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आपका -विपुल
अगर किसी हिंदी साहित्यकार से कह दो कि सुरेंद्र मोहन पाठक आज का सबसे बड़ा हिंदी लेखक है तो तिमंजिला से कूद कर जान देने को तैयार हो जाएगा ,पर मानेगा नहीं ।
ये लोग गुलशन नंदा और जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा और वेदप्रकाश शर्मा को कभी हिंदी साहित्यिक की पंक्ति में नहीं माने जबकि जब भारत के सभी चंटू बंटू ,बबली पिंकी के पापा मम्मी कोशिश में थे कि हमारा बच्चा अंग्रेजीदां बन जाये, हिंदी न जाने,तब यही लोग थे जिनकी किताबों ने हिंदी को बचाया औऱ बढ़ाया।
आज भी हालात अलग नहीं हैं।चेतन भगत की अंग्रेजी किताब का हिंदी संस्करण हिंदी के स्वनामधन्य से ज़्यादा बिकता है।

कारण वही जो हमेशा कहता हूँ।एक तो हिंदी लेखकों को चुल्ल मची रहती है गरीबी, भुखमरी, किसानी, गरीबी ,मध्यवर्ग के कष्ट पर लिखने की ।बाकी बचे संयोग विप्रलंभ श्रृंगार पर जाते हैं।कुछ व्यंग्य लिखने की चेष्टा करते हैं, पर हास्य पर लिखने से बैर है क्योंकि फिर गरीबी,बेरोजगारी कैसे जुड़ेगी उनके लेखन में ? जो हिंदी लेखन का मूलभूत तत्त्व सा घोषित है अभी ।

मैं तो खुलेआम कहता हूँ ,हिंदी साहित्य के ठेकेदारों को चाहे जितना बुरा लगे।हिंदी में आज के समय उन किताबों का अभाव है जो केवल स्वच्छ मनोरंजन प्रदान करती हों।
भाई मेरे नसीरुद्दीन शाह और ओमपुरी की तथाकथित कला फिल्मों का जमाना गया।अब आदमी पैसे ख़र्च करता है मनोरंजन के लिये।

उसे रोना धोना नहीं चाहिए,गरीबी ,बेरोजगारी का।

दूसरा हिंदी में विषय वैविध्य का अभाव है ।कितने लोग हिंदी में कूटनीति, भौतिक विज्ञान ,गणित ,अभियांत्रिकी ,रक्षा या समुद्री खोजों ,नेटिव इंडियन सभ्यता या चाइना या खेल पर लिखते मिलते हैं अभी ?
ढूँढ़ के दिखाइए।गिनती के हैं।

इंग्लिश ,फ्रेंच, स्पेनिश और अरबी ये चार भाषाएं ऐसी हैं कि इनमें आपको दुर्लभतम विषयों पर किताबें मिलेंगी ।हिंदी उस स्तर तक पहुंची ही नहीं जहां कभी संस्कृत या पाली जैसी प्राकृत भाषाएं थीं ।हिंदी में आज कोई कामसूत्र लिख के दिखाए।
देशनिकाला दे देंगे हिंदी के ठेकेदार।

कहने को बहुत कुछ है पर कहना नहीं चाहता अब।
सरलता का और सहजता का विकल्प नहीं होता कोई।आज भी श्रीलाल शुक्ल की रागदरबारी और प्रेमचंद्र की कहानियों की लोकप्रियता क्यों है ?
सरल भाषा में तत्कालीन समाज की कहानी जिससे समाज के ज़्यादातर लोग खुद को जुड़ा महसूस करते थे।

चेतन भगत क्यों लोकप्रिय हुआ ?सिर्फ मनोरंजन के लिये लिखता है ,वो भी सरलतम भाषा में।
अमिष भी भारतीय इतिहास के बारे में अंग्रेजी में उल्टा सीधा लिख के लोकप्रिय हो गया क्योंकि मनोरंजक था।पाठक को यही चाहिए।अद्वैता काला की किताबों में भी मनोरंजन ही है कोई सामाजिक सन्देश नहीं।
अब हिंदी में आज के समय चेतन भगत या अमिष जैसे लेखक नहीं दिखते क्यों ? क्योंकि सबको सामाजिक संदेश देना है।और मनोरंजक हिंदी किताबों के लेखकों से अछूतों की तरह व्यवहार करना है।

