विकेटकीपर बल्लेबाज
विपुल मिश्रा
सिर्फ गंभीर क्रिकेट प्रेमियों के लिये।
एक सामान्य टेस्ट टीम का गठन कैसे होता है?
3 प्रमुख चीजें चाहिए।
बल्लेबाज गेंदबाज और विकेटकीपर।
ज्यादातर 5 बल्लेबाज,5 गेंदबाज और एक विकेटकीपर या 6 बल्लेबाज,4 गेंदबाज और एक विकेटकीपर।
अब विकेटकीपर चूंकि गेंदबाजी करेगा नहीं तो उसकी बल्लेबाजी प्लस प्वाइंट मानी जाती है। हालांकि टेस्ट जीतने के लिये कोई भी टेस्ट टीम उस बल्लेबाज को जिसकी विकेटकीपिंग खराब है से ज्यादा उस विकेटकीपर को चुनना पसंद करेगी, जिसकी बल्लेबाजी बहुत खास न भी हो। ज्यादातर स्पिन लेती पिचों पर एक विशेषज्ञ विकेटकीपर निर्णायक होता है। क्योंकि एक मिस किया हुआ स्टंप या एक छोड़ी गई कैच पूरे मैच का निर्णय तय कर सकती है। और अगर विकेटकीपर से दो तीन चांस छूटे तो आप शर्तिया हारोगे।
वेस्टइंडीज की अजेय टीम के विकेटकीपर भी बहुत खास बल्लेबाज नहीं हुआ करते थे । सशक्त ऑस्ट्रेलिया के इयान हीली और सशक्त दक्षिण अफ्रीका के डेव रिचर्डसन जैसे भी बहुत तोप बल्लेबाज नहीं थे। एलेक स्टीवर्ट इंग्लैंड के विकेटकीपर ज़रूर थे जो अच्छे बल्लेबाज थे।
पर एंडी फ्लावर और एडम गिलक्रिस्ट के आने के बाद कई टीमों की स्थिति बदली।
एक विकेटकीपर के तौर पर अपनी अपनी टीमों में गिलक्रिस्ट और एंडी फ्लावर की स्थिति में बहुत फर्क था। एंडी फ्लावर अपने टीम के मुख्य बल्लेबाज थे और गिलक्रिस्ट के साथ स्टीव वॉग, मार्क वॉग रिकी पॉन्टिंग जैसे दिग्गज खेलते थे तो उन पर ज्यादा दबाव नहीं होता था कि हमेशा परफॉर्म करें।
कुमार संगकारा, एबी डी विलियर्स जैसे विकेटकीपर बल्लेबाज जब आगे आये तो भारत की टीम भी किरण मोरे, नयन मोंगिया से आगे बढ़ कर पार्थिव पटेल, दिनेश कार्तिक और महेंद्र सिंह धोनी तक बढ़ी।
धोनी भारत के पहले ऐसे विकेटकीपर थे जो मध्य क्रम के बल्लेबाज की जिम्मेदारी भी पूरी शिद्दत से निभाते थे। हालांकि धोनी की इस बात के लिए आलोचना होती है कि इंग्लैंड को छोड़ कर सेना देशों में अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा, पर कम से कम भारत में धोनी एक विशुद्ध मध्य क्रम टेस्ट बल्लेबाज की जिम्मेदारी निभाते थे।
धोनी की परंपरा को ऋषभ पंत ने आगे बढ़ाया और इस लड़के ने सेना देशों में शतक तक ठोक दिये। भारत में भी चले पंत। लगभग 4 साल और दो विश्व टेस्ट चैंपियनशिप चक्र में पंत ने भारतीय टेस्ट बल्लेबाजी की नाक एक विकेटकीपर होते हुये भी बचाई। यहां मैं मूल बात पर आता हूं।
धोनी के समय तब भी सचिन द्रविड़ लक्ष्मण वीरू जैसे दिग्गज खेलते थे। पंत के समय ये सीन नहीं था। कोहली रहाणे और पुजारा 3 साल तक ढोए ही गए टेस्ट क्रिकेट में। पंत जैसे विकेटकीपर और सुंदर शार्दूल जडेजा अक्षर और अश्विन जैसे गेंदबाजों ने कई बार भारत की नाक अपनी बल्लेबाजी से बचाई और सुपरस्टारों की नाकामी छुप जाती थी।
वृद्धिमान साहा बहुत अच्छे विकेटकीपर हैं पर बल्लेबाज के तौर पर पंत से कम। फिर भी कई बार घर के टेस्ट मैचों में पंत पर उन्हें केवल इस बात के लिए प्राथमिकता दी गई जो सही भी था।
धोनी का 2019 सेमीफाइनल में धीमी पारी खेलने पर मजाक उड़ाने वाले और सेना देशों में खराब प्रदर्शन पर मजाक उड़ाने वाले भूल जाते हैं कि धोनी का भी मुख्य काम विकेटकीपिंग ही था। धोनी विकेटकीपर के तौर पर चुने गए थे।मुख्य बल्लेबाज के तौर पर नहीं। पंत की भी काफी मजाक उड़ी जब वो सीमित ओवर मैचों में वो सफल न हुआ। तब भी लोग ये भूल जाते थे कि वो मुख्य बल्लेबाज नहीं विकेटकीपर के तौर पर खेलता था।
फिर भी धोनी और पंत इस आलोचना के अधिकारी थे क्योंकि हम सब इनसे बल्लेबाजी में बहुत उम्मीद करते थे।
पर अब स्थिति बहुत अलग है।
पंत चोटिल हैं। आपके दूसरे ऐसे बल्लेबाज जो विकेटकीपिंग कर सकते हैं जैसे के एल राहुल और ईशान किशन वो किसी न किसी कारण से अनुपलब्ध हैं। के एस भरत को मौके मिले हैं और भरत की विकेट कीपिंग लगभग ओके ओके है पर बल्लेबाजी औसत।
हालांकि लोग यहां भूल जाते हैं कि ऑस्ट्रेलिया के भारत दौरे पर दूसरे मैच में भरत ने पुजारा के साथ खड़े होकर जीत दिलाई थी और पिछ्ले ही मैच में भरत ही आखिरी क्षणों तक लड़े थे अश्विन के साथ और पहली पारी में 41 बनाए थे।
भारतीय टीम इंग्लैंड के खिलाफ 2024 टेस्ट सीरीज का पहला मैच अपनी खराब बल्लेबाजी के कारण हारी थी और दूसरे में भी जायसवाल और गिल के शतक ही थे, किसी और का अर्धशतक भी नहीं रहा। भारत को विकेटकीपर ऋषभ पंत की हीरो वाली इनिंग याद आ रही है। भारत के बल्लेबाज कुछ कर नहीं पा रहे और इसका खामियाजा भरत जैसे विकेटकीपरों को उठाना ही पड़ेगा।
हो सकता है भरत का ये अंतिम मैच हो जाये पर भारत की मध्यक्रम की बल्लेबाज़ी की समस्या अब नासूर बन चुकी है और भारत के सुपरस्टार क्रिकेटर बल्लेबाज मैच जीतने के लिये अपनी बल्लेबाजी से ज्यादा अपने विकेटकीपर की बल्लेबाज़ी पर आश्रित हैं,ये भी साबित हो जायेगा इससे।
विपुल मिश्रा
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