राहुल दुबे
इस्लाम हार गया आज।
अचानक कल शाम के 5:30 बजे के करीब ऐसे हिंसक मैसेज मेरे मोबाइल में घनघनाने लगे ।मैं अवाक ।
आखिर हुआ क्या है ?आज तो कुछ विशेष है भी नहीं ।तभी भीषण पटाखों की आवाज आने लगी ।एक पल के लिए लगा कहीं कोई युद्ध तो नही होने लगा । फिर ध्यान आया ये सब भारत के टी 20 विश्वकप के एक क्रिकेट मैच में मेरे प्रिय पाकिस्तान को हराने के कारण हो रहा है।सचमुच ऐसे क्षण का गवाह बनना मेरे लिए बहुत दुखदाई था। मुझे समझ नही आ रहा था क्या करना है?
अगले दिन दीवाली पर पटाखों के कारण हो सकने वाले प्रदूषण ने अलग चिंतित कर रखा था ।तब तक ये घटनाक्रम!
मैं टूट चुका था लेकिन बाकी सभी जश्न में मशगूल थे ।मेरे साथी भी PKMKB कर रहे थे ।किंग कोहली ज़िंदाबाद के फासीवादी नारो की गूंज थी। मैं एक भरे कमरे में अकेला था ।
आपने भी पाकिस्तान की हार का जश्न मनाया होगा लेकिन क्या आपने सोचा कि ये कितना असहिष्णु है ?
आप बताइए हम 140 करोड़ हैं ।वे 20 करोड़। क्या हमें उनकी हार का जश्न शोभा देता है ?
क्या आप अपने भाई को हराकर खुश होंगे ?
नहीं ना !
तो फिर प्रिय पाकिस्तान के साथ ऐसा क्यों ?
आज क्रिकेट की ही बात कर ही लेते हैं।
ये बताइये क्या 20वें ओवर में एक सच्चे मुसलमान की गेंद को नोबॉल करार देना वो भी एक संघी हिन्दू के विरुद्ध न्यायोचित था ?
एक फांसीवादी हिन्दू के विरूद्ध जिसने शंकर भगवान का टैटू बनवा रखा हो, जो राम के कीर्तन में गया हो, ऐसे संघी हिन्दू को नोबाल का फायदा देना क्या शोभा देता है आईसीसी को ?
क्या हैरिस रउफ को डाउन द ग्राउंड कोहली को वैसा छक्का मारना चाहिए था जो किसी गेंदबाज की इन्सल्ट जैसा हो ?
ये अल्पसंख्यको के विरुद्ध ही इतना शोषण क्यों ?
विराट जीत ग्राउंड पर पंचेस मार रहा था, वो उससे दर्शा रहा था कि कैसे उसने मेरे प्रिय पाक को पीटा है,
पाकिस्तान के गेंदबाजों का कोरमा बनाया है ।
क्या ऐसी हरकत पर उस लफ़ंडर कोहली को बैन नही कर देना चाहिए ?
क्या मोदी जैसे फासीवादी हिन्दू को अपनी शादी में बुलाने वाला कोहली इस समाज में रहने का हकदार है ?
यदि के एल राहुल हर मैच में अल्पसंख्यकों का सम्मान करके पहले दूसरे ओवर में आउट हो सकता है तो ये संघी फासिस्ट कोहली और मनुवादी गुजराती हार्दिक पांड्या क्यों नही ?
इनकी खराब परवरिश का जिम्मेदार कौन है ?
आप हम ही हैं।
हमने ही इनको ये बताया कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन देश है।प्रिय पाक को मारना है।
लेकिन क्यों मारना है मान्यवर ? क्या गलती है इन अल्पसंख्यक समाज के डरे हुये लोगों की ?
