
चुभने वाली हार
प्रस्तुति -विपुल मिश्रा
अगर किसी को याद आ रहा हो तो बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी 2024-25 का दौरा याद करे।
पर्थ के पहले टेस्ट के लिये जसप्रीत बुमराह को कप्तान घोषित किया गया था क्योंकि तब के पूर्णकालिक कप्तान रोहित शर्मा ने पितृत्व अवकाश के लिये पहले टेस्ट के लिये बीसीसीआई से अवकाश मांगा था।
सुनील गावस्कर समेत कई भारतीय क्रिकेट दिग्गजों का मानना था कि इस पूरी भारत ऑस्ट्रेलिया श्रृंखला के लिये ही जसप्रीत बुमराह को कप्तान घोषित कर देना चाहिये और रोहित शर्मा को बाद में एक खिलाड़ी के तौर पर टीम से जुड़ना चाहिये, क्योंकि घर में ही भारतीय टेस्ट टीम के न्यूजीलैंड द्वारा 3-0 से सफाये के बाद विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल तक पहुंचने के लिये भारत का ये ऑस्ट्रेलिया दौरा बहुत महत्वपूर्ण था। बीच श्रृंखला में टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम का माहौल न बदले, शायद यही सोच थी।
वैसे रोहित शर्मा भी ये पूरी श्रृंखला छोड़ सकते थे और इससे उनकी टेस्ट कप्तानी के सुरक्षित रहने पर प्रभाव शायद ही पड़ता क्योंकि मुख्य चयनकर्ता मुंबई के अजित आगरकर थे जो रोहित को पसंद करते थे।
पर न तो रोहित माने और न आगरकर।
इस श्रृंखला का पहला पर्थ टेस्ट भारत ने जसप्रीत बुमराह की कप्तानी और बेहतरीन गेंदबाजी से तब जीता जब भारत ने पहली पारी में 200 रन भी न बनाये थे।
सिराज, हर्षित राणा, नीतीश कुमार रेड्डी, सुंदर, जायसवाल, राहुल सबका प्रदर्शन इस मैच में अच्छा था।कोहली ने भी शतक लगाया था। जायसवाल और राहुल ने 200 रनों की सलामी साझेदारी भी कर दी थी।

टीम में अभूतपूर्व एकता और उत्साह दिख रहा था।
टीम, टीम जैसी दिख रही थी। संगठित! साथ साथ!
फिर रोहित शर्मा दूसरे टेस्ट में आये और बुमराह को हटा के कप्तानी संभाली।
उसके बाद सबकुछ बदल गया।
भारत ठीक अगला मैच हारा।
फिर एक ड्रा और फिर हार।
अंतिम मैच आते आते रोहित शर्मा को कप्तान होने के बावजूद बाहर रहना पड़ा क्योंकि जिन मैचों में वो खेले, उनका प्रदर्शन सिर्फ खराब नहीं था,हद से ज्यादा खराब था।रद्दी था।
यही वो समय था जब ड्रेसिंग रूम मे हुई बातें लीक हुईं। खबरें आईं।रोहित बीच मैच में टीवी पर बोल के गये कि मैं संन्यास नहीं ले रहा।लगभग चुनौती देकर गये।
बुमराह फिर कप्तान बने पर इस सबके बीच पहले टेस्ट में बुमराह की कप्तानी में दिख रही टीम इंडिया की एकता खो चुकी दिख रही थी।बुमराह ने पूरी सीरीज में अच्छी गेंदबाजी की पर उनसे इतनी ज्यादा गेंदबाजी करवाई गई थी कि अंतिम टेस्ट में निर्णायक पारी में वो चोटिल हो गये और अस्पताल जाने के बाद गेंदबाजी करने आ ही न पाये।
भारत सीरीज बुरी तरह हारा।

इसके बाद चैंपियंस ट्रॉफी एकदिवसीय टूर्नामेंट की टीम चुनी गई जिसमें रोहित शर्मा कप्तान थे। रोहित की कप्तानी में हम चैंपियनशिप जीते जिसमें श्रेयस, कोहली, राहुल की बैटिंग और कुलदीप बुमराह की बॉलिंग के साथ पांड्या और अक्षर पटेल की हरफनमौला क्षमता का भी उल्लेखनीय योगदान था।
इसके बाद क्या हुआ पता नहीं पर आईपीएल के बीच से खबरें आईं कि रोहित और कोहली ने टेस्ट से संन्यास ले लिया है। साईं सुदर्शन ने इस आईपीएल में अच्छी बल्लेबाजी की थी।
इंग्लैंड टेस्ट दौरे के लिये टीम इंडिया चुनी गई और आश्चर्यजनक रूप से इस टीम के कप्तान सबसे बड़े दावेदार जसप्रीत बुमराह की जगह वो शुभमन गिल थे जिनका इंग्लैंड में टेस्ट प्रदर्शन बहुत औसत था।
बुमराह को कप्तानी न देने का कारण ये बताया गया कि उनपर ज्यादा वर्कलोड नहीं रखना है। ये तर्क उतरा तो ये किसी के गले नहीं पर मान लिया गया।

