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सम्पूर्ण सफाया
आपका -विपुल

भारत की टेस्ट टीम पिछले 12 सालों में पहली बार कोई घरेलू टेस्ट श्रृंखला हारी।भारत की टेस्ट टीम पिछले 70 सालों में पहली बार न्यूजीलैंड से कोई घरेलू टेस्ट श्रृंखला हारी।भारत की टेस्ट टीम पिछले 92 सालों में पहली बार कोई घरेलू टेस्ट श्रृंखला 3-0 के अंतर से हारी।
पहली बार ऐसा हुआ कि भारत की टेस्ट टीम 3 टेस्ट मैच या उससे ज्यादा की श्रृंखला में एक भी मैच न जीत पाई,न ड्रॉ ही करा पाई।श्रृंखला के सब के सब टेस्ट मैच हारी।


पहली बार ऐसा हुआ कि भारत की टेस्ट टीम अपने घर पर एक पारी में 50 रनों के अंदर 46 रनों पर आउट हुई।ये स्कोर भारत के पूरे टेस्ट क्रिकेट इतिहास का तीसरे नंबर का निम्नतम स्कोर है और इससे कम के जो दोनों स्कोर 42 और 36 के हैं,वो विदेशी धरती इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की धरती पर हैं।
भारत की धरती पर भारत का एक टेस्ट पारी में दूसरे नंबर का निम्नतम स्कोर 75 है जो 25 नवंबर 1987 को वेस्टइंडीज के खिलाफ बना था।
पर वेस्टइंडीज की उस टीम के कप्तान सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में से एक सर विव रिचर्ड्स थे।


गेंदबाजी के अगुआ सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजों में से एक कोर्टनी वाल्श थे।बहुत तेज पैट्रिक पैटरसन थे और विंस्टन बेंजामिन भी थे। ग्रीनिज,हैंस,रिचर्डसन सब धुरंधर थे।
यही नहीं!इस 46 ऑल आउट पारी की और खास बात ये रही कि पिछले 92 सालों में पहली बार भारत की टेस्ट टीम ने एक टेस्ट की पहली पारी में सबसे सबसे कम रन रेट 1.46 से रन बनाये।
इससे कम रन रेट से भारतीय टेस्ट टीम ने कभी भी पहली पारी में रन नहीं बनाये।
दूसरी पारी में जरूर इस 1.46 रन रेट से कम 1.31 के रन रेट से रन जरूर बनाये हैं लेकिन वो 1960 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चेन्नई में था जहां मैच बचाने को भारत ने 105 ओवरों में 138 रन बनाये थे।1.31 के औसत से।
इससे पहले भारत ने एक बार 1.47 के रन रेट से रन बनाए हैं। पर वो भारत की पहली पारी जरूर थी,पर मैच की दूसरी पारी थी और ये वाकया 1947 का है जब टेस्ट मैच 6 दिन के होते थे और एक ओवर आठ गेंदों का।
पिछले 25-30 सालों के टेस्ट इतिहास में ये भी शायद पहली बार हुआ कि भारत में खेली किसी 3 या अधिक मैचों की घरेलू टेस्ट श्रृंखला के पहले दो मैचों में घरेलू टीम भारत एक बार भी बढ़त न ले पाई।दूसरी टीम पर लीड न चढ़ा पाई।
ये सब इतना इतिहास भूगोल बताने का मकसद ये है कि आपको महसूस हो कि ये कितनी बड़ी हार है।आप समझें कि इस टेस्ट सीरीज में भारत के टेस्ट इतिहास की इज्जत लुट गई।


शिवसुंदर दास,करसन घावरी, सदगोपन रमेश,नयन मोंगिया,नरेंद्र हिरवानी,रवि शास्त्री,मनिंदर सिंह,अरशद अयूब और ऐसे कई खिलाड़ी जिन्हें कोई भी बहुत बड़ा और महान टेस्ट खिलाड़ी नहीं मानेगा, उन तक के समय भी भारत की टेस्ट टीम की इतनी दुर्दशा नहीं हुई थी कि भारत 3 टेस्ट मैचों की सीरीज में 3 के 3 मैच हार जाये।
लोग सन 2000 में दक्षिण अफ्रीका के भारत में आकर भारत को 2-0 से हराने की बात जरूर करेंगे पर उनमें से कितनों को ये ध्यान है कि इसी सीरीज के दौरान मैच फिक्सिंग स्कैंडल का खुलासा हुआ था जिसमें हैंसी क्रोनिये,हेनरी विलियम्स फंसे थे और अजहर और अजय जडेजा का नाम आया था।


