साकेत अग्रवाल
गोदी मीडिया :- सत्य या मिथ्या
गोदी मीडिया की खोखली अवधारणा रची गई उन लोगों के द्वारा जो जीवन भर सत्ता की गोदी में बैठे रहे और मोदी सरकार के आने के बाद जिन्हें गोदी से उतारकर, सत्ता प्रतिष्ठानों से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
सत्य तो ये है कि गोदी मीडिया असल में एक मिथ्या के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। गोदी मीडिया, रविश कुमार और उसके जैसे प्रोपेगंडाबाज लोगों की बनाई हुई एक काल्पनिक दुनिया है जिसको “इधर” के भी बहुत से लोग सच मान बैठे हैं।
गोदी मीडिया वाला रविश कुमार का प्रोपेगंडा इतना सशक्त है कि वैचारिक मुद्दों पर मोदी सरकार से खार खाए बैठे “इधर” के कुछ लोग भी इस बात पर विश्वास करने लगे हैं कि गोदी मीडिया का अस्तित्व सच में है और ऐसे लोगों संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।
मैं, गोदी मीडिया को मिथ्या और रविश कुमार का बनाया हुआ कल्पना लोक क्यों कहता हूं इसके पीछे के दो कारण आपको बताता हूं।
अर्नब गोस्वामी को गोदी मीडिया मानने वाले जानते भी हैं कि मोदी सरकार के मंत्री जनरल(रि) वी.के.सिंह ने Presstitute शब्द का प्रयोग किसके लिए किया था? न रविश के लिए न राजदीप के लिए… मात्र और मात्र अर्नब गोस्वामी के लिए वो शब्द प्रयोग किया था।
India Today ग्रुप के आजतक को भी गोदी मीडिया कहा जाता है। ऐसे लोग India Today group के चैयरमैन अरुण पुरी को जानते भी हैं? क्या आप जानते भी हैं उसकी वैचारिक प्रतिबद्धताएं किस ओर है?
India Today group को गोदी मीडिया कहने वाले संभवतः अरुण पुरी का इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2018 का भाषण भूल जाते हैं जिसमें उसने राष्ट्रवाद को गरियाया है, बहुसंख्यकवाद को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है।
इस भाषण की विशेष बात ये है कि ये भाषण मोदी सरकार के समय दिया गया है। सोनिया गांधी की उपस्थिति में दिया गया है।
जिन्होंने वो भाषण नहीं सुना उनके लिए लिंक।कृपया नए टैब में खोलें नीचे दिया गया लिंक
अरुण पुरी को सुनने के बाद अभी भी आपको लगता है कि भारत में गोदी मीडिया नाम की भी कोई मीडिया है तो भाईसाहब मैं आपसे कहूंगा कि मोदी सरकार से वैचारिक मुद्दों पर धोखा मिलने के बाद आप रविश कुमार के प्रोपेगंडा का शिकार हो गए हों। आप आवेश में आकर रविश कुमार जैसे प्रोपेगंडाबाज के झूठ को भी सच मान रहे हो। आप रविश की बनाई काल्पनिक दुनिया में जीने लगे हो।
गोदी मीडिया को सच मानने वाले इन प्रश्नों का उत्तर दें कि
क) गोदी मीडिया ने कभी केजरीवाल से या आम आदमी पार्टी से या भंगवत की पंजाब सरकार से पंजाब में आंदोलन करते किसानों पर प्रश्न क्यों नहीं पूछा?
ख) गोदी मीडिया ने गुजरात के पाटीदार आंदोलन को तो विशेष प्राथमिकता से दिखाया था लेकिन पंजाब के किसान आंदोलन पर क्यों चुप्पी साध रखी है?
ग) गोदी मीडिया ने दिल्ली के प्रदूषण और पंजाब में जलती पराली पर कितने प्रश्न केजरीवाल/ आम आदमी पार्टी से पूछे?
घ) गुजरात जाकर कथित “दिल्ली मॉडल” का ढोल पीटने वालों के सामने, गोदी मीडिया ने, साबरमती रिवर फ्रंट और यमुना नदी की तुलना क्यों नहीं की?
कभी विचार करिएगा की गोदी मीडिया की आड़ में किसी और को तो कवर फायर नहीं दिया जा रहा।
विचार करिएगा इस बात पर भी गोदी मीडिया को गढ़ने वाले इसकी आड़ में कहीं अपने कुकर्मों पर तो पर्दा नहीं डालना चाहते।
मोदी सरकार की वैचारिक मुद्दों पर अकर्मण्यता पर विरोध अच्छी बात है बिलकुल किया जाना चाहिए लेकिन अपने आंख नाक कान और विशेषकर दिमाग को खुला रखते हुए किया जाना चाहिए।
विशेष नोट :- इस लेख के माध्यम से मैं मीडिया का बचाव बिलकुल भी नहीं कर रहा। बस ये बताने का एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूं कि गोदी मीडिया नाम की कोई मीडिया नहीं है जैसा “इधर” के कुछ लोग मान बैठे हैं।
साकेत अग्रवाल
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