श्रेयस अय्यर की जगह साईं सुदर्शन टीम में आये जो पिछले तीस सालों में बल्लेबाज के तौर पर टीम इंडिया में शामिल होने वाले पहले ऐसे बल्लेबाज थे जिनका घरेलू प्रथम श्रेणी औसत 40 से कम था।
बात यहीं खत्म नहीं हुई।
इंग्लैंड दौरे पर पहले टेस्ट के लिये अंतिम 11 से वो नीतीश कुमार रेड्डी बाहर थे जो ऑस्ट्रेलिया में पूरे 5 मैच खेले थे, जिन्होंने एक शतक के अलावा ऑस्ट्रेलिया में कई बार निम्नक्रम में उपयोगी 35-40 रन बनाये थे और उपयोगी विकेट भी लिये थे। खासतौर पर बुमराह के अंतिम मैच से बाहर जाने के बाद तीन विकेट भी लिये थे।
पिच एकदम पाटा थी और इस पर भारत सिर्फ एक स्पिनर के साथ गया जो कलाई के स्पिनर कुलदीप नहीं थे जिन्हें टेस्ट मैचों में इस समय का सबसे अच्छा कलाई का स्पिनर माना जाता है।
प्रसिद्ध कृष्णा को बाकी उपलब्ध तेज गेंदबाजों पर वरीयता मिली। बुमराह सिराज पक्के थे ही
करुण नायर को मौका मिला।
मैच शुरू होने के बाद साईं सुदर्शन को तीसरे नंबर पर और करुण नायर को छठे नंबर पर देख आश्चर्य हुआ।
करुण नायर नंबर 3-4 का बल्लेबाज था जो कुछ टेस्ट खेल चुका था।
राहुल ने अच्छी पारी खेली,91 रनों की सलामी साझेदारी की और जायसवाल,गिल और पंत ने शतक लगाया।
भारत एक समय 430/3 था पर भारत के पुछल्ले बल्लेबाजों की बेवकूफी से भारत 471 पर आल आउट हुआ।

साईं सुदर्शन और करुण नायर दोनों बेवकूफाना शॉट खेल शून्य पर आउट हुये।
भारत की गेंदबाजी आते ही भारत की रणनीतियों की पोल खुल गई।
जिन बुमराह को वर्कलोड के नाम पर कप्तानी नहीं दी गई थी। शुरू के 45 ओवरों में वो 17 ओवर फेंक चुके थे।
यशस्वी जायसवाल लगातार कैच छोड़ रहे थे फिर भी स्लिप में खड़े थे। दबाव इतना था जडेजा कि जडेजा जैसे क्षेत्ररक्षक से भी कैच छूटा। सिराज ऑफ कलर थे और प्रसिद्ध कृष्णा किसी क्लब स्तर के नौसिखिये तेज गेंदबाज से भी खराब गेंदबाजी कर रहा था।

एक गेंदबाजी ऑलराउंडर के तौर पर टीम में शामिल किये शार्दूल ठाकुर जो मुंबई और अपनी अन्य टीमों के लिये नई गेंद संभालते हैं को गेंदबाजी दी ही नहीं जा रही थी, बड़ी मुश्किल से एक तीन ओवर का स्पेल मिला।
जब शार्दूल जैसे स्ट्राइक गेंदबाज को ये तवज्जो मिल रही थी तो पार्ट टाइमर साईं सुदर्शन की गेंदबाजी के बारे में सोचना ही गुनाह था।

