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पैसा कमाने वालों की कद्र करें
आपका -विपुल

बहुत पहले के पहले और उसके भी पहले मुझे एहसास हुआ था कि पैसा कमाना कितना मुश्किल है। मेरा बड़ा भाई 250 रुपए महीने में एक स्कूल में पढ़ाने जाता था 1995 में और तब भी ये बिलकुल मामूली से मामूली रकम थी।
मुझे 1999 में 250 रुपए महीने एक तत्कालीन कंप्यूटर सेंटर लड़कों को वर्ड एक्सेल और पावर प्वाइंट सिखाने के देता था।
मेरे दूसरे बड़े भाई को 2001 में एक इंटर कॉलेज में 1000 रुपए पढ़ाने को मिलते थे और ये आश्वासन मिला था कि परमानेंट कर देंगे।
मुझे खराब लगता था। अपने लिए भी, अपने भाइयों के लिए भी।
मैंने एलआईसी का एजेंट बनना चाहा। ट्रेनिंग के बाद आगरा में परीक्षा हुई थी।
जब फील्ड में उतरा तो समझ आया ये कितना जलालत भरा काम है।
मेरे एक मातृ पक्ष के रिश्तेदार एक बहुत बड़ी कंपनी की टॉप लीडरशिप में थे। मेरे भाई की शादी में आए थे। मुझसे जूते पोलिश करने को बोला। मैंने किए, सबके सामने उनके जूते पोलिश किए और फिर बोला, मेरी नौकरी लगवा दो।
वो बोले एम बी ए किए होते तो लगवा देता।
मैंने जवाब दिया अगर एमबीए किया होता तो मुझे आप जैसों से कहने की जरूरत नहीं पड़ती मुझे।
बात आई गई हो गई। मैं भूल गया, पर वो नहीं भूले।
एक दिन मम्मी के पास फोन आया, विपुल को मेरे पास भेजो, नौकरी लगवा रहे।
मेरी मम्मी को उन रिश्तेदार पर ज्यादा भरोसा नहीं था, फिर भी भेजा।
दिल्ली पहुंचे।
वो एक बड़ी कंपनी है जिसका नाम नहीं लूंगा। तब सत्ता संघर्ष चल रहा था, कंपनी के मालिक और बेटों के बीच। मेरे रिश्तेदार कंपनी मालिक के आदमी थे और उनके पर छांटे जा रहे थे।
मेरे उन रिश्तेदार का जूनियर एक पंजाबी था और कम्पनी मालिक के बेटों का आदमी था और उसी की चल रही थी।
मेरे साथ एक और वी मिश्रा था। उसकी नौकरी भी लगवाने जा रहे थे मेरे रिश्तेदार।
मेरे रिश्तेदार कम्पनी मालिक के मुंहलगे थे उनका लिहाज करते हुए उस सरदार ने मुझे और दूसरे वी मिश्रा को एस आर रख लिया।
पर उस सरदार ने कमीनापन ये किया कि हमें एक माह में 22 टाउन का लक्ष्य दिया यूपी में।
जो भी सेल्स का पुराना बंदा होगा, वो जानता होगा कि ये कितना मुश्किल था।
और मुझे कुछ भी सेल्स का नहीं पता था, प्राइमरी, सेकंडरी, सुपर स्टॉकिस्ट, सी एंड एफ एजेंट, काउंटर ये शब्द मेरे लिए एलियन थे।
और उसपर किसी ने इंटरव्यू में पूंछा था, एक दिन में कितने काउंटर कर लेते हो। मैं बोला था,100 , वो हंस दिए थे।
मुझे बाद में पता चला एक दिन में 40 से ज्यादा काउंटर शायद ही कोई कर पाता हो।
खैर।
मैंने हाड़तोड़ मेहनत की और बाद में पता चला कि मैं कंपनी के पे रोल पर था ही नहीं। सेल्स का काम ऐसे ही चलता है।
एक तो मेहनत करवा ली और फिर मुझे निकाल दिया। पूरे पैसे भी नहीं दिए।
वो कम्पनी बहुत बड़ी थी और मेरे रिश्तेदार को भी कम्पनी मालिक का वफादार होने का खामियाजा भुगतना पड़ा था क्योंकि हमेशा से सत्ता अगली पीढ़ी के हाथ में जाती है। फिर भी वो दिलदार आदमी थे। अपने रसूख का फ़ायदा उठा कर मुझे और जगह फिट करवाया।
मैं इस सेक्टर की गंदगी यहां नहीं खोलना चाहता, पर इतना समझो कि यहां जो भ्रष्टाचार मैने देखा उसके मुकाबले सरकारी अफसर आपको धर्मराज लगेंगे और पुलिस पटवारी और सेक्रेटरी देवदूत।
बातें बहुत छौंकते हैं लोग सरकारी कार्यालयों में बेईमानी की और यहां की गंदगी छुपा जाते हैं।
कुछ जगह रहा। मेडिकल रिप्रांजटेटिव की नौकरी में ज्यादा पैसा देख उधर जाना चाहता था। मेरा एक दोस्त था। उसने एम आर की 20 हजार की नौकरी छोड़ के पी एंड जी में नौकरी ज्वाइन की थी, मात्र 3 हजार मिलते थे उसे।
