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आपका -विपुल

फोन आया
“अपनी पहली डेट है।”
“कण्टारा मूवी देखते हैं ,क्या बोलते हो ?”

मैं कैसे मना करता ।
“डन! टाइम ?”

“बुधवार !दोपहर 2 बजे ।”

“कौन सा थियेटर ?”
मैं रेव एट मोती नहीं जाना चाहता था।वहाँ पिस्टल पाण्डे एंड गैंग मेरी मज़ाक बनाता है।

“थियेटर क्यों ?रीजनल फिल्में रीजन में ही देखी जानी चाहिए।”
“शोभन मंदिर के पीछे वाले जंगल में मिलेंगे।”
“वहां फ़िल्म कैसे देखेंगे ?थियेटर तो है नहीं ?”
मैंने फिर पूँछा।
“मोबाइल पर !टेलीग्राम पर ! ही ही ही ।”

“ओके “

बुधवार को दो बजे रीजनल मूवी कण्टारा को अपने ही रीजन में देखने का प्रोग्राम तय हो गया था।
मालती मेहरून्निसा मेंडिस का फोन था।
पहली बार आवाज़ सुनी थी।
पहली बार उसने मुझे मिलने भी बुलाया था।

अब तक मैंने उसके शरीर की केवल उंगलियां देखीं थीं।
आवाज़ उसकी हल्की सी मोटी थी।लेकिन ये तो शक की बात नहीं थी ।हाथ में चूड़ी पहनती थी ,लड़की ही थी।
मालती मेहरून्निसा मेंडिस!
यह नाम था मेरी फेसबुक की फेसलेस फ्रेंड का ,जो पिछले 3 महीने से मेरे साथ फेसबुक पर फेसलेस चैट कर रही थी ।
आधी आधी रात को बाहर वाले कमरे में अकेले बैठकर मैं उससे चैट करता था ।
मुझे वो इसलिए भी पसन्द आई थी कि मेरी मासूम माँ,बदमिजाज बाप और बदतमीज पत्नी के बाद यह चौथी ऐसी शख्सियत थी जिसे बर्मा के बनमानुस जैसी मेरी शक्ल भोली और प्यारी लगी थी।
क्यूटी भी बोली मुझे।
ज़्यादा नहीं बता सकता, शर्म आ जायेगी मुझे।

घर से बता कर निकला ऑफिस जा रहा।ऑफिस में फोन किया कि फील्ड में थोड़ा काम है।
शोभन मंदिर के बाहर से ही हाथ जोड़े।अंदर नहीं जाना चाहता था।कोई देख न ले।
फोन किया मालती के नंबर पर ।
“कहाँ आना है ?”
“रोड पर एक ऑटो खड़ा है 420 नंबर का ।सीधे मौके पर पहुंचाएगा।ही ही ही ।”
अब इसमें हंसने की क्या बात थी ?
मैं सड़क पर पहुंचा।
वाकई एक ऑटो खड़ा था 420 नंबर का ।एकदम चीकोलाइट सफेद शर्ट पैंट में एकदम काला व्यक्ति।ठिगना, मोटा ,गंजा और बदमिजाज।
“विपुल जी ?”
उसने पूँछा ।
“जी”
“चलिये !मालती जी ने ऑटो भेजा है।”

सो क्यूट ! कितनी अच्छी लड़की है।

तभी मैंने सोचा।जंगल में जा रहे हैं ,कुछ खाने पीने का सामान ले लें।मालती ने बताया था उसे कोक पसन्द है।
सामने एक मेडिकल स्टोर और जनरल स्टोर की इकट्ठी दुकान थी।
मैं काउंटर पर चढ़ा।आर्डर दिया
“एक लीटर कोक, चार लेज चिप्स और तीन कॉन्डोम ।”

काउंटर के नीचे झुके कुछ काम कर रहा लड़का उठा , मेरी उससे नज़रें टकराईं।
और भूचाल आ गया।
ये तो पिस्टल पाण्डे था।
जहाँ जाए भूखा ,वहां पड़े सूखा ये कहावत मेरे लिए ही बनी थी।
वो भी भौचक्का था।
“तुम यहाँ कैसे ?””

“ये मेरे दादा जी की दुकान है।आज मॉल के वर्कर्स घूमने आये हैं इधर शोभन ।इधर हमारे खेत भी हैं।”

“बॉस डी के”
मेरे मुंह से निकला ।
“बहुत अच्छा खिलाड़ी है ।डीके बहुत अच्छा खिलाड़ी है बॉस “बात संभालनी पड़ी मुझे।
उसने मुझे सारा सामान पैक करके दिया और पेटीएम से रुपए लिये ,कैश नहीं लिया उसने।ये भी बताया कि इधर जीपीएस ऑन करने पर ही नेटवर्क चलता है।
मैंने जीपीएस ऑन किया।

ऑटो वाला मुझे लेकर एक बड़े वीरान खेतों के किनारे पहुंचा।यही जंगल था ।रास्ता खराब था।मुझे एक दो जगह ऑटो में धक्का भी लगाना पड़ा।

ऑटो वाला मुझे फिर पैदल लेकर बीच जंगल पहुँचा ।
बोला फोन करिये मालती जी को।
मैंने फोन किया ।
“अभी आ रही बस !ही ही ही !”
अब इसमें हंसने की क्या बात ?

अचानक झाड़ियों के बीच से 5 लोग निकले 4 मर्द और एक नामर्द।
सबके हाथ में कुछ न कुछ हथियार थे।
“आ गए !ही ही ही।”साड़ी पहने किन्नर बोला।
“मैं ही मालती मेहरुन्निसा मेंडिस ।”
अब तुम लूटे जाओगे।”
“एक मिनट !”ऑटो वाले ने उसे टोका
“बाबू जी 200 रुपये दो !”
“साले!मैं लुट रहा और तुझे रुपये चाहिये ?”

“अब ये तुमको लूट लें उसके पहले ही तो रुपये मांगूंगा ।लुटने के बाद आप कैसे पैसे दोगे ?जब आपके पास पैसे होंगे ही नहीं ।जनरल नॉलेज नहीं है क्या आपको ?”वो गुर्राया।
मैंने चुपचाप 200 का नोट उसे दिया।
फिर मैं बोला “लेकिन तुमने मुझसे धक्का भी लगवाया ,पूरे सफर बैठ के थोड़े न आया ?”
उस ऑटो वाले ने मुझे देखा ,कुछ सोचा और मुझे 50 का नोट वापस किया।
ईमानदार आदमी था।फिर चला गया।

“तो तुम हो मालती !”
मैं निर्भीक दिखने की कोशिश कर रहा था।”आज नहीं बचोगी “
“ही ही ही !”
किन्नर हँस दिया।
“मैं मालती और ये मेरे गैंग मेंबर
सोना मोना टोना और भगौना।किसी में दम नहीं हमें पकड़ पाये ।”
“ये भगौना नाम ,कुछ अज़ीब नहीं ?
दरअसल इसका नाम तो जया बच्चन है लेकिन इसे तुम जैसे ठरकियों के प्राईवेट पार्ट प्राइवेट तौर पर अपने प्राइवेट भगौने में उबाल कर खाने का शौक है ,इसलिए भगौना कहते हैं ।”

“क्यों करता है ये ऐसा ?”
“प्राइवेट बात है !पब्लिकली नहीं की जा सकती।”

मैं सिहर उठा था।
पहले उन्होंने कोक पी ,फिर चिप्स खाये।
टाइटन की घड़ी ,अंगूठी ,चेन ,कैश के साथ ही यूपीआई से पैसे भी ट्रांसफर।
मोदी जी के डिजिटल इंडिया में सबका साथ सबका विकास हुआ था।
लुटेरों का भी।

मेरे कपड़े भी उतर गये थे।

मैं नेकेड एंड अफ्रेड था।
तभी।

“धायं,

धायं धायं
धायं धायं धायं धायं

दूसरी तरफ की झाड़ियों से हवाई फायर करता सब इंस्पेक्टर सत्त्या चौधरी निकला।साथ में पिस्टल पाण्डे और उसके स्टाफ के लड़के
।लुटेरे भाग गए थे ।

मैं खड़ा था
नेकेड एंड अफ्रेड।

“,तू कैसे ?”
मैंने हैरत से पूँछा।
“बगल के खेत में रेशमा सिंह को रेशम पालन की कोचिंग दे रहा था।तभी पिस्टल पाण्डे ने फोन किया था कि बुढ़ऊ फिर आज इज़्ज़त लुटवाने निकला है।”
“मैं मौके पर आया न ?”
मैंने सत्त्या को गले लगा लिया

सब इंस्पेक्टर सत्त्या चौधरी ने मौके पर आकर मेरी जान औऱ इज़्ज़त बचायी थी ।
दरअसल पिस्टल पाण्डे जानता था कि 420 नंबर ऑटो लुटेरों का साथी था।उसने मुझे उस ऑटो में बैठता देख सब इंस्पेक्टर सत्त्या चौधरी को फोन किया था।
जीपीएस ऑन था मेरे फोन का पिस्टल पाण्डे के कहने पर।

मुझे बड़ी घिनौनी नज़रों से देखकर उन सबने मेरे कपड़े दिए।
पैसे बचे नहीं थे।
मुझे तमाम गालियां देकर घर तक पहुंचाया गया।लेकिन मेरी पत्नी को कोई बात नहीं बताई गई।

क्योंकि
बगल के खेत में सत्त्या चौधरी रेशमा सिंह को जो रेशम पालन सिखा रहे थे।वो मैं भी उसके घर बता सकता था।
कण्टारा फ़िल्म थियेटर में देखिये।
अच्छी है।

आपका -विपुल
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