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तापसी पनु अनुराग कश्यप दोबारा

विपुल

विपुल


दोबारा चावल माँग दिये थे।
गलती हो गई।
घर से गालियां सुनकर निकला।
आईआईटी मेट्रो स्टेशन पर पहुंचा।
गुरुदेव पर उतरना था।
एलआईसी की किश्त जमा करनी थी।
मेट्रो स्टेशन पर टिकट खिड़की पर दो लड़के थे जो सूट पहने ऐसे लग रहे थे कि अभी अभी मामा की बारात से लौटे हों।
“गुरुदेव 1 टिकट !”
मैंने टिकट खिड़की पर जाकर बोला।
“फुटकर 20 रुपये देना “! उसने उनींदी आवाज़ में कहा।
मैंने 10 10 के दो सिक्के दिये।
उसने टिकट दी और फिर सोने लगा।
मेट्रो पर वैसे भी कोई नहीं आता आजकल ।
तीन सिपाहियों ,चार प्रेमी युगल और 10 12 स्कूली बच्चों से भरी मेट्रो में ट्रैवल करके मैं गुरुदेव उतरा ।
इत्तेफाक से मेरा एलआईसी एजेंट वहीं मिल गया।उसने एलआईसी ऑफिस की सीढ़ियों के नीचे बड़ा खुश होकर मुझे बताया कि अब एलआईसी छोड़ कर एच डी एफ सी जॉइन कर ली है।
मुझे एक हेल्थ इंश्योरेंस करवा लेना चाहिए।
मैंने उसे आश्वासन दिया और उसने मेरा चेक जमा करने को ले लिया और एक मूवी टिकट दी मुझे ।
“विपुल भैया ! ये फ़िल्म दोबारा देखना ।अच्छी है सुना सस्पेंस मूवी है।”
“दोबारा ?”
“अबे पहली बार कब देखी मैंने ?”
“और इतनी अच्छी है तो तू क्यों नहीं देख रहा ?”
तीन सवाल एक सांस में पूँछे मैंने।
वो हँसा।
“अरे भैया ।मूवी का नाम दोबारा है।मैं इसलिये नहीं देख रहा कि मैं कट्टर हिन्दू हूं ।तापसी पनु ,अनुराग कश्यप का बहिष्कार करता हूँ।”
“टिकट क्यों खरीदी फिर ?”
“खरीदी कहाँ ?एक मोटा नशेड़ी आदमी और एक लौकी के बीजों जैसे दांत वाली औरत फ्री में बांट रहे थे अभी।आदमी की छातियाँ औरत से भारी थीं।”

“और भैया !”
इसमें वैसे वाले सीन भी हैं जिन्हें देखने आप चुन्नीगंज के विवेक टॉकीज में मॉर्निंग शो में जाते थे ।”
“क्या बकवास है ?मैं शरीफ आदमी हूँ।”
“हां ,भाभी ने कल ही बताया था ।”
अब वो कुछ खतरनाक मूड में आया।
मैंने गौर किया।आठ दस मोटा भाई जैसे पन्ना प्रमुख मेरे चारों ओर घेरा बना चुके थे।
एलआईसी एजेंट सर्वेश मेरे सामने था।चुप।
मेरी पीठ पे एक ठंडी लोहे की नाल चुभी।
ठंडी गहरी आवाज।मेरे कानों में
“विपुल भाई !मजबूर मत करो !”
“दूसरे शिकार फँसे हो !सर्वेश भाई ने फ़िल्म न देखने के बदले 5 हज़ार रुपया दिया है और एक दर्शक देने का वायदा किया था।तुम फँस गये चुपचाप अंदर चल के फ़िल्म देखो।रिव्यू भी लिखना है तुम्हें फाइव स्टार ।”

“मैं भी 5 हज़ार दे सकता हूँ ।”
मैं मिमिआया।
वो सात आठ गुंडे ठठाकर हँसे।
“लोन लेके देगा ?तेरे बीस हज़ार के 3 साल पुराने लोन की रिकवरी हमारे ही पास है।”

ऑप्शन नहीं बचे थे।
फ़िल्म देखने पममी थियेटर के अंदर घुसना पड़ा।
मैं बहुत डरा हुआ था।इतने बड़े हॉल में अकेला मैं।
अंधेरे में।
घुप्प अंधेरा ।
मैं जिस सीट पर बैठा वहाँ सीट के हैंडल्स पर हाथ रखे ही थे कि अचानक उन हैंडल्स से दो कड़े निकले।
मेरे हाथ बन्द
मैं कुछ सम्भलता
पैरों में पता नहीं कहाँ से बेड़ी पड़ गईं।
चिल्लाने को मुंह खोला।।पता नहीं कहाँ से किसने एक कपड़े की गेंद मेरे खुले मुंह में फेंक कर घुसेड़ दी।
मुँह बन्द ।
हां ,एक बात बताना भूल गया।
मेरे कान में मैं मोबाइल की लीड लगाए था।मोबाईल शर्ट की जेब में था।
हमारे साथ श्री रघुनाथ भजन मध्यम आवाज़ में चल रहा था।
फ़िल्म शुरू हुई।तभी मुझे अपना कट्टर हिन्दू होना याद आया ।
मैंने आँखे बंद कर लीं।।तापसी की फ़िल्म देखने से मेरा हिन्दू होने का सर्टिफिकेट कैंसिल भी हो सकता था।
मैंने आज “हमारे साथ श्री रघुनाथ”
दोबारा ,तिबारा, चौबारा, सौबारा सुना।आँखे बंद।
तापसी की फ़िल्म देख हिन्दू होने का सर्टिफिकेट कैंसिल नहीं करवाना चाहता था।

टॉर्चर
बेहोशी।
आँखें पागलों के अस्पताल के गरीबों वाले बेड पर खुलीं।
वही आठ गुंडे एक डॉक्टर के साथ थे ।
डॉक्टर ने मुझे होश में आते देख राहत की साँसे लीं।और एक गुंडे को घूर कर बोला।

“दोबारा मत दिखाना इसे वो दोबारा फ़िल्म।
दोबारा इसे कोई डॉक्टर नहीं बचा पायेगा ।”

🙏🙏🙏
विपुल

विपुल


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2 thoughts on “मेरा रिव्यू -दोबारा

  1. सत्य घटना पर आधारित वृत्तांत…… बहुत अच्छा
    😂😂😂

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