लेखक -विपुल
आज आपको भारत की चुनाव व्यवस्था के बारे में शुरू से आखिर तक पूरी बात बताते हैं जो ज्यादातर लोगों को पता नहीं होगी | ये उत्तर प्रदेश प्रदेश से सम्बंधित जानकारी है , हर राज्य में अधिकारियों के नाम पदनाम बदल जाते है |व्यवस्था एकरुप ही रहती है|
सीधे विषय पर आते हैं |
जिला निर्वाचन अधिकारी , आर ओ और निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी
किसी भी जिले का जिलाधिकारी ही उस जिले का जिला निर्वाचन अधिकारी होता है और अपर जिलाधिकारी वित्त एवम राजस्व या अपर जिलाधिकारी प्रशासन वहां का उप जिला निर्वाचन अधिकारी होता है | लोकसभा चुनाव में आर ओ या रिटर्निंग ऑफिसर जिलाधिकारी होता है और ए आर ओ सम्बंधित तहसील का उपजिलाधिकारी| विधानसभा चुनाव में सम्बंधित तहसील का उपजिलाधिकारी रिटर्निंग ऑफिसर होता है और तहसीलदार ए आर ओ।रिटर्निंग ऑफसर संबंधित लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र के सही संचालन का जिम्मेदार होता है।अमूमन एक जिले में एक ही लोकसभा क्षेत्र होती है और एक तहसील में एक विधानसभा क्षेत्र ।लेकिन कई बार एक लोकसभा क्षेत्र की विभिन्न विधानसभा विभिन्न जिलों में पड़ जाती हैं ।और कई बार एक ही विधानसभा के विभिन्न बूथ विभिन्न तहसीलों में पड़ जाते हैं।तब वो बूथ जिस तहसील में पड़ते हैं ,वहाँ का उपजिलाधिकारी और वो विधानसभा जिस जिले में पड़ती है ,वहाँ का जिलाधिकारी ही वहाँ का आरओ होता है।
तो मोटा मोटा ये समझिए कि जिले के जिलाधिकारी और तहसील के उपजिलाधिकारी ही सारी चुनाव व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार होते हैं।अब निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी और सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी को जानिये।
निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी हमेशा संबंधित तहसील का उपजिलाधिकारी (एस डी एम ) और सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी उसी तहसील का तहसीलदार होता है।वोटर लिस्ट में जुड़ने ,कटने और नाम संशोधन की ज़िम्मेदारी निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी की है
बूथ ,बी एल ओ और वोटर लिस्ट
आपको लगता होगा कि एक दिन का ही चुनाव होता है या एक ही दिन की चुनाव ड्यूटी होती है।नहीं ,निर्वाचन का तंत्र लगातार काम करता है।निर्वाचन आयोग के पास अपने कुछ अधिकारी होते हैं ,शेष काम तहसील व कलेक्ट्रेट के पूरे स्टाफ के जिम्मे होता है। चपरासी से लेकर जिलाधिकारी तक ,कोई नहीं छूट पाता।
सर्वप्रथम बूथ के लिए भवन ढूंढे जाते हैं।ये बूथ ज़्यादातर सरकारी भवनों जैसे प्राथमिक विद्यालय, जूनियर हाईस्कूल, पंचायत घर, बारात घर,इंटर कॉलेज में बनते हैं।देखा ये जाता है कि एक भवन में 3 से ज़्यादा बूथ न बनें ,लेकिन कई बार इंटर कॉलेज या डिग्री कॉलेज में 3 से ज़्यादा बूथ भी बन जाते हैं।
