19 नवंबर की कड़वी गोली
राहुल दुबे
अगर किसी बच्चे को रोज कोई एक मीठी गोली देते रहो तो उसे विश्वास हो जाएगा कि जो भी गोली उसे मिलेगी वह मीठी ही होगी ,और अचानक एक दिन उसे आप करेले से भी कड़वी गोली दे दें तो उस बालक पर क्या बीतेगी? ऐसा ही कुछ अनुभव हर क्रिकेट प्रेमी भारतीय को 19 नवंबर 2023 को हुआ था।
पूर्वी यूपी और बिहार में छठ पूजा की धूम थी।घाट सज रहे थे लेकिन इस बार एक चीज नई थी ।घाट पर प्रोजेक्टर लगे थे जिसमें कैसे भी करके हॉटस्टार से लाइव प्रसारण का इंतजाम भी था क्योंकि शाम को डूबते सूरज को अर्घ्य देते समय भी अपने परिवार के साथ पहुंचे लोग उस विश्वकप फाइनल मैच की एक गेंद भी छोड़ना नहीं चाहते थे। सुबह जब मैं और मेरे साथ के लड़के मिले तब शाम को क्या होने वाला है इससे बेखबर हम विभिन्न संभावनाओं की चर्चा में व्यस्त थे।
जब से मैं क्रिकेट देख रहा था उसके बाद यह पहला मौका था जब समूचा भारत एक क्रिकेट टूर्नामेंट की खबर रख रहा था। क्रिकेट को वैसे ही भारत में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है और जब बात एकदिवसीय विश्वकप की हो ,मेजबान भी भारत हो तो क्या ही कहा जाये ?
विश्वकप में भारत ने अपने अभियान की शुरुआत भी लाजवाब ढंग से की थी।टूर्नामेंट के शुरुआत से पहले कट्टर क्रिकेट फैन खुश थे पर थोड़े चिंतित भी।कोई भारत की स्पिन खेलने की खोती हुई क्षमता से चिंतित था।कोई भारत के मध्यक्रम के लिए और चिंता जायज भी थी।लेकिन एशिया कप में हमने जैसे पाकिस्तान को धोया था उससे इतना तो तय था कि भारत अपने चिर परिचित अंदाज में लीग स्टेज में तो जलवे बिखेरेगा ही।जिस प्रकार हमने अपना पहला मैच 2 रनों पर तीन विकेट गंवाने के बाद जीता था उससे हमारी उम्मीद और मजबूत हो गयी थी।
हर मैच के बाद हमारी टीम अपराजित थी और हमारा किला भेदने वाला कोई जान नहीं पड़ता था।टीम के महत्वपूर्ण खिलाड़ी और भारत के तात्कालिक सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाज हरफनमौला हार्दिक पांड्या के चोटिल होने का भी कोई विशेष प्रभाव हमारी टीम पर नहीं पड़ा।पाकिस्तान के खिलाफ हमारे गेंदबाजों का शो लाजवाब था।और उसके बाद पाकिस्तान टीम का रोना धोना भारतीयों को और खुश कर रहा था।
हमने पूरे विश्वकप में प्रत्येक टीम को हराया था और किसी भी मैच के कुछ क्षणों को छोड़कर हम पीछे भी नहीं रहे थे। आईसीसी टूर्नामेंट में हमने न्यूज़ीलैंड को वर्षों बाद हराया था।खैर! विजयरथ पर सवार भारतीय टीम पर टीका टिप्पणियों का दौर भी जारी था। तथाकथित स्टैटपैडिंग और इंटेंट के बीच की तथाकथित लड़ाई सोशल मीडिया पर और रोचक बना रही थी।मैच पर मैच बीत रहे थे और भारत के हर खिलाड़ी को जब भी मौका मिल रहा था वो अपना सर्वश्रेष्ठ दे रहा था।
