आपका -विपुल
25 जनवरी
मतदाता दिवस और गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस की तरह ऑफिस जाना पड़ता है इस दिन देशभक्ति की शपथ खाने।
ऑफिस जाने के लिए तैयार होने ही वाला ही था कि बॉस का फोन आया ।
“लखनऊ ऑफिस चले जाओ, जरूरी है वर्ना कल तो छुट्टी रहेगी 26 जनवरी की।”
मैं बड़ा प्रफुल्लित हुआ।
आज पठान फिल्म की रिलीज भी तो है। देख लेंगे आराम से। वहां तो न पिस्टल पांडे होगा, न संघी गुंडे ।
शाहरुख और दीपिका की जोड़ी कितनी हॉट है न ?
बहुत दिनों बाद आज क्रीम कलर का पठानी सूट पहना।
“बेशर्म रंग कहां देखा दुनियां वालों ने”
गुनगुनाता हुआ घर से निकल ही रहा था कि कानपुर पूर्व के पूर्व जिला कार्यवाह ने व्हाट्सएप कॉल कर दी।
“ये संघी कितने चालू होते हैं यार? एक बार आदमी चक्कर में पड़ जाए तो पीछा ही नहीं छोड़ते।”
मन में सोचा और फोन उठाया।
“हां भाई साहब! हां ! हां!आवाज नहीं आ रही “और ये कह के उनका फोन काट भी दिया।
मैं भी दीनदयाल का देवता नहीं था।
डीएवी का डकैत था।
लेकिन जुगल देवी के जेंटलमैन संपूर्णानंद तिवारी की जिन्दगी ही मेरे जैसे दानवों को संघी शिक्षा देते व्यतीत हुई थी।
मेरे घर के मेनगेट पर ही तो थे वो।
“विपुल जी! आज शाखा के स्वयंसेवकों ने निर्णय लिया है कि सुवह की चाय आपके यहां रहेगी। फिर दस बजे से विभिन्न सिनेमाघरों के सामने एक एक टोली पठान फिल्म के द्वारा किए गए हिन्दुओं पर सांस्कृतिक अत्याचार के विरुद्ध एक दिवसीय अनशन करेगी। आपकी उपस्थिति जेड स्क्वायर के सामने रहेगी ये निर्णय हुआ है।”
उन्होंने आदेश दिया।
लेकिन मैं भी कम घाघ नहीं था।
तुरंत पलटवार।
“आपकी आज्ञा शिरोधार्य गुरुजी। आप चाय पीजिए। मुझे तुरंत लखनऊ निकलना है। कोर्ट में पेशी है।”
संपूर्णानंद जी का सम्पूर्ण कार्यक्रम ध्वस्त हो जाए।ऐसा कैसे हो सकता था?
“कोई बात नहीं ।आप लखनऊ जाएं, काम करें लेकिन आप समय मिलने पर वहां के संघ के कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं। आपका नाम नंबर और फ़ोटो लखनऊ प्रांत कार्यालय भेज दे रहा हूं। कहीं न कहीं आपकी उपस्थिति रहेगी , ऐसा मेरा विश्वास है।”
मुस्कुराते हुये संपूर्णानंद तिवारी जी कोयला फिल्म के अमरीश पुरी से कम खतरनाक नहीं दिखते थे ।
“संघ को ऐसे विरोध नहीं करना चाहिए।”
“संघ विरोध कर भी नहीं रहा ।”
तिवारी जी मुस्कुरा कर बोले।
“सारे विरोध प्रदर्शन अटल कलाम एकता मंच कर रहा है।”
मतलब हद ही है।
खैर!
तिवारी जी को वहीं छोड़ कर मैं बाईक से निकला।
आधे घंटे में कानपुर सेंट्रल स्टेशन और डेढ़ घंटे में चारबाग।
ऑफिस का काम बस इतना था कि हाईकोर्ट के एक वकील साहब को कुछ पैसे देने थे और एक केस की फाइल निकलवा के लाना था।
वकील साहब बढ़िया आदमी थे।
बारह बजे तक मैं फ्री था।
सीधे पहुंचा सहारा वेव।
पठान मूवी देखने।
लाइन लंबी थी टिकट खिड़की पर !
जैसे तैसे टिकट खिड़की पर पहुंचा।
एक टिकट मांगा।
अंदर बैठा लड़का शायद खरदूषण के कुल की 700वीं पीढ़ी का था।
बहुत लंबा चौड़ा, काला और घनी मूंछें और रौबदार आवाज।
“धिक्कार है। कपटी कामुक कलुये। धिक्कार है।”
उसने उतनी ही तिरस्कृत नज़रों से मुझे देखा, जितनी तिरस्कृत नजरों से मार्कण्डेय काटजू महिला पहलवानों को देखते हैं।
“क्या हुआ ?”
मैं हड़बड़ाया।
“आपको नहीं कह रहा।”
वो उतना ही मुस्कुराया जितना के एल राहुल शतक मारने के बाद मुस्कुराता है ।
“एक ड्रामा की रिहर्सल कर रहा हूं।लव जिहाद पर।”
उसने चुपचाप मुझे टिकट दी। लेकिन घूर रहा था अजीब तरीके से।
मैंने गौर किया।
मैं आज पठान सूट में था और हाथ में कलावा।
मैं अंदर पहुंचा।
सहारा वेव काफी बदल चुका था। लगभग 5 साल बाद आया था यहां।
लिफ्ट से ऊपर पहुंचा।
फ़िल्म चालू होने में टाइम था अभी।मैं एक तरफ की दुकान में घुसा। ये कपड़ों और खिलौनों का एक बड़ा सा स्टोर था ।
मैं दस मिनट घूमा ही था कि एक तगड़ा सा सिक्योरिटी गार्ड मेरे पास आया।
“कुछ खरीदना नहीं तो टाइम क्यों पास कर रहा बे? लौंडियां ताकने आया इधर क्या “
मुझे बड़ी गुस्सा आई।
“तुझे क्या”?
