
लघुकथा -विजयंत खत्री
खेतों की हरी-भरी शांति में, जहाँ हवा सरसराती हुई फसलों के बीच से गुजर रही थी, बसंत अपनी चारपाई पर बैठा था। उसका चेहरा ढलते सूरज की रोशनी में चमक रहा था, लेकिन उसकी आँखों में एक अंधेरा था जो खेतों की हरियाली से मेल नहीं खाता था। उसके हाथ में एक छोटी-सी डायरी थी, जिसमें उसने पिछले कई दिनों से कुछ लिखा था—एक योजना, एक बदला। उसके दिमाग में बार-बार वही दृश्य घूम रहा था: कॉलेज का कैंटीन, जहाँ सबके सामने, उसकी क्रश चंचल की नजरों के सामने, देव ने उसे थप्पड़ मारा था। हँसी के ठहाके, ताने, और वो जलन जो उसके सीने में आग की तरह धधक रही थी।बसंत ने उस दिन फैसला कर लिया था कि देव को सबक सिखाना जरूरी है। सिर्फ सबक नहीं, उसे खत्म करना जरूरी है।
उसने अपनी डायरी में हर कदम लिखा था—देव की दिनचर्या, उसका कॉलेज से घर जाने का रास्ता, वो सुनसान सड़क जहाँ कोई नहीं देखता। उसने एक चाकू खरीदा था, पुराना लेकिन तेज, और उसे अपने बैग में छिपा लिया था। उसने सोचा था कि सोमवार को, जब कॉलेज के बाद देव अकेले उस सड़क से अपनी मोटर साइकिल से गुजरेगा, बसंत उसका इंतजार करेगा। उसे रोककर उससे अपने अपमान के बारे मे बाते करेगा। मौका लगते ही चाकू से उस पर हमला करेगा। एक झटके में सब खत्म।हमला वो तब तक करेगा जब तक वो आखिरी सांस नहीं छोड़ देगा। फिर वो चुपचाप खेतों में लौट आएगा, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

हर रात वो इस योजना को दिमाग में दोहराता। नींद नहीं आती थी, बस देव का चेहरा और चंचल की वो मज़ाकिया हसी वाली नजरें सामने आती थीं। उसे लगता था कि ये सिर्फ उसकी इज्जत का सवाल नहीं था, बल्कि उसकी जिंदगी का मकसद बन गया था। वो देव को माफ नहीं कर सकता था। वो चंचल को मन ही मन चाहता था, पर चंचल के सामने उसकी ऐसी बेइज्जती होने के बाद भला वो कमज़ोर बसंत को क्यों पसंद करेगी? उसके बाद चंचल का झुकाव देव की और ज्यादा हो गया था। आखिरकार प्रकृति का नियम है कि मादा सदैव श्रेष्ठ और ताकतवर नर की तलाश में होती है। उसमे चंचल की क्य़ा गलती जो वो 6 फीट लंबे सुन्दर और कॉलेज मे दबदबा रखने वाले देव की और आकर्षित हो रही है।

बसंत के दिमाग मे हज़ार बाते एक साथ चल रही थीं। वो देव से बदला लिये बिना भी नहीं रह सकता था। देव को मार देना चाहता था पर क्य़ा देव को मारने के बाद उसका जीवन पहले जैसा रह जाएगा? पुलिस कभी ना कभी उसे पकड ही लेगी। फिर उसके भविष्य का क्य़ा होगा? उसके माता पिता और परिवार का क्य़ा होगा? पर वो ऐसा जीवन भी नहीं जी सकता था जिसमें उसे बिना वजह किसी के मज़ाक भर के लिए मानसिक और शारीरिक यातना सहनी पड़े। आखिरकार उसका भी तो कोई आत्मसम्मान है। उसने देव को मारने के लिए पता नहीं कितने तरीके सोचे। चाकू से या बंदूक से या किसी गाड़ी से कुचल देना। वो उसे मारने के बाद बचने के तरीके इन्टरनेट पर भी ढूंढता रहता था। कई बार वो सोचता कि जाने दे जो हो गया सो हो गया पर उसका इगो उसे इस बात की इजाजत नहीं दे रहा था। आखिरकार वही हुआ है जो होता है बसंत की पुरुष इगो के सामने उसके बाकी भय फीके पड़ गए। उसने देव को मारने का फैसला कर ही लिया। बसंत की की उम्र अभी बस 19 साल ही थी। इस उम्र मे पुरुष हर बात सहन कर सकता है पर अपना अपमान नहीं।

