प्रिंस अग्रवाल
लोग सरकारी नौकरी क्यों करना चाहते हैं उसके पीछे कुछ कारण हैं.
पहला,एक स्थिर ज़िंदगी मिलती है।जिसमे सैलरी चाहे तो निजी क्षेत्र वालों से कम हो पर रुतबा और स्थिरता बहुत ज़्यादा है।
दूसरा कारण निजी क्षेत्र की नौकरी में आपका लगातार अच्छा प्रदर्शन देने का और हर वक्त ख़ुद को उस नौकरी में हर समय प्रासंगिक साबित करने का दबाव होता है। ये दबाव ना तो हर कोई ले सकता है,ना हर कोई लेना ही चाहता है।
ऊपर से दबाव के बावजूद हालिया में निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों द्वारा की गई छंटनी के आंकड़े ये भी बताते हैं कि सिर्फ़ योग्यता से ही प्राइवेट नौकरी हमेशा चलेगी,इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।
तीसरा कारण है कि सरकारी नौकरी में व्यक्ति प्रवेश तो बड़ा ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठ होने का जज़्बा लेके जा सकता है पर व्यवस्था उसे आत्मसात् कर ही लेती है।
ये एक बड़ा कारण है जो सारे सरकारी नौकरी प्राप्त या सरकारी नौकरी के इच्छुक प्रार्थी समझते भी हैं और जानते भी हैं। उनको पता है कि 4 या 5 साल की कोचिंगऔर पढ़ाई की ही मेहनत है। फिर ये मेहनत ही ज़िंदगी भर का आराम दे देगी।
क्योंकि यदि इस मेहनत का फल मिल गया तो फिर आपके खुद को अपग्रेड करने की ज़रूरत ये व्यवस्था ही ख़त्म कर देगी।
एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो
काम करने में आराम ज़्यादा हो ,ऐसी सोच लेके कोचिंग क्लासेज़ में अपने आप को खपा रहे हैं।ये विरोधाभास अपने आप में विचारणीय है।
चौथा कारण, आज भी सरकारी बाबू बिना गांधी के बात या काम नहीं करते हैं। मैंने ख़ुद निजी अनुभव में देखा है कि एक साधारण व्यक्ति सिर्फ़ सरकारी नौकरी के दम पर इतना खर्चा करने की क्षमता रखता है जो एक प्राइवेट वाला सिर्फ़ अपने कैरियर के आख़िरी दौर में सोच पाता है।
ज़रा सोचिए दिल्ली में 3 बेडरूम फ्लैट हाउस क्या एक 50 हज़ार महीने कमाने वाला ख़रीद सकता है? लेकिन ऐसा मैंने देखा है।
आख़िर बात, बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिनके पास पेशेवर और तकनीकी शिक्षा ले पाने के साधन नहीं हैं।उनके पास सरकारी नौकरी एकमात्र विकल्प बचता है। पर क्या वो भी ये चाहेंगे कि उनके प्रदर्शन की समीक्षा बाक़ी की आम जनता जैसा ही हो?
ईमानदारी से कहूं तो मुझे नहीं लगता कि भारत जैसा विकासशील देश बाबू संस्कृति को और ज्यादा बर्दाश्त कर सकता है। स्टेट बैंक जैसे बैंको में कर्मियों के बर्ताव और एक निजी बैंक के कर्मियों का बर्ताव शायद आपको ये अंतर समझा सकें।दोनों में ही मेरे जैसे युवा कार्य करते हैं।
प्रिंस अग्रवाल
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