चलते रहो
हॉरर कहानी
प्रस्तुति -विपुल मिश्रा
दिल्ली से कानपुर वापस आने के लिए बस में बैठे थे और रात दस बजे बस आनंद विहार से निकल भी ली।ज्यादा सवारी थी नहीं। पता नहीं क्यों।
नींद आ गई थी और बारह बजे करीब नींद खुली तो बस को खड़ा पाया।खराब हो गई थी बस।
सूनसान इलाका था।
बस ड्राइवर कंडक्टर ने दूसरी बस रुकवा सवारी ट्रांसफर की।
जिस बस में मेरे बस की सवारियां ट्रांसफर हुई थीं। खचाखच भरी थी।
मुझसे खड़ा भी न हुआ जा रहा था।
जैसे ही बस एक ढाबे पर रुकी मैं उतर गया।
यहां मुझे काफी दूसरी बसें दिख रही थीं जो खाली थीं।
मैंने अपनी बस को जाने दिया और ढाबे पर मन भर के खाया। साढ़े बारह बजे थे तब।
एक बिल्कुल खाली बस स्टार्ट होकर जा रही थी, मैं लपक के उस बस में पहुंचा। वो बस रोडवेज की नहीं थी। सफेद रंग की थी।
मैंने कंडक्टर से पूंछा “कानपुर?”
उसने एकदम सूनी आंखों से मुझे देखा। और मुस्कुराया
“आ जाओ! मंजिल तक पहुंचा देंगे।”
मैं बस में चढ़ गया।
नीचे से बस खाली दिख रही थी पर जब बस में चढ़ा तो एक छोड़ हर सीट भरी थी और लगभग हर व्यक्ति के हाथ में एक छोटा सा काला बॉक्स था। मजे की बात थी कि लगभग हर व्यक्ति या तो काली पैंट या काली शर्ट या काली साड़ी या काली लेडीज ड्रेस में था।कुछ अजीब सा था पर मैं तीन की सीट पर एक किनारे बैठा।
बस चल दी और लाइट बंद हो गई।
मुझे पहली बार एहसास हुआ कि बस के ड्राइवर और कंडक्टर को छोड़ हर सवारी एकदम बुत की तरह बैठी है।कोई हलचल नहीं।
मैने कंडक्टर को टिकट के लिए आवाज लगाई और वो गहरी आवाज में बोला।
“फिक्र मत करो भाई! इस बस में टिकट ऐसे ही काटी जाती है, पैसे नहीं पड़ेंगे।”
मैं कुछ अजीब महसूस कर रहा था। आधी रात का वक्त, सूनसान रास्ता, अजीब सी बस, अजीब लोग और मैं अकेला।
फिर भी हिम्मत करके मुस्कुराया और अपनी सीट से उठ कर कंडक्टर के पास पहुंचा।
“पैसे बोलो यार कानपुर तक के।मजाक छोड़ो!”
“चीं ई ई”
“फटाक “
“रोक मादर “”
अचानक बहुत कुछ हुआ मेरे बोलते ही।
बस को अचानक ब्रेक लगे।
मैं अचानक गिरा।
और बस रुकते ही गाली देते कुछ पुलिसवाले बस में चढ़े।
लेकिन ये कैसे पुलिस वाले थे यार?
सब एकदम लाल पैंट शर्ट में थे और उनकी मुखिया एक अजीब सी मंगोल नस्ल की लड़की थी।
उस लड़की ने कंडक्टर से कहा।
“तुम्हारी बस में एक आदमी ज्यादा है। उसे उतार”
कंडक्टर ने खड़े होकर बड़े तहज़ीब से कहा।
“मैडम!आदमी तो 40 ही हैं। चाहे तो गिन लें।”
“चटाक!”
जवाब में
लड़की ने कंडक्टर के तमाचा मारा।
“मुझे बेवकूफ बनाएगा?”
और उसने बिना देर किए मेरा हाथ पकड़ मुझे बस से नीचे धकेला।
मुझे ऐसा लगा जैसे बड़ा मुश्किल से मैं बस से नीचे उतर पा रहा हूं।
जैसे कोई पूरी ताकत से मुझे वापस अंदर फेंक रहा हो और उससे ज्यादा ताकत वाला मुझे बाहर ढकेलने पर आमादा हो।
मैं बस से नीचे गिरा और उसके बाद जो हुआ मेरे होश ही उड़ गये।
सारे लाल ड्रेस वाले पुलिस वाले मेरे देखते ही देखते बस में चढ़ गये जो लगभग दस बारह थे।
और उन्होंने बस की सवारियों पर मेरे देखते ही देखते ऐसा हमला किया कि सारी सवारियों की गर्दन पर अपने दांत गड़ा दिए और नोच खाने लगे।
वो लेडी पुलिस ,कंडक्टर को खाने लगी थी।
बस की बाकी सवारियां अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रही थीं। और पुलिस वाले आदमखोर बने हुए थे
ये क्या हो रहा था यार?
मैं सोच भी नहीं पा रहा था कि ये हो क्या रहा है? रात के एक बजे सूनसान सड़क पर अजीब सी बस में बैठी अजीब सी सवारियों को अजीब से पुलिस वाले जिंदा चबा रहे थे
पर इन आदमखोरों ने मुझे क्यों छोड़ दिया?
