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निश्चल त्यागी

ऑस्ट्रेलिया की अजेय टीम

हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने आईसीसी टेस्ट चैंपियनशिप जीत ली है और अब ऑस्ट्रेलिया सभी आईसीसी ट्रॉफी जितने वाली पहली टीम और सबसे ज्यादा आईसीसी ट्रॉफी जीतने वाली टीम बन चुकी है।
सर डॉन ब्रैडमैन से अभी के पैट कमिंस तक के समय तक ऑस्ट्रेलिया आज भी सभी प्रारूपों में सबसे स्थिर और प्रभावशाली टीमों में से एक क्रिकेट टीम रही है।
कभी टेस्ट की सबसे शक्तिशाली टीमों में से एक होने वाली ऑस्ट्रेलिया ने जैसे जैसे क्रिकेट में बदलाव हुए तो वैसे वैसे तेज़ी से खुद को इन बदलावों के अनुरूप ढाला।
एकदिवसीय मैचों की शुरुआत हुई तो ऑस्ट्रेलिया की टीम तेज़ी से उभरी।अबतक कई एकदिवसीय विश्व कपों का आयोजन हुआ है लेकिन उनमें से एक टीम जो सबसे ज्यादा एकदिवसीय विश्वकप जीतकर सबसे सफल है, वह है ऑस्ट्रेलिया, जिनके पास पांच एकदिवसीय विश्व कप हैं।

क्रिकेट का सबसे छोटा फॉर्मेट टी-20 आया तो ऑस्ट्रेलिया ने अपना जलवा बनाये रखा। इन्हें हराना आसान न था। ऑस्ट्रेलिया ने टी 20 विश्व कप ट्रॉफी भले एक ही जीती हो,पर ये बात सब जानते हैं कि कोई टीम उन्हें जीतने से रोक सकती है तो वह ऑस्ट्रेलिया ही है।

जब हम ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट के स्वर्ण युग की बात करते हैं, तो इसके बारे में लोगों की अलग-अलग राय है।
कुछ लोग कहते हैं कि 1948 की टीम सबसे पूर्ण ऑस्ट्रेलिया टीम थी।जबकि इतिहास के और आगे जाने पर, 19वीं सदी की शुरुआती टीम या 1921 की ऑस्ट्रेलिया टीम के बारे में निष्कर्ष निकाला गया कि वे बहुत बेहतर थे।लेकिन फिर भी उस समय में केवल टेस्ट क्रिकेट ही था।जबकि क्रिकेट में सालों के बाद आये दो नए प्रारूप और जुड़े, तो फिर से महानतम टीम कौन सी है उस पर बहस शुरू हुई।

उस मायने में, यदि हम पीछे मुड़कर देखने की कोशिश करें और ऑस्ट्रेलिया के स्वर्ण युग की बात करें तो, तो निश्चित रूप से सन 1998 के बाद वाली ऑस्ट्रेलिया टीम पर लगभग सभी क्रिकेट पंडितों के सुर एकमत हो जाते हैं ।1990 के आखिरी वर्षों से 2000 के पहले 7-8 वर्षों तक विश्व क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया की दहशत हुआ करती थी।


स्टीव वा (493 अंतर्राष्ट्रीय मैच 18,496 रन और 287 विकेट) और रिकी पोंटिंग (560 अंतर्राष्ट्रीय मैच 27,483 रन, टेस्ट में दूसरे और वन डे में तीसरे सर्वाधिक रन) दोनों ने अपने नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया को इतना पहुंचा दिया था कि उस टीम को हराने के लिए आईसीसी ने बड़े बड़े खिलाडियों को जोड़ कर विश्व एकादश टीम बनायीं पर उस विश्व-11 का हाल भी बहुत बुरा हुआ। स्टीव वा के समय की ऑस्ट्रेलिया टीम परिवर्तन की दशा में थी, लेकिन रिकी पोंटिंग की कप्तानी के साथ ऑस्ट्रेलियाई टीम ने खुद को सभी प्रारूपों की सबसे अधिक ऊँचाइयों तक पहुंचा दिया।
रिकी पॉंटिंग की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया ने सारे प्रारूपों में कुल 324 मैच खेले और 220 जीते (जीत प्रतिशत 67 %)।


इतना ही काफी है ऑस्ट्रेलिया का दबदबा बताने के लिए।

रिकी पोंटिंग 1999 में ऑस्ट्रेलिया के एकदिवसीय विश्व कप जीतने के अभियान में शामिल थे, और 2003 और 2007 में कप्तान के रूप में (जहां वह पूरे एकदिवसीय विश्व कप के दौरान अपराजित रहे थे)।
2006 में टी 20 क्रिकेट से बहुत पहले,जब रिकी पोंटिंग की कप्तानी थी (जहां उन्होंने 105 गेंदों पर 164 रन बनाए थे)
तो ऑस्ट्रेलिया ने 50 ओवर वाले खेल में साउथ अफ्रीका के खिलाफ 434 रन का अद्भुत रिकॉर्ड बनाया था।

लेकिन क्या ऑस्ट्रेलिया बस रिकी पोंटिंग पर आश्रित थी?
नहीं!

