आपका -विपुल
बस ये लेटर बॉक्स देख के ध्यान आया।
बचपन पोस्टकार्ड, अंतर्देशी,1 रुपए वाले लिफाफे, डाक टिकट और तार।
तार आने का मतलब ही होता था कि दीनबंधु दीनानाथ ने किसी की डोली उठा ली है या बस उठाने ही वाले हैं।
डाकघर उस भारतीय जीवन का अभिन्न अंग था जो अब कहने भर को भारतीय जीवन है।
आपका पता नहीं, मेरे घर हर महीने दूसरे महीने एक पोस्टकार्ड किसी बुआ या मौसी का आता था। शेर बना होता था उसमें, जवाबी पोस्टकार्ड भी होते थे। खोज खबर मिलती थी उससे। फोन नहीं थे तब ज्यादा।
अंतर्देशीय कुछ अमीर टाइप रिश्तेदार भेजते थे। और एरोग्राम भी तो आता था न?
साढ़े सात का था तब।
मेरे घर सब ही आते थे एरोग्राम से लेकर पोस्टकार्ड तक।
मेरी नानी के निधन की सूचना पोस्टकार्ड से मिली थी और माताजी का फूट फूट के रोना अब तक याद है मुझे।
ये डाकघर सीधे जुड़ा था हमारे जीवन से।
सीधे।
चचेरे भाई की तबीयत खराब हुई।
तब से यू के सीरियस कम सून का तार मेरे दिमाग में दर्ज है।
एक रुपए के पीले लिफाफे मिलते थे डाकघर से, जिनपर टिकट नहीं लगाना पड़ता था। अपने सादे लिफाफे पर एक रुपए की टिकट लगाकर मान्य हो जाता था । रजिस्ट्री साढ़े तीन की थी या साढ़े सात की ये ध्यान नहीं अब।
बैरंग डाक का मतलब बगैर टिकट के लिफाफे की डाक होती थी ,जिसका खर्चा पाने वाला उठाता था।
सरकारी नौकरी के फॉर्म में तब अपना पता लगे दो लिफाफे और एक पोस्टकार्ड लगता था। कुछ रजिस्टर्ड और कुछ सादी डाक से आवेदन मांगते थे, अब पता नहीं। डाकघर बहुत जाता था तब।
नए साल पर ग्रीटिंग कार्ड्स और रक्षाबंधन पर राखी वाले लिफाफे के लिए पोस्टमैन का इंतजार रहता ही था।
मनी ऑर्डर ऐसी चीज थी जो सीधे गांव देश में बैठे बूढ़े माता को उनके लड़के द्वारा भेजे पैसे पहुंचा देता था। कैश।
ऐसी सुविधा कोई आज भी नहीं देता।
मैंने कल्याण के लिए मनी ऑर्डर भेजा था, पिताजी की जगह अपना नाम डाल दिया था।कल्याण का सब्सक्रिप्शन मेरे नाम से तब से है जब नाबालिग था ।
कई साल हो गए सितंबर,सोमवार का दिन था, लगभग 11 बजे थे और काली पैंट लाल शर्ट पहने मैं शेव बना रहा था, तब पोस्टमैन ने मुझे आवाज लगाकर एक लिफाफा दिया जो मेरे सबसे बड़े भाई के नाम का था।
ये उनका अपॉइंटमेंट लेटर था।
जीवन की सबसे मीठी यादों में से एक।
घर भर की खुशी आई थी एक लिफाफे से।
समय बदला था कूरियर कंपनी के आने से , डाक का काम हल्का हुआ और फिर मोबाइल फोन ने न्यू ईयर ग्रीटिंग को समाप्त कर दिया।
तार सुविधा मृत हो चुकी है और मनी ऑर्डर का प्रचलन खत्म ही है।
आगे बढ़ना चाहिए और तरक्की में बुराई नहीं। लेकिन ये कुछ यादें हम लोगों की हैं जो न अब युवा बचे हैं, न वृद्ध हो पाए हैं।
ये एकालाप है और ये मैं कतई नहीं कह रहा कि सेकेंडों में सूचना देने वाली वर्तमान प्रणाली बुरी है। अच्छी ही है।
लेकिन डाकघर और डाकिए से हम लोगों को जो आत्मीयता थी, वो अलग ही लेवल की थी।
पोस्टमैन पर निबंध लिखना याद है?
🙏🙏🙏🙏
आपका -विपुल
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