भारतीय क्रिकेटर नहीं समझेंगे
लेखक -विपुल
देश के लिये खेलना क्या होता है ?
किसी ओलंपियन से पूँछिये।
यूसेन बोल्ट के साथ योहानन ब्लैक भी दौड़ता था और भी कई दौड़ते थे ।कुछ मिलिसेकण्ड का अंतर रहता था ,बोल्ट जीतता था।और इन कुछ मिली सेकेंड के अंतर से हारने वाले एथलीट भी जान लगा देते थे।
ओलंपिक में जीतने पर मिलता क्या है ?
एक सोने की धातु का पानी चढ़ा हुआ पदक ,कुछ तालियां और कुछ वाहवाही।।
मिलियन डॉलर नहीं मिलते।
क्रिकेटर्स की तरह या टेनिस या फुटबॉल खिलाड़ियों की तरह।
इसे दूसरी तरह से बोलें ?
तमाम पैसा कमाने ,लीग मैचों में तमाम गोल करने वाले क्रिस्टियानो रोनाल्डो की हैसियत आज भी फुटबॉल विश्व में ब्राज़ील के रोनाल्डो नज़ारियो डी लीमा से कम है जिसने 1998 और 2002 के फुटबॉल विश्वकप में धूम मचा दी थी और 2002 फुटबॉल विश्वकप में दो गोल करके मैन ऑफ द मैच रहा था।
लीग मैचों में हज़ारों गोल करने वाले लियोनेल मेसी की अर्जेन्टीना में ही 1986 फुटबॉल विश्वकप विजेता डिएगो माराडोना से ज़्यादा वकत नहीं है।
बल्कि कई लोग तो 1998 फुटबॉल विश्वकप विजेता
जिनेदिन ज़िदान को ही मेसी और रोनाल्डो से ज़्यादा ऊंचा आंकते हैं।
वजह ?
ज़िदान और मैराडोना का महत्वपूर्ण योगदान था अपनी अपनी टीमों को विश्वकप जिताने में।और सारी खूबियों के बावजूद मेसी और रोनाल्डो विश्वकप नहीं जीत पाये।
स्टेफी ग्राफ ,आंद्रे आगासी और सेरेना विलियम्स टेनिस के इतने बड़े खिलाड़ी रहे हैं कि ओलंपिक पदक न जीतने से इनकी महानता कम नहीं होती।
लेकिन इन सबने ओलंपिक खेला भी और जीतने के लिए जान भी लगाई।स्वर्ण पदक जीतने तक आम खिलाड़ियों की तरह सारी सुविधाएं छोड़ कर खेल गांव में भी रहे।
जर्मनी के सुपरस्टार टेनिस खिलाड़ी बोरिस बेकर और माइकल स्टिच में तो ओलंपिक 1992 के दौरान शायद खेल गांव में रहने के दौरान मामूली चीज़ों पर झगड़ा भी हुआ था।
शायद 1992 में ही बास्केटबॉल को ओलंपिक में शामिल किया गया और अमेरिका के इस बेहद लोकप्रिय और पैसे देने वाले खेल के सुपरस्टार खिलाड़ी देश के नाम पर ओलंपिक खेले
आल स्टार एन बी ए टीम के सभी खिलाड़ी पैसे नहीं देश के लिए खेले।जबकि बास्केटबॉल लीग खेल में बहुत पैसा मिलता है इन खिलाड़ियों को।
और ज़्यादा दूर नहीं ले जाऊंगा।
पीवी सिंधु ,साइना नेहवाल ,चिराग शेट्टी ,पी कश्यप ,एच एस प्रणय ,सात्विक।
ये सब बैडमिंटन खिलाड़ी जान लगा देते हैं एक एक अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट के लिये।
साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में भारतीय दबदबे की शुरुआत की।पीवी सिंधु ने उस दबदबे को बरकरार रखा।
बैडमिंटन लीग भी भारत में शुरू हुई थी।पर इनका ध्यान नहीं भटका।ओलंपिक पदक हैं इनके पास।
और थॉमस कप दरअसल बैडमिंटन का विश्वकप ही है जिसे चिराग जैसे पुरूष बैडमिंटन खिलाड़ियों ने जीत कर हम सबको हतप्रभ कर दिया।
कितनी इनामी राशि होती है थॉमस और उबेर कप की ,मुझे नहीं पता ।पर क्या ऐसे कप पैसों से तौले जा सकते हैं ?
अब असली बात पर आते हैं।भारत की क्रिकेट टीम लगातार दो मैच हार कर एशिया कप 2022 से बाहर हो गई।पहला मैच टीम इंडिया पाकिस्तान से हारी, दूसरा श्रीलंका से।
मैच में हार जीत चलती ही रहती है, पर हारने के तरीक़े और खिलाड़ियों के हाव भाव बहुत कुछ बता देते हैं।
भारत पाकिस्तान मैच की खास बात ही जोश ,जुनून ,उफनती भावनाएं और जीतने के जज्बे से सरोबार खिलाड़ी और उनके पीछे उनके देश की जनता की तालियां और गालियां होती हैं।अच्छा खेलने पर भारतीय क्रिकेट प्रशंसक बेभाव प्यार देते हैं जैसे 1998 में पाकिस्तान के खिलाफ अंतिम ओवर में चौका मार कर भारत को जिताने वाले हृषिकेश कानितकर हीरो बन गए थे।
और मियांदाद से आखिरी गेंद पर छक्का खाकर भारत को मैच हरा देने वाले चेतन शर्मा को आज भी लोग गालियाँ देते हैं।
लेकिन क्या आपको इस वॉक इंडियन टीम के खिलाड़ियों को पाकिस्तान से हारने के बाद बेशर्मों की तरह हँसते हुये पाकिस्तान के क्रिकेटरों को मुस्कुरा कर गले मिलते देख गुस्सा नहीं आती ?
मुझे श्रीलंका बनाम ऑस्ट्रेलिया का एक मैच ध्यान है।333 रन ऑस्ट्रेलिया ने बनाये।श्रीलंका तब कमज़ोर टीम हुआ करती थी।असंका गुरुसिंहे ने शतक लगाया था।49.5 ओवर में श्रीलंका 329 पर था।अंतिम गेंद पर श्रीलंका को 4 रन बनाने थे लेकिन गुरुसिंह नहीं बना पाये।
गुरुसिंह फूट फूट कर रोये थे।
विनोद कांबली 1996 विश्वकप सेमीफाइनल में भारत के श्रीलंका के खिलाफ मैच में श्रीलंका को मैच रोक कर विजयी घोषित करने के बाद फूट फूट कर रोये थे।
वेस्टइंडीज और अफगानिस्तान के खिलाड़ियों में तो ये सेंटीमेंट्स तब भी दिख जाते हैं ।कहने को तो बहुत कुछ है।आईपीएल को भी मैं बुरा नहीं मानता।ज़रूरी है पैसा भी लेकिन देश के लिये खेलते समय भावनायें अलग तरह की होनी चाहियें।
बात यहां खत्म करना चाहूंगा ।
आखिरी बार किस भारतीय क्रिकेटर की आँखों में मैच हारने के बाद आँसू देखे थे ?
आपका -विपुल
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