आपका विपुल
लखनऊ के बंगला बाजार में जन्म लेने वाले बुल्ला भैया जब बोलना भी नहीं सीख पाए थे, तब से जय श्रीराम के नारे पर दिल खोल कर चिल्लाते और डांस करने लगते थे।
रामभक्त बुल्ला भैया को पहली कक्षा में ही उनका पहला प्यार मिल मिल गया था। त्वरा पाटकर के रूप में।
जुलाई के महीने की दूसरी ही तारीख थी जब प्राथमिक विद्यालय डालीगंज में क्लास टीचर विमला राधाकृष्णन ने बुल्ला भाई को लड़कियों वाली बेंच पर बैठने की सजा सुनाई थी और पूरी क्लास में उपहास का और पात्र बने हुए बुल्ला भैया की गीली आंखों को किसी ने पोंछा था और नाक पोंछने को अपना रुमाल दिया था तो वो त्वरा पाटकर ही थी।
उस दिन त्वरा की आंखों में पता नहीं बुल्ला भैया ने क्या देख लिया था कि एकदम लट्टू ही हो गए थे उस पर।
कच्ची उम्र में ही पक्के दोस्त बन चुके थे बुल्ला और त्वरा।
बिजली विभाग के कनिष्ठ लिपिक के बेटे और एक एयरफोर्स अफसर की बेटी की दोस्ती के चर्चे मशहूर हो चुके थे ऐशबाग से कैसरबाग तक और लाल कुंआ से नाका हिंडोला तक।
कक्षा 8 तक आते आते बुल्ला भैया कई बार त्वरा पाटकर के मलीहाबाद में स्थित आमों के बाग में घूम आए थे और त्वरा ने बुल्ला भैया के सुल्तानपुर रोड के पुश्तैनी खेतों में उगते खीरों की खेती के बारे में भी जान लिया था।
कुछ ऐसा वैसा मत सोच लेना।
ये अश्लील कहानी नहीं है।
दरअसल बुल्ला भैया के पुश्तैनी खेत सुल्तानपुर रोड पर थे और मलीहाबाद में त्वरा पाटकर के पिता सी एच पाटकर ने एक दस बीघा का आमों का बाग खरीद रखा था।
और बुल्ला भैया के पिताजी और एयरफोर्स अफसर सी एच पाटकर अपने बच्चों की दोस्ती के कारण दोस्त हो चुके थे और एक दूसरे के खेत और बाग जाते रहते थे।
लेकिन बुल्ला भैया के पहले प्यार का पंचनामा पांचवी कक्षा पास करते ही हो गया, जब त्वरा के पिता का ट्रांसफर मुंबई हो गया। और बुल्ला भैया का एडमिशन डीएवी इंटर कॉलेज में।
और जैसा कि डीएवी कॉलेज की परंपरा थी कि एडमिशन के बाद इलेक्शन और फिर एग्जाम।
पढ़ाई के लिए बुल्ला भैया स्कूल के बाद ट्यूशन पढ़ते थे सक्सेना मासाब से और स्कूल टाइम में जुए बाजी , पत्तेबाजी और सट्टेबाजी सीखते थे डीएवी कॉलेज की परंपरा के अनुरूप।
लेकिन बुल्ला भैया ने न कभी छिनरई की , न कोई नशेबाजी।
अब रोटी में आयोडेक्स चुपड़ के खाना नशा थोड़ी न कहा जाएगा
और मीठे लड़कों के साथ छुआ छुऔरी खेलना छिनरई की श्रेणी में नहीं आता विशेषज्ञों के अनुसार।
अटल बिहारी की सरकार थी और इण्डिया शाइनिंग का माहौल बनने के पहले वाला कारगिल युद्ध था। रामभक्त बुल्ला भैया एबीवीपी के आधे मेंबर थे और देशभक्ति की भावनाएं ज्वार पर थीं , तब दस हज़ार रुपए चंदे के इकट्ठे कर राहत कोष में दान कर देशभक्ति दिखाने के बाद भी बुल्ला भैया और उनके दस दोस्तों को पुलिस उठा ले गई थी।
वजह?
