आपका -विपुल
ट्रांसफार्मर में भी ट्रांस और सेंसेक्स में भी सेक्स शब्द ढूंढ़ लेने वाले मिस्टर सिन्हा को पांचवीं कक्षा के मास्साब ने बेल्टे बेल्ट कूटा था जब उन्होंने अपने पहले लव बिल्लो को लव लेटर लिखा था जो मास्साब के हाथों पड़ गया था।
बिल्लो कौन?
हमारे मिस्टर सिन्हा की पसंद भी ऐसी वैसी नहीं थी।
बिल्लो से खूबसूरत कोई था नहीं कन्हैयालाल बॉयज इंटर कॉलेज में।
बॉयज इंटर कॉलेज? लव लेटर?
जी हां बिल्लो बॉय ही था।
भरपूर गोरा चिकना और खूबसूरत बिलावल झुट्ठो।
जो एक पसमांदा मुस्लिम था, इसी लिए हिंदूवादी संगठन के इस इंटर कॉलेज में पढ़ रहा था कि एक तो उसके पिता और उस हिंदूवादी संगठन का डीएनए एक था।
दूसरे बिलावल के पिता कासिफ उसी हिंदूवादी संगठन की राजनैतिक पार्टी के मुस्लिम मंच के सबसे महत्वपूर्ण पद पर थे।
अध्यक्ष?
नहीं फाइनेंसर।
मास्साब के हाथों पड़ गए उस लव लेटर में मिस्टर सिन्हा ने बिलावल के साथ अपनी इतनी यौन परिकल्पनाओं का वर्णन किया था कि मास्साब को भी डिस्प्रेशन हो गया कि साला इतना कामसूत्र तो मैं भी नहीं जानता।
लात घूंसा थप्पड़ जूते और बेल्ट इतना ही पर्याप्त नहीं समझा मिस्टर सिन्हा के पिताजी ने बल्कि सेक्शन भी चेंज करवा दिया।
सी ग्रेड अश्लील विचारों वाले मिस्टर सिन्हा अब सेक्शन डी में थे और बिलावल सेक्शन बी में।
लेकिन पुरानी कहावत
“जब जब प्यार पे पहरा हुआ है, प्यार और भी गहरा हुआ है।”
सेक्शन बदलने के बाद भी मिस्टर सिन्हा और बिलावल झुट्ठो की प्रेम कहानी नहीं रुकी।
स्कूल में दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखना छोड़ दिया था लेकिन स्कूल ख़त्म होने के बाद स्कूल के पीछे के शमशान में दोनों कई बार आलिंगनबद्ध देखे गए थे और इस बार बिलावल के पिता कासिफ सरदारी ने मिस्टर सिन्हा को कूटा। जब वो कब्रिस्तान में अपने चाचा की मैयत में आये थे और मिस्टर सिन्हा उनके बेटे की इज्ज़त की मैयत निकालने की कोशिश कर रहे थे।
हालांकि सब कुछ बिलावल की सहमति से हो रहा था, लेकिन अपने बाप द्वारा रंगे हाथों पकड़े जाने पर बिलावल रोते हुए बोला था कि मिस्टर सिन्हा उसके साथ जबरदस्ती कर रहे थे।
जबरदस्ती भी ऐसी वैसी नहीं।
मिस्टर सिन्हा अपने होंठों पर लिपिस्टिक लगा कर बिलावल से उस लिपिस्टिक को चाटने को बोल रहे थे।
अब हद हो गई थी।
मिस्टर सिन्हा के पिताजी इतने रईस थे कि उन्होंने मिस्टर सिन्हा की गंदी आदतें छुड़वाने के लिये उन्हें गांव से निकाल कर पटना के स्कूल में कक्षा 7 में भर्ती करवा दिया ।
ये स्कूल सल्लू यादव मेमोरियल स्कूल को एजूकेशन वाला था और अमीर घरों की सुंदर लड़कियां यहां पढ़ती थीं।
लेडीज स्टाफ बहुत था।मिस्टर सिन्हा जैसे हैंडसम लड़के को देख वहां की काफी लड़कियों के दिल में मिस्टर सिन्हा के लिए जगह बन चुकी थी, पर मिस्टर सिन्हा बिलावल को भूल नहीं पाये थे।
मिस्टर सिन्हा बिलकुल नॉर्मल लड़के थे। उन्हें भी चढ़ती उम्र में अंग प्रदर्शन देखने का शौक था। बस महिलाओं की जगह पुरुषों के अंग प्रदर्शन देखना ज्यादा पसंद करते थे मिस्टर सिन्हा।
