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यात्रा वृत्तांत -दूसरा दिन

सत्यव्रत त्रिपाठी

आवारगी के 68 दिन

दिन 2

17/05/2022
बनारस से झुमरी तलैया

तो करीब दो घण्टे बाद मैं बनारस क्रास करके जयरामपुर नाम की एक छोटी सी जगह पर आया । यहां खूब सारे ढाबे थे। कुछ फलाहार की जरूरत हमको भी थी और गाड़ी को भी । दो आलू के पराठे खाने और गाड़ी में 46 लीटर डीजल डालने के बाद दो बजे मैं आगे डेहरी आन सोन के लिए निकल पड़ा। यूँ तो गया जी में रात रुका जा सकता था लेकिन मैं अलसुबह झुमरी तलैया बांध और झील मे घूमना चाहता था।


करीब 40 मिनट बाद मैं त्रिशंकु की लार से बनी नदी कर्मनाशा को पार करके बिहार राज्य की सीमा में प्रवेश कर चुका था। बिहार पुलिस के एक सिपाही बार्डर पर मिले ।लखनऊ नम्बर की गाड़ी में अकेला देख गाड़ी रोके। रौब से बाहर आने को बोले, ट्रैक सूट में उनके दरोगा जी हमको देखकर सकुचाते हुए बोले कि “बस सामान्य पूछताछ और शराब की जांच होनी है।” हमने मुस्कुरा कर कहा “बिल्कुल स्वागत।” इतने में दूसरे सिपाही ने कुर्सी ऑफर की और दरोगा जी ने चाय के लिए पूछा।

मुझे मई की गर्मी में ट्रैक सूट पहने, छोटे बाल और मूछें देख वो सब शायद कोई अधिकारी समझ रहे थे। हमने कहा कि “नहीं बस आप इत्मीनान कर लें तो हम आगे जाएं।” दरोगा जी बोले “साहब कहाँ तक जाएंगे?” मैंने बताया कि “जाना तो झुमरी तलैया तक है लेकिन आप जाने देंगे तब न !”

वह झेंप कर बोले कि “दरअसल हमारे एक सिपाही को डोभी तक लिए जाइये उसे गाड़ी चलाना भी आता है।”

हमने भी तीन सेकेंड बाद कहा “ठीक है! आइए!”


तो बिहार पुलिस का एक 26 साल का सियाही मय वर्दी हमारी अगली सीट पर साथ में सवार था। नाम दीपेश कुमार था । हमें जाति से कोई काम नहीं था। अब म्यूजिक सिस्टम बन्द कर दिया। बातें करने लगे । करीब दो घण्टे का समय दीपेश की जिन्दगी जानने समझने में रहा। दीपेश ने बताया कि वह भागलपुर निवासी है। डोभी में उसकी बहन का घर है। वहीं जा रहा है सुबह फिर किसी के साथ आ जायेगा ड्यूटी पर। पिता की मृत्यु पर उसे आश्रित सेवा में नौकरी दो साल पहले मिली थी। वह इतिहास में एमए कर चुका था। नौकरी के साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था।घर मे दो बहनें हैं दोनो की शादी हो चुकी है। मैंने उसके सुखमय जीवन की शुभकामनाएं दीं।

मेरे बारे में उसने शिष्टाचार वश न पूछा। उसे या बल्कि रास्ते में पड़ने वाले हर टोल टैक्स और पुलिस वाले को यही भ्रम बना रहा कि मैं कोई बड़ा अफसर हूँ। मैंने भी भ्रम बना रहने ही दिया।
करीब दो घण्टे बाद हम कंचनपुर नाम की एक जगह पहुँचे ।दीपेश ने पूछा साहब “चाय वाय कुछ ले आऊँ ?” मैंने कहा “भई !चाय मैं पीता नहीं आप पी लीजिये।”

दीपेश की वर्दी की हनक काम आई और होटल के मैनेजर ने कड़क काफी बनाकर पनीर पकौड़े के साथ भिजवा दी। 20 मिनट बाद जब पैसे का पूछा तो सिपाही और मैनेजर दोनों एक दूसरे का मुँह देखने लगे। जोर जबर्दस्ती करने पर केवल 100 रुपए लेने को राजी हुए।


इतने पूरे रास्ते दीपेश ने ही गाड़ी चलाई। आगे की गाड़ी भी उसी ने चलाई । दूरी तो मात्र 200 किलोमीटर ही रही लेकिन कहीं भी गाड़ी 80 तक न पहुँच पाई। 6 बजते बजते हम दीपेश को उसकी मंजिल तक छोड़ चुके थे। शाम हो रही थी और डेहरी के बाद से नजारा काफी सुंदर हो चला था। कैमूर रेंज की पहाड़ियो में सूरज की रोशनी अच्छा इफेक्ट बना रही थी। इस बीच हमने सोन और फल्गु नदी पार कर ली। फल्गु वही नदी है जिसके किनारे गयाजी में पिंडदान होता है।

अब अकेले ही गाड़ी में फिर से थे हम। 30 मिनट बाद झारखंड पुलिस का नाका मिला। बिना कोई कागज देखे गाड़ी आगे बढ़ा दी। अब कुछ 60 किलोमीटर हमको अपनी मंजिल तक जाना था। 40 मिनट बाद एक स्थानीय बाजार चौपारण में प्रसिद्ध दुकान विष्णु के खीर मोहन पर थे।

जम के चार खीर मोहन खाये। गाड़ी आगे बढ़ाए बरही होते हुए डेढ़ घण्टे में हम झुमरी तलैया से 15 मिनट आगे कोडरमा सर्किट हाउस पहुँच चुके थे।
सर्किट हाउस में परिचायक ने हमसे भोजन और चाय के लिए पूछा । हमने मना कर दूध लाने के लिए उसको 100 रुपये का नोट दिया। उसने जरूरी सामान गाड़ी से उतारा और कमरे में रखा । हम नहाने को बाथरूम में घुसे ।
रात 10 बजे दीप विसर्जित करके हम सोने की तैयारी में थे। कल सुबह झुमरी तलैया की प्राकृतिक वादियों में घूमा जाएगा।

चित्र प्रसिद्ध विशनु खीर मोहन का ऊपर दिया गया है।

सत्यव्रत त्रिपाठी

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