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विपुल

विपुल

गोलू जी का पकड़ुवा ब्याह

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गोलू बहुत खुश था।
बिहार में फिर लालू प्रसाद यादव की सरकार आ गई थी।
मतलब लालू की नहीं ,उनके बेटे की सही।पूर्ण बहुमत से न सही, सझियारे वाली सरकार सही।
एक चौथाई गंजे हो चुके सर पर जुएं निकालने वाली कंघी चलाकर गोलू मुस्कुरा उठा।
“अब मेरा पकड़ुवा बियाह पक्का।”
तो लक्स टॉयलेट सोप से टॉयलेट में हाथ धोकर ,बालों में पतंजलि वाला सतरीठा शैम्पू लगाकर ,जॉनसन बेबी क्रीम होठों पर ,गाल पर लगाकर गोलू भाई पटना निकलने को तैयार हुए।

नीले रंग के झोले में गोलू भाई के ज़रूरी सामान थे।दो जोड़ी कपड़े, चड्ढी बनियान, गमछा, अखबार में लपेट कर चप्पलें,
ब्रश, पेस्ट ,साबुन।
सबसे जरूरी शीशा कंघा और कमलापसंद के तीन पाउच।

दिल्ली में गोलू भाई पिछले 3 साल से सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे।रहने वाले उन्नाव के हसनगंज के।
किस्मत ऐसी कि बाल विद्या मंदिर के बाद रस्तोगी बॉयज ओनली स्कूल फिर बनारसी दास से इंजीनियरिंग ।फिर दलहन टॉप में नौकरी।
ज़िंदगी के पूरे सफर में बस एक ही चीज़ की कमी थी।
कन्या !
जिस लड़के को सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई औऱ नौकरी में भी कन्या न मिले निश्चित तौर पर वो अपनी किस्मत सिगमंड के गधे के प्रोविडेंट फंड की कलम से लिखा के लाया होगा।मान लीजिए।

हसनगंज की नाइजीरियाई हीरोइनों से लेकर कनाटप्लेस की क्यूट कमसिनों तक कोई तो मिले ?
गोलू की उम्र 36 थी और गांव वालों के मुताबिक गोलू का काम पैंतीस हो चुका था।
“अब न होना बियाह गोलू का”
हसनगंज की ये हंसी चुभती थी गोलू को
खैर!
खुद को पॉश दिखाना था गोलू को जिससे ज़ल्दी कोई पकड़ ले ,तो गरीब रथ से चले।
गोलू की किस्मत!
पूरी गरीब रथ एक्सप्रेस में मादा प्रजाति नहीं पाई जा रही थी उस दिन।

गोलू के ठीक सामने की बर्थ पर दो तगड़े अधेड़ थे।बिहारी लग रहे थे।आँखों आँखों में गोलू को तौल भी रहे थे।
एक सफेद कुर्ता पहने तिलक लगाये व्यक्ति ने बातों बातों में गोलू से उसकी जॉब और कमाई के बारे में पूँछ लिया था।

ट्रेन पटना रुकी ।गोलू ने स्टेशन के पास के एक होटल में अड्डा जमाया।सहालगों का सीजन था।

शाम को बन संवर के निकले।

एक पार्टी लॉन में घुस गये ।
मुख्यद्वार पर ही गोलू का भव्य स्वागत,
“ताऊ जी आ गये दूल्हे के “
और फूलमाला गोलू के गले में।
गोलू कुछ समझते ,उसके पहले ही लड़की पक्ष वाले मिठाई से उसका मुँह भर चुके थे।
गोलू को लगभग घसीट के अंदर एक ऐसी रूम में ले आये।
यहाँ उन लोगों के हावभाव ही बदल गये।
तीन तमंचे और दो रामपुरी चाकू गोलू के सामने थे।
“तो चाचाजी !”
काला पठानी सूट पहने एक गोरे और हैण्डसम व्यक्ति ने गोलू के गाल पे तमंचे की नोंक रख के कहा।
“सारा माल कैश घड़ी अँगूठी तो आप हमें गिफ्ट करेंगे ही ,वो पता है ।बस एक छोटी सी मदद और चाहिये !”
“क्या ?”
गोलू हकलाते हुये बोला।
“इधर बहुत दिनों से लौंडा नाच नहीं हुआ ।और आपकी पर्सनॉलिटी इतनी अच्छी है कि पेटीकोट ब्लॉउज़ में बहुत जमेंगे ।चलिये ,थोड़ा
इंटर

