राहुल दुबे
मुगलों ने पूरे भारत पर राज किया, उन्होंने ही भारत को एकसूत्र में पिरोया ऐसी मीठी लेकिन जहरीली बातें आपने कही न कही सुनी या पढ़ी जरूर होंगी।।
हमें आजतक यही पढ़ाया गया है कि कैसे मुगलों ने अयोग्य राजाओं को युद्ध में हराकर उनके राज को सुचारू ढंग से चलाया ये सिर्फ मुगलों की नही हर इस्लामी आक्रांता के लिए यही चीजे लिखी गयी है, मोहम्मद गजनवी के प्रिय दास कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत में लाख बख्श की उपाधि दी गयी है, और ये सब किसी ने मजाक में नही कहा है, बकायदा हमारे किताबो में पूरे गर्व के साथ इन चीजों को लिखा गया है।
और इन इस्लामी आक्रांताओ विशेषकर मुगलों की तारीफ में तथाकथित इतिहाकारो, शिक्षाविदों ने इनलोगो की शर्मनाक से शर्मनाक हार को या तो हमसे छिपा दिया है या फिर उसको इतना अप्रासंगिक कर दिया है कि कोई उसपर ध्यान ही न दे।।
मुगलों को भारत में अनेकों पराजय का सामना करना पड़ा वे कभी अखंड भारत पर कब्जा नही जमा सके लेकिन उनके पराजय की कहानियां गायब ही है।।
अहोम साम्राज्य का नाम शायद ही उतने लोगो के जुबाँ पर होगा जितना लोग ख़िलजी , तुगलक, सैय्यद, मुगल आदि को जानते है।।
अहोम साम्राज्य आज का असम है, अहोम को कब्जाने के चक्कर में मुगलों को 17 हार का सामना करना पड़ा, अहोम साम्राज्य 600 वर्षो तक रहा।
आज की कहानी उसी साम्राज्य के एक वीर योद्धा Lachit(लचित) Borphukan( बोरफुकन) की है जिसने औरंगजेब की सेना को सब्जियों की तरह काटा था, Lachit Borphukan का जन्म 1622 में अहोम साम्राज्य की पहली राजधानी Charaideo में हुआ था, लचित बोरफुकन (Lachit Borphukan) अहोम साम्राज्य की सेना के कमांडर थे, और लचित बोरफुकन (Lachit Borphukan) के शौर्य का सबसे शानदार प्रदर्शन हुआ सरेघाट (Saraighat) के युद्ध में, सरेघाट (Saraighat) के युद्ध की भूमिका 1663 में अहोम राजा जयध्वज सिंघा और मुगलों के बीच हुए हिलजरीघाट के शर्मनाक समझौते ने रच दी थी जिसके तहत अहोम साम्राज्य को गढ़गांव को वापस पाने के लिए राजा को अपनी एक पुत्री को मुगल साम्राज्य के हरम में, 90 हाथी, 3 लाख तोला चांदी और बरेली नदी का पश्चिमी हिस्सा, ब्रह्मपुत्र नदी का उत्तरी किनारा और दक्षिण का कलंग दिल्ली दरबार को गंवाना पड़ा । इस अपमान के कारण राजा जयध्वज सिंघा की मृत्यु हो गयी।।
उनके उत्तराधिकारी चक्रध्वज सिंघा ने अहोम साम्राज्य को उसका खोया वैभव वापस दिलाने की कसम खाई और वह यही समय था जब लचित बोरफुकन (Lachit Borphukan) को अहोम साम्राज्य की सेना का कमांडर बनाया गया।।
लचित बोरफुकन (Lachit Borphukan) ने अटन बोर्होगेहं के साथ मिलकर अगस्त 1667 में ब्रह्मपुत्र नदी के निचले हिस्से को अपने कब्जे में लेकर गुवाहाटी को वापस लेने की कोशिश तेज कर दी।
नवंबर 1667 के अंत तक लचित बोरफुकन (Lachit Borphukan) ने नदी युद्ध (River Warfare) के बलबूते गुवाहाटी के मुगल प्रशासक फिरोज़ खान को बंदी बना लिया था।
और इस शर्मनाक हार का बदला लेने के लिए पूरे भारत पर कब्जा जमाने की चाह रखने वाले इस्लामी आक्रांता औरंगजेब ने राजा राम सिंह के नेतृत्व में फरवरी 1669 में एक विशाल सेना गुवाहाटी की तरफ भेज दी, जिसमे 30 हजार पैदल सैनिक, 21 राजपूत सेनाध्यक्ष अपने पूरे दल के साथ, 18 हजार घुड़सवार सैनिक और 40 पानी की जहाजे थी।
लचित बोरफुकन और अहोम की सेना औरंगजेब की सेना के सामने सँख्याबल में बहुत कमजोर थी, लेकिन यही वक्त था लचित के अपने बुद्धिमत्ता का परिचय देने का , मुगलों की सेना आमने सामने की लड़ाई में मजबूत थी और अहोम की सेना नौसेना युद्ध में मजबूत थी।।