मैंने उससे पूंछा, ये क्यों?
मैं तो तुम्हारे भरोसे आया था तो
उसने लगभग रोकर बताया कि एम आर की नौकरी में जमीर मारना पड़ता है। डॉक्टरों का इगो बहुत होता है। जानबूझ कर वेट कराते हैं, अपमानित करते हैं। जब मैं नहीं झेल पाया तो तुम कैसे झेलोगे।
फिर जिस कम्पनी की नौकरी सबसे पहले छोड़ के आया था, उसके मालिक के लड़कों ने कम्पनी हथिया ली थी और बाप को किनारे लगा दिया था। और शायद उन्हें कुछ गिल्ट थी तो मेरे रिश्तेदार से माफी मांगने गए और
मेरे उन रिश्तेदार को आश्वासन दिया कि उनके साथ कुछ बुरा नहीं होगा। ये बात मेरे उन रिश्तेदार ने मुझे बताई थी और बताया था कि उनकी कम्पनी के मालिक के लड़कों ने आश्वासन दिया है कि एक कम्पनी में पे रोल पर मुझे लगवा देंगे। मुझसे बोले कि तुम बस उस कंपनी में जाकर जाकर उनका हवाला देना।
मुझे विश्वास तो नहीं हुआ पर और कोई चारा नहीं था।
अप्रत्याशित रूप से बात सही थी। मेरा हाल ठीक ठाक होने लगा था, पर कुछ घरेलू कारणों से मुझे वो नौकरी छोड़ने पड़ी और यहीं पर आकर मैं वो बात कहूंगा जिसके लिए बात शुरू की थी।
अप्रैल की गर्मी के दिन थे और कोई मटका बेचने वाला उधर निकला था मेरे घर के सामने
मेरे पास पैसे नहीं थे।नौकरी छोड़े कुछ समय हो गया था और मुझे उस दिन बहुत खराब लग रहा था कि मुझे मेरे मोहल्ले का ठेला लगाने वाला तक मुझे भाव नहीं दे रहा था। मटका शायद तीस रुपए का बोला था और मेरे पास बीस रुपए पड़े थे।
मैंने मजाक में कहा था, मेरे पीछे कल तक बहुत लोग घूमते थे।
मटके बेचने वाले का जवाब था, मेरे पीछे आज भी बहुत लोग घूम रहे हैं। उससे बात आगे बढ़ी तो काफी बातें हुईं जो मुझे याद हैं। जैसे कि पैसा दुनिया का सबसे बड़ा सत्य है।
जैसे हर आदमी यहां कुछ न कुछ बेच कर ही पैसा कमाता है। चाहे मटका हो या जमीर।
लेकिन हर आदमी पैसा नहीं कमा पाता क्योंकि कोई चीज बेचना इतना आसान भी नहीं। दूसरे की जेब से पैसा निकलवाने पड़ते हैं और सामने वाले को दिलासा देना पड़ता है कि तुम्हारे द्वारा बेची गई चीज उसके काम की है।
वो सीख मैं नहीं भूला कभी। पैसा कमाना आसान नहीं है। किस्मत के बल पर कभी कभी कुछ लोग ज्यादा कुछ किए बिना ज्यादा पैसा बना लेते हैं पर ऐसे लोगों की संख्या भारत में पाए जाने वाले गैंडों की संख्या से ज्यादा नहीं हो सकती।
बाकी सबको मेहनत पड़ती है एक भी पैसा कमाने में। पैसा पेड़ पर नहीं उगते और ये मजाक नहीं है,शाश्वत सत्य है 98 प्रतिशत मध्यवर्गीय और निम्न मध्यवर्गीय आदमियों के लिए।
पैसा कमाना मेहनत का काम है और दुनिया इसी से चलती है। आधी रात में ज्ञान प्राप्ति के लिए अपनी पत्नी बच्चे को छोड़ भाग जाने वाले तथाकथित संन्यासियों के ज्ञान से दुनिया नहीं चलती। ये सत्य है और अखंड सत्य है।
पैसा कमाने वालों की कद्र करें। खुद अपनी कद्र करें। अत में एक बात –
दुनिया में सबसे आसान काम पैसा कमाना ही है पर दुनिया का सबसे मुश्किल काम इज्ज़त के साथ पैसे कमाना है।
अगर आप इज्ज़त के साथ दो पैसे भी खुद के खुद की मेहनत के कमा रहे हैं तो अपने कॉलर उठा के घूमें।
आप कइयों से श्रेष्ठ हैं क्योंकि आप एक ऐसा काम कर रहे हैं जो वाकई बहुत कठिन है

धन्यवाद मेरा एकालाप सुनने के लिए जो ऐसे ही लिख दिया
🙏🙏🙏
आपका -विपुल
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2 thoughts on “पैसा कमाने वालों की कद्र करें

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