ये मुझे समझ नहीं आ रहा था।मैं भागना चाह रहा था पर मैं इतना दहशत में था कि हिल भी न पाया।
और इतने सब में मुझे ध्यान आया कि मैंने बस की सवारियों को देखा, कंडक्टर को देखा, पर ड्राइवर को तो देखा ही नहीं था।
और इन आदमखोर पुलिस वालों को भी ड्राइवर से कोई मतलब नहीं था।
बस में ड्राइवर था भी या नहीं?
मैं सोच में था,दिखा नहीं था ड्राइवर मुझे एक भी बार।
पर मेरी दुविधा दूर हुई।
बस में ड्राइवर था नहीं, बस में ड्राइवर थी।
और ये ड्राइवर मेरे पड़ोस में चार साल पहले सुसाइड करके खत्म हुई एक लड़की थी, सुनीता।
मैंने देखा था,वो अब बस की स्टीयरिंग छोड़ उठी थी और बस की बाएं तरफ की आगे वाली खिड़की से मुझे झांक के देख हाथ हिला कर मुस्कुरा रही थी।
मैं सिहर उठा।
ये जो भी हो रहा था, मेरी समझ के बाहर था। सुनीता ने हाथ हिला कर मुस्कुरा कर मुझे बुलाया। मैं एक पल के लिए भूल गया था कि वो मर चुकी है।
मैं मंत्रमुग्ध था उसकी ओर बढ़ा कि तभी बस के अंदर से एक सवारी की गर्दन हाथ में पकड़े, एक बांह मुंह में भर चबाते हुए वो मंगोल पुलिस वाली चिल्लाई।
“भाग यहां से! तेरी वजह से ही हम यहां आए हैं।
दोबारा बस में मत चढ़ना।”
मैं कुछ समझ पाता उसके पहले ही सुनीता की गर्दन भी उस मंगोल लड़की के मुंह में थी।
बस वहीं खड़ी थी।
मैं हिम्मत करके वहां से भागा।
“आज रात किसी गाड़ी में मत बैठना!”
मेरे कानों में मंगोल लड़की की आवाज टकराई।
मैं पसीने पसीने था।
मेरे कदम इतने भारी हो रहे थे कि चलना मुश्किल था।
मेरे कानों में सांय सांय गूंज रही थी और दिल तेजी से धड़क रहा था।ये जो भी हो रहा था मेरे साथ मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था।
अचानक मैंने महसूस किया कि अभी तक सूनसान सड़क पर अचानक गाड़ियों का आवागमन बहुत तेज होने लगा।
और मजे की बात कि हर गाड़ी वाला मुझसे पूछ रहा था कि क्या मैं कानपुर जा रहा हूं। यदि हां तो उसकी गाड़ी में बैठ जाऊं।
पहले कुछ बस वाले मिले, फिर टैक्सी वाले।
मैं सबको मना करता गया।
पर अब उन गाड़ियों की संख्या बढ़ने लगी थी।
तभी मैंने सड़क किनारे एक ढाबा देखा।
मुझे उस मंगोल लड़की की बात याद थी कि आज रात मुझे किसी गाड़ी में नहीं बैठना। और रात भर मैं पैदल भी नहीं चल सकता था। ढाबा में रुकना एक अच्छा विकल्प था।
मैं ढाबे में पहुंचा तो वेटर मुझे बाहर की बजाय अंदर ले गया। रेस्टोरेंट में।
यहां बाकी सब ठीक था, बस एक खास बात थी।
लगभग सारी सामान्य सीटें भरी थीं पर इस रेस्टोरेंट में कुछ विशेष सीटें भी थीं जो किसी जीप कार हवाई जहाज या रिक्शा या बग्घी की शक्ल में थीं।
वेटर ने बड़े अदब से कहा।”सर! आप बग्घी वाली सीट पर बैठ सकते हैं। आज खाली है, वर्ना खाली नहीं मिलती। ये सीट हमारे ढाबे की शान है!”
मैं थका हुआ था। भीड़ बहुत थी रेस्टोरेंट में और ये बग्घी वाली सीट खाली थी।
मैं यहां बैठ गया।
खाने में वही दाल फ्राई, रोटी और चावल मांगा।
खाना आया और मैं चुपचाप खाने लगा।
मैंने गौर किया, अचानक से रेस्टोरेंट से ग्राहक उठ के जाने लगे थे।
मेरे चार रोटी और हाफ प्लेट चावल खत्म करते करते वहां केवल ढाबे का स्टाफ और मैं ही बचा था। खाना खाने के बाद मैंने बिल मांगा और वेटर हंसा।
“सर!इस टेबल पर बिल नहीं करता।”
“क्यों?”
मैं हैरान हुआ।
“क्योंकि इस टेबल पर खास मेहमान ही बैठते हैं”
वेटर अजीब सी मुस्कुराहट के साथ बोला।
मैं उसे देखता रह गया।
“काफी कॉम्प्लीमेंट्री है सर! लाऊं!”
मैं वेटर की बातों से कुछ अजीब सा महसूस तो कर रहा था, पर अभी सब कुछ इतना नॉर्मल था कि ज्यादा ध्यान नहीं दिया और कॉफी मंगा ली। सोचा काफी पीने के बाद पैसे दे दूंगा।
थोड़े देर में ही काफी आ गई।
मैं उसे पीने ही वाला था कि तभी
रेस्टोरेंट का दरवाजा झड़ाके से खुला और वोही लेडी मंगोल पुलिस अफसर अपने साथी पुलिसवालों के साथ मेरे सामने थी।
“मेरे लिए भी काफी ले आ बे”
उसने वेटर से घूर के कहा और बग्घी में मेरे बगल में बैठ गई।
और थोड़े कड़े स्वर में बोला!