कट्टा दिखा कर चंदा थोड़े न वसूला जाता है, वो भी बिना रसीद दिये।
एसएचओ भ्रमिताभ टैगोर ने बुल्ला भैया और उनके साथियों को औंधा लिटा कर पटा निकाला ही था बजाने को कि तभी उनकी बीबी न्यूटन टैगोर थाने में थीं।
भ्रमिताभ टैगोर एक रिश्वतखोर एसएचओ था जो अपनी बीबी न्यूटन टैगोर के साथ मिलकर एक एनजीओ चलाता था, जिसका काम सरकारी अधिकारियों को फंसा कर ब्लैकमेल करना था।
न्यूटन के कई कॉन्टैक्ट राजनेताओं और पत्रकारों से थे , ये एक पूरा रैकेट था जिसके कई प्यादे थे।
न्यूटन टैगोर का वो जलवा था कि किसी ने उसे नहीं रोका टॉर्चर रूम में जाने से। वो बात तो कुछ और करने आई थी , पर बुल्ला भैया को देख कर चौंकी।
और फिर कुटिलता से मुस्कुराई।
“ये लड़का एक सरकारी अधिकारी का लड़का है। अच्छा शिकार फंसा है।”
लेकिन न्यूटन टैगोर की खुशी ज्यादा देर नहीं टिक पाई।
बुल्ला भैया के पिता ने अपने दोस्त एयरफोर्स ऑफिसर सी एच पाटकर को फोन करके मदद मांगी थी और सी एच पाटकर का फोन भ्रमिताभ ठाकुर के पास आ गया था बुल्ला भैया को छोड़ने के लिए।
बुल्ला भैया को छोड़ना ही था भ्रमिताभ टैगोर को ।
क्योंकि एक तो मानवता कोई चीज होती है दूसरा दोनों एक ही रैकेट के थे ।
बुल्ला भैया के पिता जी बुल्ला भैया से बहुत नाराज थे और उधर सी एच पाटकर ने बुल्ला भैया के पिताजी से कहा कि वो अगर बुल्ला भैया को मुंबई भेज दें तो उन्हें आईटीआई करवा के जूनियर इंजीनियर लगवा देगें रेलवे में।
बस बुल्ला भैया को लाद दिया गया पुष्पक एक्सप्रेस में उनके पिताजी द्वारा।
सी एच पाटकर के हवाले बुल्ला भैया को छोड़ उनके पिताजी लौट आए मुंबई से । हां रास्ते में बुल्ला भैया को उनके पिताजी ने भूखा नहीं रखा था। पेट भर खिलाया था।
घूंसे, लात, थप्पड़,जूते।
बस बेल्ट नहीं पड़ी थी।
दरअसल गाड़ी में जगह नहीं थी, भीड़ बहुत थी न , बस इसलिए।
बुल्ला भैया को सर्वेंट क्वार्टर में एक रूम दे दिया था सी एच पाटकर ने।
त्वरा अब तक दिखी नहीं थी बुल्ला भैया को ।अगले दिन दिखी।
त्वरा जवान हो रही थी और हसीन भी। लाल स्कर्ट , सफेद ब्लाउज।
वो उनके लिए खाना लाई थी।
पर ये क्या?
ये तो नॉनवेज था ।
बुल्ला भैया ने त्वरा से कहा, वो नॉनवेज नहीं खाते। उसको तो पता ही है।
त्वरा बोली उसके घर में केवल नॉनवेज ही बनता है।
अगर बुल्ला को वेजिटेरियन खाना है तो खुद लाए, खुद बनाए, वरना घर से निकल जाए।
त्वरा का ये रुप देखना कष्टदाई था बुल्ला भैया के लिए।
वो तो सैकड़ों सपने संजो के आए थे त्वरा से मिलने के और त्वरा ने उनके साथ वही किया था जो लाली ने केजरीवाल के साथ किया था।
“थप्पड़?”
