लेखक -विपुल
@exx_cricketer
आज भारतीय क्रिकेट टीम से जुड़े एक महत्वपूर्ण मसले पर बात कर लेते हैं । मसला है,
पार्ट टाइम गेंदबाज
मतलब ऐसे खिलाड़ी जो टीम में विशुद्ध बल्लेबाज की जगह हों ,लेकिन ज़रूरत पड़ने पर कुछ ओवर गेंदबाजी भी कर लें ।
यही होते हैं पार्ट टाइम गेंदबाज ।
सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, सुरेश रैना, यूसुफ पठान ये सब उदाहरण हैं।
रोहित शर्मा भी उंगली की चोट के पहले अच्छी खासी ऑफ स्पिन कर लेते थे ।अब बिल्कुल नहीं करते।विराट कोहली ने शायद एक आध ओवर डाले हैं कभी कभी, अब वो भी नहीं डालते।
वर्तमान भारतीय टीम को अगर देखें तो इसमें सहवाग ,युवराज जैसे पार्ट टाइम गेंदबाज नहीं दिखेंगे।
सीमित ओवर क्रिकेट में भारत की असफलताओं का एक कारण ये भी हो सकता है।
अब आप ये मत कहना कि कैसी असफलता ?
पिछली सारी द्विपक्षीय सीरीज भारत जीता है।
माफ करिएगा, इन बेकार की द्विपक्षीय सीरीज से ज़्यादा भाव मैं आईपीएल को देता हूँ।
2013 के बाद की असफलता
विश्वकप 2011 हमारा जीता आखिरी विश्वकप था।चैंपियन्स ट्रॉफी 2013 हमारी जीती आखिरी आईसीसी ट्रॉफी थी।
इसके बाद हम कुछ नहीं जीते,
सीमित ओवर में ।
गौर करिये 2003 विश्वकप में हम फाइनल खेले थे, 2000 में शायद चैंपियंस ट्राफी फाइनल!
तब कौन कौन था ?
सचिन, युवराज ,रोबिन सिंह ,गांगुली
4 पार्ट टाइम गेंदबाज ।
2003 में सचिन ,सहवाग, युवराज, गांगुली ,दिनेश मोंगिया ।
5 पार्ट टाइम गेंदबाज।
2007 की बात करो।युवराज ,सहवाग ,
यूसुफ पठान और रोहित शर्मा।
4 पार्ट टाइम गेंदबाज।
2011 विश्वकप
सचिन,सहवाग, युवराज ,रैना, यूसुफ पठान ।
5 पार्ट टाइम गेंदबाज।
2013 चैंपियंस ट्रॉफी में सुरेश रैना पार्ट टाइम गेंदबाज थे और फाइनल में 3 ओवर फेंके थे उन्होंने।
लब्बोलुआब ये कि सीमित ओवर क्रिकेट में जीत के लिये पार्ट टाइम गेंदबाज ज़रूरी हैं ।
अभी भी नहीं मानते तो 2019 एकदिवसीय विश्वकप में जो रुट और 2021 टी 20 विश्वकप में मार्क्स स्टोइनिस को देखो
चयन समिति की सोच
तो कमी कहाँ है ?
कमी दरअसल हमारी चयन समिति और चयन प्रक्रिया में है,जो रणजी से ज़्यादा आईपीएल पे फोकस करती है।
गौर करिये ये चयन समिति पृथ्वी शॉ ,शुभमन गिल, मयंक अग्रवाल ,के एल राहुल ,ऋतुराज गायकवाड़ ,देवदत्त पडिक्कल पर तो ध्यान देती है जो ऊपर आकर रन बनाते हैं ,गेंदबाजी नहीं करते।
या कार्तिक, पंत,संजू सैमसन ,ईशान किशन पर फोकस करती है,जिनमे से एक पंत को छोड़ सभी ऊपरी क्रम के खिलाड़ी हैं ।जिमी एडम्स की तरह कोई गेंदबाज विकेटकीपर भी नहीं है इनमें जो यदि कोई दूसरा विकेटकीपर दस्ताने पहने तो गेंदबाजी कर ले।
चयन समिति ने निम्न क्रम में आकर खेलने वाले बल्लेबाज की तलाश छोड़ दी है जो थोड़ी बहुत गेंदबाजी कर लेता हो।
राहुल तेवतिया में तेवर दिखे थे पर उसे 3 मैच में बेंच पर बिठाने के बाद बगैर मौका दिए बाहर कर दिया।
वेंकटेश अय्यर को भी ओपनिंग में सफलता मिली थी, उसे लाये भी!