“आज रात तुम्हें किसी गाड़ी में नहीं बैठना था। भूल गए?”
“कहां बैठा किसी गाड़ी में?”
“अभी कहां बैठे हो?”
उसके सवाल पर मैंने ध्यान दिया कि मैं बग्घी में बैठा हूं।
“पर ये गाड़ी थोड़े ही है!”
मैं हंसा
“ये शोपीस है!”
“इस शोपीस पर बैठने वाले के सौ से कम पीस नहीं होते!”
वो मंगोल अफसर गुर्राई।
मुझे उससे डर लग रहा था।
थोड़ी देर में वेटर काफी लाया । मैं डर के मारे उस मंगोल लेडी के सामने काफी नहीं पी पा रहा था।
उसके साथी बाकी पुलिस वाले विभिन्न सीटों पर बैठ चुके थे।
मंगोल लड़की ने वेटर से काफी ली और एक सिप लेने के बाद बोली।
“इस का रिजर्वेशन था आज रात का?”
“नहीं”
“फिर?”
वेटर सर झुका के रह गया।
मैं कुछ समझ पाता उसके पहले ही ढाबे के अंदर और बाहर के सारे स्टाफ पर इस आदमखोर पुलिस गैंग ने हमला कर दिया था। मेरे देखते ही देखते कई आदमी इस पुलिस गैंग के पेट में पहुंच चुके थे। और वहां मेरे और मंगोल पुलिस वाली के गैंग के अलावा कोई नहीं दिख रहा था।
सब सन्नाटा था।
इतने सब के दरम्यान न मैंने काफी पी पाई थी, न इसका ध्यान ही रहा था।
और मैं इतना दहशत में था कि लग रहा था कभी भी मेरा हार्टफेल हो सकता है।
उस मंगोल सी दिखती अजीब सी पुलिस वाली ने मुझे घूरते हुए बड़े ठंडे स्वर में कहा।
“तीसरी बार बचाने हम लोग आएं, जरूरी नहीं है।”
मैं पसीने में तर था।
उस मंगोल लेडी पुलिस ने फिर कहा।
“आज की रात दो चीजें याद रखना! एक किसी भी गाड़ी में या किसी भी गाड़ीनुमा चीज में बैठना ही नहीं। दूसरा पैदल चलते रहना। बैठना नहीं है। रुकना नहीं है और किसी की सुनना नहीं है। जब तक दम है, चलते रहना।”
“जी”
मैं सहम के बोला।
एक अजीब बात थी।
मुझे उन आदमखोर पुलिस वालों को देख पहली बार तो थोड़ा डर भी लगा था।
इस बार डर नहीं लगा था और ये लग रहा था कि शायद ये मेरे शुभचिंतक हैं।
पर हैं कौन ये सब?
और इस मंगोल पुलिस वाली लड़की के चेहरे की ओर देखने का ताब भी मैं नहीं ला पा रहा था।
अपने आप नज़रें झुक जाती थीं।
“ट्रैफिक सड़क पर बहुत था। चलना दूभर हो रहा है और हर ड्राइवर गाड़ी रोक कर मुझे बैठने को कह रहा था। इसलिये यहां रुका”
मेरे मुंह से बस इतना ही निकला था। मैं सर झुकाये था। वापस सर उठाया तो वो मंगोल लड़की नहीं थी। इंसानी जिस्म के टुकड़े चबाते कुछ अजीब पुलिस वाले जरूर थे वहां।
एक एक करके वो रेस्टोरेंट से निकलने लगे। मैं खड़ा ही था कि तभी पीछे से मुझे किसी ने बहुत जोर से धक्का देकर आगे धकेला।
मैं एक कदम बढ़ा पाने में भी दिक्कत महसूस कर रहा था।
ऐसा लग रहा था कोई ताकत मुझे वापस अंदर धकेल रही है।
पर मेरे पीछे जो था, वो बहुत ताकतवर था।
मुझे धकेलते हुए दरवाजे तक ले आया।
मेरी छाती और पीठ पर असहनीय दबाव पड़ रहा था।
पर मुझे पीछे से आगे धक्के देने वाला जीत गया और मैं रेस्टोरेंट से बाहर गिरा आकर।
और तब मैंने देखा, मुझे पीछे से धक्का देने वाली वही मंगोल लड़की थी।
मुझे देखते हुए उसने शायद अपनी पैंट की जेब से एक मानव हाथ निकाला और चबाते हुये मुझे घूरती रही।
मुझे डरना था,पर मैं डर नहीं पा रहा था,आश्चर्य में था।
क्योंकि उसके ठीक बगल में मेरा एक दोस्त सत्यम खड़ा था और हाथ में शायद आलू के परांठे का रोल थामे इशारे से मुझे बुला रहा था।
सत्यम पिछले एक साल से लापता था।
पर वो यहां क्यों था यार?
“यहां से निकलो। कहीं रुकना नहीं, कहीं बैठना नहीं। जितना दम हो पैदल चलते जाना।”
मंगोल लड़की रेस्टोरेंट के दरवाजे पर खड़ी अपने शब्दों को चबाती बोली और उसने सत्यम को अपने हाथ से रेस्टोरेंट के अंदर धकेल दिया।
उसकी जीप आकर रुकी और वो जीप में बैठ मेरे आगे से निकल गई।
मैं निपट अकेला था।
मैं वापस मेन रोड पर था।
एक भी गाड़ी नहीं दिख रही थी।
न कोई इन्सान न जानवर।
मैं पैदल चलते जा रहा था।
ये बहुत अजीब और बहुत डरावना एहसास होता है।
आपके चारों तरफ सन्नाटा। कोई नहीं।
बस आपके कदमों की आवाज।
खट खट
खट खट।
मेरे हाथ में घड़ी थी।
लगभग पौने दो का समय था।
पर मेरा मोबाइल कहां?
