Spread the love

आपका -विपुल
बॉलीवुड का एक गुब्बारा था जो बहुत ज्यादा फूल चुका था, उसमें इतनी ज्यादा हवा भर चुकी थी कि उसका फटना लाज़िमी था।
बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री को अब आप हिंदी फिल्म इंडस्ट्री नहीं कह सकते ।
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पैन इण्डिया अभिनेत्री तापसी पन्नू ने इसके लिए एक व्यक्ति को झिड़का भी था कि मैं हिंदी फ़िल्मों की अभिनेत्री नहीं हूं , हिंदी बोलने की उम्मीद मुझसे मत करिए ।
तापसी पन्नू बॉलीवुड की कई प्रथम श्रेणी हिंदी फ़िल्मों में मुख्य अभिनेत्री के तौर पर अभिनय कर चुकी हैं।
तो बात यहीं से शुरू करते हैं। हिंदी फिल्में महाराष्ट्र के मुंबई में बननी शुरु हुईं जो भारत की औद्योगिक राजधानी था और पूर्वी ,पश्चिमी ,उत्तर और दक्षिण भारत के बहुत सारे लोग रोजगार की तलाश में यहां थे। मुंबई की मूल भाषा मराठी ही थी लेकिन हिंदी बोलने समझने वाले यहां आसानी से खप जाते थे।
हिंदी फ़िल्मों के निर्माण पर कुछ मराठियों,विभाजन के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए पंजाबी सिखों, हिंदुओं, मुस्लिमों और कुछ बंगालियों का प्रभुत्व था।
दादा साहब फालके, व्ही शांताराम, याकूब,नाडिया, देवानंद, प्राण, दिलीप कुमार, महबूब , अशोक कुमार,पृथ्वीराज कपूर, सुरैया, देविका रानी,
यही सब थे न? इनमें से कितने हिंदी बेल्ट यूपी ,एमपी, बिहार, राजस्थान , हरियाणा या दिल्ली के थे?
सुनील दत्त के बेटे संजय दत्त , धर्मेंद्र के बेटे सनी देओल तक और यश चोपड़ा के बेटे आदित्य चोपड़ा, तनुजा की बेटी काजोल तक,अनजान के बेटे समीर, वीरू देवगन के बेटे अजय देवगन तक और शाहरुख सलमान आमिर के आते आते बॉलीवुड में उत्तरी भारत के हिंदी भाषी बेल्ट से आने वाले कलाकारों , निर्माता, निर्देशकों , संगीतकारों की जगह मुंबई में पिछली 2 पीढ़ियों से रह रहे पंजाबियों का वर्चस्व हो चुका था जिनका असली सम्पर्क यूपी बिहार राजस्थान और मध्य प्रदेश के असली लोगों से न के बराबर था ।
ऊपर से यश जौहर के बेटे करण जौहर, अनिल कपूर की बेटी सोनम कपूर, शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी सोनाक्षी सिन्हा जैसों का हिंदी बेल्ट से संबंध बस उतना ही रह गया था जितना हिलैरी क्लिंटन का उन्नाव से।
जब मराठी भाषी क्षेत्र में रहने वाले पंजाबी पृष्ठभूमि के लोग इंगलिश में सोचकर पंजाबी संगीत का तड़का डालकर क्रियेटिविटी के नाम पर उल्टी सीधी हिंदी फिल्में बनाने लगे तो कुछ सालों तक तो सही चला। लेकिन धीरे धीरे लोगों का मोहभंग होने ही लगा था।
मल्टीप्लेक्स में सलमान की ही फिल्में दिन भर चलेंगी तो आपको सलमान की ही फिल्में देखने पर मजबूर होना पड़ेगा। दीपावली की छुट्टी पर लगभग हर परिवार फिल्म देखने का विचार करता था और यहां इस दिन स्क्रीन पाने के लिए अजय देवगन तक को आदित्य चोपड़ा से भिड़ना पड़ा था कोर्ट में।
ताशकंद फाइल्स, तुम्बाद जैसी बेहतरीन फिल्मों तक को स्क्रीन नहीं मिली थी।
टिकटें बहुत महंगी हो चली थीं । दक्षिण भारत की फिल्में डब होकर हिन्दी में आने लगी थीं और जहां हिंदी फ़िल्मों में एनआरआई हीरो थे , तेलुगु फ़िल्मों के गांव की स्टोरी हिंदी बैल्ट को भाने लग गईं थीं। हिंदी मूवी चैनल पर केवल दक्षिण भारतीय डब फिल्में दिखने लगीं। अल्लू अर्जुन ,जूनियर एनटीआर और पवन कल्याण जैसे हीरो लोकप्रिय हो गए यूपी बिहार में।

