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औकात

विपुल मिश्रा

मौका है मौसम है और मन भी हो गया थोड़ा सा।

आज बात करते हैं औकात की।

ये शब्द वजनदार शब्द है उर्दू का। और थोड़ा सा कड़वा भी।

शुरू से शुरू कर सकते हैं और मेरी आदत दूसरों पर उंगली उठाने के पहले खुद के गिरेबान में झांकने की हमेशा से रही है।

इसलिए बात खुद से ही शुरू करते हैं।

अपनी तमाम बकवास और घमंड के बाद भी और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक ठीक ठाक वजूद बना लेने के बाद भी मैं एक आम कस्बाई मध्यवर्गीय सरकारी कर्मचारी हूं जो न तो बहुत अमीर है, न बहुत आकर्षक और न  बहुत बुद्धिमान, अगर ये बात मैं भूल जाऊं तो अपनी औकात को भूलने जैसा होगा। मैं इसे जल्दी नहीं भूलता और इससे मुझे हमेशा ही फ़ायदा हुआ।क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं क्या क्या नहीं कर सकता।

क्या करना मेरी औकात के बाहर है।

मैं वो सब चीजें अवॉइड करता हूं।

एक जगह पढ़ा था।आपको तीन चीजें कभी नहीं भूलनी चाहिए।

अपने मां बाप,

अपने भगवान ,

और अपनी औकात।

औकात मतलब ये जान लो कि तुम क्या नहीं कर सकते।

जब तुम ये जान लोगे कि तुम क्या नहीं कर सकते, तो आधी समस्याएं दूर हो जायेंगी क्योंकि तुम उन चीजों में हाथ ही नहीं डालोगे।

और बात यहीं से बेरोजगारी पर शुरू कर सकते हैं।

बहुत बार ऐसा होता है कि हम उन चीजों में रोजगार ढूंढने का प्रयास करते हैं जो हम कर ही नहीं सकते।

मैं फील्ड में रहा हूं और कुछ बातें महसूस की। जैसे 

बहुत ज्यादा शर्मीले स्वभाव वाला यहां सफल नहीं हो सकता और हर पल हल्की बातें करने वाले को अध्यापक की लाइन में नहीं होना चाहिए ।

पर समस्या ये भी है हिंदुस्तान में कि आप एक निश्चित विषय की पढ़ाई के बाद दूसरी लाइन में नहीं जा सकते।

केमिकल इंजियनरिग का कोर्स किए लड़का डॉक्टर नहीं बन सकता। मेडिकल पढ़ चुका लड़का इंजीनियर नहीं बन सकता।पर मैं इतने हाई स्टैंडर्ड लोगों के लिए लिखता भी नहीं।

मैं उन लड़कों के लिए लिख सकता हूं जो कुछ भी पढ़ने के बाद काल सेंटर में नौकरी करते हैं या 10000 रुपए में महीने भर पढ़ाते हैं।

तो भाई, वहां पढ़ाई की लाइन का फर्क नहीं पड़ता।

 एक बार अगर आप खुद में समझ पाए कि आप क्या नहीं कर सकते तो जो लाइन आपको समझ आए उसमें आगे बढ़ सकते हैं। और यहां फिर कहूंगा।

दो चीज़ें जरूरी होंगी।

पहली बेशर्मी और दूसरी निरंतरता।

आपके पास जॉब नहीं है और अगर आपको साड़ी की दुकान में सेल्समैन की जॉब भी मिल रही तो ले लो,

बेहिचक।

जो आपका मजाक उड़ाएंगे, वो आपको रोटी खिलाने नहीं आयेंगे रोज।

कमाना आपको ही पड़ेगा।

सरकारी नौकरी अच्छी है, प्राइवेट भी ठीक, मगर नहीं मिल पा रही तो हीरो बने बेरोजगार बैठे रहने से भी कोई भला न होने वाला।

आप अंबानी के लड़के नहीं हो और सुनील शेट्टी के दामाद भी नहीं।

काम करना पड़ेगा।

बाइक रिपेयरिंग से लेकर बैंड में झुनझुने बजाने तक का जॉब खराब नहीं। नंबर 1 का पैसा है। 

मैं फिर कह रहा हूं, सरकारी या अच्छी प्राइवेट नौकरी मिल रही तो कर लो, पर जब नहीं मिलेगी तो ये सब करने में इतनी बुराई भी नहीं ।

पिज्जा सेलिंग पार्ट टाइम जॉब केवल फिल्मों में अच्छे लगते हैं।

बेशर्मी के बाद दूसरी चीज निरंतरता।

पहले ही दिन से कोई दुकान नहीं चलती।

पहले ही दिन से किसी डॉक्टर के क्लिनिक में मरीजों की भीड़ नहीं लगती।

समय लगता है।लोग देखते हैं कि आप इस काम में जो आप कर रहे हो, कितना सीरियस हो।

सालों लगते हैं विश्वास जमाने में।

इसलिए, न तो जल्दी लाइन बदलो न ही जल्दी से किसी असफलता पर निराश हो।

लगातार लगना पड़ेगा।

मैं अपने यहां के एक दसवीं फेल लड़के के बारे में बता सकता हूं।

सुबह अखबार बांटता था।

दिन भर एक किराने की दुकान पर नौकरी। रात में बैंड में झुनझुना बजाता था क्योंकि और कुछ बजाना नहीं आता था उसे। दस साल लगातार ये किया उसने।

आज उसकी एक छोटी सी किराने की दुकान खुद की है और एक छोटा सा घर भी पचास गज का।

आपके अगल बगल हीरो पड़े ही रहते हैं।

ध्यान से देखो।

बकवास ही की न??

🙏🙏

विपुल मिश्रा

सर्वाधिकार सुरक्षित – Exxcricketer.com


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