आपका -विपुल
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मेरा रिव्यू -लाईगर
आपका -विपुल
“तुम बिकरू में बैठे हो और बच्चों को बनमानुस देखना है!ज़ल्दी आओ!”
कैटरीना कैफ के वालपेपर वाले फोन से महुआ मित्रा टाइप आवाज़ निकली।
थोड़ी देर बाद समझ आया कि आज बच्चों को चिड़ियाघर घुमाने का वादा था और श्रीमती जी उसी की बात कर रही हैं ।
मुझे क्यों बनमानुस बोलेंगी ?
मैं तो डैशिंग हूँ।
और मैं डैशिंग हूँ ये तो कल ही उन्होंने बताया था जब उन्होंने 100 रुपये की एक गड्डी मेरी सेफ से निकाली थी।
बिकरू इसलिये आना पड़ा था कि पंडित जी ने एक बार धोखे से फोन कर दिया था मुझे ,वो बिकरू वाले भीषण काण्ड के एक महीने पहले ।पुलिस के पास मेरा नंबर था और जब भी पंडित जी के केस में कुछ नया मसाला डालना होता था, मेरे जैसे 50 चिलनटू वहाँ बुला लिये जाते थे ,जाँच के नाम पर।
तो दोपहर के 12 बजे रूटीन पूछताछ के बाद मुझे छोड़ा गया।गांव वालों से शिनाख्त करवाने के बाद कि वो मुझे नहीं जानते ।और चूँकि मैं शरीफ आदमी था ,इसलिये पुलिस की जीप मुझे चौबेपुर तक छोड़ गई।बस केवल मुझे सीट पर नहीं बैठाया।सीट के नीचे जगह मिली थी।
चौबेपुर से कल्याणपुर का सफर चुटकियों में कटा।ट्रेन से ।घर डेढ़ बजे पहुँचा।
लेकिन बच्चे फिर बनमानुस नहीं देख पाये।
कहीं खेलने गये थे।
एक कप चाय और ढेर भर गालियाँ सुनने के बाद समझ आ गया था कि आज घर पर रुकना पर्थ की पिच पर शमी की बौलिंग झेलने से ज़्यादा खतरनाक है ।
इसलिये खुद ही फोन में फ़र्ज़ी कॉल टाइमर लगाकर फोन की घण्टी बजाई और ये कहते हुये घर से निकला ,
“ठीक है !परेशान मत हो! आ रहा हूँ ।सुसाइड मत करना ।”
घर की मालकिन को गिड़गिड़ाते हुये बताया कि मेरा दोस्त रजत बहुत डिप्रेशन में है, उसे कम्पनी देने जाना पड़ेगा।
घायल शेरनी की घूरती हुई आंखों की गर्मी अपनी पीठ पर महसूस करते हुए निकला और एक दुर्घटना से देर भली सिद्धांत का अक्षरशः पालन करने वाले टैम्पो द्वारा 15 मिनट की दूरी 35 मिनट में तय करके रेव एट मोती पहुँचा।
टाईम बिताना था ,तो फ़िल्म देखने की सोची।तीन बजकर 20 मिनट पर विजय देवरकोंडा और अनन्या पाण्डे की फ़िल्म लाईगर का शो था।एक इंग्लिश फ़िल्म और लगी थी ,लेकिन पोस्टर पर अनन्या की सफेद ड्रेस मुझे अच्छी लगी ,इसलिए यही देखने की सोची।
टिकट खिड़की पर पहुंचा।
ब्लैक कलर की जींस टॉप पहने कुपोषण और बेरी बेरी रोग से एक साथ ग्रसित लग रही एक युवती थी काउंटर पर।
“क्या है बे ?फिर आ गया ?बॉयकॉट नहीं करेगा बे ?हिंदू नहीं है ?करण जौहर की फ़िल्म है?जस्टिस फ़ॉर एसएसआर।”
उस युवती के मुंह से ये मर्दाना आवाज सुनकर मैं चौंका ।पर फिर ध्यान दिया ।
ये तो रिंगटोन थी ,उस लड़की के फोन की ।फोन काट कर उस लड़की ने बड़ी इज़्ज़त से पूँछा।
‘हैलो सर !हाऊ कैन आई हेल्प यू !”
लाईगर मूवी का एक वीआईपी बॉक्स का टिकट लेने के बाद तक मैंने गौर किया ,उस लड़की की आँखों में मेरे लिये उपहास था।
किसी से फोन पर कह रही थी।
“हां !कुछ चूतिये ऐसी फिल्म देखने भी आते हैं !”
लिफ्टबॉय एक खुशनुमा लड़का था ,जिसे जब मैंने मूवी फ्लोर पर चलने को कहा तो अचानक उदास होकर बोला,
“आजकल हमारे बुजुर्ग ही धर्म के रास्ते पर नहीं चलते !”
उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया मेरे लिए थोड़े ही कह रहा था।
मैं कहाँ से बुजुर्ग हुआ ?
डोर पर टिकट देखने और तलाशी करने वाला वही पुराना था।
मेरी वीआईपी बॉक्स की टिकट देख कुटिलता से मुस्कुराया।
“सर !”
“थोड़ी टिप्स हम जैसे बच्चों को भी दीजिये ।यहाँ एक नहीं ।आप तीन तीन एक साथ ?”
“क्या बकवास है ?मैंने उसे झिड़का ।”मैं शरीफ आदमी हूँ ।”
“हां ,पता है सर” वो मुस्कुराते हुये बोला।”भाभीजी ने बताया था पिछली बार आप जब घण्टाघर वाले होटल से पकड़े गये थे तो भाभीजी ने आपकी शराफत का हवाला देकर ही छुड़वाया था आपको “
“शट अप।”मैं चिल्लाया।
वो चुप तो हुआ ।लेकिन मुस्कुराना नहीं छोड़ा उसने ।
वीआईपी बॉक्स में मेरी 4 नंबर की सीट थी।
मेरे दोनों तरफ दो बुरका वाली हसीनाएं बैठी थीं।
हॉल में लाइट बन्द होते ही दोनों बुर्कावाली महिलाओं ने मेरे एक एक हाथ थामे और मेरी गर्दन के पास एक सुई सी चुभी।
मुझे दुनिया घूमती हुई सी महसूस हुई।
आँख खुली तो रीजेंसी हॉस्पिटल में था ।
थियेटर के डोर पर टिकट चेक करने वाला लड़का मेरे पड़ोसी चौहान साहब के साथ खड़ा था और मेरी रोती हुई पत्नी को बता रहा था ।
“भाभी !दर्जनों बार भैया कई लड़कियों के साथ वहाँ गये हैं।ये मुझे पहचानते ही नहीं कि मोहल्ले का हूँ, वरना ऐसी हिम्मत न करते।उस रोज तो तीन थीं।पता नहीं कौन सी दवाई खाते हैं ।बेहोश हो गये थे ओवरडोज से
मैंने इनको यहाँ भर्ती करवाया “।
“अपने पर्स, क्रेडिट कार्ड ,कैश, घड़ी ,अंगूठी, चेन !सब उन लड़कियों पे लुटा दिये।हद है भाभीजी ।”
और मेरी पत्नी बोल रही थीं ।
“यहाँ लाईगर मूवी देखने का टाईम है।ये नहीं कि थोड़ा ज़ल्दी घर आ जाते तो बच्चे बनमानुस ही देख लेते।कितना मन था बच्चों का बनमानुस देखने का ।”
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