“नहीं,अपमान।”
बुल्ला भैया त्वरा से दूर नहीं रहना चाहते थे।मजबूरी में स्टोव, आटा दाल लेकर आए और खुद खाना बनाने की कोशिशें शुरू कर दीं।
सर्वेंट क्वार्टर में रहने वाले बुल्ला भैया सुबह 9 बजे घर से निकल कर 3 बजे वापस आते थे। त्वरा के घर के छोटे मोटे काम कर देते थे जैसे झाड़ू पोंछा सफाई वगैरा।
लेकिन नौकर नहीं थे वो।
दरअसल इसी बहाने वो अपने प्यार को देख सकते थे।
लेकिन इस प्यार में दरार आई जब त्वरा के घर में आया तनुराग तस्कर।
तनुराग तस्कर दरअसल तस्कर नहीं था,उसका सरनेम टस्कर था।जो अंग्रेजी से हिंदी में आते आते तस्कर हो चुका था वैसे ही जैसे इंगलिश का jha 2 हिंदी में आते आते झाटू हो जाता है।
तनुराग तस्कर त्वरा की मौसी की ननद की ननद की जेठानी की चाची का गोद लिया लड़का था जो जेएनयू में जेनरेटर मिस्त्री हुआ करता था लेकिन एक दिन उसने मेरा ईशु ईशु कार्यक्रम में अपना दीन धर्म और ईमान बदल लिया था और अमीर हो गया था, दाढ़ी बढ़ा ली थी, जेनरेटर चलाता था तो फक फक बोल ही लेता था।जींस के ऊपर कुरता पहनना पसंद करता था और नहाने को न बोल चुका था।
मतलब पक्का इंटलेकचुअल था।
तनुराग तस्कर को इतनी फंडिंग होने लगी थी कि वो अब फिल्म लाइन में आने की सोचने लगा था।
त्वरा के घर में पोंछा लगाते लगाते बुल्ला भैया गौर करने लगे थे कि त्वरा आजकल फिल्म हीरोइन की तरह बरताव करने लगी है। तनुराग उसे बहुत रिहर्सल करवाता है और त्वरा भी बुल्ला भैया को छोड़ तनुराग को प्राथमिकता दे रही है।
बुल्ला भैया अभी त्वरा को और प्राथमिकता देते उसके पहले ही सी एच पाटकर का ट्रांसफर दिल्ली हो गया। जिस बंगले में पाटकर रहते थे उसके सर्वेंट क्वार्टर से बुल्ला भैया को निकलना पड़ा। जाते जाते त्वरा बुल्ला भैया को गुडबाई किस और एक रुमाल दे गई थी कि उसे तब इस्तेमाल करे जब त्वरा की याद आए। अभी नहीं ।
मतलब त्वरा अब भी उन्हें चाहती थी। बुल्ला भैया की आंखों में आंसू थे। उसी रुमाल से पोंछ लिये।
जाते जाते सी एच पाटकर बुल्ला भैया को धारावी की एक झुग्गी झोंपड़ी में ठहरा गए थे।
आईटीआई बाकी था अभी बुल्ला भैया का, इलेक्ट्रिकल ट्रेड से।
बुल्ला भैया एक शरीफ और इज्जतदार लड़के की तरह अपनी आईटीआई पूरी करने लगे। रोटी में आयोडेक्स चुपड़ कर खाने, और क्रिकेट पर सट्टा लगाने के अलावा उन्हें कोई और गंदी आदत नहीं थी।
मुंबई में रहने के बावजूद ड्रग्स से दूर थे, अब छिपकली की पूंछ से ज्यादा नशा तो वैसे भी नहीं होता न ड्रग्स में। दारू नहीं पीते थे। अकेले रहते थे पढ़ाई करते थे। आईटीआई पूरी की मुंबई से।
ये आईटीआई सुल्तानपुर से भी हो सकती थी अगर बुल्ला भैया उस रोज पकड़े न जाते।
बुल्ला भैया जब आईटीआई का डिप्लोमा लेकर घर लौटे तो उनके पिताजी ने तुरंत ही उनके रिश्ते की बात शुरू कर दीं। बाराबंकी और रायबरेली से बहुत से रिश्ते आए लेकिन बुल्ला भैया ने अपने पिताजी से कह ही दिया।
“मैं शादी तभी करूंगी , जब अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊंगी।”
“करूंगी ?”
