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आपका -विपुल

सचिन सचिन

सचिन तेंदुलकर के पहले सीरीज में खेले एक मैच की धुंधली सी याद है
अब्दुल कादिर के एक ओवर में 4 छक्के और एक चौका मारा था।
पेशावर में प्रदर्शनी मैच था।
अब्दुल कादिर लीजेंड लेग स्पिनर थे। पाकिस्तान के।
सचिन कल के लौंडे।
सोलह साल के।
मेरा पूरा मोहल्ला सड़कों पर निकल आया था उस शाम।

सचिन की भर भर के तारीफ हो रही थीं।
उसी रोज से सचिन तेंदुलकर लगभग हर भारतीय मध्यमवर्ग घरों के अपने से लड़के से माने जाने लगे थे।
पाकिस्तान के खिलाफ़ चार टेस्ट मैचों में वसीम अकरम वकार यूनिस और इमरान खान जैसे तेज गेंदबाजों के खिलाफ़ नाक में चोट लगने के बावजूद अर्द्धशतक भी बनाया था।

उस पाकिस्तान दौरे के बाद श्रीकांत को कप्तानी से हटाकर अजहर को कप्तान बनाया गया और सचिन उनके सबसे काबिल लेफिटनेंट साबित हुये।1992 विश्वकप में सचिन पाकिस्तान के खिलाफ़ मैन ऑफ द मैच थे ।

और बॉथम जैसे खिलाड़ी का सचिन का विकेट लेने की खुशी ऐसे मनाना जैसे किसी बहुत बड़े खिलाड़ी का विकेट लिया हो, ये दिखाता था कि सचिन का कद क्या था तब भी।

इंग्लैंड में इंग्लैंड के खिलाफ़ पहला टेस्ट शतक बनाया था सचिन ने।

और न्यूजीलैंड में न्यूजीलैंड के खिलाफ़ पहली बार ओपनिंग की और 49 गेंदों पर 82 रन ठोक दिये।
होली थी शायद उस दिन।


78 वनडे मैचों बाद 1994 में श्रीलंका में आस्ट्रेलिया के खिलाफ़ पहला एकदिवसीय शतक बनाया था।


बॉलिंग भी तो करते ही थे।

वेस्ट इंडीज के खिलाफ़ एक टाई मैच हुआ था 126 रनों पर।
40 ओवर पूरे हुए थे। 9 विकेट गिर चुके थे।कपिल प्रभाकर श्रीनाथ और सुब्रतो बनर्जी अपने 10 10 ओवर फेंक चुके थे। विंडीज को 6 रन बनाने थे तब अजहर ने सचिन पर भरोसा किया था और सचिन ने अपने ओवर में 5 रन देकर एक विकेट लिया। एंडरसन कमिंस का। मैच टाई हो गया।

हीरो कप 1993 सेमीफाइनल में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ़ आखिरी ओवर में 6 रन बचाने को अजहर ने सचिन पर ही भरोसा किया था।


शुरू में सचिन लेग स्पिन करते थे, फिर ऑफ़ स्पिन भी करने लगे ।
गेंद कुंबले से ज्यादा घूमती थी इनकी
ईडेन गार्डन में 2001 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ़ भारत की फॉलो ऑन खेलने के बाद हुई ऐतिहासिक जीत में दूसरी पारी में 3 विकेट सचिन तेंदुलकर के भी हैं।

1996 विश्वकप में सचिन हमारे मुख्य बल्लेबाज थे जिनके आउट होते ही टीम भरभरा जाती थी।
इस विश्वकप के बाद सचिन को कप्तानी मिली लेकिन डोडा गणेश, डेविड जॉनसन,नोएल डेविड और आशीष कपूर जैसे गेंदबाजों के साथ
और विक्रम राठौर विजय भारद्वाज देवांग गांधी जैसे बल्लेबाजों के साथ जीतना मुश्किल था।

सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ के आने के बाद सचिन पर से भार कम हुआ था।1998 में बहुत से शतक बनाए थे।1999 विश्वकप में पिता के खत्म होने के बाद शतक,2003 विश्वकप में सबसे ज्यादा रन।
2005 में टेनिस एल्बो से परेशानी से लेकर 2011 विश्वकप विजेता।


एकदिवसीय मैचों में पहला दोहरा शतक सचिन के नाम ही था।


100 अंतर्राष्ट्रीय शतकों और सबसे ज्यादा टेस्ट रनों और सबसे ज्यादा एकदिवसीय रनों का भी रिकॉर्ड भी सचिन तेंदुलकर के ही नाम है।
और बात केवल 200 टेस्ट मैच खेलने,463 एकदिवसीय मैच खेलने,100 अंतर्राष्ट्रीय शतक बनाने और 24 साल खेलने की ही नहीं है।
रिकॉर्ड है, कभी न कभी टूट ही जायेंगे।


