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लेखक -राहुल दुबे

भारत के मैच हारने पर एक व्हाट्सएप्प संदेश आया श्रीलंका जीत गई मैं बहुत खुश हूं, मैं चौंका ये कट्टर हिन्दू आज श्रीलंका के जीतने पर खुश क्यों है,
मैंने कुरेदकर पूछा क्यों खुश हो भाई सामने से जवाब आया ब्राह्मण दादा रावण का देश लंका जीता है।
मैं सन्न, अब मेरी बारी थी भारत के हार के विश्लेषण की।

नमस्कार मैं रवीश कुमार!

पूंजीपतियों की टीम BCCI एक गरीब बौद्धों के देश श्रीलंका से हार गई मैच के बाद BCCI का कप्तान ढींगे हांकते हुए कह रहा था मैं World कप के पहले सारे प्रश्नों का जवाब ढूंढ लूंगा लेकिन BCCI के कप्तान से जानना चाहता हूं कहा गया तुम्हारा उस मासूम फैन से किया वादा की एशिया कप जीतने के बाद जर्सी दूंगा क्या हुआ उस वायदे का।

क्या ये अच्छे दिन आने वाले जैसे वायदे जैसा कुछ नही हो गया, मुझे कोई ताज्जुब नही है कि BCCI का सचिव गृह मंत्री के सुपुत्र क्यों है।

खैर मैं तो हमेशा से आशावादी रहा हूँ और मुझे श्रीलंका की खुशी से कोई अत्यधिक निराशा नही है।
कारण ये यह है कि बेचारा श्रीलंका बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है, अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, सब कुछ बर्बाद हो गया है, इसलिए उनका जीतना जरूरी था अब आप मुझे बांग्लादेश श्रीलंका के मैच के विश्लेषण की याद दिलाकर गाली दे सकते है लेकिन IT सेलियों ये ध्यान रखो बांग्लादेश श्रीलंका के मैच की सामाजिक वैल्यू अलग थी ।

मैं तो भक्तों की निराशा देखकर खुश हूं ये लोग बांग्लादेश की हार का जश्न इसलिए मना रहे थे क्योंकि शांतिप्रिय मजहब हारा था तब भक्तों आ गया स्वाद।

श्रीलंका की भारत पर एकतरफा जीत मनुवाद को तोड़ने के तरफ भी एक विशेष कदम है, आपको पता होना चाहिए कि श्रीलंका एक बौद्ध भिक्षुओं का देश है
और भारत के पूर्व प्रशासनिक अधिकारी, नेता , बुद्धिजीवी जब मनुवाद को खत्म करने की कसम खाते है तो पहले बौद्ध धर्म की शरण में जाते है और जरा सोचिए यदि आज श्रीलंका मनुवादियो के कब्जे वाले BCCI से हार जाता तो उन क्रांतिकारियों को क्या सन्देश जाता और उसके बाद मनुवादी कैसे खुश होते।।

श्रीलंका की BCCI पर जीत एक नए समाज जहां पूर्व दलित विधायक पूर्व दलित मुख्यमंत्री पूर्व दलित अधिकारी शान से मनुवादियो के खिलाफ कुछ भी कर सकते है, श्रीलंका की जीत समाज की जीत है क्योंकि वहां का महान क्रिकेटर ईस्टर के दिन हमले के बाद धर्मनिरपेक्षता को बनाये रखने की वकालत करता है और यहां का महान गेंदबाज वेंकटेश प्रसाद अम्बेडकर के पौत्र प्रकाश अम्बेडकर को तीखे जवाब देता है।
अब आप खुद समझ जाइये किसकी जीत जरूरी थी।।

श्रीलंका की जीत ने वामपंथ को भी प्रोत्साहित कर दिया है क्योंकि श्रीलंका वामपंथी चीन का भाई है और इससे भारत में रह रहे वामपंथियों को उनपर हो रहे भारी वैचारिक हमलों को सहन करने की थोड़ी शक्ति मिलेगी।।

इस जीत ने एक और चीज साबित कर दिया है कि BCCI की टीम भारत का प्रतिनिधित्व बिना आरक्षण के ठीक से नही कर पायेगी ऐसे ही हारती रहेगी मुझे तो इनके पराजय से कोई फर्क नही पड़ता लेकिन मुझे लगता है कि BCCI का अध्यक्ष उदित राज जी को बनाया जाये जिससे पहले BCCI में मनुवाद की कमर टूटे और फिर क्रिकेट में नवबौद्धों के लिए आरक्षण के व्यवस्था के साथ-साथ sc/st act का इंतजाम किया जाए जो न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों के खिलाफ प्रभावी हो जिससे यदि ये टीमें हमें हराये तो उनके खिलाड़ियों को हम Sc/st act के तहत नवबौद्ध शोषण करने की उचित कारवाई कर सके।।

इंग्लैंड के खिलाफ ये व्यवस्था इसलिए नही क्योंकि इंग्लैंड हमारा मालिक रहा है। पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे राष्ट्र शांतिप्रिय है।

ख़ैर, BCCI की इस हार के लिए ब्राह्मण पंत और गुर्जर भुवनेश्वर जिम्मेदार है और मैं जनता से अपील करूंगा कि इन्हें जो मन में आये वो गाली दे ये यूरेशियाई लोग ज्यादा उछल रहे है।।

अरे यदि आप अब भी BCCI की हार से निराश है तो आप निराशावादी है, आप भक्त है, आप संघी है जरा सोचिये जो देश बर्बाद होने के बाद भी, भारत से हैप्पीनेस इंडेक्स में आगे रह सकता है, भारत का नमक खाने के बाद भी वामपंथी चीन के प्रति सहानुभूति दिखा सकता है तो श्रीलंका को तो यूँही एशिया कप और वर्ल्ड कप का विजेता घोषित कर देना चाहिए।।

और हाँ यदि मैं इस समय अपनी सामाजिक चेतना को भूलकर सिर्फ भारत की सोचु तो मेरे अनुसार भारत के एशिया कप से बाहर होने के जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ देश के प्रधानमंत्री है।।

जनता को प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांगना चाहिए।।

नमस्कार!!

लेखक -राहुल दुबे

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