीं हो सकता ।
अब श्रेणी 6 की जमीन है क्या ? जैसे तालाब हो गये, सड़क हो गई ,रास्ता हो गया ,जीटी रोड ,रेलवे की जमीन , सेना की जमीन,श्मशान ,कब्रिस्तान , सरकारी खेल के मैदान , नदी , झील, नाला, नाली आदि।
ऊसर वो जमीन होती है जो खेती लायक नहीं होती है लेकिन मेहनत करके खेती लायक़ बनाई जा सकती है। श्रेणी 5 में परती, पुरानी परती, वन , चारागाह आदि होते हैं। वन और चारागाह के पट्टा नहीं हो सकते।
पट्टा क्या होता है ?
अब पट्टा दरअसल होता क्या है?
ग्राम का प्रधान अपनी कमेटी की मीटिंग करके सरकारी भूमि को गरीब आदमियों में खेती के लिए या मकान के लिए भूमि देने का प्रस्ताव पास कर सकता है और उस तहसील का एसडीएम प्रधान द्वारा प्रस्तावित किए व्यक्तियों को पात्र समझने पर वो जमीन एलॉट कर देता है।
यही पट्टा होता है। खेती का और मकान का भी।
इसकी विस्तृत प्रक्रिया और पात्रता के बारे में बाद में कभी बात करेंगे। अभी मुद्दे पर आते हैं।
अतिक्रमण होता क्यों है ?
तो गांव में बहुत सी सरकारी जमीनें खाली होती हैं जिन पर पट्टे नहीं हो सकते जैसे तालाब , खलिहान आदि
प्रधान सबको पट्टे नहीं दे सकता सो अपने कुछ आदमियों को ऐसी जमीनों पर बसाना शुरु कर देता है । कुछ जबरिया भी बसने लगते हैं । राजनीति के कारण प्रधान मना नहीं करता। और प्रधान का मतलब यहां केवल प्रधान ही नहीं, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद सारे राजनेता हैं ।
प्रशासन का काम यहां अवैध अतिक्रमण हटवाने का होना चाहिए, पटवारी से एसडीएम तक।
लेकिन होता क्या है?
अतिक्रमण करने वाले लोकल होते हैं और वोकल भी। जिनके वोट भी होते हैं। कर्मचारी अधिकारी बाहर के होते हैं । सांसद विधायक का फ़ोन आता है कि जो हो रहा है, होने दो ।
ज्यादा होने पर कोर्ट तो है ही जो बगैर किसी के कागज़ देखे तुरंत स्टे देता है।
आपको हंसी आयेगी कि सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश हैं कि तालाब पर निर्माण नहीं होगा, जो है वो ढहाया जाएगा। वहीं स्थिति ये हैं देश में कि किसी भी तालाब पर मकान बना कर कोई भी कोर्ट से स्टे ले आएगा और जिन्दगी पार कर लेगा। सिविल मामलों के हाल आप जानते ही हैं।
तो अतिक्रमण के दो मुख्य कारण हैं राजनेताओं की वोटों की चाह और भारत की न्यायपालिका।
धारा 122 बी 4 एफ और 123 (1)
यूपी में रेवेन्यू एक्ट में एक जमींदारी विनाश की धारा बहन मायावती ने बढ़वाई थी 122 बी 4 एफ। जिसके अनुसार 13 मई 2007 से पहले से अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति का सरकारी जमीन पर कब्जा है जिसका नियमानुसार पट्टा हो सकता है तो वो सरकारी भूमि उसी हरिजन कब्जेदार को पट्टा की जाए । धारा 123 (1) आवासीय मकानों के लिए थी कि जो हरिजन सरकारी भूमि पर मकान बनाए हो, उस मकान की सरकारी भूमि को उसी हरिजन को दे दिया जाए।
मतलब जब सरकारें ही अतिक्रमण को वैध कर रही थीं तो फ़िर क्या ही बात है? अब क्यों रोना चीखना मचा है?
नज़र खोल कर चारों ओर देखिये
आप मेरी न मानिए, केवल बिलकुल निष्पक्ष नजरिये से अपने गांव घूम आइए, आधा गांव सरकारी जमीन पर अवैध ही बसा होगा।
अपने शहर घूम आइए।
40 प्रतिशत शहर के मकान सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बने होंगे।
सड़कों की जमीनों पर,
नदी के कछार पर, तालाब पाट कर,
अकेले कानपुर में नहर विभाग और रेलवे की भूमि पर 20 प्रतिशत मकान हैं कानपुर के।
आपके शहर में कभी गौर करना।
कानपुर अलीगढ़ जीटी रोड चौड़ी हो रही थी। जीटी रोड की जमीनों पर मकान बने हैं। जीटी रोड नाममात्र की बची है। चौड़ीकरण में हुआ़ क्या?
इतने ज्यादा अवैध मकान निकले कि कन्नौज, बिल्हौर, उत्तरीपुरा, शिवराजपुर, चौबेपुर के अवैध अतिक्रमण न हटाने पड़ें, इसलिए नई जीटी रोड खेतों से घुमवा दी गई। अतिक्रमण जस के तस रहे।
मंधना से आईआईटी तक सड़क की सरकारी जमीन पर जिनके अवैध मकान बने थे, उनको मकानों का पैसा दिया गया सरकार की ओर से, तब गिरवाया गया।
जबकि साफ अतिक्रमण था। ये यूपी के हाल हैं, आदर्श राज्य के
मतलब वोट तंत्र सर्वोपरि है।
तो अतिक्रमण नहीं हट रहा, उसके लिए मत रो,
शुरुआत आपने की थी,
फ़ायदा बांग्लादेशी उठायेंगे। जब तक वोट तंत्र रहेगा।
कई और गफूर बस्ती बनेंगी ।
तैयार रहिये।
आपका -विपुल
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