प्रत्येक बूथ पर एक बूथ लेवल ऑफिसर की नियुक्ति होती है।2009 के पहले तक बी एल ओ की कोई स्थायी नियुक्ति नहीं थी, कोई भी लेखपाल, सचिव या प्राइमरी मास्टर बी एल ओ चुनाव के 6 महीने पहले से बना दिया जाता था और चुनाव की प्रक्रिया 6 महीने बाद होने पर उन 6 महिनों के कार्य के लिये 750 रुपये उसे निर्वाचन आयोग की तरफ से दिए जाते थे।
अब बी एल ओ स्थायी तौर पर बनाया जाता है
बीएलओ अब ज़्यादातर आंगनबाड़ी या शिक्षा मित्रबनाये जाते हैं जो संविदा कर्मी होते हैं और स्थानीय कर्मचारी होते हैं।इन्हें 500 रुपये महीने इस काम के दिये जाते रहने का आश्वासन मिलता है।,कभी कभी मिल भी जाते हैं।वैसे निर्वाचन आयोग से पूरे पैसे आते हैं।
इनके सुपरवाइजर तहसील के लेखपाल या ब्लॉक के सचिव (ग्राम पंचायत अधिकारी ) होते हैं |सचिव बहुत कम बनाये जाते हैं ।ज़्यादातर लेखपाल सुपरवाइजर बनाये जाते हैं क्योंकि तहसील के अधिकारियों को ,इन्हें इनका मेहनताना देना नहीं पड़ता जोकि 1000 रुपये प्रति माह होता है।हालांकि आता ये भी पूरा है ,निर्वाचन आयोग से ,बस नीचे नहीं पहुंचता।सुपरवाइजर 10 बूथ पर 1 होता है सुपरवाइजर के ऊपर नोडल अधिकारी ,जो 50 से 100 बी एल ओ या 5 से 10 सुपरवाइजर को हैंडल करता है।ये नोडल अधिकारी अक्सर तहसील के राजस्व निरीक्षक ( कानूनगो ) या नायब तहसीलदार होते हैं।फिर सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी यानी तहसीलदार और निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी यानी एस डी एम।
बी एल ओ का काम ,फॉर्म 6 ,7, 8
बी एल ओ का काम होता है, अपने बूथ की वोटर लिस्ट में नए नाम बढ़ाना ,गलत नाम काटना तथा गलत नामो के संशोधन की रिपोर्ट देना।
वोटर लिस्ट में नाम बढ़ाने के लिए फॉर्म 6 भरा जाता है।नए वोट बढ़ने के 3 4 कारण होते हैं।क्षेत्र के बच्चों का 18 साल का होना, किसी की नई बहू का क्षेत्र में शादी होकर आना तथा किसी का नए मकान या किराये के मकान में आना।
वोट कटवाने के लिए फॉर्म 7 भरा जाता है।वोट कटने के के भी कई कारण होते हैं।यथा मृत्यु, लड़की का शादी करके अपनी ससुराल चले जाना, लिस्ट में डबल बार नाम आना,वोटर का स्थायी रूप से दूसरे शहर या गांव शिफ्ट होना तथा लिस्ट में कोई फ़र्ज़ी नाम होना ।
पहले मृतकों के नाम केवल बीएलओ के लिखित सूचना देने पर कट जाते थे, लेकिन अब मृतकों के लिए भी फॉर्म 7 भरा जाता है।जिसमें एक आक्षेप कर्ता का होना अनिवार्य है जो वोटर के लिस्ट में शामिल होने पर आक्षेप करे।
नाम संशोधन के लिए फॉर्म 8 भरा जाता है ।जैसे किसी का नाम या पता गलत भर गया हो तो उसे सही करवाने को
एक फॉर्म 8 क भी होता है ,जिसके द्वारा वोटर को एक बूथ की लिस्ट से दूसरे बूथ की लिस्ट में भेजा जा सकता है।लेकिन इसका प्रयोग न के बराबर होता है।
बी एल ओ को कभी भी तहसील स्तर से फॉर्म 6 7 8 अच्छी मात्रा में नहीं मिल पाते,जिस कारण उसे लोगों से फॉर्म की फोटोकापी कराने को कहना पड़ता है और लोग बीएलओ पर भड़कते हैं।