“खाऊंगी?”
“क्या है ये?”
बुल्ला भैया के पिताजी ने पूंछा।
“आई एम फेमिनिस्ट “
बुल्ला भैया गर्व से बोले।मुंबई में 3 साल रहने का परिणाम था ये ।
फिर बुल्ला भैया कई दिन अपने पैरों पर खड़े नहीं रह पाए।
मारा कम और घसीटा ज्यादा उनके पिताजी ने।
बस एक दिन उनके पिताजी को आवश्यक काम से आऊट ऑफ़ स्टेशन जाना पड़ा और बुल्ला भैया लखनऊ जंक्शन पहुंच गए।
साबरमती एक्सप्रेस
गुजरात
उतरे ही थे गुजरात में कि भूकंप आ गया।
कोहनी में चोट आई थी
इतनी अच्छी सरकार थी कि पहले 3 दिन अस्पताल में भर्ती रखा फिर एक फैक्टरी में बल्ब बदलने की नौकरी दे दी गुजरात सरकार ने।
बस रहने का इंतजाम खुद करना पड़ा बुल्ला भैया को।
एक कमरा बड़ी मुश्किल से मिला। उसमें दो रूम पार्टनर और थे उनके।
फकीर सिंह
निर्मल तिवाड़ी
तिवाड़ी ? के तिवारी?
तिवाड़ी भाई। तिवाड़ी
राजस्थान से था न।
फकीर सिंह काले रंग, ठिगने कद और अधगंजा अधेड़ आदमी था जो साउथ स्टार महेश बाबू का बड़ा फैन था। और निर्मल तिवाड़ी दुबला पतला और लंबा कुपोषण का शिकार युवक था जिसके आंखों के नीचे के काले धब्बे और शरीर पर दिखती नसें गवाही देती थीं कि इस आदमी ने अपने तन की हानि बहुत की थी।
फकीर सिंह और निर्मल तिवाड़ी एक दूसरे को फसी और निरमू बुलाते थे सो बुल्ला भैया भी उन्हें फसी और निरमू बुलाने लगे।
फसी एक ट्रक ड्राइवर था जिसने सीए की फर्जी डिग्री बनवा रखी थी और निर्मू उसका क्लीनर।
संपूर्णानंद संस्कृत विद्यालय से शास्त्री की डिग्री चुराकर लाने वाला निर्मू हिंदी गालियों का उतना ही बड़ा विशारद था जितना सचिन तेंदुलकर बल्लेबाज़ी का। लेकिन वो फसी जैसा छिनरा नहीं था जो हिंदी अंग्रेजी दोनों ठीक से न जानने के बावजूद डेली रशियन लाता था।
“रशियन लड़की?”
नहीं रशियन शराब।
वोदका।
लड़की तो ला नहीं सकता था वो रामभक्त हिंदू हृदय सम्राट बुल्ला भैया के कमरे में।
वैसे भी पटती भी कहां थी फसी से कोई।
बातों के बताशे थे उसके।
बुल्ला भैया की फसी और निरमू दोनों बड़ी इज्ज़त करते थे क्योंकि खाना बुल्ला भैया ही बनाते थे सबका।
रोज सुबह पूजन करने के बाद रात में बुल्ला भैया रोते थे त्वरा की याद में जो पता नहीं कहां थी अब।
और एक रोज बुल्ला भैया ने फैक्ट्री की टीवी में देखा, त्वरा किसी फिल्म में साइड हीरोइन के साइड में खड़ी थी और इज्ज़त लूटने को आतुर रहने वाले विलेन भी उसे भाव नहीं दे रहे थे।
बुल्ला भैया बहुत रोए रात में।
फसी और निरमू ने उनको बहुत दिलासा दिया ।
बुल्ला भैया त्वरा से मिलना चाहते थे। तुरंत। त्वरा मुंबई में थी।
फसी ने ट्रक निकाला अपना । निरमू ने मुंह से गाली ।
“मुंबई चलो।मां!!!!! चो,!!!!!! देगें।”
“त्वरा की मां नहीं है ।”
बुल्ला भैया को बताना ही पड़ गया था निरमू को।
मुंबई तो पहुंच गए। त्वरा रहती कहां? ये तीनों में से किसी को नहीं पता था।
लेकिन खुशकिस्मती ये रही कि त्वरा अपने पुराने वाले बंगले पर ही थी।
त्वरा बुल्ला भैया के गले लग कर रोई। बहुत रोई पता नहीं क्यों?