और मोबाइल छोड़ो।
मेरा बैग, मेरा बटुआ।
मेरे पास के कैश पैसे।
ये कुछ भी मेरे पास क्यों नहीं था?
मैं दिमाग पर जोर डाल रहा था।
ये सब आइटम कहां हैं?
मेरे पास एक बैग था। मेरे पर्स में मेरे सारे कार्ड थे और कुछ 5 हजार कैश।
शर्ट की जेब में हजार के फुटकर नोट।
पेन, बस की टिकट।
कहां था सब?
मेरे जिस्म पर केवल पैंट शर्ट जूते और घड़ी ही थी।ये घड़ी मुझे मेरी बीवी ने गिफ्ट की थी कुछ दिनों पहले। जब हम उज्जैन गये थे महाकाल के दर्शन को।
वहीं मंदिर परिसर में खरीदी थी और वहीं पहना दी थी उसने मुझे।
मैं घड़ी कम ही पहनता था पर इस बार उसकी जिद पर दिल्ली पहन गया था।
मैंने गौर किया। मैं वो पैंट शर्ट पहने था जो मेरे पिताजी मेरे लिए तब लाए थे जब मैं पहली नौकरी पर जाने वाला था।
ग्रे पैंट और हरी शर्ट।
जूते मोजे वो थे मेरी बहन ने मुझे खरीद के दिये थे,जब मैं पहली बार उसके नये घर गया था।
मैं जो कपड़े बस में पहन के चढ़ा था,ये वो नहीं थे।
ये क्या मैं कोई सपना देख रहा था, या ये वास्तव में हो रहा था।
यही सोचते सोचते मैं आगे बढ़ता जा रहा था कि अचानक मैं एक चौराहे पर पहुंचा।
तीन तरफ सन्नाटा था और चौथी तरफ मुझे कुछ गाड़ियां जाती दिखीं और कुछ बिल्डिंगों होटलों रेस्टोरेंट के जगमगाते बोर्ड भी।
मैं उसी रास्ते पर चल दिया।
इस रास्ते पर मजे की चहल पहल थी।
सड़क किनारे काफी रेस्टोरेंट थे, नाइट क्लब थे। गाड़ियां निकल रही थीं।
और यहां कोई बस भी नहीं दिख रही थी।
महंगी गाड़ियां थीं और कोई मुझे अपनी गाड़ी में बिठाने की कोशिश नहीं कर रहा था।
मैं मस्ती में आगे बढ़ता गया और तभी अचानक।
मेरे आगे से जाती एक स्टाइलिश कार ने दरवाजा खोला और उसमें से कुछ फेंका गया।
कार आगे चली गई।
ये एक आठ दस साल की बच्ची थी जिसके शरीर से खून बह रहा था और साफ लग रहा था उसके साथ दरिंदगी हुई है।
मैंने देखा, किसी ने उस बच्ची पर ध्यान नहीं दिया था।
उसने कातर नजरों से मुझे देखा।
“हेल्प!”
मुझे रुकना नहीं था।बैठना नहीं था। ये सब मैं भूल गया था।बच्ची की हालत खराब थी, वो मुझसे मदद मांग रही थी। मुझे मदद करनी थी।
मैं उसके पास बैठा।
“अंकल!मुझे बचा लो।”
वो कराही।
मेरे पास फोन नहीं था जो मैं एंबुलेंस बुला लेता।
सड़क पर मेरे पास कुछ लोग खड़े हो गए थे।
एक ने मुझे फोन दिया
“एम्बुलेंस को फोन कर दो।मुझे नंबर नहीं पता।”
वो बोला।
मैंने उसका फोन लेकर 108 फोन डायल किया भर था कि एंबुलेंस मेरी बगल में आकर खड़ी हो गई थी।
“चढ़ाओ चढ़ाओ।लड़की को जल्दी चढ़ाओ।”
एम्बुलेंस कर्मी की आवाज आई और बच्ची को चढ़ाते चढ़ाते कब मेरा पैर एंबुलेंस की सीढ़ी पर पड़ा, पता न चला।
पता नहीं किसने मुझे पीछे से हल्का सा धक्का दिया और किसी ने ऊपर से हाथ बढ़ा के मुझे अंदर घसीटा।
मैं एंबुलेंस में था और एंबुलेंस सेकेंडों में सौ की रफ्तार पकड़ चुकी थी।
कुछ सोचने समझने के पहले ही मैं अस्पताल में था और जैसे ही एंबुलेंस का दरवाजा खुला।
मैं फिर हैरान था।
वोही मंगोल
वोही मंगोल लेडी पुलिस अफसर गैंग।
पर इस बार ये सब सफेद कोट क्यों पहने थे।
और इस बार उनके साथ ये सफेद रंग का इतना बड़ा कुत्ता क्यों था?
उस मंगोल लड़की ने मुझे बड़े गुस्से से घूरा और कुत्ते सहित एंबुलेंस में चढ़ी।
मेरे साथ उस एंबुलेंस में दो एंबुलेंस कर्मी और थे।
आगे ड्राइवर था।
“रिजर्वेशन है इस आदमी का?”