वोटर लिस्ट के लिए साल भर अभियान चलते हैं, कभी संक्षिप्त पुनरीक्षण ,कभी विशेष पुनरीक्षण और मतदान के ठीक 10 दिन पहले तक सतत पुनरीक्षण के नाम पर वोट बढ़ते, घटते रहते हैं वोटर लिस्ट में।जब विशेष अभियान चलता है तो बीएलओ को बूथ पर बैठने के निर्देश होते हैं।ये विशेष अभियान हमेशा रविवार को ही या किसी अवकाश वाले दिन ही होता है ।कभी कभी नवरात्रि में भी होता है।
बी एल ओ को घर घर जाकर वोट घटाने बढ़ाने के लिए कहा जाता है।लेकिन जब वो साथ मे दूसरी नौकरी कर रहा है तो उसके लिए सम्भव नहीं होता ।वो अपने बूथ या स्कूल में बैठ फॉर्म देता लेता रहता है।
निर्वाचन कार्यालय और निर्वाचन कानूनगो
जैसा कि पहले बताया ,चुनाव की पूरी जिम्मेदारी जिला कलेक्टर और तहसील की होती है।कलेक्ट्रेट में एक निर्वाचन कार्यालय होता है जिसमें कलेक्ट्रेट के लिपिक काम करते हैं जिनका स्थानांतरण कलेक्ट्रेट के दूसरे पटल या तहसील में भी हो सकता है।ये चुनाव की सारी व्यवस्था देखते हैं।इसी तरह तहसील में एक निर्वाचन का राजस्व निरीक्षक (कानूनगो) होता है जो तहसील स्तर पर चुनाव की सारी व्यवस्था देखता है।अब निर्वाचन आयोग ने तहसीलों में संविदा पर वी आर सी नाम से कम्प्यूटर ऑपरेटर अटैच करने का पैसा भेजना शुरू कर दिया है।जिनमे 5 6 हज़ार रूपये प्रतिमाह में लड़के काम कर रहे हैं ।प्रत्येक तहसील में एक वी आर सी होगा।
इस तहसील के निर्वाचन कानूनगो के कार्यालय से सारा काम होता है।बी एल ओ की ड्यूटी लगाना, मीटिंग बुलाना, उन्हें वोटर लिस्ट और दूसरी सामग्री देना।फॉर्म 6 7 8 देना, वापस लेना प्रत्येक 6 7 8 फॉर्म पर निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी या सहायक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के हस्ताक्षर करवाना, सुरक्षित रखना ,अन्य समस्याओं का समाधान करना।बी एल ओ जनता से जो फॉर्म भरवा के लेता है ,निर्वाचन कानूनगो के पास ही आते हैं।
एक बार वोट घटने बढ़ने के बाद फिर वोटर लिस्ट प्रकाशित होती है।जिसे लेकर बूथ पे बैठना बी एल ओ की ज़िम्मेदारी होती है।उसके बी एल ओ क्षेत्र में सही काम कर रहे या नहीं ये देखना सुपरवाइजर का काम होता है।वोटर लिस्टें पहले प्राइवेट प्रेस में छपती थीं।अब कलेक्ट्रेट में ही मशीनों से छप जाती हैं।
बूथ भवन की स्थिति, गरुड़ एप
वोटर लिस्ट में काम के अलावा जिस भवन में पोलिंग होनी है ,वहाँ की भवन की स्थिति ,शौचालय, रैंप, पेयजल ,बिजली इसकी चेकिंग तहसील कर्मचारियों द्वारा की जाती है।अगर गांव और पोलिंग स्टेशन में 2 3 किमी से ज़्यादा दूरी है तो प्रयास होता है ,कि गांव के पास के भवन में बूथ रहे ।किसी वोटर लिस्ट में 1200 से ज़्यादा लोग हैं तो उस वोटर लिस्ट के दो फाड़ करके नया बूथ बनाया जाता है।भवन जर्जर होने पर नये भवन की तलाश होती है जहां वोटिंग करवाई जाए।पहले बूथ भवन की फोटो खींच के लेखपाल भेजते थे ,अब निर्वाचन आयोग ने सारे बीएलओ से अपने फोन में गरुड़ एप डाऊनलोड करके वूथ की स्थिति वेबसाइट पर भेजने के निर्देश दिए हैं।
