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लेखक -राहुल दुबे

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हमारे देश में रोहिंग्या और बांग्लादेशी करोड़ो की सँख्या में रह रहे है, इनके गैर कानूनी ढंग से भारत मे रहने के बावजूद इनके पक्ष में कई संगठन बैटिंग करते है इनके लिए फंडिंग भी करते है, इनमें बॉलीवुड के रितिक रोशन जैसे लोग भी शामिल है जो जरूरत पड़ने पर एक आम भारतीय को एक पैसा न दे लेकिन इन विदेशियों के लिए लाखों-करोड़ों बहा रहे है।। 

लेकिन ये शरणार्थी शरण देने वाली की अर्थी भी उठा देते है इसका ताजा उदाहरण यूरोप के कई देश है लेकिन इन शरणार्थियों ने वर्षो पहले एक राजा की भी अर्थी उठा दी थी।।

लेकिन सबसे बड़ी दुख की बात तो यह है कि हम में अत्याधिक लोग उनके बारे में जानते तक नही है, वो सिंध के अंतिम हिन्दू शासक थे, उनका नाम था राजा दाहिर राजा दाहिर सन 679 में सिंध के राजा बने , राजा दाहिर राजा चच के पुत्र और उत्तराधिकारी थे, कहते है कि सिंध देश पर राजपूत राजा राय साहसी का राज था लेकिन उनकी कोई संतान न होने के कारण राय साहसी ने अपने प्रधानमंत्री कश्मीरी पंडित चच को अपना राज्य सौंप दिया था।। राजा चच और रानी सोहन्दी के पुत्र राजा दाहिर थे जिन्होंने अपने पिता की मृत्योपरांत राज्यभार संभाला था ।।

कहते है कि राजा दाहिर का शासन धार्मिक सहिष्णुता और उदार विचार वाला था इसी कारण वही सभी धर्मों के लोग रहते थे- वहां अरब से आकर बसे मुसलमानों की मस्जिदे भी थी यही राजा की सबसे बड़ी भूल थी। 

चचनामा के अनुसार श्रीलंका के राजा ने बगदाद के गवर्नर हुज्जाज बिन युसुफ को कुछ तोहफे भेजे थे जो दीबल बंदरगाह के करीब लूट लिए गए। नाव में सवार कुछ लोगो ने हुज्जाज को ये खबर दी कि उनके लिए तोहफे से भरी नाव को राजा दाहिर के क्षेत्र में लूट लिया गया है, और नाव में सवार औरतों को बंधक बना लिया गया है। हुज्जाज ने राजा दाहिर को पत्र लिखकर ये माँग की कि उनके द्वारा लुटे हुए माल और औरतें वापस की जाए, इसपर राजा दाहिर ने जवाब दिया कि ऐसी कोई घटना उनके क्षेत्र में नही हुई है।

सिंध का समुद्री मार्ग पूरे विश्व के साथ व्यापार करने के लिए खुला था और धार्मिक सहिष्णु राजा के राज में अरब भी इस रास्ते से व्यापार करते थे, और वे सभी समुद्री जहाजे दीबल बंदरगाह होकर गुजरती थी असल मे उस जहाज में सवार अरब व्यापारियों के सुरक्षाकर्मियों ने दीबल शहर पर हमला करके वहाँ के लोगो का माल लूट लिया था और औरतों को बंधक बना लिया था और इसकी खबर जब दीबल के सूबेदार को लगी तो उसने जहाज पर आक्रमण करके उन बंधक औरतों और लुटे हुए माल को वापस ले लिया था लेकिन सहानुभूति के लिए कुटिल अरबियों में हुज्जाज को गलत लूटपाट की खबर बताई।। 

उन दिनों ईरान पर खलीफा का राज था और हुज्जाज उसका मंत्री था खलीफा के पूर्वजों ने सिंध को जीतने के इरादे से उसपर कई आक्रमण किये थे लेकिन उन्हें कोई सफलता नही मिली थी, और इसी खुन्नस को निकालने की ताक में खलीफा सदैव रहता था और इस घटना में उसे अपने मित्र देश सिंध पर आक्रमण करने का उचित अवसर दिखा।। उसने अपने काबिल सेनापति अब्दुल्ला के नेतृत्व में अरबी सैनिकों का एक दल सिंध जीतने के लिए रवाना किया लेकिन वीर राजा दाहिर के सैनिकों ने अब्दुल्ला को मार दिया और अपनी इस हार से खलीफा तिलमिला उठा।। 

