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चुनाव विश्लेषण का खेल
आपका -विपुल

मौका और माहौल भी।पिछले कुछ दिनों से टीवी और सोशल मीडिया कुछ पेशेवर, गैर पेशेवर, शौकिया और जबरिया के चुनाव विश्लेषकों से पटी पड़ी है तो इन सबके बारे में एक बात अपने अंदाज में।
जिसको बुरा लगे, दो रोटी और खा लेना क्योंकि बुरा लगने के लिये ही बोली है।
गौर करें कि भारत की पूरी चुनाव प्रक्रिया गुप्त मतदान पर ही आधारित है। वोट डालने के लिये एक बूथ बनता है और इसीलिये बनता है कि किसी दूसरे को ये पता न चल पाये कि किसने किसको वोट दिया।
मतदाता के अकेले बूथ में वोट डालने का प्रावधान है।
गुप्त और गोपनीय मतदान होता है, पर जरा रुकें।
हर दूसरा चुनाव विश्लेषक, हर तीसरा पत्रकार और हर तीसरा टीवी चैनल आपको बताते मिलता है कि ब्राह्मणों ने फलाने को वोट दिया, ठाकुरों ने ढिमकाने को, यादवों ने सलाने को और जाटवों ने बलाने को।
मतलब इन्हें वहां के पंडित ठाकुर लिख के दे जाते क्या?
अभी आप कुछ मुझे बताने को सोचें तो एक बात बताऊं।

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मैं 2005 से चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा रहा हूं।
चुनाव नतीजे जब ईवीएम से निकलते हैं तो बूथवार आंकड़ा मिलता है।
जिस बूथ पर एक ही जाति के वोट हों और एक ही पार्टी को 100 प्रतिशत वोट पड़े तो वहां तो पता चल जायेगा कि किस जाति ने वोट दिया,पर ऐसे एकजातीय बूथ बहुत कम मिलते हैं।जहां विभिन्न जातियों के वोट एक बूथ पर पड़ते हैं वहां कौन बताने आता? कैसे समझोगे कि किस जाति ने किसको वोट दिया ?
केवल अनुमान लगा सकते हो।
और उसी अनुमान में नमक मिर्च लगा कर टीवी या सोशल मीडिया पर बकवास होती है इन लोगों की।
और सोशल मीडिया पर फिर भी झिल जाता है क्योंकि सब जानते हैं कि यहां के चुनाव विश्लेषक बला के बकवास करने वाले होते हैं और पैसे के लिये नहीं करते, पर जब टीवी पर गमछा ओढ़े, दाढ़ी कलर करा के बकवास करते दिखते हैं ये लोग कि फलां पार्टी को फलां जाति के इतने वोट मिले तो डंडा लेकर दौड़ाने की इच्छा होती है इन सबको।
मैं कभी दूसरों की उदाहरण नहीं देता,खुद की देता हूं।
मैं विभिन्न क्षेत्रों में 18 साल से केवल फील्ड की नौकरी किए हूं। बहुत जगह घूमा और वास्तविक वोटरों से मिलता हूं,मुझे आज तक एक भी एक्जिट पोल करता पत्रकार न मिला,ओपिनियन पोल तो वैसे भी बिकाऊ होते हैं।
वोट 2005 के पहले से डाल रहा हूं।
मतलब आप सोचें कि मैं कन्नौज जैसे वीआईपी क्षेत्र का वोटर रहा, लखनऊ कानपुर इलेक्शन भर घूमता रहा कई साल, हजारों बूथ देखे और आज तक मैंने एक भी एक्जिट पोल किसी बूथ पर न देखा तो फिर ये लोग इतनी बकवास करने की हिम्मत लाते कहां से हैं?
अब दूसरी बात पर आता हूं और ये ज्यादा महत्वपूर्ण है।
गणित के नियम एक जैसे होते हैं।
कोई भी भारतीय गणित विशेषज्ञ जापान की गणित के बारे में बता सकता है और लोग विश्वास करेंगे क्योंकि दो और दो चार भारत में भी होंगे और जापान में भी।
मेडिकल, इंजीयनिरिंग और केमिस्ट्री के नियम भी एक होंगे।
भारत का भी क्रिकेट विशेषज्ञ इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया के किसी मैच के बारे में विश्लेषण कर सकता है क्योंकि नियम एक हैं और सबको पता है कि घसियाली पिच पर तेज गेंदबाज अच्छा करेंगे, सूखी पिच पर स्पिनर और केवल बाउंसी पिच पर बल्लेबाज !