मतलब आपको हंसी और गुस्सा साथ साथ आएगा कि निर्वाचन आयोग 500 रुपये महीने देकर अपेक्षा रखता है कि बी एल ओ कम से कम 6 7 हज़ार का स्मार्टफोन रखे।कोई भी कर्मचारी बी एल ओ नहीं बनना चाहता पर निर्वाचन आयोग भी अपने कर्मचारी अलग नियुक्त नहीं करना चाहता|
निर्वाचन व्यवस्था में एक पदाभिहित अधिकारी भी होता है जो अक्सर बूथ वाले प्राइमरी स्कूल के अध्यापक होते हैं ।मुझे आजतक पदाभिहित अधिकारी का कॉन्सेप्ट समझ नहीं आया क्योंकि इसका भी वही काम होता है जो बी एल ओ का होता है।ये भी फॉर्म 6 7 8 जमा करता है।हर फॉर्म 6 7 8 पर बी एल ओ या पदाभिहित अधिकारी की स्पष्ट रिपोर्ट होती है कि वोट घटाया या बढ़ाया जाए ।उसपर सुपरवाइजर की रिपोर्ट होती है।ये फॉर्म तहसील निर्वाचन कानूनगो कार्यालय में जमा होते हैं, जहाँ हर फॉर्म पर तहसीलदार या उपजिलाधिकारी हस्ताक्षर करता है।इस तरह हर वोटर लिस्ट में वोट कटने या बढ़ने का रिकॉर्ड होता है।ये फॉर्म चुनाव तक सुरक्षित रखे जाते हैं ,फिर नष्ट कर दिए जाते हैं।
इसी दरम्यान जब चुनाव तिथियों की घोषणा के बाद आचार संहिता लग जाती है ,तब का हाल बड़ा मज़ेदार है।
जिलाधिकारी तत्काल अपने सभी अधीनस्थ अधिकारियों की मीटिंग बुलाता है।तमाम निर्देश देता है।सर्वप्रथम आचार संहिता के अनुपालन पर ध्यान देने को कहा जाता है कि जितने भी प्रत्याशी लोगों के झंडे बैनर वाल पेंटिंग हो ,हटा दी जाए।जिलाधिकारी ,एस डी एम को ,एस डी एम तहसीलदार को ,तहसीलदार कानूनगो को, कानूनगो क्षेत्रीय लेखपाल से ऐसा करने को कहता है।अब चूँकि लेखपाल को न इन कामों के लिए लेबर उपलब्ध कराए जाते, न सामान ,न पैसा ।तो वो अपने क्षेत्र के लोगों से कह कर गेरु से वाल पेंटिंग छुपवाता है।कुछ गांव के लड़कों को बिजली के पोल, खंभे पर चढ़वा कर झंडे बैनर उतरवाता है जो ,रात होते ही फिर लग जाते हैं।
फिर दोबारा बूथों की चेकिंग तहसील के कर्मचारियों द्वारा होती है कि भवन जर्जर तो नहीं ?लाइट है ?,पीने का पानी है? शौचालय है ,फर्नीचर पर्याप्त है ? विकलांग मतदाताओं के चढ़ने के लिए रैम्प है या नहीं ?90 प्रतिशत प्राइमरी विद्यालयों मे लाइट नहीं होती क्योंकि बिजली का बिल कौन भरे ?
पंचायत भवनों या बारात घरों में फर्नीचर नहीं होता ,जहाँ चुनाव के एक दिन पहले क्षेत्रीय लेखपाल अपने खर्चे पर टेंट हाउस से फर्नीचर मंगवाता है।स्कूलों के हैंडपम्प अक्सर खराब रहते हैं।
रैंप अक्सर टूटे मिलते हैं।
इन सारी चीजों को चुनाव तक दुरुस्त करवाने के लिए एसडीएम संबंधित विभाग को कहता है ।और चुनाव के एक दिन पहले तक ये चीज़ें ठीक होती रहती हैं
आर टी ओ व अन्य की ज़िम्मेदारी
आचार संहिता की घोषणा होते ही जिले का आर टी ओ ऑफिसर वाहनों की चेकिंग बढ़ा देता है और छोटी मोटी कमियों को निकाल कर भी ट्रकों, प्राइवेट बसों, जीपों, वैनों को मय ड्राइवर अपने सुपुर्द कर लेता है जिन्हें चुनाव व्यवस्था में उपयोग किया जाता है।बड़े बड़े प्राइवेट स्कूलों के मालिकों और बड़ी कम्पनियों के मालिकों को भी अपने स्कूली बच्चे या कर्मचारियों को लाने ले जाने वाली बसें भी जिला प्रशासन को उपलब्ध करवानी पड़ती हैं ।क्योंकि जिलाधिकारी एक बार प्यार से दूसरी बार अधिकार से कहता है। फिर लोगों को समझ आ जाता है कि प्रशासन से बड़ा गुंडा वाकई में कोई नहीं होता।
