लेखक -राहुल दुबे
विजय(बैंकर) !
दिलखुश कुमार (मजदूर),!
राजन(मजदूर)!
अमरीन भट(टीवी कलाकार)!
रजनी बाला(अध्यापिका) !
ये उन लोगों कुछ नाम हैं जिनको इस्लामिक आतंकवादियों ने नाम पूछने के बाद मार दिया ।
इनकी टारगेट किलिंग ने कश्मीर घाटी में फिर से 1990 के मंजर को जीवित कर दिया है।ऐसी सैकडों घटनाएं पिछले 3 महीनों में घटित हो चुकी हैं, जिसके बाद सैकड़ो कश्मीरी हिन्दू फिर से अपना सब कुछ बांधकर कश्मीर से भागने पर मजबूर हो गए हैं।
लेकिन अपने ही देश के एक हिस्से से हिन्दुओं का यूँ भागने पर मजबूर होना अब तक राष्ट्रीय खबर नहीं बन सका है।
जिन जगहों पर रूस और यूक्रेन के वाहियात युद्ध की चर्चा, जॉनी डीप और एम्बर हेर्ड के वाहियात केस की चर्चा भी की जा रही थी उन्हें भी अभी तक कश्मीर में नए हिन्दू नरसंहार की भनक नही है ।
और मुझे तो लगता है कि कुछ ऐसा ही आलम 1990 के दौरान भी रहा होगा, जब कश्मीरी हिन्दुओ को एक-एक करके मारा जा रहा होगा और भगाया जा रहा होगा, लेकिन देश के दूसरे हिस्से में बैठे लोगों को इससे कोई दिक्कत न दिखी होगी।
ये कोई आम घटना नहीं है।
2014 के बाद देश में एक उम्मीद जगी थी कि मोदी सरकार के आने के बाद कश्मीर में सब कुछ नार्मल हो जाएगा और कश्मीरी हिंदुओं को उनका खोया संसार वापस मिल जाएगा।
5 अगस्त 2019 को धारा 370 के हटने के बाद उम्मीदें और प्रबल हो गयी थीं।
लेकिन आज अपने 8 साल का बिना किसी शर्म के जश्न मनाने के बाद भी भाजपा सरकार कश्मीर में संतोषजनक बदलाव नहीं ला सकी है। DDA के चुनावों में कश्मीर में एक सीट जीतने के अलावा भाजपा की कोई उपलब्धि नहीं है।
कश्मीर फाइल्स फ़िल्म से कई लोगों की आँखों पर बंधी वामपंथी पट्टी तो हटी लेकिन वो पट्टी फ़िल्म को पैसे दिलाने के बाद फिर से बंधती दिख रही है ।
यदि आज भी कश्मीरी हिंदुओं का वही हाल है, जो 1990 में था तो आखिर अमित शाह के गृह मंत्री बने रहने का क्या अर्थ है ?
अमित शाह ना शाहीन बाग रोक पाए, ना दिल्ली के दंगे, और अब कश्मीर को भी दो मुहाने पर छोड़ दिया है, धारा 370 हट जाने से भारत के दूसरे हिस्से के लोगों को कश्मीर को अपनाने का मौका तो मिला है लेकिन बिना सुरक्षा की गारंटी के ये कैसे मुमकिन है मैं नही समझ पा रहा।
किसी भी जगह के विकास के लिए वहां निवेश का होना अति आवश्यक है ,लेकिन बिना सुरक्षा के गारंटी के ये कैसे मुमकिन है?
खैर कश्मीर के विकास के पुराण को छोड़ते है और हिन्दुओं पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं।।
देश में दो तरह के लोग पाए जाते हैं।
एक वो जो हिन्दू मौत पर किसी भी हाल में खुश हैं और इसको वो कहीं न कहीं जाहिर कर ही देते हैं।
दूसरे वो लोग है जो समय की नजाकत को देखकर हिंदुओं की इस्लामिक एजेंडे के तहत हो रही हत्याओं पर अपनी नकली आंसुओं का लेपन करते है।
एक पत्रकार महोदया हैं!
पत्रकार मजबूरी में लिख रहा हूँ ।उन्होंने अपने ट्वीट में कश्मीरी हिंदुओं की हत्याओं पर दुख तो जताया ,लेकिन इसका जिम्मेदार अपने भाइयों को बताना भूल गईं।
केजरीवाल, भूपेश बघेल जो कश्मीर फाइल्स को काल्पनिक कथा मानकर उसका उपहास उड़ा रहे थे ,अब अपने राजनीतिक फायदे के लिए हिन्दुओं की हत्याओं को कैश करना चाहते हैं!
वो भी उनकी हत्या जिन्होंने की थी ,उन जेहादियों को क्लीन चीट देकर।
हम और आप ऐसे सेक्युलर राष्ट्र में रहते हैं जहाँ सत्तापक्ष की प्रवक्ता का किताब से उठाया कुछ बोलने पर उसका सिर काटने पर करोड़ों का इनाम घोषित हो जाता है।
एक विशेष वर्ग के लोगों को शोषित वंचित बता दिया जाता है।
उनकी सहानुभूति में बड़े-बड़े अंतराष्ट्रीय अखबारों में खबरें छपती है, पैसे हिन्दुओ से ही बटोरे जाते हैं
लेकिन उसी राष्ट्र में हिंदुओं को उनका नाम पूछकर गोली मार दी जाती है ।
और इस बात से किसी को तनिक भी फर्क नहीं पड़ता है!
ताज्जुब की बात तो यह है कि जिनकी राजनीति ही ऐसी हत्याओं को जाहिर करने के कारण चमकी है वह भी अब स्वयं को शांतिदूत साबित करने में लगे पड़े हैं।
इन चक्करों में हिन्दू हर जगह पिस रहा है।
कहीं मेवात उसके लिए तैयार हो रहा है , कहीं जहांगीरपुरी !
कहीं खरगौन, तो कहीं करौली! और इन हत्याओं को डिफेंड भी एक परिवर्तित हिन्दू ही कर रहा है।
और मज़े की बात तो ये है कि 1925 से खुद को हिंदुत्व का झंडाबरदार समझने वाला एक संगठन अब एक समान डीएनए की हवाबाजी कर रहा है।
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र भारत में हिन्दू वो घण्टा हो गया है जिसको हर कोई बजा के जा रहा है।
कहीं जान से मारकर हिन्दू अस्तित्व को ही खत्म किया जा रहा है कहीं हिंदुत्व की जड़ में ही चीनी घोली जा रही है ताकि ये जल्दी से ज़ल्दी सूख जाए।
हे राम !
तुम्ही हो तारणहार हमारे!
exxcricketer.com के लिए राहुल दुबे……
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