पर राजनीति क्या ऐसे नियमों से चलती है?
जिन बड़े बड़े राजनीतिक विश्लेषकों को ये नहीं पता होगा कि उनके घर से चार घर आगे रहने वाला आदमी किसे वोट देने वाला है, वो पांडिचेरी और मछलीपट्टनम तक अपनी पार्टी को जितवा रहे होते हैं।
भारत जैसे विविधता भरे देश में राजनीतिक अनुमान लगाने बहुत आसान नहीं होते, उसके बावजूद
सिर्फ अपने अनुमानों और पूर्वाग्रहों पर बातें छौंक कर आज हर दूसरा व्यक्ति चुनाव विश्लेषक बना घूम रहा है।
जबकि हर पार्टी और हर नेता अपने लिये सुरक्षित सीट की तलाश में रहता है पर अपनी पार्टी छोड़ दूसरे पार्टी के नेता की खिल्ली उड़ाना भी इन चुनाव विश्लेषक जनों की एक पहचान है।सही है कि राहुल गांधी सुरक्षित सीट की तलाश में अमेठी रायबरेली या वायनाड जाते हैं और अखिलेश या डिंपल कन्नौज या मैनपुरी।
पर उतना ही सत्य ये महामानव मोदी के लिए भी है।वो भी सुरक्षित सीट ही ढूंढते हैं,वरना मोदी भी केरल या तमिलनाडु से क्यों नहीं लड़ते और अमित शाह उड़ीसा से?


पत्रकारिता के नाम पर चुनाव विश्लेषण करते हुये किसी राजनीतिक पार्टी में घुसने का खेल पुराना है।दैनिक जागरण के नरेंद्र मोहन से लेकर जी न्यूज के सुभाष चन्द्र और एनडीटीवी की सागरिका घोष से लेकर आशुतोष तक।

मतलब आशुतोष जैसे धूर्त बेशर्म भी जो चुनावी राजनीति में उतर कर मुंह की खा कर दोबारा तथाकथित पत्रकार बन कर जब चुनाव विश्लेषण करते हैं तो मन में वही आता है कि “जूता कहां है मेरा?”


चुनाव विश्लेषण खालिस बकवास है जो भारत में चौपालों और पान की दुकानों पर तो टाइम काटने को सही है,राजनैतिक पार्टियां अपना आंतरिक सर्वे करवाती हैं, वो भी सही।
पर जब टी वी पर आधिकारिक तौर पर आता है कि फलां पार्टी को इस चुनाव में फलां जाति ने इतने प्रतिशत वोट दिया तो मेरे मन में गाली के साथ ये सवाल आता है कि इन्हें कौन लोगों ने बताया ये भाई?
अंत में आप खुद एक बार फिर सोचें जब भारत का चुनाव गुप्त मतदान है।बूथ के पूरे पड़े वोटों के अलावा जातिवार कोई आंकड़ा नहीं मिल सकता तो इन महानुभावों को कैसे निश्चित पता चलता है कि किस जाति ने किस पार्टी को वोट दिया?
बाकी चुनाव पूर्व आंकलन तो खालिस बकवास ही होते हैं, सबको पता है।
आपका -विपुल
सर्वाधिकार सुरक्षित -Exxcricketer.com


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