इधर पुलिस गाड़ियों की चेकिंग करती है ।क्षेत्र के उन शातिर लोगों को पहले ही या दबोच लेती है या मतदान तक जिला छोड़ने को मजबूर कर देती है।जो नहीं मानता उनकी कुंडली आगे के लिए साढ़ेसाती वाली बन जाती है।
खाद्य विभाग को अलग काम मिलता है।।अन्य विभागों को अलग।
कुल मिलाकर का पुलिस (जिले का एस एस पी या कमिश्नर) तथा प्रशासन (जिले का जिलाधिकारी ) पूरी तरह से चुनावी मोड में होते हैं।विशेषकर विधानसभा चुनाव में।
सामान्य व अतिसंवेदनशील बूथ
चुनाव व्यवस्था में 3 तरह के वूथ माने जाते हैं ।सामान्य ,संवेदनशील और अतिसंवेदनशील ।जहां लड़ाई झगड़े की संभावना नहीं होती वहाँ सामान्य फोर्स रहती है।संवेदनशील क्षेत्र वो माने जाते हैं जहाँ झगड़ा होने की संभावना हो ,यहाँ सामान्य से ज़्यादा फोर्स रहती है।अतिसंवेदनशील बूथ वो होते हैं जहां उपद्रवियों का आतंक रहा हो तथा प्रशासन मानके चलता है कि यहाँ कुछ न कुछ होगा ज़रूर।कोई बूथ संवेदनशील है या नहीं ?इसकी सूचना क्षेत्रीय लेखपाल तथा पुलिस की लोकल इंटेलिजेंस देती है।इसमें भी लेखपाल की सूचना ज़्यादा प्रमाणिक मानी जाती है।क्योंकि लेखपाल तहसील प्रशासन का पीर बावर्ची भिश्ती खर सबकुछ होता है।बहुत कम लोग जानते हैं कि लेखपाल ग्राम स्तर पर जिलाधिकारी या उपजिलाधिकारी का सीधा प्रतिनिधि होता है और उसकी रिपोर्ट डी एम या एस डी एम की नज़रों में अकाट्य होती है।अगर पुलिस कह रही है कि बूथ सामान्य है और लेखपाल के अनुसार संवेदनशील है तो बूथ संवेदनशील ही माना जायेगा।अगर किसी बूथ पर ज़्यादा ही झगड़े की संभावना है तो वहाँ एक स्टेटिक मजिस्ट्रेट नियुक्त होता है जो दिनभर उसी बूथ पर रहता है।
रुट चार्ट ,सेक्टर व ज़ोनल मजिस्ट्रेट
चुनाव करवाने के लिए एक रुट चार्ट बनता है तथा सेक्टर व ज़ोन बनाये जाते हैं।एक विधानसभा में 5 से 8 ज़ोन तथा हर ज़ोन में 5 से 8 सेक्टर बनते हैं ।हर सेक्टर में 10 से लेकर 25 बूथ तक हो सकते हैं |जोनल मजिस्ट्रेट अक्सर विभिन्न विभागों जैसे दूरसंचार ,कृषि आदि के क्लास 2 के अधिकारी बनाये जाते हैं जबकि सेक्टर मजिस्ट्रेट थोड़े कम स्केल के अधिकारी बनाये जाते हैं ।सेक्टर मजिस्ट्रेट अक्सर बगैर सरकारी गाड़ी वाले निम्न स्तर के अफसर होते हैं जिन्हें चुनाव भर जिला प्रशासन सरकारी गाड़ी उपलब्ध कराता है।
तहसील निर्वाचन कानूनगो कार्यालय में एक रुट चार्ट बनाया जाता है कि मतदान सामग्री लेकर पोलिंग पार्टी किस रुट से अपने आवंटित स्थल पर चुनाव करवाने पहुंचेगी।
पीठासीन अधिकारी व पोलिंग पार्टी
चुनाव करवाने के लिये जिला निर्वाचन कार्यालय से विभिन्न विभागों के कर्मचारियों की ड्यूटी पीठासीन अधिकारी ,प्रथम मतदान अधिकारी व द्वितीय मतदान व तृतीय मतदान अधिकारी के रूप में लगाई जाती है।दरअसल जिलाधिकारी कार्यालय से विभिन्न विभागों से उनके कार्यरत कर्मचारियों की लिस्ट चुनाव करवाने हेतु मांगी जाती है ।इसी लिस्ट में से कर्मचारियों को चुना जाता है।