ये पूरी वनडे और टेस्ट सीरीज ही संदेह के घेरे में थी जिसके बाद कई खिलाड़ियों का जीवन बदल गया।
अगर मैच फिक्सिंग की बात हटा भी दें तो गौर करें कि ये साउथ अफ्रीका की सर्वश्रेष्ठ सितारों से भरी टीम थी।डोनाल्ड पोलॉक कालिस क्लूजनर विश्व क्रिकेट के महानतम खिलाड़ियों में से एक रहे हैं।गिब्स,क्रिस्टन और क्रोनिये भी कम नहीं थे।भारत ने फिर भी पहले टेस्ट में बढ़त ली थी।और ये टेस्ट सीरीज 3 मैचों की भी नहीं थी।खैर!
कोई भी ज़ख्म एक दिन में नासूर नहीं बनता,घाव एक दिन में गहरा नहीं होता,फोड़ा एक दिन में कैंसर नहीं बनता।
वक्त लगता है।समय पर इलाज करना होता है।
भारत की टेस्ट टीम की ये दुर्गति होनी ही थी।कब तक बचते?
पिछले 5 साल पहले खेले मैचों के प्रदर्शन को आधार बना कर अगर आप बल्लेबाजों को चुनते रहेंगे तो यही होना था। जो भी क्रिकेट प्रेमी पिछले 5 सालों से भारतीय टेस्ट टीम को देख रहा है वो दस में दस बार इस बात को मानेगा कि हमारी असली बल्लेबाजी ही पंत के बाद शुरू होती है और अक्षर अश्विन जडेजा सुंदर और शार्दूल ठाकुर जैसे गेंदबाजी हरफनमौला ही बल्लेबाजी में इधर कुछ सालों से हमेशा हमारी नाक बचाते आये हैं।

रोहित शर्मा का नाम आप ले सकते हैं कि उन्होंने इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ स्पिन ट्रैक पर जबरदस्त पारियां खेलीं, पर यहां पर मैं दो एक बात पूछना चाहूंगा।
पहली – जितने मौके रोहित शर्मा को मिले, उतने कितने युवा खिलाड़ियों को मिले?
दूसरी-क्या एक सीनियर बल्लेबाज को एक शतक के बाद अगली कई पारियों में बेहूदा खेलना मान्य है?
के एल राहुल का भी यही सीन है।


अगर 50 से ज्यादा टेस्ट खेलने के बाद भी आपका औसत 33 से कम है और भारत के लिये 50 या उससे ज्यादा टेस्ट खेलने वाले खिलाड़ियों में से अगर आपका बल्लेबाजी औसत केवल कपिल देव अश्विन जैसे गेंदबाज हरफनमौला खिलाड़ियों किरमानी जैसे विकेटकीपर और जहीर,बेदी,चंद्रा,प्रसन्ना,कुंबले, हरभजन जैसे विशुद्ध गेंदबाजों से ही ज्यादा है तो इसका मतलब आपको हद से ज्यादा मौके दिये गये।
और इस बात को आपके पिछले कुछ टेस्ट श्रृंखलाओं में अच्छे प्रदर्शन से झुठलाया नहीं जा सकता।क्योंकि अगर ये प्रदर्शन न होते तो आपका बल्लेबाजी औसत शायद इतना भी न होता।
कोहली पुजारा और रहाणे पिछले कई सालों से भारतीय बल्लेबाजी के बोझ बने हुये थे। हालांकि 2018 और 21 की बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी में पुजारा का प्रदर्शन उन्हें रहाणे और कोहली से दो दर्जा ऊपर कर देता है।विराट कोहली के ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू सीरीज में ड्रॉ टेस्ट में एक पाटा विकेट पर शतक के पहले पुजारा बंग्लादेश में एक शतक लगा के भारत को जिता गये थे पर पुजारा कोहली नहीं हैं तो कैंची पुजारा पर चली।
रहाणे को भी आवश्यकता से अधिक मौके दिये गये।
करुण नायर ने सहवाग के बाद भारत के लिये दूसरा तिहरा शतक बनाया पर रहाणे को खिलाने के नाम पर अगले ही टेस्ट से करुण को बाहर कर दिया गया।


घमंड के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच चुके तत्कालीन भारतीय क्रिकेट के सब कुछ विराट कोहली का ये एक ऐसा गंदा फैसला था जिसकी किसी और गंदी चीज से कोई तुलना नहीं हो सकती।
करुण नायर ने जिस मैच में 300 बनाए थे उस मैच में के एल राहुल और पार्थिव पटेल ने ओपनिंग की थी और मुरली विजय नंबर 6 पर आए थे।
अगले मैच में रहाणे को खिलाना ही था तो या तो के एल राहुल से विकेटकीपिंग करवा ली जाती और विकेटकीपर को बैठा देते, या राहुल को भी बैठा सकते थे, या विजय को।
पर राहुल की टीम में जगह इतनी पक्की थी तो वो विकेटकीपिंग क्यों ही करते?
एक बल्लेबाज जिसने अपने दूसरे तीसरे मैच में ही भारत के लिये तिहरा शतक लगा दिया हो, मैन ऑफ द मैच रहा हो, उसे अगले मैच में अंतिम 11 से ही बाहर कर दें तो अच्छे प्रदर्शन का क्या मतलब रहा?
और यहां विराट कोहली के पंखे उसे एक चालीस रन के स्कोर पर भी अगले मैच में टीम में रखने को प्रचार करते है।