अलैबोई के युद्ध में अहोम सेना पहले ही अपने 10 हजार जवान गंवा चुकी थी, और अब औरंगजेब की सेना ने अपनी पूरी ताकत के साथ गुवाहाटी पर हमला कर दिया था, लेकिन अपन लचित ने बीमार होने के बावजूद भी, पूरे ताकत के साथ मुगलों की सेना को दोनों तरफ से जोरदार हमला किया पानी और जमीन पृथ्वी के दोनों हिस्सों पर लड़े गए इस भयानक युद्ध में मुगलों के करीब 4 हजार जवान मारे गए , उनकी सेना का एडमिरल मुन्नवर खान भी मारा गया, मुन्नवर की मौत ने औरंगजेब की सेना को बुरी तरह से डरा दिया था उनकी नौसेना पूरी तरह से टूट चुकी थी और इस कारण उन्हें अहोम साम्राज्य के सबसे अंतिम छोर पर भागना पड़ा और इस युद्ध ने तय कर दिया था कि अब मुग़ल आसाम में अपना साम्राज्य नही स्थापित कर पाएंगे।।
बीमार लचित बोरफुकन की बहादुरी ने मुगलों की सेना को सब्जियों की तरह काटा था, 1999 से NDA( राष्ट्रीय सैन्य अकादमी ) में सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लचित बोरफुकन (Lachit Borphukan) गोल्ड मैडल मिलता है, लेकिन इसके बावजूद लचित बोरफुकन की कहानी हर हिंदुस्तानी के जुबाँ पर नही है, लचित बोरफुकन की कहानी हमें बताती है कि कैसे बुद्धिमता और बहादुरी के बल पर हम बड़े से बड़े शत्रु को हरा सकते है, सरेघाट (Saraighat) के युद्ध में मुगलों की हार यह दर्शाती है कि मुग़ल भारत में अजेय नही थे, उन्हें हर जगह मुंह की खानी पड़ी थी लेकिन फिर भी इन मुगलों को बेशर्म इतिहाकारो ने खूब महिमामंडित किया, और लचित बोरफुकन जैसे योद्धाओं को आमजन की पहुंच से दूर कर दिया ताकि हम आज भी इसी मुगालते में रहे कि मुगलों ने हम पर राज किया और हरम चलाने वाले वे हवसी दरिंदे भारत के निर्माता थे।।
आज हम मुगलों के नकली वंशजो का जो भी सड़को पर आतंक देख रहे है, और उन मुगलों को अपना अघोषित पिता मानने वाले बुद्धिजीवी जिस प्रकार से सर तन से जुदा के नारे लगा रहे है, हमें आवश्यकता है कि हम लचित बोरफुकन (Lachit Borphukan) जैसे योद्धाओं की कहानी घर घर पहुंचाए और हम इस मानसिक दिवालियेपन से अपनी जनता को निकाल सके । उन्हें समझा सके 600 वर्षो तक समृद्ध रहने वाला अहोम साम्राज्य भी इन आक्रांताओं से समझौता करके अपमानित हो चुका था और उस अपमान से वे उबर के लचित बोरफुकन और अटन बोर्होगेहं जैसे योद्धाओं को तैयार किया जिन्होंने मुग़लो को उनकी औकात बताई।।
कुछ तथ्य-
- अहोम साम्राज्य को तहस नहस करने में औरंगजेब की सहायता हिन्दू सेनाध्यक्षों ने ही करी थी, औरंगजेब की विशाल सेना का नेतृत्व एक हिन्दू राजा राम सिंह ही कर रहा था।
- मुगलों/ इस्लामी आक्रांताओं ने यदि भारत मे 1% टुकड़े पर भी राज किया है तो उसका कारण हिन्दुओ में एकता न होना ही है।
- हम आज भी इतिहास से सीख न लेकर बंटे हुए है, तब बंटने का कारण राज सिंहासन था और आज बंटे होने का कारण राजनीति है, सत्ता की लालच है,
उनका लक्ष्य कल भी वही था, हिन्दुओ की सरजमीं पर कब्जा और काफिरों को जड़ से साफ करना और उनका आज का लक्ष्य भी लगभग वही है, हिंदुस्तान पर हिन्दू हिन्दू को अलग अलग मुद्दों पर लड़ाकर स्वयं राज करना।। जैसे उस समय राजा राम सिंह जैसे लोग उनका साथ देते थे, आज वही राजा राम सिंह बुद्धिजीवियों के भेष में है।।
मुझे नही पता यहां तक पढ़ते हुए कोई व्यक्ति आएगा भी नही, लेकिन मैं बस इतना समझता हूं कि एक व्यक्ति को अपना गिलहरी प्रयास नही त्यागना चाहिए क्योंकि आस्तित्व की लड़ाई के योद्धा हम सभी है, सिर्फ वोटों की राजनीति करने वाले चंद लोग नही।।
जय सनातन।। जय हिंद।।
राहुल दुबे
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Nice writes
Keep it up bhai ❤️
जयघोष होना चाहिए
परन्तु हमें मानसिक दिवालिया बना दिया गया है