सबसे ज़्यादा पे स्केल वाले कर्मचारियों को पीठासीन अधिकारी बनाया जाता है।चुनाव के दौरान पीठासीन अधिकारी ही अपने बूथ पर मतदान करवाने का जिम्मेदार होता है।शेष सभी सहयोग में रहते हैं।ससे कम पे स्केल वाले को प्रथम ,उससे कम पे स्केल वाले को द्वितीय तथा सबसे कम पे स्केल वाले को तृतीय ।तृतीय अक्सर सफाई कर्मचारी या चपरासी होते हैं।
अब प्रत्येक बूथ पर एक कैमरामैन भेजा जाता है जो अक्सर संविदा कर्मी ग्राम रोजगार सेवक या शिक्षा मित्र होते हैं।मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में एक महिला कर्मचारी पर्दानशीं के नाम से लगाई जाती है जिसका काम बुर्के वाली महिलाओं की पहचान करना होता है।
इस तरह मोटे तौर पर एक पोलिंग पार्टी मे 4 लोग होते हैं लेकिन मतदान के समय 6 तक हो सकते हैं।पुलिस के व अर्धसैनिक बलों को मिलाकर 12 लोग तक हो जाते हैं जो मतदान के एक दिन पहले बूथ पर पहुँच जाते है।
चुनाव में लगे पीठासीन व अन्य कर्मियों की ट्रेनिंग जिला प्रशासन द्वारा आयोजित की जाती है जिसकी व्यवस्था तहसील व जिला प्रशासन के कर्मचारी करते हैं।पीठासीन व अन्य मतदान अधिकारी को पहले ही नहीं बताया जाता कि उन्हें किस विधानसभा में जाना है।दूसरी ट्रेनिंग में बताया जाता है कि किस विधानसभा में जाना है और बूथ तब पता चलता है जब चुनाव में लगे कर्मचारी मतदान के एक दिन पहले मतदान सामग्री लेने पहुंचते हैं।
नामांकन और अंतिम मतदाता सूची
वोटर लिस्ट में पुनरीक्षण का काम तब तक चलता है जब तक नामांकन शुरू नहीं हो जाता।नामांकन विधानसभा चुनाव में उपजिलाधिकारी व लोकसभा चुनाव में जिलाधिकारी के समक्ष होता है क्योंकि वही रिटर्निंग ऑफिसर होते हैं।यहाँ एक बात बता दूं ,लोकसभा चुनाव में भी सारी चुनाव व्यवस्था विधानसभा वार चलती है
दरअसल लोकसभा चुनाव की व्यवस्था उसी लोकसभा के अंतर्गत आने वाली विभिन्न विधानसभा चुनावों की व्यवस्था का एकजाई (एकत्रित )होता है तथा दरअसल लोकसभा चुनाव का परिणाम उसी लोकसभा के अंतर्गत आने वाली विभिन्न विधानसभा चुनावों का एकजाई परिणाम होता है ।नामांकन में जिलाधिकारी व उपजिलाधिकारी के साथ तहसील व कलेक्ट्रेट के कुछ कर्मचारी लगे होते हैं ।
नामांकन चालू होते ही उस तहसील के अंतर्गत आने वाली विधानसभा की सारी बूथों की वोटर लिस्टें 5 5 कॉपी में छप कर आती हैं ।।जिनको चेक करना सिलना, गाँठना, हर पन्ने पर मोहर लगाना की ज़िम्मेदारी तहसील के कर्मचारी लेखपाल ,अमीन ,लिपिक, कानूनगो चपरासी ,पेशकार सभी की होती है।ये काफी लंबा और बोरियत वाला काम है जिसमे 2 3 दिन लगते हैं लेकिन गोपनीयता बनाये रखने के लिए तहसील के अलावा कोई स्टाफ इसमें नहीं लगाया जाता है ।
हर वोटर लिस्ट के हर पन्ने पर उपजिलाधिकारी या तहसीलदार के हस्ताक्षर होने चाहिए जो मुझे आज तक समझ नहीं आया कि इसका औचित्य क्या है ।इतनी ज़्यादा व्यस्तता के समय तहसीलदार या एस डी एम कैसे इतने हस्ताक्षर करेगा ?