पोंटिंग एक ऐसे कप्तान थे, जो जानते थे कि उनकी टीम की क्या क्षमता है और अपने खिलाडियों से बेहतर परिणाम कैसे निकलवाया जा सकता है।


शीर्ष क्रम में स्थान लेने वाले बल्लेबाजों जैसे मैथ्यू हेडन (273 मैच 15066 रन) ,माइकल क्लार्क (394 मैच 17112 रन) , खुद की कप्तानी में एक वर्ल्ड कप भी ), डेमियन मार्टिन (279 मैच 9872 रन), माइकल हसी (302 मैच 12398 रन), माइकल बेवन (वन डे में 53 से ज्यादा का औसत, जिन्हे उनके दौर में मिस्टर फिनिशर कहा जाता था ), जस्टिन लेंगर (टेस्ट में 7696 रन )।
ये सभी अपने बैटिंग कौशल से किसी भी टीम को तहस नहस कर सकते थे। आल राउंडर एंड्रू साइमंड्स (सारे प्रारूपों में 6887 रन और 165 विकेट्स ) का होना सोने पर सुहागा होता था।

और फिर सारे प्रारूपों में ताबड़तोड़ बल्लेबाजी कर विपक्षियों को दहशत में लाने का काम करके विश्व क्रिकेट के महानतम विकेट कीपर बल्लेबाज एडम गिलक्रिस्ट सामने वाली टीम के ताबूत में आखिरी कील ठोंक देते थे (396 मैच, 15461 रन विकेट के पीछे 905 शिकार)। गिलक्रिस्ट टीम के उपकप्तान रहे और विकेट के पीछे से उनकी सलाह गेंदबाजों के बहुत काम आती थी।

लेकिन इस टीम को जिसने और प्रभावी बनाया तो वो तो थे इस टीम के गेंदबाज़, जो निसंदेह सर्वकालीन महान में से एक रहे। ये गेंदबाज़ झुण्ड में बल्लेबाजों का शिकार करते थे।


ग्लेन मैकग्राथ (तेज़ गेंदबाज़ के तौर पर 949 अंतर्राष्ट्रीय विकेट) अनुपम, सटीक पर विनाशकारी। दुनिया के महानतम बल्लेबाज भी इनका तोड़ नही निकाल पाए। उनकी गेंदें बल्लेबाजों में भयानक भ्रम पैदा करती थी।
गेंदों से ही नही अपने शब्दों से भी बल्लेबाज़ों पर मानसिक दबदबा रखते थे।
जेसन गिलेस्पी, (402 अंतर्राष्ट्रीय विकेट) एक उग्र गेंदबाज,
जो दहाड़ते हुए आते थे मैदान पर साथ।
उनकी गेंदें न सिर्फ तेज थीं,बल्कि सटीकता से भरी होती थीं। मैकग्राथ के साथ मिलाकर गिलेस्पी ने एक ज़बरदस्त जोड़ी बनायीं थी।

ब्रेट ली, (718 अंतर्राष्ट्रीय विकेट)ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के वो अद्वितीय गेंदबाज जिनकी गेंदें आग सी चलती थीं।दुनिया के सबसे तेज़ गेंदबाज़ में से एक। जिनके लिए लगातार 150 की रफ़्तार से गेंद डालना कोई बड़ी बात नही थी।उनकी गेंदबाजी की तेज़ी जो हर बल्लेबाज को घबरा देती था,कई बल्लेबाजों के हाथ पैर तोड़े ब्रेट ली ने।

माइकल कास्प्रोविच, (245 टेस्ट विकेट) ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के एक माहिर गेंदबाज थे। उनकी गेंदों में कठोरता थी, जो बल्लेबाजों को परेशान करती थी। उनकी प्रशंसा उनकी गेंदबाजी की जटिलताओं को समझने वाले हर कोई करता है।

नेथन ब्रेकेन, (205 अंतर्राष्ट्रीय विकेट) ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के वो गेंदबाज जिन्होंने वन डे क्रिकेट में कई उपलब्धियों को हासिल किया। उनकी गेंदे मध्यम गति की थीं पर स्विंग ऐसी तीखी कि विपक्षी बल्लेबाजों के लिए खतरा बनती थीं।उन्होंने अपने टीम को कई विजयों में मदद की।

और तेज गेंदबाजों के साथ साथ थे दो महान लेग स्पिनर जिन्होंने बड़ी बड़ी टीमों के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया की जीतें बहुत आसान बना दी थीं।

शेन वॉर्न (दुनिया के सर्वकालीन महान लेग स्पिनर 1001 अंतर्राष्ट्रीय विकेट) ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के सबसे मशहूर और प्रभावशाली गेंदबाज रहे।
उनकी शानदार वेरिएशन और घुमाव ने उन्हें खेल की दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। वे यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया हर जगह विकेट लेने में कामयाब रहे।

स्टुअर्ट मैकगिल (मात्र 44 टेस्ट में 208 विकेट )
कहते हैं कि अगर शेन वार्न न होते तो मैकगिल उनसे भी ज्यादा विकेट लेते।ज्यादातर मौका शेन वार्न पर प्रतिबन्ध लगने के दौरान मिला और मैकगिल ने कभी भी वार्न की कमी नहीं खलने दी

ये थी ऑस्ट्रेलिया की सबसे अजेय टीम जिसके जैसी टीम अभी तक कोई टीम न बन पायी है।


निश्चल त्यागी
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