उस मंगोल लड़की ने एक एंबुलेंस कर्मी से पूंछा।
“वेटिंग है!”
अभी तक बेसुध पड़ी घायल बच्ची ने आंखे खोल के अजीब सी गहरी आवाज में कहा जो शर्तिया किसी बच्ची की आवाज तो नहीं ही थी।
“मतलब कन्फर्म नहीं न?”
मंगोल लड़की बोली
“नहीं, वेटिंग”.
और तुरंत उसके बाद
और तुरंत उसके बाद जो हुआ वो बहुत वीभत्स था,पर मेरे लिये नया नहीं था
मंगोल लड़की ने एक सीटी बजाई और अगले ही पल उसके कुत्ते के मुंह में घायल बच्ची का पूरा सर था और वो चबर चबर करके लड़की का सर चबाने लगा।
मंगोल लड़की ने एक एंबुलेंस कर्मी का सर अपने मुंह में भरा और दूसरे को बाहर फेंका।
जिसे हवा में ही उसके साथियों ने कैच किया और हवा में ही चबा गए पूरा।
उधर एंबुलेंस रुक चुकी थी और ड्राइवर ने पलट के पीछे देखा।
अब ये क्या तमाशा था यार?
ड्राइवर को देख मेरे पैरों तले की जमीन खिसक चुकी थी।
ये ड्राइवर भी तो वोही मंगोल लड़की थी।
तो मेरे सामने आदमी का मांस चबाती ये कौन?
जो हो रहा था, वो मेरी समझ से बहुत बाहर की चीज थी।
“सुनो!” आगे बैठी मंगोल लड़की ने मुझे बुलाया।
मैं आगे बढ़ा उसकी बात सुनने। उसने मेरा एक हाथ पकड़ लिया।
ये देखते ही मेरे सामने बैठी मंगोल लड़की ने मेरा दूसरा हाथ पकड़ के मुझे खींचा।
मैं फिर फंस गया था।
इस बार मंगोल गैंग के बाकी सदस्यों को भी मदद करनी पड़ी मुझे एंबुलेंस से बाहर घसीटने में।
मैं बाहर निकला। पर मुझे उस अस्पताल की धरती पर न गिरने दिया गया।
मुझे कंधों पर उठा के चार मंगोल गैंग के लोग वहां से तेज़ी से भागे और मुझे सड़क पर लाकर फेंक दिया।
उनके पीछे वहीं मंगोल लड़की अपनी हमशक्ल मंगोल लड़की का आधा कटा धड़ लेकर उसे चबाती आई।
“अगली बार का भरोसा नहीं कि हम बचाने आ पाएं।”
उसने अपने हाथ में पकड़े शरीर का सिर चबाते चटखारा लगाया।और फिर वो पहली बार मुस्कुराई।
“बहुत दिनों बाद इतना स्वादिष्ट भोजन मिला है, बस तुम्हारे कारण!”
मेरी नजर अपनी घड़ी पर पड़ी।
ढाई बजा था।
“बिना रुके सीधे चलते जाना। पीछे मुड़कर मत देखना। किसी की मदद मत करना। कोई आवाज दे तो अनसुना कर देना। किसी गाड़ी में या गाड़ीनुमा चीज में मत बैठना।”मुझसे इतना कहा उसने
और फिर मेरे आगे एक एंबुलेंस रुकी और वो मंगोल गैंग उसमें बैठ के निकल गया।
मैं चुपचाप फिर चलने लगा।
चलता गया चलता गया।
मैं इस पूरी सड़क पर अकेला ही था।
अब मैं कहीं रुकने वाला नहीं था।
किसी की गाड़ी में न बैठने वाला था, न अब किसी की मदद करने वाला।
पर इस रात की मुश्किलें इतनी आसानी से कम नहीं होने वाली थीं।
मैं अपनी ही पदचाप सुनता इस सूनसान रास्ते पर गहराती रात में आगे बढ़ता जा रहा था। मेरे पीछे अचानक काफी लोगों की पद चाप सुनाई देने लगी थीं। मुझे मेरा नाम लेकर कई लोग मेरे पीछे से बुला रहे थे। काफी आवाजें जानी पहचानी थीं। मैं बगैर पीछे देखे आगे बढ़ता रहा।
मुझे लगा मेरे पीछे के लोग मेरे बहुत करीब आ चुके हैं।मैंने अपनी पीठ और गर्दन के पिछले हिस्से पर कई इंसानी सांसों को महसूस किया।
मेरे कान में कोई चिल्ला सा उठा था मेरा नाम लेकर।
मैं इस सबसे पीछा छुड़ाने को कस कर भाग उठा। भागता गया भागता गया भागता गया।
इतना भागा कि मेरे कदम भारी होने लगे थे।सांसें फूलने लगी थीं और थकावट हद से ज्यादा महसूस होने लगी थी।
सीने के नीचे हल्का हल्का दर्द होने लगा था।
अब कोई मेरे पीछे नहीं था और मैंने अपनी चाल धीमे की लेकिन मेरे कदम डगमगा रहे थे और अब मुझसे चला नहीं जा रहा था।
फिर भी मैं आगे बढ़ता गया थोड़ा हौसला करके। पर थोड़ा और आगे जाते ही मेरा दिमाग खराब हो गया।
आगे तो रास्ता ही नहीं थी यार।
यहां तो पानी था। शायद कोई नदी।
करीब 300 मीटर की पाट की नदी और एक भी पुल नहीं। ये हो क्या रहा था मेरे साथ भाई?
