राहुल दुबे
सद्गुरु की अपनी विरासत या परंपरा सी है, सद्गुरु का देश विदेश में बहुत सम्मान भी है। लेकिन उनकी किसी बात से असहमत हो जाने का मतलब यह नहीं होता कि असहमत होने वाला किसी हिंदू विरोधी टूलकिट का हिस्सा ही है।
शायद सद्गुरु हिंदुओं के एक बड़े हिस्से को अध्यात्म से बांधकर रखें हो ,लेकिन यह भी सत्य है कि सद्गुरु सेकुलरिज्म के सिकंदर भी है ,जिन्होंने ईशा फाउंडेशन के योग सेंटर में ॐ के साथ दो और मजहब विशेष के चिन्ह लगवा रखें है।
और ये दिखावा करने के बाद यदि सद्गुरु कहें कि हिन्दुओ का एक प्राचीन त्योहार सिर्फ हिंदुओं का नहीं है, तो लोगों को बुरा तो लगेगा ही।
हम सब जानते है कि जेनरेशन जेड धर्म से जुड़ने के बजाय पब और क्लब से जुड़ना चाहती है। इसमें कोई दो राय नहीं है।
लेकिन फिर ये कहना कि सद्गुरु जेनरेशन जेड के उन लोगों को अध्यात्म की तरफ महाशिवरात्रि जैसे त्यौहारों को गैर धार्मिक बताकर आकर्षित कर रहे है तो इससे बड़ा मजाक क्या होगा ?
आजकल एक अदने से बालक को पता होता है कि कौन सा त्यौहार राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है, कौन सा त्यौहार धार्मिक है,कौन सा त्योहार हिंदुओं का है, कौन सा मुस्लिमों का है और कौन सा ईसाइयों का त्यौहार है।
ये बात सब मानते हैं कि शिव जगत के निर्माता भी हैं और सृष्टि का विनाश करने वाले भी भी शिव ही हैं ।उनकी नटराज नृत्य मुद्रा की स्थिति घोर वैज्ञानिक है।
नटराज शिव की मूर्ति पार्टिकल फिजिक्स की सबसे बड़ी प्रयोगशाला Cern में लगी है और Cern के प्रबंधकों ने ये नटराज मूर्ति अपनी प्रयोगशाला में लगाने का कारण समझाते हुए अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा है कि – “हिंदू धर्म में, नृत्य करने वाले भगवान शिव के इस रूप को नटराज के रूप में जाना जाता है और शक्ति, या जीवन शक्ति का प्रतीक है। जैसा कि मूर्ति के साथ एक पट्टिका बताती है, विश्वास यह है कि भगवान शिव ने ब्रह्मांड को अस्तित्व में लाने के लिए नृत्य किया, इसे प्रेरित किया और अंततः इसे बुझा देंगे।
कार्ल सागन ने नटराज के लौकिक नृत्य और उप-परमाणु कणों के ‘ब्रह्मांडीय नृत्य’ के आधुनिक अध्ययन के बीच रूपक खींचा है।”
और ये कोई मजाक नहीं है, जो विज्ञान के झंडाबरदार धर्म को अफीम और न जाने किस किस की संज्ञा देते है, उनको Cern ने तमाचा ही जड़ा है।
शिव आदियोगी हैं और विश्व के सबसे पहले योगगुरु भी शिव ही हैं। योग कितना लाभकारी है ये तो बहस का मुद्दा ही अब नहीं रह गया है।
ये सारी चीजें सनातन धर्म से जुड़ी हैं और जो भी थोड़ा सा भी निष्पक्ष होगा, चीज़ों को समझ सकता है और उन पर अपनी राय बना सकता है ।अनुसरणकर्ता है तो उसे सनातन धर्म की ताकत का अंदाजा मात्र इन्हीं कुछ उदाहरणों से लग जायेगा ।
यदि वो स्वयं को शिव से जोड़ना चाहते है तो उसका स्वागत है, और हम तो किसी पर मंतातरण का दवाब भी नहीं डालते है , लेकिन यदि उसके लिये कोई खुलेआम हिंदुओं से उनका पहचान ही हड़पने की कोशिश करें तो ये किसे पसन्द आएगा।।
और वह भी तब विदेशों में हमारे प्राणायाम को Inhale Exhale Exercise कहकर बेचा जा रहा हो, जब एक लिबरल तमिल अभिनेता जिसके प्रशंसक लाखो में होंगे ,जिसकी पहुंच विपक्ष के सबसे बड़े नेता तक है जिनपर प्रभु श्रीराम के अस्तित्व का सबूत मांगने के आरोप लगें हो,जब वो ये खुलेआम कहता हो कि चोल वंश के लोग तो हिन्दू थे ही नहीं और जब देश की एक वयोवृद्ध इतिहासकार जिसके लिखे इतिहास का डंका पूरे भारत के शिक्षा व्यवस्था में बजता हो जब वह यह कहें कि युधिष्ठिर ने तो अशोक से अहिंसा का मार्ग अपनाने की सीख ली होगी, तो सदगुरु जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति की ऐसी टिप्पणी भी उन्हीं की श्रेणी में आती दिखती है।
अभी कुछ दिन पहले ही एक मौलाना मदनी ने कहा था कि ॐ और अल्लाह एक ही है।उसी मदनी का मज़हबी चिन्ह सद्गुरु अपने ईशा फाउंडेशन के सेंटर पर
ॐ के साथ लगाये हुये हैं। ऐसा करने के बाद जब यदि वह कहेंगे कि महाशिवरात्रि कोई धार्मिक त्योहार नहीं है तो सब सहमत होंगे ये तो मुमकिन नहीं ही है।
सद्गुरु ने बहुत नेक काम किये है, उनका मिशन सेव सॉइल,कावेरी कॉलिंग बहुत उत्तम है।शायद उनके प्रभाव से कुछ युवा वेटिकन के भ्रमजाल में फंसने से बच भी जाते हैं ।लेकिन ये भी सत्य है कि जब जब सद्गुरु शिवरात्रि को सनातन धर्म से अलग रखने का प्रयास करेंगे तो हजारों बुद्धिजीवियों के पूर्व में किये ऐसे धर्मनिरपेक्ष कृत्यों से मूर्ख बन चुका हिन्दू समाज का एक बड़ा तबका उनकी इस बात को कतई स्वीकार नहीं करेगा ।
अब उसको कोई टूलकिट का हिस्सा माने या मूर्ख ,ये चलता ही रहेगा।
जय श्रीराम। हर हर महादेव।।
राहुल दुबे।
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