वैसे विराट कोहली का भारत में खेली पिछली 27 पारियों में 29 का औसत है।2 बार स्पिनर पर आउट हुए हैं।27 में 17 बार 20 या 20 से कम के स्कोर पर आउट हुये हैं
पिछले 5 सालों में विराट कोहली मात्र एक बार मैन ऑफ द मैच रहे हैं और व उस पाटा विकेट पर मात्र 22 खिलाड़ी ही आउट हुये थे 5 दिनों में।
मतलब विराट कोहली इस भारतीय टेस्ट टीम का सबसे बड़ा बोझ है।पर करोड़ों छापते पी आर मर्चेंट ये आपको बोलने नहीं देंगे।
इस कोहली राहुल रोहित माफिया का करुण नायर की तरह एक और खिलाड़ी शिकार रहा!कुलदीप यादव।
पीछे की बातें नहीं करेंगे।


अभी भारत के बंगलादेश दौरे पर कुलदीप यादव ने पारी में विकेट लिये,40 रन भी बनाये,मैन ऑफ द मैच भी रहा।
पर अगले ही मैच में कप्तान के एल राहुल ने पता नहीं कहां से और किसके निर्देश मिलने पर कुलदीप को टीम से बाहर कर दिया।
वही राहुल जो टीम में एक बल्लेबाज के तौर पर 53 टेस्ट बल्लेबाज के तौर पर 33 औसत से खेल चुके हैं और इससे कम औसत भारत के किसी 50 टेस्ट खेले बल्लेबाज का नहीं रहा।
लिस्ट में लास्ट
के एल राहुल।
मनोबल ऐसे ही तोड़े जाते हैं खिलाड़ियों के।
एक खिलाड़ी द्वारा अपना सर्वश्रेष्ठ देने के बाद,मैच जिताने के बाद आप उसे अगले मैच से हटा दें तो उसकी मनोदशा इतनी खराब हो जायेगी कि अगले कई मैचों में वो इसी दहशत में अच्छा प्रदर्शन नहीं करेगा कि उसके अच्छे प्रदर्शन से कप्तान नाराज तो नहीं होगा?कहीं मेरा कप्तान सट्टेबाजों से तो नहीं मिला है जो मैच जीतने पर उसका नुकसान कर दे?
हास्यास्पद बात लगेगी,पर तर्क रहित नहीं है।
और अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों का हौसला तोड़ने में रोहित भी कम नहीं।

ध्रुव जुरैल ने अपने दूसरे ही टेस्ट में अपनी बल्लेबाजी के दम पर भारत को जीत दिलाई।
उस टेस्ट में जुरैल का प्रदर्शन किसी 50 टेस्ट खेले अनुभवी बल्लेबाज सा था।
पर अगली ही टेस्ट सीरीज जो बंगलादेश के साथ घर में थी, उसकी जगह बीसीसीआई के चहेते वो के एल राहुल टीम में थे जो पिछले इंग्लैंड दौरे में इलाज के नाम पर भाग लिये थे और लंदन में लैप डांस देख रहे थे।
सरफराज और जुरैल दोनों को इस पहले टेस्ट में होना था, पर नहीं थे।
न्यूजीलैंड के खिलाफ सरफराज को मौका मिला,जुरैल को नहीं।
यही ध्रुव जुरैल ऑस्ट्रेलिया में भारत ए के लिये अच्छा कर रहा है।


भारत की जो दुर्गति इस घरेलू न्यूजीलैंड टेस्ट सीरीज में हुई उसका सबसे बड़ा कारण समय पर कोहली पुजारा और रहाणे के विकल्प न लाना।
श्रेयस अय्यर, मयंक अग्रवाल, हनुमा विहारी,जुरैल जैसे बल्लेबाजों को ज्यादा मौके न देना और भारत के टेस्ट खिलाड़ियों का रणजी न खेलना ही है।
अभी कोहली रोहित एंड कम्पनी का नया नया बना एक पी आर मर्चेंट किसी रणजी की फोटो पर बताने आया था कि भारत 1982 से 86 तक 39 टेस्ट में मात्र 1 जीता।
पर इस बात पर दांत चियार के रह गया कि उस दौरान भी वेस्टइंडीज की सर्वकालिक महान टीम भारत का घर में व्हाइट वाश नहीं कर पाई।