उस मंगोल लड़की के मुताबिक मुझे रुकना नहीं था। आज रात भर चलते रहना था और किसी गाड़ी में नहीं बैठना था।
पर यहां तो रास्ता ही नहीं थी और तैरना मुझे आता नहीं था।
ऊपर से नदी का पाट भी बड़ा चौड़ा था और नदी से आती पानी की आवाज अलग ही डरावनी थी।
मैंने थोड़ा हिम्मत करके नदी में एक पैर डाला और दूसरा।
दो ही कदमों में पानी मेरी गर्दन तक था।
मतलब नदी बहुत ज्यादा गहरी थी। अब क्या करूं?
मुझे रुकना ही पड़ा और मेरे रुकते ही दो काम हुये।
पहला ये कि मेरे दोनों पैरों को दो तरफ से किसी बड़े जलीय जानवर शायद मगरमच्छ ने मुंह से पकड़ा और दूसरा मेरे ठीक पास एक मोटर चालित नाव आकर रुकी जिसमें वोही मंगोल लड़की और उसका गैंग था।
इस बार नेवी की ड्रेस थी उन सबकी।
उस मंगोल लड़की ने मेरे हाथ थामे और मुझे ऊपर खींचा।
मेरे जूते उतर गए थे और घुटने के नीचे पैंट फट गई थी।
दांतों के निशान थे और खून भी निकल आया था मेरी पिंडलियों से।
पर मुझे उस मंगोल लड़की ने ऊपर खींचा और पता नहीं कैसे मुझे हवा में जोरों से फेंका और मैं नदी पार करके दूसरी तरफ की सड़क पर था।
“चलते रहो। रुकना नहीं!”
उसकी आवाज मुझे सुनाई दी। मैंने पलट के पीछे देखा भी नहीं।
सवा तीन का समय था।
मैंने फिर घड़ी देखी।
एक अच्छी बात ये थी कि इतनी दूर मुझे फेंकने के बाद भी मैं सुरक्षित था क्योंकि मैं एक गोबर कूड़े के ढेर पर आकर गिरा था।
हड्डियां बच गई थीं और उस मंगोल लड़की के हाथ लगाते ही मेरी थकावट भी काफी कम हो गई थी।
मैं चुपचाप सर झुकाये आगे बढ़ता जा रहा था।
अब ये रास्ता हाईवे जैसा लग भी नहीं रहा था। ये रास्ता कच्चा होता जा रहा था और आगे बिलकुल संकरा।
रास्ते के किनारे खड़ी झाड़ियां मेरे बदन को छूने लगी थीं।
सड़क किनारे के बबूलों से टकरा कर मेरी शर्ट फट गई थी।
मेरे पिंडलियों से खून निकल रहा था। मेरी बाजुओं से खून निकल रहा था। मैं संकरे रास्ते पर आगे बढ़ता जा रहा था और फिर एक ऐसी जगह पहुंचा जहां ये रास्ता खत्म ही था।
मैं शायद लगभग किसी पहाड़ की चोटी पर था। आगे रास्ता नहीं था। नीचे सैकड़ों मीटर गहरी खाई थी और करीब 300 मीटर आगे फिर से रास्ता दिख रहा था।
मैंने गौर किया।बगल से कुछ रोशनी सी आ रही थी और कुछ आवाजें।ये एक रोप वे ट्रॉली थी। जिसमें कुछ लोग बैठे थे और ये ट्रॉली दूसरी तरफ जा रही थी।
मैंने गौर किया।
पहाड़ी के किनारे जहां मैं खड़ा था, दाईं तरफ एक पगडंडी सी थी जो उस रोपवे ट्रॉली के स्टेशन तक गई थी और वहां इतनी ट्रॉलियां और इतने लोग दिख रहे थे कि हर दूसरे सेकंड मुझे एक रोपवे ट्रॉली उस स्टेशन से छूटती दिखी।
मैं उस तरफ मुड़ कर चला और रोपवे ट्रॉली स्टेशन तक पहुंचने ही वाला था कि स्टेशन के ठीक पहले मुझे वो मंगोल लड़की अपने कुत्ते के साथ मिली।
उसके साथ अब उसके गैंग का कोई नहीं था।
मैं उसे देख अब चौंकता नहीं था। अब डरता भी नहीं था पर इस बार उसका चेहरा देख के ही डर लग आया।
एकदम लाल और सुर्ख आँखें।
होंठो से खून टपकता हुआ। उसका कुत्ता गुर्रा रहा था और शायद वो भी गुस्से में था।
“इधर देखो।”
उस लड़की के हाथ के इशारे पर मैंने देखा पहाड़ी के इस कोने से दूसरे छोर तक पुल के रूप में एक लकड़ी का बहुत लंबा और करीब दो फुट चौड़ा पटरा पड़ा था।
“इस पुल पर चढ़ के अपने आप पार करो इस खाई को।”
वो गुर्राई।
“बहुत पतला पुल है।”
मैं मिमिया ही था उसके आगे।
“सिर्फ पंद्रह मिनट। उसके बाद ये पुल नहीं रहेगा।”
उसने फिर गुर्रा कर कहा।
“और इसे तुम्हें अपने आप पार करना है। कोई मदद नहीं होगी!”