पूरे टूर्नामेंट में सबसे बुरा परफॉर्म करने वाले सूर्यकुमार ने भी इंग्लैंड के खिलाफ महत्वपूर्ण योगदान दिया था।15 नवंबर को हमने न्यूज़ीलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में हारने की बाधा को भी पार कर लिया था और क्या दिन था वो?इस जनरेशन के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज ने क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर का एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सर्वाधिक शतकों का रिकॉर्ड, सचिन के सामने सचिन के घरेलू मैदान पर तोड़ा था।और सबसे खास था कोहली का सचिन के प्रति विनम्रता का भाव प्रदर्शित करना।
हमने सेमीफाइनल में ना सिर्फ न्यूजीलैंड को हराया बल्कि उन्हें क्रिकेट के हर विभाग में मात दी।न्यूज़ीलैंड की बल्लेबाजी के समय कुछ पल के लिए कुछ लोगो को चिंता हुई थी जब विलियमसन और मिचेल ने जोरदार प्रतिकार किया।
लेकिन सेमीफाइनल में 399 रनों का पीछा आसान नहीं होता।15 नवंबर सिर्फ कोहली के लिए नहीं श्रेयस अय्यर के लिए भी खास था ।क्या बल्लेबाजी थी श्रेयस की ?हर पहलू पर शानदार।मेरे विचार में तो अय्यर की यह पारी भारतीय क्रिकेट इतिहास में किसी क्रिकेट विश्वकप के सेमीफाइनल में खेली गई सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक थी।अय्यर खूब खेले थे।
लेकिन यहां शमी को भूल जाना बेईमानी होगी।मोहम्मद शमी की गेंदबाजी का जवाब उस दिन शायद किसी के पास नहीं था।शमी को जब जब गेंद मिली तब तब उन्होंने अपना जादू बिखेरा।53 रन देकर 7 विकेट विश्वकप के इतिहास में बेहतरीन गेंदबाजी स्पेल में एक है।हमें सेमीफाइनल में विजय मिली और सबका योगदान था। हम फाइनल में थे ।
और ऐसा पहली बार था जब कोई यह नहीं कह सकता था कि इस फाइनल तक पहुंचाने में किसी एक खिलाड़ी का हाथ रहा ।कप्तान रोहित शर्मा ने स्वयं अफगानिस्तान और पाकिस्तान की गेंदबाजी का धागा खोला था और हारिस रऊफ जिसने कहा था कि मुझे रोहित शर्मा का अंदाज पसंद नहीं ,उसपर रोहित का हमला दिल को सुकून देने वाला था।
50 ओवरों के खेल में हर बारी कुछ 30 गेंदों में 45 रन विवादित हो सकता है। विकेट पर टिक जाने के बाद विकेट फेंक देना सबको पसन्द नहीं आ सकता लेकिन रोहित के इस रुख से भारत को सेमीफाइनल तक तो खूब फायदा हुआ।भारतीय टीम इस 2023 एकदिवसीय विश्वकप में शानदार कर रही थी। विश्वकप के शुरू होने से पहले एकदिवसीय क्रिकेट के भविष्य पर सभी चिंतित थे,लेकिन इन डेढ़ महीनों में कभी ऐसा नहीं लगा था कि एकदिवसीय प्रारूप अब लुप्तप्राय है।हम 19 नवंबर के दिन रविवार को विश्व के सबसे स्टेडियम में अहमदाबाद में फाइनल खेलने वाले थे।हमारे सामने 5 बार की एकदिवसीय विश्वकप विजेता टीम ऑस्ट्रेलिया थी।जिनका अबतक का सफर हमसे अलग और कुछ उतार चढ़ाव वाला था।नई नवेली अफगान टीम ने उन्हें लगभग चित कर दिया था और शायद उसी दिन इस विश्वकप का भाग्य तय हो गया था।
मेरे कथित तौर पर क्रिकेट का कुछ जानकार होने का भी।मैंने डंके की चोट पर कहा था अफगानिस्तान ऑस्ट्रेलिया को मात देगी और 292 रनों का पीछा कर रही ऑस्ट्रेलिया के जब 91 पर सात विकेट गिरे थे तब यही लग रहा था।लेकिन उसके बाद जो हुआ सब जानते है।मैं अपनी भाषा में कहूँ तो मैक्सवेल पर माता आ गयी थी।