इसके बाद उसने 10 हजार सैनिकों के एक दल को ऊंट-घोड़ो के साथ आक्रमण करने के लिए भेजा जिसका नेतृत्व हुज्जाज का भतीजा एवं दामाद(नोट करे) मुहम्मद बिन कासिम कर रहा था। 

सन 638 से लेकर 711 ई० तक 74 वर्ष में 9 खलीफाओं ने 15 बार सिंध पर आक्रमण किया 

15वी बार हुज्जाज के दामाद एवं भतीजे मुहम्मद बिन क़ासिम के नेतृत्व में उन्हें सफलता मिली क़ासिम की सेना के आगे वीर राजा दाहिर अधिक दिनों तक टिक नही सके और जिस राजा के राज को धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाना जाता था उस राज में क़ासिम और उसकी सेना ने गैर मुसलमानों का कत्लेआम किया और या तो उनका धर्मांतरण करवाया या उनकी हत्या कर दी।। 

राजा दाहिर के राजभवन में रह रही सभी नारियो ने जौहर कर के अपने और अपने सिंध की लाज बचाई ।

कहते है राजा दाहिर ने अपने मित्र हिन्दू राजाओं को पत्र लिखकर सहायता मांगी थी और कहा था कि मैं आपके और अरबो के बीच की दीवार हु और यदि मैं टूट गया तो फिर उन्हें कोई रोक नही सकता लेकिन भोग-विलास में मस्त हिन्दू राजाओं ने उनको गंभीरता से नही लिया और अंत परिणाम हमारे सामने है।।

यही नही जिन अरबियों को अपने दरबार मे शरण दी कहा जाता है कि हुज्जाज ने उनके किसी रिश्तेदार का सिर कलम कर दिया था उन्होंने भी राजा दाहिर का अरबो से युद्ध के समय यह कहकर साथ देने से इनकार कर दिया कि वे इस्लाम की तलवार के खिलाफ अपनी तलवार नही उठाएंगे।।

और वीर राजा दाहिर का राज्य आज पाकिस्तान का एक छोटा सा राज्य बनकर रह गया है।। वहा के लोग आज क़ासिम को अपना हीरो मानते है, दाहिर उनके लिए विलेन है, जिस सिंध में वर्षो पहले हिन्दुओ का राज था आज वहां हिन्दुओ का अस्तित्व ही नही है।।

कुछ तथ्य~ 

1. धार्मिक सहिष्णुता और मजहब विशेष को बराबर का हक़ देना कभी भी लाभकारी नही है, राजा दाहिर के अरबो से अच्छे संबंध थे, अरब उनके यहां दरबारी थे, अंत मे राजा ही मिट गए और अब अरबी राज करते है।।

2. हिन्दू कभी भी एकजुट नही थे, यदि भारत के बाकी हिन्दू राजाओं ने राजा दाहिर का साथ दिया होता तो आज मुगलों और अरबो के अत्याचारों की कहानी हमे नही पढ़ने सुनने को मिलती । हिंदुस्तान आज भी सोने की चिड़िया होता।।

3. मजहब विशेष कभी कभी भरोसे लायक नही है, अंबेडकर ने सच ही कहा था कि वे कभी भी अपने मजहब की ही सोचेंगे भले उसके लिए उन्हें अपने कर्मभूमि को ही क्यों न धोखा देना पड़े।।

4. हमारे इतिहास में सिर्फ मुगल-अरब अंग्रेज है ये इत्तेफाक नही जानबूझकर किया षड्यंत्र है, वरना राजा दाहिर के बारे में सब जानते सिर्फ इक्के-दुक्के लोग नही।।

हिन्दुओ समय है अपने इतिहास को जानने की आज देश मे जो भी हो रहा है, वो हमारे आस्तित्व की लड़ाई है, यदि हम भूतकाल से सीख न लेकर यूँही टहलते रहेंगे तो, फिर हमे एक और जगह से हाथ धोना पड़ सकता है।।

लेखक -राहुल दुबे

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2 thoughts on “राजा दाहिर से वर्तमान भारत तक

  1. बहुत सुंदर और आवश्यक लेख है। इसे केवल पढ़ कर न छोड़ दें, बल्कि सही रणनीति बनाएं।

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