वो जीतते तो इस्लाम की जीत होती ।
काफिरों की हार का जश्न मनाते सब।
कितना स्नेहिल वातावरण होता ।
लेकिन 2014 के बाद फैले हिंदूवादी जहर ने सब सत्यानाश कर के रख दिया है।हम प्रिय पाक को कूट रहे हैं।ये ठीक नही है।
आखिर एक बादशाह बाबर आजम को शून्य पर क्यों आउट करना है हमें, एक बादशाह को एक मनुवादी ब्राह्मण की टीम क्यों हराएगी भला ?
इतना तो मैं सह भी लूं लेकिन ये विराट कोहली नाम का छपरी किंग कैसे ? आखिर एक लोकतांत्रिक देश में किंग किस बात का ?
क्या ये हमारे समाजिक मूल्यों के पतन का संकेत नही है कि एक शंकर जी को अपनी चमड़ी पर गुदवाने वाला सनातनी किंग ,कहलाया जाता है ।
आखिर प्रिय बाबर में क्या दिक्कत है, प्रिय बाबर को शून्य पर आउट ही क्यों किया गया ?
मैं तो दीवाली में अली को देखता हूँ लेकिन इस दीवाली में अली गायब है क्यों क्योंकि अलीगढ़ के अली को नोयडा के नफ़रती नवीन से लेकर साउथ दिल्ली की लावण्या तक सभी गालियाँ देंगे। क्योंकि बादशाह की टीम हार गई है,।
हम दिवाली पर पटाखें फोड़कर प्रदूषण तो कर लेंगे, जय श्रीराम कहकर लाहौर के हैदर को डरा तो देंगे,
आज प्रिय पाक को हराने की खुशी में दो सोनपापड़ी अधिक तो खा लेंगे ,
लेकिन क्या हम एक समाज के तौर पर खुश हो पाएंगे? विचार करियेगा।
प्रिय पाकिस्तान जो तमाम दिक्कतों में है क्या वो एक जीत का हकदार नहीं था ?
कि उसकी आवाम काफिरों को उनकी औकात दिखा सके ।
क्या रोहित का टॉस जीतना उचित था ?
ये टॉस बादशाह बाबर भी तो जीत सकता था, लेकिन रोहित ही क्यों जीता ?
कितना परेशान करेंगे अल्पसंख्यको को हम ?
2021 में जीत के बाद रिजवान ने बीच मैदान नमाज पढ़ी थी वो दृश्य कितना प्यारा था ।
लेकिन आज विराट कोहली ने मैच हड़पने के बाद भगवान को याद किया। क्या ये कट्टर हिंदुत्व का नमूना नही था, क्या पिच पर ये सब होना चाहिए ?
23 तारीख ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि हम एक समाज के तौर पर कितना गिर चुके हैं ।
और तो और उर्वशी को लेकर भी चर्चा में भी अल्पसंख्यकों का नाम हटाया जा रहा है।
क्या उर्वशी नसीम शाह के लिए ऑस्ट्रेलिया नही जा सकती है ? तो फिर इस पर पंत का एकतरफा राज क्यों ?
हम अल्पसंख्यको के साथ इतना पाप क्यों कर रहे है कि दिवाली के दिन हमें सोचना होगा क्या हमने प्रिय पाक को हराकर ठीक किया ?
क्या एक सनातनी विराट कोहली का ऐसा खेलना शोभा देता है?
क्या ये हमारे आंदोलन स्मैश सनातन के खिलाफ नही है?
क्या हम प्रिय पाक को ये जीत सौंपकर बड़ा हृदय नही दिखा सकते थे ?
सोचिएगा जरूर !
क्या भारत की जीत आपको नौकरी दे रही है?
यदि नहीं तो मेरे प्रिय प्रिय पाकिस्तान को जीत जाने दो न !क्या जाता है आपका हमारा ?
सोचिएगा जरुर।
फिर किसी दिन मिलेंगे जब आप सा माजिक मूल्यों को भूलकर कोई असामाजिक कार्य कर रहे होंगे ।
किसी संघी कोहली की किसी अल्पसंख्यक बाबर पर जीत का जश्न मना रहे होंगे।
तबतक के लिए लाल सलाम।
आपका रवीश कुमार।
राहुल दुबे
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