टेंन

मेन्ट

हो जाये ।”

उस कमीने ने इंटरटेनमेंट को ऐसे रुक रुक के बोला कि गोलू की साँसे ही रुकने लगीं ।

“ये गंजा डांसर नाचते हुये खराब नहीं लगेगा क्या ?”गोलू ने खुद को बचाना चाहा ।

एक बिग अचानक गोलू के सर पर गिरी।

वो रात गोलू के जीवन की बड़ी कठिन रात थी।

छम्मा छम्मा से लेकर कुंडी मत खड़काओ राजा तक और टिप टिप बरसा पानी से चोली के पीछे क्या है जैसे सेंसुअस गानों पे घँटों डांस कर के गोलू सेन्सलेस हो चुका था।
गोलू अकेला नहीं था।उसके साथ दो तीन और लड़के थे।
सुबह 3 बजे डान्सपार्टी खत्म हुई।
चीनी कम चाय के साथ पार्ले जी बिस्कुट खाते हुये गोलू को पता चला।
यहाँ कोई शादी नहीं थी।
स्टेशन के पास के कई होटलों ,पार्टी लॉन्स में कई आपराधिक गिरोह ऐसी फ़र्ज़ी शादी पार्टी सहालगों में रखते हैं।
उनके मुख्य टारगेट ऐसे जन्मजात सिंगल लड़के होते हैं ,जो कहीं सेटिंग न हो पाने के बाद अंतिम आस बिहार के पकड़ुवा ब्याह में ढूँढते हैं।इन्हीं लड़कों को ये लूटते हैं ।इनकी पकड़ कर इनके घर वालों से फिरौती लेते हैं।नौटंकी पार्टियों में लड़कों की सप्लाई करते हैं।
गोलू तो ट्रेन पर चढ़ने के साथ ही इस गिरोह की नज़रों में आ गया था।
खैर अपना गोलू उन दरिंदों के चंगुल से छूट गया ,बस लगातार दस दिन उसके एटीएम से 25 हज़ार रुपये रोज निकलवाये गये।गोलू का शिकार
ढाई लाख की वसूली का माना गया था।इस गिरोह का सरगना रंजन सर के नाम से मशहूर था जो नियमों का बड़ा पक्का था।
ढाई लाख गोलू से वसूलने के बाद रंजन सर खुद गोलू को दिल्ली जाने वाली ट्रेन में रखने आये।
रखने?
क्या मतलब ?
भाई बोरी रखी ही जाती है न।
रंजन सर के गिरोह के दो व्यक्ति गोलू को बोरी में भर कर दिल्ली ले गये ।
गोलू के फ्लैट पहुँचे।वहाँ से कीमती सामान उठाया।।
5 साल हो गये।
गोलू अभी भी ब्लैकमेल हो रहा है।रंजन उसे उसके लौंडा नाच की तस्वीरों को दिखाकर ब्लैकमेल करता है, लूटता रहता है।
गोलू अभी भी सिंगल है।
दामोदर अपार्टमेंट में घर है।मेघनाद अपार्टमेंट में ऑफिस।
पूरे स्टाफ में मादा प्रजाति नहीं।
पकड़ुवा ब्याह भी नहीं हुआ।

दुःखद

विपुल

विपुल


नोट :-ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है ।किसी असली व्यक्ति ,वस्तु या स्थान से इसका कोई संबंध नहीं है।

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