क्लाइव लॉयड,विव रिचर्ड्स, मार्शल होल्डिंग जैसे दिग्गजों की टीम को भी हमने 6 मैचों में मात्र 3 ही टेस्ट जीतने दिये।लीड भी ली, लड़े भी और 100 से कम पर आउट नहीं हुए।उन राक्षसों के सामने वर्तमान टीम तो शायद दिन में दो बार आउट होती।
इमरान खान की मजबूत पाकिस्तानी टीम से 3 के 3 मैच ड्रॉ खेले और डेविड गावर की इंग्लिश टीम से 5 टेस्ट की सीरीज में 1 जीते,2 हारे,2 ड्रा करवाये।
कोहली रोहित के पंखे तमाम दलीलें ले आयें पर ये तथ्य नहीं झुठला सकते कि घरेलू रणजी मैच खेलने के फायदे हैं।
मेरी याद में भारत इस न्यूजीलैंड से घरेलू टेस्ट सीरीज के पहले मात्र 3 सीरीज हारा है।
सन 2000 में दक्षिण अफ्रीका से
सन 2004-05 में ऑस्ट्रेलिया से।
सन 2012 में इंग्लैंड से।
पर ये दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की टीमें उनके इतिहास की सबसे तगड़ी टीमें रही हैं।
डोनाल्ड पोलॉक कालिस क्लूजनर, गिलक्रिस्ट पोंटिंग मैकग्राथ,गिलेस्पी, क्लार्क, कुक पीटरसन, बेल ,एंडरसन जैसे खिलाड़ी अपने अपने देशों के पिछले 30- 35 सालों के टॉप 10 खिलाड़ियों में होंगे।
तब हम इनसे हारे थे।


10 टेस्ट भी न खेले रचिन रवींद्र ,36 के गेंदबाजी औसत वाले मिशेल सेंटनर और पार्ट टाइम स्पिनर ग्लेन फिलिप्स जैसे खिलाड़ियों के हाथों नहीं।अगर 1982 वाली वेस्टइंडीज टीम भी हमारा घर में आकर वाइटवॉश न कर पाई तो इसका मतलब यही है कि वर्तमान टीम से वो भारतीय लाख दर्जा ऊपर थी।
घरेलू क्रिकेट के स्तर पर सवाल उठ रहे हैं।उठने चाहिये भी।
सरफराज अहमद के शॉट सलेक्शन के बाद।
पर इसी सिस्टम से आपको जायसवाल,गिल,पंत,सुंदर, मयंक,श्रेयस,जडेजा,पुजारा, अश्विन जैसे खिलाड़ी भी मिले हैं।
इसलिये थोड़ा भरोसा रखें।
घरेलू मैचों में गेंदबाज कैसे भी मिलें, बल्लेबाज को क्रीज पर समय बिताने का फायदा मिलता है और गेंदबाज को लेंथ पकड़ने का।
अब रणजी में भी इतने पैसे हैं कि खिलाड़ी जान लगा के खेलते हैं।
जडेजा अगर टेस्ट शतक बनाता है तो रणजी में बनाये उसके तिहरे शतक का लाभ उसे मिलता ही है।


सुंदर अगर अच्छा खेलता है तो रणजी का प्रदर्शन कारण है।
मयंक अग्रवाल केवल रणजी के अच्छे प्रदर्शन के विश्वास पर ऑस्ट्रेलिया में पहला टेस्ट खेल लायन को कूट आया था।
तो घरेलू ढांचे पर विश्वास रखें।
पर अगर आप रोहित और राहुल को किसी भी तरह किसी भी स्थान पर फिट करने को प्रियंक पंचाल को नजरअंदाज करेंगे।


400 रणजी विकेट और 6000 रणजी रन बनाने वाले एकमात्र खिलाड़ी जलज सक्सेना पर विचार ही न करेंगे,युवा खिलाड़ियों के अलावा 30 साल के ऊपर के अच्छे रणजी खिलाड़ियों को मौका ही न देंगे तो घरेलू ढांचे पर सवाल उठने भी लाज़िमी हैं।

उपसंहार

मैं कोई क्रिकेट विश्लेषक, पूर्व इंटरनेशनल या रणजी खिलाड़ी या कमेंट्री पैनल वाला नहीं हूं जो किसी को सुझाव दूं कि क्या करने से क्या सही हो जायेगा।
जो लिखा है वो एक आम भारतीय क्रिकेट फैन की भड़ास है जो घर में 92 सालों में पहली बार व्हाइटवॉश देख के उतना दुखी नहीं हुआ जितना इस व्हाइटवॉश के जिम्मेदार लोगों को निर्दोष बताने वाले लोगों के पक्ष में चलते प्रचार अभियान को देख कर।
🙏🙏🙏
आपका – विपुल
सर्वाधिकार सुरक्षित – Exxcricketer.com


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