मैं उस मंगोल लड़की पर भरोसा करने लगा था।
मुझे लग रहा था कि कुछ उल्टा सीधा होगा तो वो सम्भाल लेगी।
मैंने उस दो फुट चौड़े पटरे पर कदम रखा।
पहला फिर दूसरा।
आगे बढ़ा।
पटरा हिल रहा था और अचानक कई रोप वे ट्रॉलियां मेरे बगल से निकलने लगीं।
हर ट्रॉली में कई लोग थे जो हंस रहे थे, रो रहे थे चिल्ला रहे थे, गा रहे थे ताली बजा रहे थे। पर सब ट्रॉलियों में एक ही साउंड चल रहा था जो मुझे थोड़ी देर बाद समझ आया।
“राम नाम सत्य है।
पन्द्रह मिनट का वक्त है!”
मैं हड़बड़ाया और पटरे पर गिरा।
दोनों हाथों और टांगों से पटरे को फांसा और आगे बढ़ने लगा। मेरे ठीक पीछे मंगोल लड़की का कुत्ता चलने लगा था अब।
शायद मेरे गिरते ही वो मेरे पीछे आ गया था।
और वो मंगोल लड़की उसके पीछे।
अचानक मेरी नजर मेरी घड़ी पर पड़ी।
पौने चार था अभी।
थोड़ी देर बाद मेरे हाथ पैरों से खून बहने लगा था।जूते उतर चुके थे।पैंट घुटने के नीचे से गायब थी।शर्ट के चीथड़े उड़ चुके थे।
गाल और ठोड़ी पर लकड़ी के पटरे की रगड़ से छिल गया था पर मैं आगे बढ़ता रहा।
दोनों हाथों और पैरों के बीच लकड़ी के पटरे को करके।
नीचे की खाई की गहराई अलग प्राण निकाले थी मेरी।
जैसे तैसे इस दहशत भरे माहौल में मैं करीब 100 मीटर आगे बढ़ा।
पटरे पर आगे पता नहीं कहां से गर्म बालू आ गई। फिर रेगिस्तानी कांटे और आगे कंकड़।
मेरा शरीर छिल चुका था।
दो सौ मीटर पार हो चुका था। आगे गर्म अंगारे थे और मैं दर्द सह के भी आगे बढ़ता रहा। जब दूसरे छोर की दूरी पचास मीटर से भी कम रह गई थी तो अचानक पटरा जोर जोर से हिंलने लगा।
मैंने देखा उस पटरे को दूसरे छोर पर खड़े मेरे दोस्त एक साल से गायब दोस्त सत्यम, चार साल पहले सुसाइड की लड़की सुनीता हथौड़ों से मारकर लकड़ी के पटरे का वो पुल तोड़ने की कोशिश कर रहे थे जिस पर मैं आगे बढ़ रहा था।
मंगोल लड़की के कुत्ते ने भौंकना शुरू कर दिया था।
और मंगोल लड़की की आवाज मेरे कानों में पड़ी।
“बिना रुके बढ़ते रहो।जब लगे कि दूरी कम है और छलांग लगा सकते हो तो छलांग लगा देना।”
मैं करीब 25 मीटर और धीरे धीरे आगे बढ़ा।
राम नाम सत्य का शोर मचाती कई ट्रॉलियां मेरे बगल से गुजर रही थीं और उस ट्रॉली में बैठे लोग मुझ देख कर मुंह चिढ़ा रहे थे। लकड़ी का पटरा बेहद गर्म होता जा रहा था और सत्यम और सुनीता अब इस पटरे को तोड़ने के लिये जोरों से हथौड़े चलाने लगे थे।
अब दूसरे छोर से दूरी मात्र 25 मीटर लगभग रह गई थी और मैंने अपनी स्पीड बढ़ाई।
22 ,20 18 15 और अब मात्र 10 मीटर दूरी थीं।
मेरे परखच्चे उड़ चुके थे।
अब लग रहा था कि गिर ही जाऊं नीचे तो मुक्ति मिल जाए।
पर तभी उस मंगोल लड़की का कुत्ता छलांग मार के मेरे ऊपर से आगे निकला और उससे डर के सत्यम और सुनीता भागते दिखे मुझे।
अब वो कुत्ता पलटा और मेरी आंखों में झांका।जैसे कह रहा हो थोड़ा और हिम्मत करो। मेरी आंखों में झांकते
वो कुत्ता उल्टे पैर पीछे की ओर चलने लग गया था जैसे मुझे हिम्मत दिला रहा हो।
मैं पूरी दम लगा कर धीरे धीरे धीरे आगे बढ़ा।
9 मीटर 8 मीटर 7 मीटर और जब दूरी लगभग 5 मीटर रह गई थी तो पटरा नीचे गिरने लगा था।
मैं थोड़ा हिम्मत करके आगे बढ़ा और छलांग लगा दी।
दूसरी तरफ की सड़क का छोर मेरे हाथ में था।
पूरी दम लगा के मैं ऊपर आया और बैठ गया।
अब मुझमें चलने की हिम्मत नहीं थी।
और पूरी तरह बेहोश होने मैंने केवल इतना देखा कि वो मंगोल लड़की और कुत्ता लगभग मेरे बगल में बैठे थे और किसी मानव का मांस खा रहे थे।
मैंने बेहोश होने के पहले अंतिम बार घड़ी देखी।
चार बजा था।
मुझे जब होश आया तो ये हॉस्पिटल का बेड था।
शायद आईसीयू?
