विजयंत खत्री
हाय अडानी हाय अंबानी
अभी कुछ समय पहले ही भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति गौतम अडानी दुनिया के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति बन गए हैं। अगर ये उपलब्धि गलती से यूपीए सरकार के समय आ जाती तो महान “रमन का मांगके” पुरुस्कारधारी पत्तलकार दबिश कुमार ज़ी कह रहे होते की- “मेरी सोनिया जी महान जो उनके नेतृत्व मे एक भारतीय व्यक्ति द्वारा ऐसी तरक्की की गई।” पर अफसोस ये शब्द “हाय अडानी मे बदल गए।”
भारत एक विचित्र देश
भारत एक विचित्र देश है यहा पर उद्योगपतियों से नफरत की जाती है उन्हें गरीबो का खून छाछ मे मिलाकर पीने वाला माना जाता है। जेएनयू के अधेड़ छात्रः भी बीड़ी का धुआ उड़ाते हुए इस प्रकार चर्चा करते है जैसे उनका सहपाठी ही उनके द्वारा जो बीड़ी का बंडल मंगाने के लिए जो पैसे उसे देते थे वो उसमे से जो छुट्टा बचता था, उसकी धांधली करके ही उद्योगपति बना हैं। भारतीय उद्योगपतियों मे भी सबसे कुख्यात अडानी और अम्बानी माने जाते हैं।
पर अखिर ये अडानी और अम्बानी इतने कुख्यात उद्योगपति कैसे हो गये? क्या ये दोनों यशस्वी जी के प्रधान सेवक बनने से पहले मेरठ के सोतीगंज मे चोरी किए गए वाहनों के फटे हुए टायर रेहड़ी पर बेचते थे? तो आखिर यशस्वी जी के आने के बाद दोनों ज्यादा कुख्यात क्यूँ हो गए हालाकि मेरठ का सोतीगंज का वाहनो का चोर बाजर भी बंद हो चुका है।
वास्तव मे अडानी, अम्बानी को कुख्यात उद्योगपति बनाने का श्रेय आलू से सोना बनाने वाली फैक्ट्री के मालिक राहुल जी को जाता है। अब आप ये बात मत पूछ लेना कि राहुल जी ऐसा क्यूँ करेंगे? वो तो यशस्वी जी के सात सितारा प्रचारक है। दरअसल बात उन दिनों की है जब राहुल जी को लगता था यशस्वी जी बस 5 साल के लिए ही चौकीदार बने है। वो उनकी इस बात से आश्वस्त थे कि 5 साल बाद वो झोला उठाकर चले जाएंगे। उन्होंने यशस्वी जी की पार्टी को सबसे अधिक चंदा देने वालों का पता लगाया। तो पता चला कि अडानी, अंबानी सबसे अधिक चंदा देते है तो राहुल जी को आश्चर्य हुआ। क्यूंकि अडानी अम्बानी तो उन्हें भी चंदा देते हैं।
वास्तविकता
वास्तविकता यह है कि बड़े उद्योगपति लगभग हर पार्टी चाहे वह छोटी हो या बड़ी सबको चंदा देते हैं। ये कोई नियम तो नहीं है कि किसी उद्योगपति को चंदा हर पार्टी को देना होगा, परंतु एक रिवाज जरूर है। लेकिन उद्योगपति तो ठहरा एक व्यापारी वो चंदा उस पार्टी को ज्यादा देता है जो सत्ता मे हो, व जिससे उसे थोड़ा बहुत लाभ मिलता रहे जैसे आसान लोन, व्यापार करने मे सहूलियत आदि। लेकिन पहले ऐसा नहीं था, 2014 से पहले सरकार किसी की भी रहे पर उद्योगपतियों से सबसे ज्यादा चंदा काँग्रेस को ही जाता था क्यूँकि उद्योगपति लोग जानते थे कि कोई अन्य सरकार भले आ जाए देश मे पर ज्यादा समय नहीं रुक पाएगी |अंततः देश पर शासन करने का अधिकार काँग्रेस का ही है