पर एक तो नीचे खिलाया ,दूसरे गेंदबाजी भी नहीं दी।
पता नहीं टीम इंडिया में क्या चल रहा है ?
दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण
90 की दक्षिण अफ्रीका टीम बहुत तगड़ी थी ।उनके अध्यक्ष अली बाकर ने तब कहा था कि हम चयन में ध्यान रखते हैं कि खिलाड़ी कम से कम दो विधाओं में पारंगत हो ।चाहे बल्लेबाजी फील्डिंग, गेंदबाजी फील्डिंग ,या बल्लेबाजी गेंदबाजी।
गौर करिये जोंटी रोडस बल्लेबाज और फील्डर कमाल थे
डेरेक क्रुक्स कमाल का फील्डर था जो स्पिन बौलिंग करता था।
निकी बोए, रॉबिन पीटरसन स्पिन आल राउंडर थे।
हंसी क्रोनिए, शॉन पोलॉक, लांस क्लूजनर, मैकमिलन, और जैक्स कालिस ।
ये सब तेज़ गेंदबाजी भी करते थे बल्लेबाजी के साथ ।
हालांकि विश्वकप नहीं जीती दक्षिण अफ्रीका ,पर ये उसका खराब भाग्य ज़्यादा था 1992 में भी ,जब 13 गेंद में 22 रन की जगह परिवर्तन 1 गेंद में 22 रन का हुआ ।
1999 में भी जब सेमीफाइनल मैच तो टाई हुआ क्लूजनर के रन आउट से, पर दक्षिण अफ्रीका पर लीग मैच की जीत के कारण ऑस्ट्रेलिया फाइनल में पहुंचा।
वैसे इस टीम ने राज्य किया था।
पार्ट टाइम गेंदबाज चुनो
मतलब ये कि जब भारतीय चयन समिति ऐसे खिलाड़ी ही नहीं चुन रही तो अंतिम 11 में कैसे आएंगे ये ?
युवराज की आधी प्रतिभा थी रैना में ,पर वो भी सफल रहे बहुत।
आज रैना के भी आधे के बराबर कोई नहीं दिख रहा।
चयन समिति की निगाह केवल उच्च क्रम के बल्लेबाज़ों, सुपर फास्ट गेंदबाज़ों और विशुद्ध स्पिनर्स पर है ।उसमें भी बाएं हाथ के स्पिनर्स पर ।
एम पी के जलज सक्सेना, यूपी के सौरभ कुमार, तमिलनाडु के बाबा अपराजित,अभिषेक शर्मा पता नहीं कहाँ से खेलता है ?
इन्हें मौका ही नहीं मिला।
मेरे विचार से वर्तमान भारतीय चयन समिति को मध्यक्रम और निम्न मध्यम क्रम के ऐसे आक्रामक बल्लेबाज़ों को एकदिवसीय और टी 20 में ज़्यादा मौका देना चाहिए जो गेंदबाजी कर लेते हैं और अगर शीर्ष क्रम के दो एक जैसे बल्लेबाजों में से एक को चुनने की बात आये तो गेंदबाजी कर सकने वाले को वरीयता मिले।
क्योंकि कपिल देव रोज रोज नहीं आते वैश्विक क्रिकेट परिदृश्य पर और
हार्दिक पांड्या का भरोसा नहीं कर सकते ।
आल राउंडर तो विजय शंकर भी कहे गए थे और भुवनेश्वर कुमार भी।
वैसे भुवनेश्वर कुमार का रणजी बैटिंग रिकॉर्ड बहुत अच्छा है ।आल राउंडर माना जाता था वो ।
लेखक -विपुल
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