बुमराह के पांच विकेट लेने के साथ इंग्लैंड को भारत ने जैसे तैसे 465 पर आल आउट किया।
भारत की दूसरी पारी में राहुल और पंत के शतकों के साथ ही साईं सुदर्शन और करुण नायर ने भी कुछ रन बनाये। पहली पारी के शतकवीर गिल और जायसवाल सस्ते में निकले। शार्दूल फिर नाकाम रहे
जडेजा ठहरना चाहते थे पर बुमराह और सिराज के बाद प्रसिद्ध कृष्णा ने भी ज्यादा ठहरना उचित न समझा।
इंग्लैंड को जीत के लिये 371 का लक्ष्य मिला जबकि एक समय भारत 330/4 था।
और इंग्लैंड की दूसरी पारी बता गई कि गौतम गंभीर एक टेस्ट कोच के तौर पर रणनीतियां बनाने में कितने नाकारा हैं।
गिल टेस्ट कप्तान के तौर पर कितना नौसिखिया है।
प्रसिद्ध कृष्णा एक टेस्ट गेंदबाज के नाम पर कलंक है। शार्दूल ठाकुर एक अच्छा टेस्ट गेंदबाज बिल्कुल नहीं है और जडेजा अब एक स्पिनर के तौर पर ज्यादा प्रभावी नहीं हैं।

सबको पता था कि इंग्लैंड ये लक्ष्य प्राप्त करने को जायेगा। पूर्व में प्राप्त भी कर चुका है, इससे अच्छी भारतीय गेंदबाजी के खिलाफ।
पर 7-2 की फील्ड के साथ निगेटिव गेंदबाजी गंभीर एण्ड कंपनी ने तब भी न सोची जब इंग्लैंड धड़ाधड़ रन बना रहा था।
समय खराब करने की किसी भारतीय क्षेत्ररक्षक या कप्तान ने सोची भी नहीं कि कम से कम हार तो बचे।
साईं सुदर्शन से चौथी पारी में तब भी स्पिन गेंद न फिंकवाई गई, जब प्रसिद्ध कृष्णा और शार्दूल थोक के भाव से रन दे रहे थे।
रन रोकने के लिये एक तरफ से किसी गेंदबाज को न लगाया गया।
फील्ड प्लेसिंग एकदम वाहियात थी। बिल्कुल क्षेत्ररक्षण की तरह।

इस बार भी भारतीय क्षेत्ररक्षकों ने कैच छोड़े।
बुमराह की अंतिम घंटे में सबसे ज्यादा जरूरत थी तब बुमराह से पता नहीं क्यों गेंदबाजी न करवाई गई।
अगर बुमराह थक गये थे तो इसका भी कारण शार्दूल ठाकुर से पहली पारी में बिल्कुल नाम मात्र की गेंदबाजी करवाना और साईं से गेंदबाजी न करवाना था।
एक गेंदबाज पूरे 182 ओवर के खेल में मात्र 16 ओवर फेंके, ये विशुद्ध बेवकूफी है।
भारत ये मैच हारा और एक सवाल खड़ा हुआ।
पिछले साल बुमराह की कप्तानी में पर्थ टेस्ट जीतने के बाद जबसे बुमराह को टेस्ट कप्तानी से हटाया गया, हम कितने टेस्ट मैच जीते?
एक भी नहीं।

विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल से बाहर हुये। फॉलोऑन बचाना उपलब्धि सा हो गया टीम इंडिया के लिये।
भारत के इंग्लैंड दौरे के लिये बुमराह कप्तान हो सकते थे पर वर्कलोड का बहाना देकर शुभमन गिल को टेस्ट कप्तान बना दिया गया जिनका टेस्ट रिकॉर्ड इंग्लैंड में औसत भी नहीं था।
बुमराह का वर्कलोड कैसे मैनेज हुआ, ये इस टेस्ट में दुनिया ने देखा जिसमें 182 में 44 ओवर बुमराह ने फेंके।
बीसीसीआई ने भारतीय क्रिकेट फैंस को इस बार साफ संदेश दिया है कि भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी के लिये जसप्रीत बुमराह जैसी क्रिकेट प्रतिभा की नहीं, शुभमन गिल जैसी प्रचार कंपनियों को आकर्षित करने की क्षमता ज्यादा मायने रखती है।
टीम इंडिया की कप्तानी के लिये टैलेंट नहीं पी आर चाहिये।

वैसे ये हार 36 आल आउट से ज्यादा खराब है।
5 टेस्ट शतकों के बाद भी आपकी टीम हारे वो भी तब जब अंतिम दिन 350 रन बनाने हों और आप 5 पूर्णकालिक और एक पार्ट टाइम गेंदबाजों के साथ खेल रहे हों तो ये सिर्फ आपकी कप्तानी और कोचिंग की नाकारापन दिखाता है।
इसके अलावा पर्थ टेस्ट 2024-25 में जीत के बाद बुमराह को कप्तानी से हटाना इस टेस्ट टीम का टर्निंग पॉइंट था
ईगो सबका होता है।
बुमराह से ज्यादा अच्छा इस टीम को संगठित और उत्साहित कोई नहीं कर सकता था।
समाप्त।
विपुल मिश्रा
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प्रस्तुति -विपुल मिश्रा
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