और फिर मैं चिल्लाया।
“कौन मैनेजर है यहां?”
कुछ देर में कई महिला पुरूष इकट्ठे हो गए वहां।
मेरे द्वारा गार्ड की बदतमीजी करने की शिकायत करने पर गार्ड ने माफी मांगी।और सफाई ये पेश की कि मैं उसे कोई लव जिहादी लग रहा था जो यहां शिकार की तलाश में आया था।
मुझे अब कुछ यहां से खरीदना भी था अपनी इज़्ज़त रखने को।
तो
एक जोड़ी मोजे ले लिए।
खैर!
फिल्म का टाइम हो गया था।
चेकिंग वगैरह करवा के अंदर गया था ।350 का पॉपकॉर्न भी लिया था।भारतीय अर्थव्यवस्था को 3 ट्रिलियन करने में इतना सहयोग तो कर ही सकता था।
पॉपकॉर्न की लाइन में मुझसे आगे एक आकर्षक व्यक्तित्व की काली जींस और लाल जैकेट पहने एक 35 40 वर्षीय महिला थीं जो कुछ जानी पहचानी लगीं मुझे।
मैं उनको देख ही रहा था कि पता नहीं क्या हुआ,अचानक ही वो मुझसे टकराईं , गिर गईं। उनके पॉपकॉर्न भी फैले , मेरे भी।
उठते उठते मेरे हाथ उनके यहां वहां कुछ टच भी हो गए।
मैंने अपनी गलती न होते हुए भी माफी मांगी।
और अपने और उनके दोनों के लिए दोबारा पॉपकॉर्न खरीदे , अपने पैसों से।
मोदी के सपनों के भारत की 3 ट्रिलियन इकोनॉमी के लिए थोड़ा और योगदान मेरी तरफ से।
सिनेमा हॉल के अंदर केवल उतने लोग थे जितने आर्मिनिया और अजरबेजान में कबड्डी खिलाड़ी होंगे।
जब सिनेमा हॉल खाली था तो टिकट खिड़की पर इतनी भीड़ क्यों थी? ताज्जुब हुआ मुझे। क्या षड्यंत्र था ये?
खैर मुझे क्या।
मैं अपनी सीट पर बैठा।
F 1 पर।
और सुखद आश्चर्य तब हुआ जब वही पॉपकॉर्न वाली महिला मेरे पास आकर बोली।
“F 2 यहीं है न।”
उफ्फ।
क्या फिगर थी यार।
मित्रा त्रिपाठी।
अब तक चैनल की न्यूज़ एंकर।
पता नहीं क्यों इस महिला को देख उनकी याद आ रही थी।
जबकि वो फोन पर किसी को अपना परिचय दमयंती देशभक्त डिसूजा बोलकर दे रही थी।
मैं पानी लाना भूल गया था।
हॉल में टहलते ऑर्डर लेने वाले लड़के को बुला कर पानी की बोतल लाने को कहा
कि अचानक दमयंती देशभक्त डिसूजा ने अपनी पानी की बोतल मुझे दी फोन पर बात करते करते।
“पी लीजिए। मुझे नहीं पीना।”
मैंने भी बोतल लेकर पानी पी लिया। उसके पॉपकॉर्न के पैसे भी तो मैंने दिए थे।
राष्ट्रगान हो गया।
फिल्म शुरू हो गई।
फिर मेरा सर अचानक भारी होने लगा।
जब होश आया तो अस्पताल में था और सामने वो शख्स दिखा, जिसका दिखना ही मेरा पाव भर खून जला देता था ।
पिस्टल पांडे ।
वही गुलाबी पैंट।
वही काली शर्ट।
वही लौकी के बीजों की तरह दांत।
माथे पर टीका और गले में भगवा गमछा।
और कर्कश आवाज।
“छिनरेबाजी में कब तक इज्ज़त और दौलत लुटाते रहोगे जीजा?”
मैं चुप था।
“वो तो कहो आज मैं यहां वेव में मॉल में घूमते छिछोरों की पहचान पर लेक्चर देने आया था। तुम्हारे साथ जहरखुरानी की खबर मुझे भी मिली।मैंने देखा तो मैं चुपचाप तुम्हें यहां निकाल लाया।”
मैं क्या ही बोलता?
चुपचाप सुनता रहा।
चवन्नी भी पास में नहीं बची थी।
दमयंती देशभक्त डिसूजा सारे पैसे लूट ले गई थी।
पिस्टल पांडे ने 500 रुपए दिए, तब घर पहुंच पाया।
और हां। अटल कलाम एकता मंच के जिला उपमंत्री की तरफ से एक संदेश–
पठान मूवी दिखाने वाले थियेटरों में जहरखुरानी, लूटपाट सब हो रही है।
पठान मूवी दिखाने वाले सिनेमा हॉलों में जाने से से बचें कुछ दिन।
स्वस्थ रहें , सुरक्षित रहें।
पैसे बचायें। एक एक पैसा कीमती होता है।
आपका -विपुल
सर्वाधिकार सुरक्षित -Exxcricketer.com