Spread the love

खेलों की निर्मम दुनिया

आपका -विपुल

विपुल


देखिये ।
क्रिकेट एक खेल है।
आउटडोर और टीम खेल।
मतलब ये कठिन है।
इन खेलों की दुनिया बहुत कठोर निर्मम और निर्दयी होती है।
ये माराडोना जैसे महान खिलाड़ियों को प्रदर्शन न करने पर नहीं बख्शती।
कपिल देव जैसे लीजेंड को प्रदर्शन न करने पर नहीं बख्शती।
क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन को उनके होमग्राउंड पर ताने सुनने को मजबूर करती है। (श्रीलंका के भारत दौरे 2005 के मुम्बई टेस्ट में सचिन की जम कर हूटिंग हुई थी, तब फॉर्म नहीं थी सचिन की। )
पी आर मैनेजमेंट से खिलाड़ियों का कभी भला नहीं हुआ।विशेषकर आउट ऑफ फॉर्म खिलाड़ी का।
ज़्यादातर खिलाड़ियों को ये खुद पता होता है कि पी आर मैनेजमेंट से भला नहीं होने वाला, लेकिन उनकी पीआर टीम जिसे अपनी तनख्वाह के एवज में कुछ करना ही होता है नहीं मानती।

अज़हर

अज़हर को याद करिये।निम्न मध्यम वर्ग से उठा हुआ एक बेहतरीन क्रिकेटर जो अगर फिक्सिंग के भंवरजाल में न फँसा होता, तो सचिन कपिल और द्रविड़ की लीग में माना जाता।जिन्होंने अज़हर को खेलते देखा है, मेरी बात से इत्तेफाक रखेंगे कि अजहर वो खिलाड़ी थे जिन्हें अंग्रेजी में once in a generation player कहा जा सकता है।
अपने कैरियर के खराब दौर में पी आर एजेंसी का सहारा लिया था अज़हर ने, ये खबर चली कि अजहर को अल्पसंख्यक होने के कारण टारगेट किया जा रहा है।
नतीजा ?
अज़हर जैसा खिलाड़ी भारत के महान खिलाड़ियों की हर लिस्ट से नदारद ही रहता है ।कोई सीरियसली नहीं लेता अब अज़हर को।
टीम में जगह ,इज़्ज़त दोनों चली गईं।

रवि शास्त्री

कोहली के बडी रवि शास्त्री मुंबई लॉबी ,अच्छी पर्सनॉलिटी ,बढ़िया अंग्रेजी और बॉलीवुड में तगड़े सम्बन्धों के कारण बहुत दिनों तक बगैर प्रदर्शन किए टीम इंडिया में खेलते चले गए।
पर इनका अंत 1992 एकदिवसीय विश्वकप में इंग्लैंड के खिलाफ बेहद धीमी पारी खेलने के बाद हुआ।
भारत नहीं लौट पाये थे शास्त्री, विदेशी धरती से ही सन्यास की घोषणा कर दी थी।
अपने समय में रवि शास्त्री से बढ़िया पी आर टीम किसी की नहीं थी।

रिकी पोंटिंग

रिकी पोंटिंग के स्तर के केवल चुनिंदा खिलाड़ी ही होंगे।
सचिन, द्रविड़, लारा, कालिस,संगाकारा जैसे खिलाड़ियों की लीग में अभी कोई वर्तमान खिलाड़ी नहीं है ,जो रुट इस लीग में जल्द शामिल हो सकता है।
2011 विश्वकप के बाद पोंटिंग को लगभग बेइज़्ज़त ही किया था ऑस्ट्रेलियाई जनता ने ,तब उन्होंने सन्यास लिया।
इसी दरम्यान ऑस्ट्रेलिया के समाचार पत्र पोंटिंग की प्रशंसा से पटे रहते थे।

कपिल देव


1994 -95 में भारत के क्रिकेट महानायक कपिल देव अपने खेल के निम्नतम स्तर पर थे।न अच्छी गेंदबाजी कर पा रहे थे ,बल्लेबाजी करना भूल चुके थे।उस समय के समाचार पत्रों में रोज उनकी तारीफ छपती थी ,पुराने मैचों के लिये।
लगभग 20 मैच वो ऐसे ही खेल गये पर हैडली का रिकॉर्ड तोड़ते ही उन्हें खुद रिटायमेंट लेना ही पड़ा। अपनी और ज़्यादा बेइज़्ज़ती वो खुद नहीं चाहते होंगे।

सौरव सहवाग और सचिन

गांगुली को भी जाना पड़ा था और सहवाग को भी ।दोनों का फ़ैनबेस और पी आर मैनेजमेंट कोहली से छोटा नहीं था ।
सचिन की बात ही नहीं कर रहा।
वेंगसरकर ने दबाव डालकर उसे रिटायर करवाया।वेस्टइंडीज की सीरीज खास तौर पर सचिन के लिये आयोजित की गई।
बेहद खराब फॉर्म में माने जाने सचिन रिटायर होने के ठीक पहले 90 -90 रनों की पारियां खेल रहे थे, लेकिन तत्कालीन खेलप्रेमियों की इच्छा थी इसलिये सन्यास ले लिया सचिन ने।

उपसंहार

पूरी कहानी का लब्बोलुआब ये है कि प्रदर्शन न होने पर खेल की दुनिया बख्शती नहीं ,भले ही आप कितनी भी बड़ी तोप हो।
ये बॉलीवुड नहीं है कि बगैर कोई हिट फिल्म दिये तापसी पनु की तरह केवल व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर फिल्मों में काम पाते रहो ।

प्रदर्शन करना होगा।इंस्टाग्राम पर वेटलिफ्टिंग करके ,एड प्रमोशन करके ,पाकिस्तान के खिलाड़ियों से गुलू गुलू करके टीम में जगह नहीं बचा पाओगे ।सूर्या ,दीपक हूडा जैसे खिलाड़ी ज़्यादा दिनों तक बेंच पर नहीं बैठाये जा सकते।
इशारा जहाँ है ,आप समझ ही गये होंगे।

आपका -विपुल

विपुल


सर्वाधिकार सुरक्षित -Exxcricketer.com


Spread the love

One thought on “प्रदर्शन और पीआर

  1. बहुत अच्छा लेख भैया एक बार फिर से

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *