लेखक -विपुल
क्या ये भ्रम है ? या ये सत्य है ?या ये सत्य होने का भ्रम है या भ्रामक सत्य ?और फिर इसके सत्य होने या भ्रम होने का निर्णय कौन करेगा ?हो सकता है आप इस भ्रम में हों कि आप निर्णय कर लेंगे !
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वैसे भी हर सत्य हमेशा पूर्ण सत्य नहीं होता।बल्कि हर सत्य हमेशा सत्य भी नहीं होता।जैसे सोना जैसी दिखने वाली हर चीज़ सोना नहीं होती, वैसे सत्य सा दिखने वाला हर सत्य , सत्य ही हो ज़रूरी नहीं।सत्य पूर्ण सत्य भी हो सकता है,अर्ध सत्य भी, चौथियाई सत्य भी, तिहाई सत्य भी,पर भ्रम में ये सब नहीं होता ।भ्रम तो भ्रम ही होता है अर्ध भ्रम या चौथियाई भ्रम नहीं।भ्रम अर्ध भ्रम या आंशिक भ्रम नहीं होता।
भ्रम केवल भ्रम होता है।समूचा सम्पूर्ण।सत्य की तरह उसके स्तर नहीं हो सकते, या तो आप भ्रम में हैं या भ्रम में नहीं हैं।
भ्रम एक अजीब सी चीज है।जब तक आप भ्रम में होते हैं, उस भ्रम को ही सत्य मानते हैं।कभी कभी उस भ्रम से बाहर आने पर आपको ज़्यादा अच्छा नहीं लगता।कुछ भ्रम दूसरों के बनाये होते हैं, कुछ भ्रम आपके स्वयं के।
लेकिन दोनों ही तरह के भ्रम में आप ही जीते हैं।दूसरों के बनाये भ्रम टूटने पर दुःख होता है,खुद के बनाये भ्रम के टूटने पर बहुत ज़्यादा दुःख।
सत्य, शिव यानी कल्याण कारी भी होता है और सुंदर भी ।पर ज़्यादातर सत्य सुखद नहीं होता,आपको सुख नहीं देता।जैसे ये सत्य है कि प्रत्येक जीवित प्राणी की मृत्यु अवश्यम्भावी है ,इसमें प्राणी का कल्याण भी है औऱ सुंदरता भी कि ईश्वर का अंश ईश्वर में वापस मिल जाएगा।(ईश्वर अंश जीव अविनाशी).
लेकिन किसी की मृत्यु सुखद तो नहीं ही मानी जा सकती।है न ?
ज़्यादातर हमारा जीवन भ्रम जाल में ही बीतता है।सोच के देखिए।तभी हम जीवन व्यतीत कर पाते हैं।भ्रम कि लोग हमें चाहते हैं, पसन्द करते हैं।
भ्रम कि हमारे जीवन की बागडोर हमारे हाथ में है।
हालांकि ये सत्य जानते हुये भी लोग भ्रमजाल में रहना पसंद करते हैं कि
ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या।
और एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति।।
गुरुजनों को प्रणाम
🙏🙏🙏
विपुल
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