फसी और निरमू को बाहर छोड़ कर बुल्ला भैया अंदर पहुंचे। पूरी कहानी पता की
त्वरा तनुराग तस्कर के साथ मुंबई में आ चुकी थी और फिल्मों में छोटे मोटे रोल करने लगी थी।
उसके पापा सी एच पाटकर किसी बुआ जी के सिंडीकेट के लिए काम करने लगे थे। त्वरा और उसके पापा में कोई संबंध नहीं बचा था अब।त्वरा ईसाई बन चुकी थी ,तनुराग तस्कर के कहने पर।
चालीस हजार रुपए महीने की नौकरी और रहने की जगह मुफ्त मिली थी उसे। पर परिवार ने छोड़ दिया था उसे।
रामभक्त बुल्ला भैया को ये बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने घर वापसी की बात की त्वरा से , पर त्वरा को अपना भविष्य दिख रहा था क्रॉस में।
बुल्ला भैया त्वरा को चाहते थे त्वरा बुल्ला भैया को।
पर इस मिलन के लिए बुल्ला भैया को इस क्रॉस को क्रॉस करना था।
त्वरा ने साफ साफ कह दिया था कि वो या तो मेरा ईशु ईशु वाले से शादी करेगी या दीनी आदमी से।
तो या तो बुल्ला भैया गले में क्रॉस लटका लें या अपने पुरूष अंग की अनावश्यक खाल कटवा लें।
बुल्ला भैया अपना सर ऊपर से 6 इंच कटवा सकते थे पर वहां की 2 सेंटीमीटर खाल हटना उन्हें गवारा नहीं था और वनवासी कल्याण संघ से जुड़े बुल्ला भैया खुद मिशनरी के दुश्मन थे।
और त्वरा के बगैर वो जी ही नहीं सकते थे। तो एक ही विकल्प बचा था
आत्महत्या।
उस रात बुल्ला भैया ने पहली बार दारू पी।
शमशान में बैठ कर।
फसी और निरमू साथ थे।
दरअसल उनका ट्रक वहीं खड़ा था। शमशान में पार्किंग के पैसे नहीं पड़ते न।
नदी के किनारे खड़े होकर बुल्ला भैया बोले अब मैं जान देने जा रहा हूं। दोस्तों।
फसी और निरमू पक्के दोस्त थे बुल्ला भैया के।
उन्होंने उस दुखद माहौल में डिप्रेशन में डूबे बुल्ला भैया के लिए वही किया जो दो सच्चे दोस्त करते —-
धक्का दे दिया ।
बुल्ला भैया गिरने को ही थे कि तभी अचानक एक जनाने हाथ ने उन्हें संभाला।
तीनों पुरूषों ने पलट कर देखा।
ये एक खूबसूरत और सेक्सी महिला थी।बिना ब्लाउज की।
बिना ब्लाउज मतलब टॉप पहने थी साड़ी के साथ।
“रुको !”उसकी आंखों में जादू था।
“आत्महत्या मत करो, जिन्दगी खूबसूरत है।”
“आप कौन?”
