आपका विपुल
आदिपुरुष की सिनेमाटिक आजादी
बात आदिपुरुष से शुरू करते हैं जो निर्माता भूषण कुमार , निर्देशक ओम राउत और संवाद लेखक मनोज मुंतशिर की एक रामकथा से प्रेरित फिल्म है।
कहने को तो ये रामकथा से प्रेरित फिल्म है, पर दरअसल एक रामायण बनाने की कोशिश थी आदिपुरुष की टीम की।
बाहुबली फेम प्रभास और ठुमकेश्वरी फेम कृति सेनन राघव और जानकी की भूमिका में हैं।
लक्ष्मण को शेष नाम दिया है और हनुमान जी को बजरंग।
रावण सूर्पनखा आदि पात्रों के नाम वही हैं जो रामायण में हैं।
जैसा कि बताया गया इस फिल्म के निर्माण में 624 करोड़ लगे हैं और हनुमान जी के लिये एक सीट प्रत्येक सिनेमाहाल में आरक्षित करने की बात की गई तो लोगों को लगा ये वाकई कोई अच्छी धार्मिक फिल्म होगी।
हालांकि इसके ट्रेलर में पहले ही राम , हनुमान,सीता और लक्ष्मण के गैर सनातनी और लगभग इस्लामिक और ईसाई वेशभूषा और गेट अप को लेकर बवाल उठ चुका था, तब मनोज मुंतशिर खुद फिल्म की टीम की तरफ से विभिन्न चैनलों पर आकर फिल्म के पक्ष में बयान बाजी कर लोगों का गुस्सा शांत करने की कोशिश चुके थे और लोगों ने उनकी बातों को गंभीरता से लिया भी था।
कई दक्षिणपंथी सोशल मीडिया हैंडल्स ने आदिपुरुष का पैसे लेकर प्रचार किया और भाजपा के कई नेताओं ने भी आदिपुरुष का प्रचार किया।
पर इन सबकी कलई खुल गई जब आदिपुरुष का पहले दिन का पहला शो रिलीज़ हुआ।
लोग गुस्से में भर गये। जिस तरह से राम सीता हनुमान लक्ष्मण का चरित्र चित्रण हुआ था, जो वेशभूषा थी, जो घटनाओं के साथ तोड़ मरोड़ हुई और जो निम्न कोटि के संवाद भगवान हनुमान बने पात्र से कहलाये गये, वो ईशनिंदा से कम नहीं था।
सीता माता को कतई खराब वस्त्र पहनाए गये, कृति सैनन माता सीता कम साउथ दिल्ली की फेमिनिस्ट ज्यादा लग रही थीं जो रावण आंखें मटका कर को बैंगर जवाब दे रही थीं।
इन्होंने सुंदर काण्ड नहीं पढ़ा?
“तृण धरि ओट कहत वैदेही”
मतलब सीता माता तिनके की ओट लेकर रावण से बात करती थीं।
हनुमान जी सबसे ज्यादा ज्ञानी, बलशाली और वाकपटु लोगों में गिने जाते हैं, उनके मुंह से भद्दे संवाद कहला दिये।
विभीषण की पत्नी को सेक्सुअल ऑब्जेक्ट बना के पेश कर दिया, राम और लक्ष्मण के साथ हनुमान जी के पहले पहले मिलने पर संवाद व्हाट्सएप जोक थे।
रावण वेल्डिंग कर रहा था,उसके बलशाली पुत्र इंद्रजीत टैटू आर्टिस्ट बने थे और पुष्पक विमान चमगादड़।
इतनी छीछालेदर के बाद मनोज मुंतशिर टीवी चैनलों पर ये कहते हुये प्रकट हुये कि ये फिल्म संवाद इन्होंने जानबूझकर आम बोलचाल की भाषा में रखे थे। फिर इन्होंने फिल्म का प्रथम दिन का कलेक्शन दिखाया और अगले दिन ही बोले कि वो सनातन सेवक हैं, उनके अच्छे काम लोग भूलकर गाली दे रहे हैं। फिल्म के संवाद बदले जायेंगे।
अब यहीं से मेरी बात शुरू होती है।
देखो,
क्या आपको वाकई लगता है कि 624 करोड़ लगा कर भारत जैसे देश में जहां इस वक्त तथाकथित हिंदूवादी सरकार है, हिंदुत्व की भावनायें चरम पर हैं, बात बात लोगों की भावनायें भड़क रही हों,वहां रामायण का ऐसा मजाक उड़ाना क्या भूलवश या अनजाने में हो सकता है?
मेरी समझ से तो नहीं।
ये फिल्म रातों रात तो बनी नहीं।
क्या इसके मेकर्स को पता नहीं था कि हम क्या बना रहे हैं और किसके लिये बना रहे हैं?
निश्चित तौर पर पता होगा।
आपके चाहने या न चाहने के बावजूद ये फिल्म बन गई, रिलीज हो गई, इसके प्रिंट मार्केट में हैं और हिंदू धर्म का मजाक उड़ाने को पर्याप्त मसाला मिल चुका है हिंदू विरोधी लोगों को।
और शायद यही असली मंतव्य था, यही लक्ष्य था इस फिल्म के बनाने वालों का।
तमाम दक्षिणपंथी और बुद्धिजीवी लोगों के ये कहने पर कि ये कोई एजेंडा नहीं, एक भूल है, मेरा रत्ती भर विश्वास नहीं।
पैसा कमाना इस फिल्म का मूल उद्देश्य बिलकुल भी नहीं था।
क्योंकि एक व्यापारी अपने पैसों की कद्र करता है।
रामानंद सागर ने भी रामायण से पैसे बनाये थे, पर रामायण की पवित्रता का ध्यान रखते हुये। अरुण गोविल, दारा सिंह, दीपिका जी को कोई पुरस्कार शायद ही मिला हो, पर हिंदू जनता का विश्वास जीत गये थे।
मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर आदिपुरुष को अभी कई विदेशी फिल्म पुरस्कार मिलने लगें।
और कुछ बात क्रिएटिव लिबर्टी और सिनेमाटिक आजादी पर भी कर लें।
ये आजादी आप काल्पनिक कथाओं में खूब इस्तेमाल कर सकते हैं, पर वास्तविक घटनाओं में नहीं। प्रामाणिक चीज़ों में नहीं।
कल को सिनेमाटिक आजादी के नाम पर कोई मनोज मुंतशिर, ओम राउत या भूषण कुमार की मां बहन को बदनाम करने वाला सिनेमा बनाने लगे तो?
बात यहीं खत्म करता हूं।
आपका – विपुल
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