गिरते पड़ते सेमीफाइनल पहुंची ऑस्ट्रेलिया का सामना दक्षिण अफ्रीका से हुआ था जो हमेशा के चोकर्स रहे।लेकिन अफ्रीकी खिलाड़ियों ने अबकी बार लड़ के दिखाया था।अंतिम समय तक उन्होंने हार नहीं मानी थी।खैर भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया का फाइनल तय था और मैं अब वहीं छठ घाट के आसपास पहुंच जाता हूँ।क्या आम क्या खास सब पर फाइनल की खुमारी थी।शायद उस दिन छठ के गीत और फाइनल के अलावा किसी चीज को कानों ने सुनने से मना कर दिया था।
अहमदाबाद गुलजार था और भारत भी।लेकिन जिन्होंने 2003 का फाइनल देखा था , वो सशंकित थे और हम जैसे जिनका जन्म या तो 2003 में हुआ था या उसके बाद वे इन सब से बेखबर अपने भारतीय टीम के गुणगान में व्यस्त थे।
19 नवंबर 2023
अहमदाबाद में एयरफोर्स के जादुई करतब के बीच जब टॉस हुआ और पैट कमिन्स के पहले गेंदबाजी करने और राष्ट्रगान तक तो सब सामान्य था।भारत की बल्लेबाजी भी चिर परिचित तरीके से ही शुरू हुई थी।गिल के आउट होने के बाद भी कप्तान रोहित उसी मूड में थे और कोहली ने भी स्टार्क को लगातार तीन चौके जड़कर माहौल बना दिया था।लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा था कि 10 ओवर खत्म होते होते हम उस स्थिति में होंगे जहां से एक और बल्लेबाज का आउट होना हमारी लड़ाई को समाप्त कर देगा।उस बच्चे ने इस कड़वी गोली की तो अपेक्षा ही नहीं की थी।मैक्सवेल ने रोहित को आउट किया और अय्यर को उस मैच की बेहतरीन गेंद पड़ी। लेकिन भारत की बल्लेबाजी का सूर्य कोहली अभी क्रीज़ पर था और वो आज भी उसी विश्वास से सिंगल डबल लिए जा रहा था।
लेकिन यही एक भूल थी।क्रिकेट टीम का खेल है जहां हर गेंद के बाद जिम्मेदारी दो बल्लेबाजों के बीच बदलती रहती है।लोकेश राहुल के जोखिम रहित खेल ने कब हमें 97 गेंद बिना बाउंड्री तक पहुंचा दिया था , पता ही न चला। पर उसका कुसूरवार लोकेश राहुल अकेले नहीं था। उस दिन कोहली और राहुल ने ऐसी बल्लेबाजी क्यों की?ये मैं आज साल भर बाद भी समझ नहीं पाया।दो बल्लेबाज जिन्होंने भारत को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ही टूर्नामेंट के पहले मैच में संकट से उबारा और अपनी टीम को यहां फाइनल तक लाये,एक जो एकदिवसीय क्रिकेट के कई रिकॉर्ड्स धराशायी करके पहुंचा था दूसरा जिस पर एक पूरा टी 20 विश्वकप लील जाने का तथाकथित गुस्सा था और उसके बाद जिसने अपनी मेहनत से लोगों का विश्वास फिर जीत पाया था,आज दोनों फिर साथ थे। इससे बड़ा मौका शायद ही उनके जीवन में फिर आने वाला था लेकिन भाग्य कहें या अक्षमता कि दोनों कुछ विशेष कर न पाये।
अक्षमता तो नहीं ही कह सकता क्योंकि सवा सौ करोड़ भारतीयों में से कुछेक ही तो वहां तक पहुंच पाते हैं ।भाग्य का दोष ? भाग्य ना होता तो शायद कोहली का कैच मिचेल मार्श ने 8 अक्टूबर को ही पकड़ लिया होता और हम यहां भी नहीं होते।
