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आपका -विपुल

विपुल


“भारत! “
“दैट इज़ इंडिया ब्रो !”
बगल में फिजिकल कैमिस्ट्री की किताब दबाये अपने स्मार्टफोन पर खजुराहो की मूर्ति देखते लूलू मॉल के महिला इनरवियर सेक्शन में मेरे आगे खड़ा हार्दिक पांड्या युगीन आधुनिक कालीन भारत का छपरी युवा एकदम कालीन भैया की टोन में बोला।
अपने दुबले पतले शरीर को हवा में उड़ने से बचाता हुआ वो लड़का नीली जीन्स सफेद कमीज और भूरे स्पोर्ट्स शू में था और उसके साथ एक सिगरेट जैसी पतली टाँगों वाला पतली जीन्स पहने ,ढीला ढाला मैरून टॉप पहने चीकोलाइट जंतु था जिसके बालों में उससे भी ज़्यादा कलर मिक्सर था जितने एशियन पेंट्स के कलर कार्ड में होते हैं।
ये जंतु नर था या मादा ?
मुझे समझ नहीं आ रहा था।
और मैं यहाँ महिलाओं के इनर वियर सेक्शन में क्या कर रहा था ?
ये वही पूँछे जो कभी भीषण गर्मी में खामख्वाह ऐसी की हवा खाने मॉल में गया न हो।

मेरे जैसे स्वघोषित हिन्दू हित रक्षक को ये बात अच्छी नहीं लगी कि ये भारत का युवा कॉलेज की क्लास छोड़ कर मॉल में घूमे ।इसलिए मैंने मोदी बनकर मन की बात कह ही दी।
“तुम्हारे मम्मी पापा को पता है कि कॉलेज छोड़कर तुम यहाँ हो ?”
वो लड़का बगुले जैसी गर्दन पर टिकी अपनी खोपड़ी हिलाता हुआ घोड़े की तरह हिनहिनाती आवाज़ में बोला ।
“क्यों नहीं अंकल ?मीट माय मॉम बेसुरा भागकर। “

दरअसल उस लड़के के साथ का वो जंतु मादा प्रजाति का था और उसकी मॉम था ।
बड़े स्टाइलिश अंदाज़ में उसने मुझसे हैलो कहा।
मैं सकपका गया।
“माँ बेटा ?”
“एक साथ ?
“वो भी महिला इनरवियर सेक्शन में ?”
“हे प्रभु !कहाँ जा रहा है मेरा भारत ?”

“वहाँ जा रहा है आपका भारत।

मैं चौंका ये लड़का मेरे मन की बात कैसे जान गया?


लेकिन वो मुझसे नहीं अपनी मॉम से बोला था।
मॉल का एक कर्मचारी भारत गैस एजेंसी का पोस्टर लिए कहीं चिपकाने जा रहा था।
लेकिन अभी और शॉक लगने थे मुझे।

“मॉम ! अंकल चौंक गये हैं।इन्हें असली बात बता ही देते हैं ।”
वो कनखजूरा बोला।
“अक्चुली सर !ये मेरी रियल मॉम नहीं हैं।ये मेरी फियांसी हैं हम दोनों की उम्र में करीब 18 साल का फर्क है।

इसीलिए इन्हें मॉम कहता हूँ ।ये कैमेस्ट्री की कोचिंग पढ़ाती हैं और मैं सॉफ्टवेयर डेवलपर हूँ।प्रज्वल कुमार और ये मेरी कम्पनी सैट नैश इन्फ्राटेक का कार्ड।कभी ज़रूरत पड़े तो बताइये।मैं आपके पीछे वाली कॉलोनी में ही तो रहता हूँ ।3 नंबर।
मेरा खून खौल उठा।उसकी फियांसी को फांसी दे देने का दिल हुआ।प्रज्ज्वल कुमार को जला देने का मन हुआ ।सैट नैश इन्फ्राटेक का सत्यानाश कर देने का मन हुआ।
वजह
जहाँ भी जाता हूँ ये भाऊ श्री के पड़ोसी ही मिल जाते हैं हर कहीं।
क्या करूँ ?
कानपुर छोड़ दूं ?