और तभी कोरोना आ गया ।
लॉक डाउन लग गया।
ओटीटी प्लेटफार्म ने लॉक डाउन में जन जन का न सिर्फ मनोरंजन किया बल्कि सबको ये भी दिखाया कि बॉलीवुड की 95 प्रतिशत हिंदी फिल्में किसी बेहतरीन विदेशी या दक्षिणी भारतीय फिल्म की फूहड़ नकल थीं।
और बॉलीवुड का पतन एक स्टेज और पार कर गया।
साथ ही बॉलीवुड के पतन में अनुराग कश्यप, स्वरा भास्कर, तापसी पन्नू, सुधीर मिश्रा, सोनम कपूर जैसे लोगों ने और योगदान किया ।जिनके लिए फिल्मों से ज्यादा अपने मालिकों का एजेंडा चलाना अहम था।
किसी हिन्दू अपराधी के पकड़ने पर खुद को हिन्दू होने पर शर्मिंदा बताना और पूरे हिन्दू समुदाय को टारगेट करना आमजन को नहीं भाया।
सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत और ड्रग स्कैंडल की अफवाहें ही कम नहीं थीं कि अक्षय कुमार लक्ष्मी जैसी फिल्म लेकर आए जिसका एजेंडा ही हिन्दू धर्म का विरोध था।
बात अब हद से आगे निकल चुकी है। एक तबका बॉयकॉट बॉलीवुड काम पर लगा है और बॉलीवुड का एक तबका केवल हिंदी भाषा भाषियों और हिन्दू धर्म के अपमान पर जुटा है।
आमिर का भारत में डर लगता है बयान, सलमान के फुटपाथ कांड, दीपिका का जेएनयू कांड,1983 फिल्म में जबरिया पाकिस्तान को अच्छा दिखाना, राहत फतेह अली, फवाद खान पाकिस्तानियों को भारतीय कलाकारों पर तरजीह देना , ये काम लम्बे समय में बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री को दुख देने वाले थे, समझदार लोग पहले से जानते थे।
26 /11 हमले के आरोपी को सहयोग देने वाला राहुल भट्ट प्रख्यात फिल्म निर्देशक महेश भट्ट का पुत्र था और महेश भट्ट भारत सरकार द्वारा वांछित आतंकवादी जाकिर नायक के कार्यक्रमों में जाते थे। विजय राज दुबई में ड्रग तस्करी में पकड़े गए थे, जॉनी लीवर ने दुबई में भारतीय ध्वज का अपमान किया था। पीके में हिन्दू देवों का अपमान करने वाले सुपर स्टार आमिर खान एंटी सीएए दंगों के समय भारत की खुली मुखालफत करने वाले टर्की की प्रथम महिला से मिलते थे ।
ये बातें लोग जानते ही थे , बस ये चीजें बार बार होने लगीं । तो लोगों की नजर में खटकने लगीं।
संजय लीला भंसाली जैसों ने खुद ही पैसे देकर अपनी फिल्मों के चर्चा में रहने के लिए अपनी ही फ़िल्मों के बॉयकॉट का जो ट्रेंड शुरु करवाया था, वो अब उन जैसों के हाथ से निकल चुका है।
मुंबई की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री अब कभी वापस वो मुकाम नहीं पा सकती जो लॉक डाउन के पहले था।
नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम और यूट्यूब इसे खा रहा है।
धीरे धीरे
आपका -विपुल
सर्वाधिकार सुरक्षित- Exxcricketer.com

exxcricketer@gmail.com


Spread the love

One thought on “बॉलीवुड का गुब्बारा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *