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आत्महत्या का विचार छोड़ो

आपका -विपुल

शायद 1992 था।कन्नौज में नुमाइश लगी थी और बरसात का मौसम था।मुझे ट्यूशन के बाद अपने एक दोस्त के साथ उसकी साइकिल पर 3 किलोमीटर दूर जाना पड़ा।कुछ सवाल छूटे थे,गणित की कॉपी उससे लेकर कॉपी करने थे।

अगले दिन चेक होनी थी या टेस्ट था शायद।

घर में 7 बजे पहुंचा।बहुत डांट पड़ी। क्योंकि तब फोन नहीं था घर में और खबर नहीं थी मेरी।

लेकिन उस डांट और उस कॉपी लाने का फ़ायदा कुछ न हुआ।

अगले दिन कंडोलेंस हो गई।

मुझसे 2 साल आगे पढ़ता अभिषेक खत्म हो गया था। उसने आत्महत्या की थी।जहर खाकर। उसके घर गया। शरीर नीला पड़ा था। उसके पिताजी मेरे मोहल्ले में किराए पर रहते थे बहुत पहले। चार बहनों के बीच इकलौता भाई। उसके निधन के बाद जुएं में डूब गए। उस लड़के की  कुछ गलती थी पर  कारण इतना बड़ा भी नहीं था कि आत्महत्या कर ली जाए।

1997 था शायद और मेरे साथ क्रिकेट खेलने वाले एक दूसरे मोहल्ले के लड़के ने सलफास खा ली अपने घर पर किसी बात पर नाराज होकर। संजू नाम था। लगभग 22 23 का रहा होगा तब। मुझसे काफी बड़ा था। उसका अंत समय याद है मुझे। कुएं पर लेटा वो रो रहा था कि उसे मरना नहीं, उसका दम घुट रहा था। सलफास अचूक होती है। आदमी बचता नहीं।

उस साल शायद इतनी मौतें सलफास की वजह से हुई थीं कि शायद उसी साल सरकार ने सलफास पर बैन लगा दिया था।

दोनों ही केसों में शायद आत्महत्या का प्रयास करने के बाद लड़के मरना नहीं चाहते थे।

बुद्धि आ गई थी। अभिषेक के पिता भी यही बता रहे थे कि उसने कहा था वो मरना नहीं चाहता।

90 प्रतिशत मामलों में जब आदमी मृत्यु सामने देखता है तो बचने का प्रयास करता है।

भागने का प्रयास करता है। पर केवल सौभाग्यशाली लोग ही बच पाते हैं।

फांसी के केस में ये आंकड़ा शायद 95 प्रतिशत तक होगा।

फांसी से मरना सबसे कठिन और दर्दनाक मौतों में से एक है।

गर्दन चटक जाती है, आंखें निकल आती हैं और ज्यादातर मौतों में आदमी की टट्टी पेशाब भी निकल जाती है।

एक पुलिस वाले ने बताया कि खुद फांसी लगाने के बाद भी लगभग हर आदमी बचने का प्रयास करता है। कोई बचा ले तभी बच पाते हैं फांसी वाले।

और यहां से मैं अपनी मूल बात शुरू करता हूं।

क्या कोई समस्या इतनी बड़ी हो सकती है कि तुम्हारे आत्महत्या करने के बाद ही निपटे?

तुम मर ही जाओगे तो समस्या थोड़े न निपटने वाली!

बस उसने तुमको निपटा दिया।

खुद मरने के बाद न केवल अपने मां बाप, परिवार और मित्रों को दुख पहुंचाओगे और उनका टाइम भी खराब करोगे।

आत्महत्या करके मरने वालों से कोई सहानुभूति नहीं करता भाई। बस उन सबको परेशानी ही होती है।

पहले परिवार वाले सोचेंगे कि कैसे भी पुलिस केस से बचें। अगर नहीं बचे तो चीर फाड़ होगी पोस्टमार्टम हाउस में और फिर सबका समय खराब होगा।

हो सकता है तुम्हारे मां बाप जिनका कभी पुलिस से साबका न पड़ा हो, दरोगा के आगे गिड़गिड़ाते दिखें।

 वो भी मुरव्वत नहीं करेगा सुसाइड केस में।

पोस्टमार्टम हाउस में लाइन लगानी पड़ती है। तुरंत नहीं होता।

कभी कभी 36 घंटे तक लगते हैं।

तो फिर क्या ये सोच के उस आदमी ने आत्महत्या की होती है कि वो अपने परिवार दोस्तों को ये दुःख देगा?

मेरे शब्द कड़वे ज़रूर हैं पर मैं ये सब देख चुका हूं।

आपकी कोई भी समस्या इतनी बड़ी नहीं हो सकती कि आपकी जान लेकर जाए।

जब जिंदा रहोगे, समस्या सुलझा सकते हो। मरने के बाद नहीं सुलझेगी न समस्या।

विराट कोहली भी आउट होकर मैदान के बाहर जाने पर मैच नहीं जिता पाता।

मैच जीतने के लिए पिच पर खेलना ही पड़ता है, खेल में रहना पड़ता है।

आउट होकर मैदान के बाहर जाने के बाद कोहली भी बस हमारे आपके तरह खेल से बाहर होकर खेलने वालों को देखता रह जाता है। कुछ कर नहीं पाता।बस वो पवेलियन में होता है, आप हम अपने घर पर।

डेल कार्नेगी की एक किताब ने मेरा जीवन बहुत हद तक बदला।

उसमें एक जगह लिखा था कि समस्याएं केवल दो तरह की होती हैं। एक जिन्हें सुलझा सकते हो, दूसरी जिन्हें नहीं सुलझा सकते।

जिन्हें सुलझा सकते हो , उन्हें सुलझाने का प्रयास करो।

जिन्हें नहीं सुलझा सकते, उन पर माथा पच्ची ही क्या करना?

और अंत में।

मैं ये अपना चुका हूं।

अगर बहुत ज्यादा दिक्कत में हो तो अपना केवल आज देखना।

केवल आज का दिन जियो।

केवल ये चौबीस घंटे काटो। जिंदा रह के। कैसे भी ।

जैसे भी तुम्हें अच्छा लगे।

खेल कर, खेल देख कर, पोर्न देख कर, सिगरेट पीकर या शराब भी पीकर, कैसे भी।

जिंदा रहने की उमंग बस आज के कठिन दिन जिंदा रखो।ये दिन ये 24 घंटे कट जाएं तो  हो सकता है अगला सूर्योदय तुम्हारी किस्मत का भी सितारा चमका दे।

मैं ये बकवास करता रहता हूं।

किसी के काम आए तो ठीक।

वरना एक बुद्धिहीन का विलाप समझ के आगे बढ़ जाना।

आपका दिन शुभ हो

आपका -विपुल

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