अंदाज़ा लगाइए एक विधानसभा में 450 वोटर लिस्ट हैं।हर वोटरलिस्ट में कम से कम दोनो तरफ मिला कर 25 पेज हैं और हर लिस्ट की 5 कॉपी हैं तो उस अधिकारी को 2 दिनों में 56,250 हस्ताक्षर करने होंगे
सम्भव है? इसलिए ये काम कैसे होता है अंदाज़ लगाइए।
ईवीएम की सीलिंग
नामांकन प्रक्रिया खत्म होते ही बैलट छप जाता है और कोषागार के डबल लॉक से निकालकर ईवीएम मशीनों की सीलिंग का काम शुरू होता है ।इस काम मे भी केवल तहसील कर्मी शामिल होते हैं ।अन्य कोई शामिल नहीं हो सकता ।ये अलिखित नियम है कि वोटर लिस्ट का फ़ाइनल प्रिंट तैयार करने व ईवीएम सीलिंग व पोलिंग पार्टी का बस्ता तैयार करने का कार्य केवल तहसील कर्मी करेंगे।
ईवीएम के तीनों पार्ट कंट्रोल यूनिट ,बैलेट यूनिट और वीवीपैट यूनिट दो बार चेक किये जाते हैं।हर निशान पर वोट डाल के देखा जाता है कि मशीन सही काम कर रही है या नहीं पर्ची निकल रही है या नहीं ।उसके बाद तमाम तरह की सील अंदर बाहर लगा कर मशीनों को सील किया जाता है।फिर मॉक पोल के लिये विभिन्न पार्टियों को बुलाया जाता है कि देखो ,मशीन काम कर रही है या नहीं ?लेकिन किसी पार्टी से कोई कोई झांकने नहीं आता ।पीठासीन अधिकारी का बस्ता भी साथ मे तैयार होता चलता है।कुल बूथों की संख्या की 40 प्रतिशत ईवीएम रिज़र्व में तैयार करके रखी जाती हैं।।सीलिंग के बाद ये मशीनें स्ट्रांग रूम में रखी जाती हैं जो अक्सर शहर का नवीन मंडी स्थल होता है
पोलिंग पार्टियों की रवानगी
मतदान के एक दिन पहल पोलिंग पार्टियां रवाना की जाती हैं।आरटीओ द्वारा उपलब्ध कराए गए वाहन पोलिंग पार्टियों को ले जाने के लिए खड़े रहते हैं|
मतदान के लिए पोलिंग पार्टीज को रवाना करने के लिये या तो उसी मंडी स्थल पर जहाँ स्ट्रांग रूम बना है, व्यवस्था की जाती है तथा पोलिंग पार्टी को ले जाने के लिए बसें व ट्रक वहाँ लगाए जाते हैं।अगर वहाँ इतनी जगह नहीं है तो किसी इंटर कॉलेज या डिग्री कॉलेज के बड़े ग्राउंड में व्यवस्था होती है ।तब ये ईवीएम बक्सों में भरकर रवानगी स्थल पर पहुंचाई जाती हैं।ये सारा अरेंजमेंट तहसील व कलेक्ट्रेट कर्मचारियों अधिकारियों की ज़िम्मेदारी होती है ।
सामग्री वितरण के लिए विधानसभा वार कई टेबल लगाई जाती हैं।एक टेबल पर 20 से 30 बूथों का इंतज़ाम होता है।
सामग्री वितरण में तहसील व कलेक्ट्रेट के कर्मचारियों को व अन्य विभागों के कर्मचारियों को लगाया जाता है।अन्य विभागों के कर्मचारियों को लगाने के बावजूद भी तहसील के अधिकारी ,कर्मचारी सुपरवाइज करते रहते हैं।जब तक सारी पोलिंग पार्टी रवाना नहीं होती तहसील के स्टाफ को चैन नहीं मिलती ।एक टास्क पूरा।
बूथ निर्माण
उधर तहसील प्रशासन की मशीनरी साथ में ही क्षेत्र में भी उसी समय कार्यरत रहती है ।
जिन जिन बूथों पर चुनाव होना होता है, वहाँ बूथ बनाने व 4 मेज 8 कुर्सी का फर्नीचर उपलब्ध करवाने की व्यवस्था क्षेत्रीय लेखपाल की ही होती है ।तो लेखपाल तहसील से पोलिंग कंपार्टमेंट लेकर अपने क्षेत्र के बूथों में जाता है।स्कूल या पंचायत घर की चाबी लेकर 4 मेज 8 कुर्सी की व्यवस्था करता है।इसलामिक विद्यालय में या पंचायत घर मे मेजें मिलती नहीं तब टेंट हाउस से मंगवाता है।पोलिंग कम्पार्टमेंट बनाता है ।पानी बिजली की व्यवस्था करवाता है।इस सब काम के लिये उसे प्रत्येक बूथ के लिये 100 रुपये तहसील से मिलते हैं। (कभी कभी )।
