अर्शदीप महाजन
बहुत दिनों से लिखना चाहता था। मैं लिखना चाहता था अपनी वेदना, अपना क्रोध, अपनी विवशता। मैं लिखना चाहता था मूर्खता, धूर्तता। मैं लिखना चाहता था आदिपुरुष में क्या लिखा गया, क्या दिखाया गया, क्या बनाया गया, किसने लिखा, क्यों लिखा, किसने बनाया और दिखाया, क्यों बनाया और दिखाया। लोग क्यों इसे देखना चाहते हैं और लोग क्यों इसकी आलोचना कर रहे हैं। क्यों किसी को कपड़े बुरे लगे, किसी को संवाद, किसी को बदली हुई कहानी और किसी को सब कुछ। क्यों कुछ लोग इसको इसलिए देखना चाहते हैं कि कम से कम ऐसी फ़िल्में बनना बंद ना हों और कुछ लोग बस चुप्पी साध कर बैठे हैं। जब इतना कुछ कहने का हो तो अक्सर कुछ भी कहना कठिन हो जाता है और समझ पर छाए हुए संशय के बादल प्रतीक्षा करने पर ही छंट पाते हैं।
मैं उनके बारे में कुछ नहीं कहूँगा जिन्होंने धन के लालच में इस फ़िल्म का प्रचार किया और कर रहे हैं। भारतवर्ष के दुर्भाग्य में ऐसे लोगों का होना भी कलियुग में हरि इच्छा ही होगी।
वर्ष 2020 में मैंने यह ट्वीट किया था कि मैं तब से इस फ़िल्म के विरोध में खड़ा हूँ जब से पता चला है कि इन्होंने फ़िल्म का नाम आदिपुरुष रखा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी दिखाने की स्वतंत्रता, प्रामाणिक काव्यों से दूर हटकर और रामकथा को अपने तरीक़े से दिखाकर भी किसी तरह के उत्तरदायित्व से स्वयं को परे रखने का प्रयास ही आपको रामकथा का नाम रामायण ना रखकर आदिपुरुष रखने के लिए प्रेरित करता है।
और वर्ष 2021 में मैंने यह ट्वीट किया था कि मैं नहीं चाहता कि बॉलीवुड हमारे धर्मग्रंथों या इतिहास के किसी भी विषय को छुये भी, क्योंकि धर्मग्रन्थों और इतिहास के विषय पर कुछ कहने के लिए जो निष्कपट निश्चय की आवश्यकता होती है वह बॉलीवुड में नहीं है। इस बात को उन्होंने एक बार नहीं अपितु कई बार अपनी बनाई हुई फ़िल्मों से सिद्ध किया है।
आदिपुरुष नाम रखने से ही यह पूर्व निहित था कि वह ऐसा करके स्वयं को किसी भी उत्तरदायित्व से मुक्त रखना चाहते हैं। और ऐसा कोई तभी चाहता है जब उसे पता है कि वह प्रामाणिक शास्त्रों में वर्णित कथा से हटकर कुछ कहने जा रहा है। फ़िल्म का यह नाम ही इतना समझने के लिए बहुत था कि वह राम कथा के साथ क्या करने जा रहे हैं और तब से तीन वर्ष बाद हुआ भी वही। पूरी फ़िल्म में प्रभु श्री राम का नाम एक बार भी नहीं लिया गया। राम को राघव, सीता को केवल जानकी, लक्ष्मण को शेष और हनुमान को बजरंग बना कर राम कथा प्रचारित करके उन्होंने अपने मन की कथा कह दी।
वह ऐसा कर सकते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि सनातन धर्म में विश्वास रखने वाले ना तो उनका गला काटने आएँगे, ना उनके घरों और सिनेमा घरों में आग लगाने आयेंगे और ना ही सड़कों पर दंगे करने। एक दो छुट-पुट घटनायें हो भी जायेंगी तो हिंदुत्व को कलंकित करके फ़िल्म को और अधिक प्रचार ही मिलेगा। वैसे भी पठान फ़िल्म को झूठा सच्चा सफल करवा कर बॉयकॉट वाले हिंदुत्व समर्थकों को इतना अपमानित किया जा चुका है कि आदिपुरुष को लेकर अभी तक कोई भी संगठित होकर बॉयकॉट की पुकार भी नहीं कर सका।
छ: सौ करोड़ लगाने का दावा करने के बाद जान बूझ कर एक ऐसी आस्था जो पूरे भारतवर्ष को एक साथ बाँधती है, अपने धन की बर्बादी सुनिश्चित कर उस आस्था का परिहास बना कर रख देना, किसी सोची स्मझी रणनीति का अंग ही हो सकती है फ़िल्म निर्माण नहीं।
दुखद और वेदनापूर्ण यह है कि प्रारम्भिक संकेतों और बॉलीवुड का इतिहास जानते हुए भी पूर्ण भारत इनकी और एक आशा के साथ देख रहा था क्योंकि भारत अपने राजा, अपने मर्यादा पुरुषोत्तम, अपने प्रभु श्री राम को बड़े पर्दे पर देखने को लालायित था और क्यों ना होता, लेकिन उन आशाओं को ना केवल कुचला गया अपितु झूठ और मक्कारी से मूर्ख बनाया गया।
क्रोध इस बात का है कि हमारा धर्म हमें राज्य की क़ानून व्यवस्था पर विश्वास रखना सिखाता है और राज्य की शिक्षा व्यवस्था ने हमें इतना कायर बना दिया है कि हम एक व्यवस्थित समाज के तौर पर हम अपनी शक्ति और सामर्थ्य अपने स्वार्थों में खो चुके हैं जो क़ानून व्यवस्था के असफल होने पर हमारी पुकार शासक तक पहुँचाने में असमर्थ है।
सन्त जन कहते हैं कि अगर आप प्रभु का चरित्र निभाना चाहते हैं तो पहले अपने मन, विचार, वाणी और आहार को सात्विक कीजिए। फिर प्रभु से अपने लिए भक्ति माँगिये। बिना मन में भक्ति भाव के आप पर ना तो हरि कृपा होगी और ना ही आपके अभिनय में प्रभु की छवि दिखाई देगी। दिखाई देगा तो एक नीरस, निस्तेज, भाव शून्य चेहरा, जैसा आदिपुरुष में प्रभास का दिखाई दिया।
और आपको अगर लगता है कि यह अपने धर्म, सभ्यता, संस्कृति, रीति रिवाजों से दूर, मांस-मदिरा भक्षक, मन, विचार और वाणी से तामसिक प्रवृत्ति के वाहक, बॉलीवुड के यह लोग, शुद्ध भक्ति के साथ हमारे भगवान पर फ़िल्म बना सकते हैं, तो आप भी कृपया अपने आत्मसम्मान को पुनर्जागृत करिए और यथार्थ से अपना परिचय करवाइए। क्योंकि यह लोग रुकने वाले नहीं हैं। अभी आदिपुरुष आई है, आगे रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की रामायण भी आने वाली है।
अन्त में केवल इतना ही कहना चाहूँगा जो मैं हमेशा कहता हूँ कि पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक पूरे भारत वर्ष को कोई अगर एक सूत्र में बाँधता है तो वह प्रभु श्री राम ही हैं। और प्रभु ने तो आदिपुरुष को भी निमित्त बनाकर पूरे भारत को फिर से एक साथ खड़ा कर दिया है अपने राजा और प्रभु श्री राम के लिए।
अर्शदीप महाजन
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