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विपुल
आज मज़ाक नहीं
कार्तिकेय 2 का असली रिव्यू।
जिस गुरुदेव थियेटर में लगी है।वहाँ श्रीकृष्ण की झाँकी भी लगी थी ।
लोगों को आकर्षित करने के लिये विज्ञापन तकनीक हो सकती है ,पर क्या बुराई है ?भगवान का सहारा लेने में ?
कहानी
कहानी –
एकदम सीधी ।द्वारिका के एक पुरातत्व विज्ञानी डॉक्टर राव को ग्रीस में एक ऐसे कड़े के बारे में पता चलता है जो श्रीकृष्ण भगवान ने उद्धव जी को दिया था और इस कड़े में आने वाली महामारियों से बचने के औषधीय उपाय लिखे हैं।उद्धव जी ने ये कड़ा कहाँ छुपाया ,पता नहीं।डॉक्टर राव एक सीक्रेट सोसायटी के सदस्य हैं जिसका मुखिया शांतनु एक दुष्ट व्यक्ति है जो ये कड़ा पाना चाहता है।
हैदराबाद में एक युवा डॉक्टर कार्तिकेय है जो हर चीज़ की जानकारी के लिये उत्सुक है।विज्ञान मानता है।धर्म कर्म नहीं मानता।आईसीयू में हवन करने पर मेयर को थप्पड़ मारने के कारण सस्पेंड होता है और तब अपनी माँ के साथ द्वारिका आता है।
यहाँ रहस्यमयी तरीके से उसे घायल डॉक्टर राव टकराते हैं ,जो उसे कुछ बताना चाहते हैं पर किडनैप हो जाते हैं।
शांतनु कार्तिकेय के पीछे पुलिस लगा देता है और यहाँ डॉक्टर राव की पोती कार्तिकेय को बचा ले जाती है।
एक अभीर जाति से हमारा परिचय होता है ,जो बहुत खूँख्वार होते हैं।कृष्ण के पास किसी को जाने से रोकने के लिये मार भी देते हैं।जिनका एक व्यक्ति कार्तिकेय के पीछे पड़ जाता है।तमाम उतार चढ़ावों के बाद अच्छाई की जीत होती है।बुराई का विनाश।भगवान का कड़ा कार्तिकेय पा लेता है|
अभिनय
अभिनय -मुख्य भूमिका में निखिल और अनुपमा परमेश्वरन हैं।दोनों का अभिनय बहुत साधारण है।इनसे ज़्यादा अच्छा अभिनय कार्तिकेय के मामा और ट्रक ड्राइवर सुलेमान के पात्रों का अभिनय करने वाले अभिनेताओं का है।अनुपम खेर एक ही सीन में आकर महफ़िल लूट ले जाते हैं|
स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले
स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले –
स्क्रिप्ट बहुत अच्छी नहीं है ,पर खराब भी नहीं है।स्क्रीन प्ले चुस्त है ।अच्छा है।आपको बोरिंग नहीं लगेगा।फ़िल्म की स्पीड कभी बढ़ती नहीं तो कम भी नहीं होती।
एडिटिंग
एडिटिंग -फ़िल्म की एडिटिंग ज़बरदस्त है।यही फ़िल्म की यूएसपी है।साधारण सी फ़िल्म को एडिटिंग ने ही इतना रोचक बना दिया है|
संवाद
संवाद -बहुत सामान्य।कुछ भी विशेष नहीं।पर खराब नहीं हैं।कहीं भी अश्लील या द्विअर्थी संवाद नहीं हैं।
संगीत औऱ बैकग्राउंड म्यूज़िक
संगीत औऱ बैकग्राउंड म्यूज़िक -संगीत विशेष नहीं है।।पर बैकग्राउंड म्यूज़िक कुछ जगह वाकई बहुत अच्छा है।खास बात है कि बैकग्राउंड म्यूज़िक ने फ़िल्म की टोन पकड़ रखी है।
निर्देशन
निर्देशन – अच्छा है।चंदू मोंडती की मेहनत एक एक फ्रेम में दिखती है ।
मेरी रेटिंग
मेरी रेटिंग –
1 स्टार स्क्रीनप्ले के लिये
1 स्टार एडिटिंग के लिये
1 स्टार इस बात के लिये कि एक भी दृश्य या संवाद अश्लील नहीं।अनावश्यक प्रेम प्रसंग नहीं दिखाये।
यहाँ तक कि फ़िल्म में डॉक्टर राव की पौत्री की जगह पौत्र रख दिया जाता तो भी कहानी में फर्क बिल्कुल नहीं आता।
***
3स्टार
भगवान् की फिल्म थी |मज़ाक नहीं कर सकता था |आगे पुराने तरह के रिव्यू ही होंगे |
विपुल
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