भाग 3 -रोबिन सिंह
लेखक -विपुल
आप मुझ पर हंसेंगे ,अगर मैं आपसे कहूँ कि एकदिवसीय क्रिकेट में 25 का बल्लेबाज़ी एवरेज और 43 का गेंदबाजी एवरेज रखने वाला एक खिलाड़ी एक समय सचिन और गांगुली के बराबर ही लोकप्रिय था और उस उम्र में वो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की मुख्य धारा में आया जब ज़्यादातर क्रिकेटर रिटायर होने की सोचने लगते हैं।
बात हो रही है रविन्द्र रामनारायण सिंह उर्फ रॉबिन सिंह की जो त्रिनिदाद एंड टोबैगो के मूल निवासी थे ,लेकिन भारत से खेलने के लिये उन्होंने अपना त्रिनिदाद एंड टोबैगो का पासपोर्ट सरेंडर कर दिया था।
रॉबिन सिंह माइकेल बेवान नहीं थे ,बेस्ट फिनिशर!
रॉबिन सिंह युवराज की तरह सिक्सर किंग भी नहीं थे।
रॉबिन सिंह गांगुली की तरह के आकर्षक बल्लेबाज भी नहीं थे ।
पर रॉबिन सिंह रॉबिन सिंह थे।
25 के बल्लेबाजी और 43 के गेंदबाजी एवरेज वाला कोई 34 35 साल का खिलाड़ी ऐसे ही 5 साल बदस्तूर उस टीम में नहीं खेल ले जाता जिसमें सचिन, सौरव ,राहुल,अज़हर,कुंबले, श्रीनाथ जैसे धुरंधर हों।रॉबिन सिंह एक भरोसेमंद सिपाही थे जिनके हावभाव से ही लगता था कि ये आदमी अपनी पूरी जान लगा देगा अपनी सेना के लिये।
नो नॉनसेंस।
साधारण बल्ल्लेबाजी तकनीक ।
पर मानसिक मजबूती और टेम्परामेंट कमाल का।
रॉबिन सिंह महेंद्र सिंह धोनी के नोकिया 3310 वाले वर्ज़न थे।
रोबिन सिंह के पुरखे राजस्थान के अजमेर के थे।लेकिन उन्होंने भारत आकर मद्रास यूनिवर्सिटी से पढाई की और तमिलनाडु की रणजी टीम से खेले।।1988 में तमिलनाडु टीम रणजी ट्रॉफी जीती और 1989 में रॉबिन सिंह को वेस्टइंडीज के खिलाफ पोर्ट ऑफ स्पेन में 11 मार्च 1989 को एकदिवसीय मैच में डेब्यू का मौका मिला ।
मात्र 5 गेंदे खेल कर 3 रन बनाये और रिचर्ड्स की गेंद पर बोल्ड हो गए।
मैच में 8 गेंदे भी फेंकी।
भारत ये मैच भी हारा और 18 मार्च 89 को सेंट जोन्स में हुआ वनडे भी।जिसमें नंबर 7 पर उतरे रॉबिन सिंह 10 रन बना कर नाबाद रहे।
फिर रॉबिन सिंह को भारतीय चयनकर्ताओं ने भुला दिया।
रॉबिन सिंह की याद भारतीय चयनकर्ताओं को फिर 7 साल बाद 1996 में आई ,जब भारत में भारत ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के बीच टाइटन कप एकदिवसीय त्रिकोणीय श्रृंखला खेली जानी थी।
एक साहसिक फैसला लेते हुये भारतीय चयनकर्ताओं ने 33 साल के रॉबिन सिंह को केवल उनकी क्षेत्ररक्षण क्षमता के कारण चुना।
रॉबिन सिंह ने 3 नवंबर 1996 को मोहाली में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कमबैक किया और फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
नंबर 6 पर उतर कर 1 चौका मार के 6 गेंदों पर 6 ही रन बनाए लेकिन बौलिंग और फील्डिंग में कमाल कर दिया।
84 रनों की ऑस्ट्रेलियाई ओपनिंग को रॉबिन सिंह ने गेंद सम्भालते ही तोड़ा
मार्क वॉग को बोल्ड किया और अगली ही गेंद पर स्टुअर्ट लॉ को लॉ ऑफ डक पढ़ा दिया।
भारत मैच जीता और रॉबिन सिंह दिल।
अगले मैच में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ फिर रॉबिन सिंह ने 2 विकेट लिये ,उसके अगले मैच में 1
33 साल की उम्र में भी रॉबिन सिंह टीम इंडिया के सबसे फुर्तीले फील्डर दिख रहे थे।
इस टाईटन कप सीरीज के बाद रॉबिन सिंह भारतीय वनडे टीम के नियमित सदस्य हो गये।
3 अप्रैल 2001 को अपना अंतिम वनडे मैच विशाखापत्तनम में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलने से पहले रॉबिन सिंह कुल 136 मैच खेले ।
25.95 के एवरेज से 74.30 के स्ट्राइक रेट से 2336 रन बनाये।9 अर्धशतक ,1 शतक लगाया।बेस्ट 100 रहा।
वहीं 43.26 के एवरेज ,4.79 की इकोनॉमी से 69 विकेट लिए ।
2 बार पारी में 5 विकेट लिए ।बेस्ट 5 /22 रहा।
ज़िंबाब्वे के खिलाफ एक टाई मैच और ढाका इंडिपेंडेंस कप 1998 में पाकिस्तान के खिलाफ खेली गई 82 रनों की पारी इनके वनडे कैरियर के मुख्य आकर्षण थे।
ये एकदिवसीय विश्वकप 1999 और पहली आईसीसी चैंपियन्स ट्रोफी 2000 में भी भारतीय टीम में थे।युवराज सिंह के आने के बाद इनको अपने चान्स कम दिख रहे थे।इसलिए फिर कमबैक के प्रयास नहीं किये।उम्र भी हो रही थी।
रॉबिन सिंह अपना एकमात्र टेस्ट जिम्बाब्वे के खिलाफ 7 से 10 अक्टूबर 1998 को जिम्बाब्वे के खिलाफ हरारे में खेले।कोई विकेट नहीं ले पाए।एक पारी में 12 एक में 15 रन ,कुल 27 रन बनाए।
रॉबिन सिंह अपने चपल क्षेत्ररक्षण के लिये लोकप्रिय थे ।
मज़े की बात है कि 2007 के भारत के टी 20 विश्वकप में रॉबिन सिंह टीम इंडिया के फील्डिंग कोच थे।
टीम इंडिया विश्व विजेता बनी।
रॉबिन सिंह ने फिर टीम इंडिया के फैन्स का दिल जीत लिया।
आपका -विपुल
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रोबिन सिंह मुंबई इंडियंस की टीम से भी जुड़े हुए थे काफी दिनों तक, अभी का तो पता नहीं, लेकिन पहली बार उनके बारे तभी पता चला था जब, IPL में मैच के दौरान उनका इंटरव्यू हुआ था!