फसी ने ही पूंछा था थूक गटकते हुए।
“मैं विधि बेब सुंदरी। “आर्थोपेडिक एस्ट्रोलॉजर”
अब ये आर्थोपेडिक एस्ट्रोलोजर क्या हुआ भाई?
“दरअसल मैं हड्डियों के अस्पताल की नर्स हूं जो शौकिया ज्योतिष बताती हूं।”
उसने खुद ही जवाब दिया।
विधि दरअसल यहां अपनी इंस्टाग्राम रील बनाने आई थी, कि उसकी ज्योतिष विद्या कुछ ज्यादा रियल लगे शमशान से।
दो तीन चंगू मंगू उसके साथ थे वीडियो बनाने को।
बुल्ला भैया की फ्री की दारू पीकर उसने फ्री की एडवाइज दी।
“उसे किडनैप कर लो और शादी कर लो। हमारे शास्त्रों में राक्षस विवाह भी जायज है और पिशाच विवाह भी।”
विधि बेब चौधरी का ये कहना था कि फसी ने ट्रक स्टार्ट किया और निर्मू ने गाली दी
“मां”””””चो,——-देगें।”
“त्वरा की मां नहीं है।”
बुल्ला भैया को फिर बताना पड़ा।
फसी बुल्ला और निर्मू तीनों पुराने खिलाड़ी थे छत फांदने में। इसलिए त्वरा के घर और उसके बेडरूम पहुंचने में वक्त नहीं लगा बुल्ला भैया को ।
बुल्ला भैया ने चादर में सोती हुई त्वरा को देखा और चादर हटाई।
उफ्फ
क्या था ये?
त्वरा तो लड़का थी। उसके बॉडी पार्ट्स लड़के के थे।
पैड वाली ब्रा अलग रखी थी। छाती सपाट थी और त्वरा के पास भी वही था जो बुल्ला भैया के पास।
बुल्ला भैया कुछ समझ पाते, उसके पहले ही उनकी कनपटी पर तनुराग तस्कर की पिस्तौल टिकी थी।
पर ऐन वक्त पर फसी और निरमू पहुंच गए थे।
कट्टे लेकर।
तनुराग तस्कर और त्वरा भाटकर को बांध कर रखा और उनसे सच्चाई उगलवाई तीनों ने।
असली त्वरा मर चुकी थी। ड्रग्स के ओवर डोज से
लेकिन तनुराग तस्कर ने ये बात सी एच पाटकर को नहीं बताई थी। क्योंकि हर महीने एक लाख रुपए भेजते थे वो त्वरा को जो फिर तनुराग को नहीं मिलते।
इसलिए उसने नौटंकी में लड़कियों का रोल निभाने वाले त्वरा जैसे थोड़े बहुत दिखने वाले एक लड़के को त्वरा बना कर रखा था वहां।
बुल्ला के वहां आने से उसका प्लान चौपट हो सकता था, इसलिए जान बूझ कर उसे ईसाई या मुस्लिम बनने को कहलाया नकली त्वरा से तनुराग तस्कर ने।
कि बुल्ला खिसिया कर जाए और कभी न लौटे।
बुल्ला भैया ने अपने पापा के दोस्त सी एच पाटकर को सारी बातें बताई। तनुराग और नकली त्वरा को पुलिस पकड़ ले गई।
बुल्ला भैया उसी दिन से विरक्त हो कर तपस्वी बन गए और धर्म पिता भी। त्वरा का दिया रुमाल अब भी उनके पास है।सुल्तानपुर की सरकारी फैक्ट्री में बल्ब बदलने की नौकरी और ट्विटर। बस
फसी ट्रक ही चला रहा है।
निरमू को आखिरी बार सनी लियोन के दरवाजे पर देखा गया था।
गाली मत देना बुल्ला भैया
मन में आया तो लिख दिया ।
आपकी जीवनी सबको जाननी चाहिए।
आपका -विपुल
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जबरदस्त 🤣🤣🤣🤣🤣
🤦♀️😡😝 और लिखवाओ इनसे जीवनी😂