तत्काल प्रभाव से मैं वहाँ से निकला।हमेशा की तरह ओला की बुकिंग तीन बार कैंसिल होने के बाद ऑटो पकड़ कर चौक पहुंचा।


ठाकुर गंज जाना था।पहले पैदल ही दाब देता था।अब उम्र नहीं रही।
ठंडाई पीने का मन हुआ।चुपचाप पी ही रहा था कि पीठ पर एक चपत पड़ी।
“अबे चाचा ?”
मैंने पलट के देखा ,ये मेरा लगभग हमउम्र भतीजा था।मेरे बाबा और उनके छोटे भाई में बहुत सालों का गैप था।इसलिये हम चाचा भतीजों में ज़्यादा गैप नहीं था।
“घर क्यों नहीं आये ?लखनऊ घूम रहे ।बताया भी नहीं ?”
वो शिकायत कर रहा था और मैं मन ही मन खुद को कोस रहा था।
“साले अभी ठंडाई पीनी थी ।अब भुगत “।


अंदर दिल जलाते हुये ऊपर ऊपर मुस्कुराते हुये मैं बोला ।
“ऑफिस के काम से आया था ।अभी लौटना भी है ।”
वो शातिर मुस्कराहट के साथ बोला।
“अबे चाचा !यहाँ कौन सा ऑफिस है तेरा ?नींबू पार्क ?”


“नहीं !तुम गलत समझ रहे हो।”मैं बोला।
“ठाकुरगंज में पांडे जी रहते हैं न ।उनसे फाइल लेनी है।वो आज नहीं गये हैं ।तबियत खराब है।”
“कोई बात नहीं।उधर से निकल लेंगे।मोहान जाना है मुझे ।आज यहाँ घर पर रुकोगे।चाची को फोन कर दो ।”
उसने आदेश दिया।
मैं मिनमिनाया ,पर उसने ठंडाई का पेमेंट कर मुझे अपनी गाड़ी में धकेला।
अब पांडे जी नामके कोई व्यक्ति होने भी तो चाहिए थे न ?मैंने झूठमूठ फोन किया एक दोस्त को।वो मुझे गाली देता रहा।और मैं बोलता रहा।
“अच्छा अच्छा।आप इंदिरा भवन में मिलेंगे ?ठीक है।”
ये मेरा भतीजा उतना ही कमीना था ,जितना मैं।
जिंस तो एक ही थे न!
वो बोला कोई बात नहीं।मुझे भी इंदिरा भवन में काम है।
दसियों बहाने बनाकर अपने भतीजे से पीछा छुड़ाया।लेकिन वो मंद मंद मुस्कुराते हुये मेरे दिल की धड़कन बढ़ाता हुआ गया।
ठाकुर गंज के कल्याण गिरी मंदिर के बाहर

जब प्रोफेसर पांडे से जब मिला तो मुझे नहीं पता था कि मेरा और मेरे भतीजे का एक संयुक्त दोस्त मेरी फोटोज ले रहा है।
दरअसल प्रोफेसर पांडे का असली नाम सपना पांडे था ये एक आईबी ऑफिसर थीं और इनकी एक डिटेक्टिव एजेंसी भी थी।मेरी सहपाठी थीं।
मुझे अपने बॉस की दूसरी बीवी के बारे में पता लगाना था जिससे मैं उसे ब्लैकमेल कर सकूँ।
सपना की सहायता ली थी।
उधर से दुबग्गा होते हुए आलमबाग पहुंचा।बस पकड़ कर कानपुर।

घर पहुंच कर वो जूता लात ,वो गाली गलौज हुआ कि पूँछो मत।
अब रोड पर ,रेस्टोरेंट पर अच्छे कपड़े पहने एक वयस्क पुरुष एक वयस्क महिला की हंस हंस कर बात करते हुये फोटो ये थोड़े ही बताती है कि दोनों में केवल प्रोफेशनल रिलेशन हैं।


एक बात मुझे समझ में न आई अभी तक।
ये हर जगह मेरी जासूसी कौन करवाता है ?


आपका -विपुल

विपुल


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One thought on “लखनऊ यात्रा

  1. Aapki jasoosi Mudiji karva rahe hai lekin hame vishvas hai ki aap jaise kattar imaandar aadmi ke charitra me yeh log 1 bhi kala daag nahi dhund payenge.

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