बात उस भरोसे की है जो भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को सचिन पर था वो भरोसा अभी तक कोई जीत नहीं पाया।
1989 से 1999 का सचिन बेजोड़ था।

बहुत खिलाड़ी बहुत से खेलों में आये और गये उस स्टारडम के सपने ही देख सकते हैं जो सचिन का था।
आदर सहित।
एक छोटा सा किस्सा सुना कर बात खत्म करता हूं।
1996 था शायद।
दक्षिण अफ्रीका की खतरनाक बॉलिंग हुआ करती थी।
मैं ट्रेन में कमेंट्री सुन रहा था।
कुल 200 करीब रन बने थे 67 सचिन के थे।
सचिन आउट हुआ। कमेंट्री सुन रही एक लड़की अपने साथी से बोली।
सचिन अब खेलना ही भूल गया, बेकार हो गया।
और मजे की बात थी, हम सब सहमत थे।
ये सचिन थे। हमारे सचिन।

हमारे सचिन पर इतना विश्वास था हम लोगों को कि 67 रन बनाने का मतलब यही समझते थे कि सचिन फॉर्म में नहीं है।यहां 3 साल लोग 5 अर्धशतकों के भरोसे खेल ले गये।


सचिन के पास संजय मांजरेकर जैसा बड़े बाप का नाम नहीं था, न सौरव गांगुली की तरह जगमोहन डालमिया के जैसा सपोर्ट,न धोनी की तरह श्रीवासन का आंख मूंद कर समर्थन।न कोहली की तरह का पी आर मैनेजमेंट।
केवल टैलेंट था और क्लास थी।
हां, विनम्रता भी थी।
जन्मदिन मुबारक
सचिन

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One thought on “सचिन सचिन

  1. डेब्यू के वक्त ही सचिन एक करिश्मे का नाम था… जो कादिर को मारे छक्के के साथ सही साबित हो गया। सुपरस्टार के अराइवल की छाप लगी। वनडे में बिना कोई शतक लगाए ही सचिन टीम इंडिया के सबसे बड़े बल्लेबाज बन चुके थे… और फिर वो वक्त भी आया जब एक कैलेंडर ईयर में 9 वन डे सेंचुरी भी लगाई। इतनी ओडीआई सेंचुरी कई दिग्गज पूरे करियर में नहीं लगा पाते।
    बीच बीच में वे जीरो पर भी आउट होते रहे। कई मौके ऐसे भी आए जब लग रहा था कि सचिन तो जीता ही देंगे तभी वे फेल होकर सबको दुखी भी कर गए, लेकिन हम सब ये सब इसलिए भूल जाते थे कि खुश होने के मौके उन्होंने सबसे ज्यादा दिए… बार बार दिए।
    चिंता उन लोगों को ज्यादा थी जो कभी लारा, कभी अनवर, कभी इंजमाम तो कभी पोंटिंग को सचिन से बेहतर बताते रहते थे.. भारत में भी लोग पीछे नहीं रहे। पहले कांबली, फिर गांगुली, राहुल के नाम गिनाए। बाद में विराट कोहली को भी सचिन से श्रेष्ठ बताने की कोशिश रुकी नहीं है।
    लोगों को बस ये बताना है कि सचिन के नाम जो रिकॉर्ड हैं वे 20 साल से ज्यादा लंबे करियर के पूरे होने पर आए हैं.. लोगों की दिलों पर राज तो वे कादिर फिनोमिना के समय से ही करने लगे थे..
    उनका बैलेंस, वैसा स्टांस, खूबसूरत स्टेट ड्राइव पहले कभी देखा था क्या? और उनके आउट होते ही उम्मीद खत्म होने की फीलिंग के साथ टीवी बंद करने का लीजेंडरी स्टेटस और किसको नसीब हुआ है.
    ये बंद हुआ धोनी के आने के बाद.. याद कीजिए 2011 वर्ल्ड कप फाइनल…. जब सहवाग और सचिन सस्ते में आउट हो गए तो क्या सबने मैच खत्म मानकर टीवी बंद किया था?
    नहीं ना! क्योंकि तब तक थे ग्रेट फिनिशर धोनी आ गए थे। तो जो भरोसा पहले सिर्फ सचिन के साथ था अब धोनी के साथ भी था.. जो CSK टीम के साथ आज भी है।
    और उन्हीं धोनी ने वर्ल्ड कप सचिन को समर्पित
    किया था… सारी बहसों पर भारी है ये.

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