क्यूंकि उनके नाम के पीछे गाँधी शब्द जो लगा है । परंतु 2014 के बाद हवा का रुख यशस्वी जी ने बदल दिया और 2019 तक आते आते देश की जनता के साथ उद्योगपतियों को भी लगने लगा कि काँग्रेस की वापसी लगभग असंभव है। देश मे उद्योगपतियों ने काँग्रेस को चंदा देना कम या बंद कर दिया। और एक समय काँग्रेस को सबसे अधिक चंदा देने वाले अडानी अंबानी अब काँग्रेस के दुश्मन लगने लगे । तो काँग्रेस के आलू सोना फैक्ट्री के मालिक ने एक योजना बनाई, अपने तमाम चेलों को जैसे – उनकी पालतू लुटयनस् मीडिया, कार्यकर्ताओं, अपने मुख्य चेहरों को अडानी अम्बानी पर लगातार हमले करने को कहा गया और इस प्रकार का माहौल बनाया गया कि अम्बानी और अडानी वो चोर है जिनका आपके हर सामान पर नजर है – जैसे – अन्न-डाटा आंदोलन के समय आपकी जमीन, आपके पर्स, आपके घर, आपकी गर्लफ्रेंड पर भी नजर है। इससे आम आदमी भयभीत हो जाए। पर वास्तव मे ये बिना मतलब का ड्रामा एक तरह से ब्लैक मेल करना ही है।
राजनीतिक ब्लैक मेल करने की कला
ये राजनीतिक ब्लैक मेल करने की कला अमेरिकन वोक से सीखी हुई प्रतीत होता है। अमेरिका मे वोक संस्कृति ने दुनिया को ग़ज़ब के स्कैम करना सिखाया। जहा प़र अपने आप को प्रताडित, दबा कुचला और दयनीय दिखा कर उद्योगपतियों से चंदा या बिना किसी कौशल के नौकरी हड़पना शामिल रहा है। ब्लैक लाइवस् मैटर आंदोलन चलाने वाले लोगों ने इस आंदोलन की आड़ मे उद्योगपतियों से मोटी रकम चंदे के रूप मे वसूली और जिन्होंने चंदा नहीं दिया उनका बॉयकाट किया गया, उन्हें कैंसिल किया गया। बिल्कुल वैसी ही रणनीति काँग्रेस के राजकुमार आलू सोना स्टार्ट-अप के उभरते सितारे ने अपनाया। आजकल काँग्रेस के पास पैसे की बहुत कमी हो गई है। काँग्रेस जैसे बड़े संगठन को चलाने के लिए बहुत धन को आवश्यकता होती है। राजनीतिक दलों के पास जो धन है उसमे बड़ी मात्रा मे उद्योगपतियों द्वारा दिया गया चंदा होता है। और एक उद्योगपति केवल उसी राजनैतिक पार्टी मे निवेश करता है जिसमें उसे लगे कि ये कभी सत्ता मे आ सकती है।
तो कुल मिलाकर काँग्रेस और उसके राजकुमार भारतीय उद्योगपतियों को ये डर दिखाकर की अगर आप हमे चंदा नहीं दोगे तो आपको हम इतना बदनाम कर देंगे कि जनता आपके खिलाफ़ उठ खड़ी होगी और ऊल जलूल हरकत करेगी। जैसे अन्न – डाटा आंदोलन के समय पंजाब मे लोगों ने रिलायंस जियो के मोबाइल टावर मे और अडानी के गोदामों मे तोड़ फोड़ की। तो कुल मिलाकर ये उद्योगपतियों को बदनाम करने का कारण केवल और केवल विपक्षी पार्टियों द्वारा चंदा उगाही का खेल है। वरना अडानी अंबानी व्यापार तो काँग्रेस और विपक्ष शासित राज्यों मे भी कर रहे है भले ही थोड़ा चंदा ज्यादा देकर। तो ये हाय अडानी, हाय अम्बानी उसी प्रकार का काम है जो सड़क, चौराहों पर पर हाय – हाय करके पैसा लिया जाता है।
विजयंत खत्री
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