गीतांजलि श्री की रेत समाधि इनको बुकर पुरस्कार मिलने के बाद पढ़ी।
भगवान कसम, ऐसी कूड़ा और बकवास किताब आज तक नहीं पढ़ी।आधी से ज़्यादा किताब पढ़ने के बाद भी समझ नहीं आया कि क्या कहानी है ?लेखिका क्या लिख रही है।फिर भी बुकर प्राइज मिल गया।ताज़्ज़ुब है।
सुरेंद्र मोहन पाठक की दहशतगर्दी या वहशी ,वेदप्रकाश शर्मा की कुबड़ा और जुर्म की माँ जैसी वो किताबें तो फिर नोबेल की हकदार हैं जिन्हें लोगों ने लुगदी साहित्य बता के कभी सम्मान नहीं दिया ,लेकिन पाठक को बांध के रख देती थीं।
गुलशन नंदा के रोमांटिक उपन्यास वाकई इतने अच्छे थे कि किसी भी मिल्स एंड बून्स श्रृंखला को पछाड़ देते।लेकिन हमें हिंदी के नायकों को सम्मान देना कभी नहीं आया।

नेट पर जब मैंने अपनी खुद की वेबसाइट बना के लिखना चालू किया तो सुझाव आया कि इंग्लिश में लिखिए ,अच्छी रीच मिलेगी।हिंदी में नहीं चलती ज़्यादा ।पर दो बातों से क्षुब्ध था।
एक तो मेरी एक पुस्तक एक बड़े प्रकाशन ने लौटा दी थी कि बहुत सरल भाषा में लिखते हो, दूसरा नेट पर हिंदी लेखकों के विषय के चुनाव से ,तो हिंदी में क्रिकेट और कूटनीति चुनी।हालांकि कूटनीति पे कम ही लिखता हूँ।शुरू में एक लेख राजनीति और कूटनीति में अंतर पर लिखा था ,फिर क्रिकेट पर लिखने लगा।

राजनीति और कूटनीति में अंतर

और कोशिश करता हूँ कि विशुद्ध हास्य लिखूं ,हास्य व्यंग नहीं।किसी पर कटाक्ष नहीं।कोई भाषण बाज़ी नहीं ।शुद्ध हास्य ।
ट्विटर सेलेब्स की प्रेमकथाएँ ऐसा ही प्रयास था ।कानातुंग ,सत्त्या चौधरी का आभारी हूँ इन कहानियों के लिये।

काना सर की प्रेमकथा

सत्या भाई की प्रेम कथा

दरअसल ये इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मैं खुद अचंभित हूँ।इस वेबसाइट की रीच से ।मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि ये वेबसाइट किसी मुकाम तक पहुंचेगी।पर 10 हज़ार का मुकाम छुआ ।कल को एक लाख का भी छू लेंगे।
मुझे पता है कि कभी भी हिंदी साहित्यकारों में मेरा नाम नहीं गिना जाएगा ,पर मैंने अपना काम कर दिया।जैसा कि मैं हमेशा कहता हूँ कि हिंदी को क्वालिटी से ज़्यादा क्वांटिटी और विषय वैविध्य की ज़रूरत है आज ।
तो मैंने इस वेबसाइट पर 70 75 लेख लिख ही दिए हैं।।
अपने हिस्से का काम कर दिया।मैं एक शौकिया लेखक हूँ ।अपना काम कर दिया अब आप लोगों की बारी है

🙏🙏🙏🙏🙏
आपका -विपुल

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One thought on “लोकप्रिय लेखन बनाम हिन्दी साहित्यकार

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