इतना सब करने के बाद उसे अपने क्षेत्र में रहकर पोलिंग पार्टियों का इंतज़ार करना पड़ता है।जब उसके क्षेत्र की पोलिंग पार्टी पहुंच जाती है तब वो अपने तहसीलदार या उपजिलाधिकारी को सूचना देता है ।
दूसरा टास्क कम्प्लीट।
पोलिंग पार्टी वाले जब पहुंचते हैं तो उनको चेक करने सेक्टर मजिस्ट्रेट पहुंचता है जो उनको कैश पैसे देता है और भोजन के लिए अलग पैसे देता है ।अगर लेखपाल या प्रधान सही हुआ तो उस पोलिंग पार्टी के लिए रात को चारपाई बिस्तर व चाय नाश्ते खाने की व्यवस्था करवा देगा। वरना उनकी ज़िम्मेदारी नहीं ।पोलिंग पार्टी को खाना या बिस्तर उपलब्ध करवाने की ज़िम्मेदारी क्षेत्रीय लेखपाल या प्रधान की नहीं होती ,फिर भी सहानुभूतिवश ये व्यवस्था करवा दी जाती है।
मतदान का दिन
अगले दिन पोलिंग प्रारंभ होती है।प्रत्येक तहसील में एक कंट्रोल रूम बना होता है, जहां सारी विधानसभा के बूथों से संपर्क रखा जाता है।सेक्टर व जोनल मजिस्ट्रेट फील्ड में रहते हैं।। प्रत्येक सेक्टर मजिस्ट्रेट व जोनल मजिस्ट्रेट के पास कुछ रिजर्व ईवीएम होती हैं जो खराब मशीनों से बदली जाती हैं।प्रत्येक घंटे के मतदान की अपडेट रहती है।शाम को मतदान के बाद पोलिंग पार्टी निर्धारित स्थान पर आकर अपनी ईवीएम उसी टेबल पर उन्हीं कर्मचारियों के पास जमा करती है जहाँ से ले गई थी।ये भी अलिखित नियम है कि जिसकी ड्यूटी जिस टेबल नम्बर पर सामग्री वितरण में लगी थी ,उसी टेबल पर जमा करने में भी लगेगी।
सारी मशीनों को जमा करने के बाद सारे स्ट्रांग रूम एक एक करके चुनाव प्रेक्षक के सामने जिलाधिकारी सील करता है।फिर मतगणना तक ये स्ट्रांग रूम अर्धसैनिक बलों के सुपुर्द रहते हैं।
मतगणना
मतगणना में बैंक कर्मचारी व लेखाकारों की ड्यूटी लगाई जाती है ।लेकिन तहसील व कलेक्ट्रेट के सारे कर्मचारियों अधिकारियों की उपस्थिति अनिवार्य होती है ।
कॉउंटिंग के लिए स्ट्रांग रूम से मशीनें आती हैं और कॉउंटिंग के बाद दोबारा सील होती हैं।एक विधानसभा में एक कम्प्यूटर टेबल होती है जहाँ विभिन्न बूथो के वोट जुड़ते रहते और फिर परिणाम की घोषणा होती है ।लोकसभा चुनाव में प्रत्येक विधानसभा के कम्प्यूटर टेबल के अलावा एक टेबल अलग होती जहाँ सारी विधानसभा सीटों के वोट एकजाई किये जाते हैं ।इन टेबलों पर तहसील के कंप्यूटर ऑपरेटर रहते हैं |
मशीन सील लेखपाल व अमीन करते हैं।
चुनाव परिणाम आने के बाद इन सील मशीनों को बक्सों में भर कर जिला कोषागार के डबल लॉक तक पहुंचवाने की ज़िम्मेदारी उपजिलाधिकारी के अंतर्गत तहसील कर्मचारियों की होती है।
इस सारी बात में चुनाव प्रेक्षक के बारे में बताना भूल गया।हर विधानसभा के लिये एक प्रेक्षक व जिले के लिए एक व्यय प्रेक्षक आता है।ये सीनियर आई ए एस होते है और जिला प्रशासन द्वारा इनकी सेवा बहुत की जाती है।
काफी लंबा ब्लॉग हो गया ।बाकी बातें अगले ब्लॉग में करेंगे|
लेखक -विपुल
(लेख में प्रस्तुत विचार लेखक के स्वयं के हैं ।सर्वाधिकार सुरक्षित )