आगे क्या हुआ सब जानते हैं।मैं लिख भी नहीं सकता लेकिन 19 नवंबर का दुःख तो है।आखिर एक क्रिकेट प्रेमी चाहता ही क्या है?मैं फिल्मी नहीं हूँ ना कोई बड़ा लेखक जो शब्दों के जाल से किसी को प्रभावित कर सकूं । कोई यहां तक पढ़ ले यही बहुत है।
लेकिन जब हम विश्वकप हारे उसके बाद से क्रिकेट को मैंने बस मन बहलाने के लिए ही देखा।आभासी दुनिया (सोशल मीडिया)और असली दुनिया में आज भी क्रिकेट और कोहली की बहस पर उतना ही मुखर होऊं लेकिन 19 नवंबर 2023 की शाम तक मैं उन बहसों का कारण होता था पर अब मैं इसलिए मुखर हूँ क्योंकि मुझे लगता है कोई मेरे विचारों से हटकर बोल रहा है अब मैं बहस की शुरुआत नहीं करता।पहले मैं शुरुआत करता था अब मैं बचना चाहता हूं।मैं अब कई बातें मान लेता हूं।अगर भारत 19 नवंबर 2023 को विजयी होता तो मैं आज सचिन बनाम कोहली की बात में मैं किसी की तथ्यपरक बात को भी झुठला देता।आज यदि मुझसे कोई कहे कि ऑस्ट्रेलिया किसी को कच्चा चबा जाएगी मैं मान लूंगा।
यदि कोई सामने से क्रिकेट की बात ना करें तो मैं क्रिकेट से अनजान बनकर रह लूं उसका उदाहरण 2024 टी 20 विश्वकप टूर्नामेंट है जिसके फाइनल के अलावा मुझे कुछ याद ही नहीं। मैंने देखा ही नहीं।
आज भी बहुत लोग है जो भारी व्यस्तता के बीच भी क्रिकेट के लिए समय उत्साह और प्रेम भी रखते हैं।आज मैं जब विद्यार्थी हूं और शायद कुछ पन्ने पढ़ने-लिखने के अलावा मेरे पास कुछ विशेष नहीं है तब मैं क्रिकेट को नजरअंदाज कर रहा हूं। भविष्य का अंदाजा नहीं है। क्रिकेट के लिए समय अभी भी है और प्रेम भी ,लेकिन उत्साह 19 नवंबर 2023 को ही खत्म हो गया।हम 19 नवंबर 2023 को हारे।क्यों हारे? इसकी सारी थ्योरीज सही हैं क्योंकि हम हार गये।19 नवंबर 2023 के बाद शायद रोहित -कोहली का जीवन उतना ना बदला हो।लेकिन मेरे जैसे कई लोगों के क्रिकेट के प्रति घोर विश्वास में से कुछ तो कम हुआ ही हुआ।15-16 साल के लडके जो भारी भरकम गानों पर मजे लेते थे उनके आंसू देखे हैं मैंने।उन बुजुर्गों का गुस्सा भी देखा मैंने जो जीवन की तमाम कठिनाइयों को कुछ देर खुश होकर भूल जाते,अगर हम 19 नवंबर को जीत जाते।उसका एक उदाहरण एक यह भी कि जो व्यक्ति 19 नवंबर को टीवी से चिपके रहे उन्होंने 29 जून 2024 के टी 20 विश्वकप फाइनल को अपने घर के बच्चों को देखने ही नहीं दिया – यह कहकर कि अभी समाचार देखने का समय है।
19 नवंबर की अहमियत उन्हीं के लिए है जो 2011 के बाद ऐसे किसी बड़े पल का इंतजार कर रहे थे।बीच बीच में हम जीते लेकिन विश्वकप जीतना हर बार नसीब नहीं होता।19 नवंबर ने उस बच्चे से किसी भी तरह की मीठी गोली मिलने का विश्वास छीन लिया।शायद उस बच्चे को अब कोई और भी मीठी गोली दे दे लेकिन पुराने कड़वे अनुभव के कारण वो उसका आनंद ढंग से नहीं ले पायेगा।उसे डर रहेगा कही ये गोली भी कड़वी ना निकल जाये आगे भी विश्वकप आएंगे। 2031 एकदिवसीय विश्वकप का तो भारत संयुक्त रूप से मेजबान भी है। शायद हम जीत भी जायें,लेकिन 2023 का 19 नवंबर हमें डराता ही रहेगा।
सभी चित्र – espn cricinfo से साभार
राहुल दुबे
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