रविवार का दिन आया। बसंत ने उस सुबह फिर से खेतों में बैठकर आखिरी बार अपनी योजना को परखा। कल वो देव को खत्म कर ही देगा।
अगले दिन सोमवार को उसने चाकू को अपने बैग में डाला और कॉलेज के लिए निकल पड़ा। दिनभर वो चुपचाप रहा, अपनी योजना को दिमाग में पक्का करता हुआ। उसे जेल जाने का, या ये सब करने के बाद के परिणामों का कोई भय नहीं था। बस उसे बदला लेना था। वो उस सड़क पर बैठ गया जहा से देव अपने गांव से कस्बे के कॉलेज तक आता था। उसका प्लान बिल्कुल साधारण था वो देव को रोकेगा उससे बाते करेगा और मौका लगते ही उसे ख़त्म कर देगा। वहाँ बैठे हुए भी उसका दिमाग बिजली की गति से सोचे जा रहा था। सुबह से दोपहर हो गयी थी पर देव अभी तक दिखाई नहीं दिया था। देव अपनी मोटर साइकिल पर रोज इसी रास्ते से आता था। वो कॉलेज भी क्लास लेने नहीं जाता था अक्सर वो देर से आता था। मोटर साइकिल तेज चलाने वाला, जिम जाने वाला लड़का था। दुनिया का हर बुरा काम जो उसकी उम्र के लड़के कर सकते थे वो करता था। कॉलेज मे शराब पीकर आना, लड़ाई झगडे करना, लड़किया छेडना सब करता था। कोई टीचर या कोई और कॉलेज का लड़का उसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता था। बसंत को वहां बैठे हुए 6 घण्टे हो चुके थे सुबह 9 बजे से शाम के तीन बज चुके थे। कॉलेज भी ख़त्म हो चुका होगा। पर आज देव नहीं आया। देव रोज ही कॉलेज आता था पर आज क्यों नहीं आया? आख़िर क्यों नहीं आया?

अब उसने मन बनाया की वो आज नहीं आया है तो उसके गाँव जाके पता करता हूँ कि आखिर वो क्यों नहीं आया। वो पैदल चलता हुआ उसके गाँव पहुचा। उसने गाँव के बाहर एक आदमी से देव के घर का रास्ता पुछा। तो वो आदमी अचानक से कांप गया। बस उंगली के इशारे से देव का घर जिस गली मे पड़ता था उसकी और इशारा कर दिया। बसंत को बहुत अजीब लगा। वो उस आदमी के चेहरे के भाव समझ नहीं सका। क्य़ा देव या उसके परिवार के लोगों से गाँव के लोग भी डरते है जो इस अज़ीब तरह से बिना जुबान से बोले बस इशारा करके उसके घर का रास्ता बता दे रहे हैं। यहीं सोचता हुआ वो देव के घर की और चला। जैसे ही वो देव के घर वाली गली मे पहुचा तो वहां एक हलचल मची हुई थी। लोग इकट्ठा हो रहे थे, कुछ रो रहे थे, कुछ फुसफुसा रहे थे। बसंत ने पास जाकर सुना—देव की मौत हो गई थी। कल शाम उसे एक ट्रक ने उसे कुचल दिया था,वो शराब के नशे में था, उसकी बाइक के परखच्चे उड़ गए थे। ये सब उस सुनसान सड़क के पास ही हुआ था, जहाँ वसंत सुबह से उसका इंतजार कर रहा था। बसंत के हाथ से बैग गिर गया। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वो समझ नहीं पा रहा था कि उसे खुशी हो रही है या डर लग रहा है। देव मर चुका था, लेकिन बसंत के हाथों नहीं। देव के पिताजी के पास पहुचा। तो देव के पिताजी ने कहा बेटा आप कौन है? बसंत के मुह से एक शब्द भी नहीं फूट रहा था। वो बस देव के पिता का ग़मगीन चेहरा देखे जा रहा था। बस अंत मे वो इतना बोला कि वो देव के कॉलेज मे पढ़ता है। देव के पिताजी जो अब तक शायद अपने आंसू रोके हुए थे दहाड़ मारकर रो पड़े। बसंत तुरन्त वहां से भागा। देव के मोहल्ले के लोग उसे भागते हुए देखकर कहते है – की देव का दोस्त है शायद, लगता है देव की मौत से सदमा लगा है बेचारे को ।

देव सीधे घर आया। आते ही उसने अपना सामान पटका, उसमे से उसने वो चाकू निकाला जो देव को मारने के लिए लिया था, और अपने खेतों की ओर भागा, जहाँ वो हर दिन बैठता था। चारपाई पर लेटकर उसने आसमान को देखा। उसकी डायरी अब भी उसकी जेब में थी, लेकिन अब उसकी स्याही बेकार लग रही थी। उसे लगा जैसे कोई ऊपर बैठा उसकी योजना पर हँस रहा हो। चंचल का चेहरा फिर उसके सामने आया, लेकिन अब वो उससे नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। वो ना रो पा रहा था, न हंस पा रहा था। देव चला गया था, पर बसंत के सीने में जो आग थी, वो अभी भी जल रही थी—शायद अब वो कभी न बुझे।
प्रस्तुति -विजयंत खत्री
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Nice story although the end is no t so stunning as it should be .
Well wishesh for a growing penner.👍