मेरे नजरें खोलते ही चीख पुकार मच गई थी नर्सों की।
कुछ डॉक्टर आये।मुझसे हाल चाल पूंछा। फिर मैं फिर बेहोश हो गया।दोबारा होश आया फिर आईसीयू में ही था। तिबारा होश आया फिर भी वहीं
कुछ दिन मैं आईसीयू में रहा और मुझे बस दवाई दी गई। किसी ने कुछ न बताया। जो लोग मिलने आते थे, बस हिम्मत देने वाली बातें करके लौट जाते।
थोड़े दिनों बाद आईसीयू से नॉर्मल बेड पर शिफ्ट हुआ तब मुझे पता चला कि दिल्ली से कानपुर आते आते जब पहली बस खराब होने के बाद मुझे दूसरी सवारियों के साथ दूसरी बस में ट्रांसफर किया गया था तो भीड़ ज्यादा होने की वजह से मुझे घबराहट होने लगी थी और उसी दरम्यान किसी जहर खुरानी सदस्य ने मुझे एक बेहद जहरीली सुई चुभो दी थी जिससे मैं बेहोश हो गया था।बेहोशी में मेरी हालत काफी खराब हो गई थी तो मुझे ड्राइवर कंडक्टर ने एक एंबुलेंस बुलवा के मुझे इस हॉस्पिटल भिजवा दिया था। उस जहर खुरानी की सुई का जहर काफी खतरनाक था जिससे वैसे ही मेरी जान को खतरा था और फिर यहां पर हॉस्पिटल में मुझे दी गई कुछ दवाओं का मुझे रिएक्शन हो गया तो मेरी जान जाते जाते कई बार बची थी।
उपसंहार
ये चमत्कार ही था जो मैं जिंदा बच पाया था। कई दिनों बाद की बात है।
तबियत खराब होने की वजह से मैं घर पर ही था कि बाहर दरवाजा खटका।
मैं जाने को था कि श्रीमती जी बोलीं, “तुम मत उठो।अरे वो नटों की बिटिया होगी।”
“कौन?”
“अरे! एक नटों के मोहल्ले की बिटिया है।अजीब सी भूटानी शक्ल की। दो तीन महीने पहले अपने कुत्ते के साथ खेलती खेलती इधर आई थी। मैं दरवाजे पर खड़ी सेब खरीद रही थी, बोली मुझे भी खाना है।कल से भूखी हूं ,कुछ नहीं खाया।मैंने एक सेब दे दिया और ये कहा जब भूख लगे, बिना पूंछे इधर चले आना।फिर बहुत बार आई। कभी रोटी खाती,कभी परांठे। मुझसे टॉफी वगैरा मांगती थी। डब्बे रखे ही हैं।मैं दे देती हूं खुश हो जाती है।”
“मुझे कभी नहीं दिखाई दी?”
मैं बोला।
“अरे वो तभी आती थी जब तुम बाहर होते थे। आज घर पर हो देख लो। एक तो अजीब से कपड़े रहते इसके”
श्रीमती जी हँसी।
मैं उठ के बाहर गया।
करीब 10 साल की एक प्योर मंगोल नस्ल की लड़की अपने छोटे से सफेद कुत्ते के साथ खड़ी थी।
मेरी पत्नी ने उसे मुट्ठी भर टॉफियां दीं। वो खिलखिला उठी।
“तुम्हें ये टॉफी बहुत पसंद हैं न बेटा।”
श्रीमती जी बोलीं।
“हां!”
वो मेरी तरफ देखती मुस्कुराई।
“तो और भी बहुत दूंगी बस अंकल जी जल्दी ठीक हो जाएं, इसके लिये रोज भगवान से प्रार्थना किया करो न”
श्रीमती जी बोलीं।।
“बिलकुल! मैं प्रार्थना करती हूं कि अंकल जी का टिकट हमेशा वेटिंग में रहे। कभी कन्फर्म न हो।”
मैं ये सुन के हक्का बक्का था।
तभी श्रीमती जी को अंदर कोई काम याद आया, शायद दूध चढ़ा था।
वो अंदर भागी।
मैं घुटनों के बल आकर उस बच्ची के आगे हाथ जोड़ के झुक गया।।
जब सर उठाया तो न बच्ची थी न कुत्ता।
श्रीमती जी और टॉफियां लाई थीं। मुझसे पूछा
” बच्ची कहां गई?”
मैं क्या बताता?
दुबारा वो बच्ची दिखी नहीं मेरी तरफ।
श्रीमती जी आज भी उसका इंतजार करती हैं।
बाद में पता चला वो बच्ची नटों के मोहल्ले की तरफ से आती जरूर थी, पर नटों की बच्ची नहीं थी, न उधर रहती थी।
कुछ महीनों पहले से ही वो इधर दिखने लगी थी और वो किधर से आती थी किधर को जाती थी, किसी को पता भी न चलता था। अक्सर शहर के बाहर बसे देवी मंदिर के बाहर खेलती दिख जाती थी लोगों को। एक कुत्ते के साथ
अभी बहुत दिनों से किसी को दिखाई नहीं दी।अब लोग बोलते हैं कि वो खुद देवी जी ही थीं जो खेलने निकलती थीं। कुछ बोलते हैं कि वो देवीजी की कोई योगिनी थी और कुछ बोलते हैं कोई भली पिशाचिनी थी।
🙏🙏
आपका – विपुल
सर्वाधिकार सुरक्षित- Exxcricketer. com
शानदार सस्पेंस और रोमांच से भरी कहानी।
अती सुन्दर कहानी है अच्छी लगी आप की कहानी 👌
Thrilling & scary at times, absolutely surprising from the someone who had written mostly funny stories earlier.
Keep exploring new horizons 👌