स्कूल में चर्चा थी कि मिस्टर सिन्हा बहुत शरीफ और मर्दाना टाइप लड़के हैं जो कुश्ती में विशेष रुचि रखता है,लड़कियों से दूर रहता है। लेकिन ये हकीकत केवल मिस्टर सिन्हा ही जानते थे कि वो अखाड़े वाली कुश्ती क्यों देखने जाते थे।
कैरियर बनाने की ललक से ज्यादा बाप के जूतों और 50 बीघा की प्रॉपर्टी से निकाले जाने का डर ही था कि मिस्टर सिन्हा ने कक्षा 12 का बोर्ड एग्जाम अच्छे नंबरों से पास कर लिया।
अब 40 परसेंट अच्छे नंबर ही कहे जायेंगे मिस्टर सिन्हा के आई क्यू के हिसाब से।
गुडलुकिंग पर्सनॉलिटी, हाजिरजवाबी हिंदूवादी पार्टी के छात्र संघ से जुड़ाव के अलावा पिताजी द्वारा दिया गया भारी भरकम डोनेशन बड़ा कारण था कि मिस्टर सिन्हा का एडमीशन पटना डिग्री कॉलेज में हो गया।
डिग्री कॉलेज पहुंचने तक मिस्टर सिन्हा में कोई दुर्गुण नहीं आये थे सिवाय बात बात पर गाली बकने और रात में लिपिस्टिक लगा कर चुन्नी ओढ़ कर सोने के अलावा ।
लेकिन अपना एलजीबीटी रुप वो क्यूं दिखाते जब वो दरिंदों से भरे पटना डिग्री कॉलेज में पढ़ रहे थे।
ऊपर से खुश खुश दिखने के बावजूद मिस्टर सिन्हा जिन्दगी से नाराज़ रहते थे।
उनके बटुए में नेल कटर, ब्लेड और छोटी सी कैंची के अलावा बिलावल की फ़ोटो भी हमेशा रहती थी जिसे देख देख आधी रात में आधे घंटे रोते थे वो।
पैसे अब बटुए में नहीं रखते थे मिस्टर सिन्हा, जब से उनकी दोस्ती सत्यप्रकाश बेंजामिन चिकलू उपनाम सत्तू से हुई थी जो पटना बस स्टैंड जेबकतरा एसोसिएशन का दिहाड़ी मेंबर था।
दरअसल उसने मिस्टर सिन्हा की जेब एक बार काटी थी और मिस्टर सिन्हा के बटुए में उसे दस रुपए के दो नोट मिले थे और एक पर्ची भी जिस पर लिखा था, भाई पैसे रख लेना पर इस पर्स में रखी मेरी जान की फोटो वापस कर देना पटना डिग्री कॉलेज में।
सत्तू ने जब मिस्टर सिन्हा की जान की फ़ोटो देखी तो उसे समझ आ गया, ये व्यक्ति करण जौहर कला अकादमी का कोई रंगरूट है।
उसने मिस्टर सिन्हा को उनका पर्स ढूंढ़ के वापस किया क्योंकि एक तो वो सच्चे प्यार की कदर करता था, दूसरे वो एलजीबीटीक्यू समुदाय का मैच मेकर भी था।
मिजाज कुमार उपाध्याय की दोस्ती उसी ने मिस्टर सिन्हा से करवा दी थी।
मिजाज कुमार उपाध्याय कॉलेज में मौगा नाम से मशहूर था और उसका वोट बैंक काफी था पटना डिग्री कॉलेज में। मिस्टर सिन्हा को उसकी दोस्ती का ये फ़ायदा हुआ कि जब वो कॉलेज छात्रसंघ का चुनाव खुद को अध्यक्ष मिजाज को मंत्री बनाने के लिये लड़े तो जीत गये क्योंकि कॉलेज का लगभग हर लड़का मिजाज के पीछे ठप्पा लगाना चाहता था।
बैलेट पेपर की बात कर रहा हूं भाई।
बी ए थर्ड ईयर में दूसरी बार फेल होते होते मिस्टर सिन्हा समाज की नज़रों में एक सर्वगुण संपन्न छात्र नेता होने की सारी शर्तें पूरी कर चुके थे।
गाली गलौज, मारपीट, चरस गांजे की तस्करी , कट्टों की सप्लाई और पॉलिटिकल पार्टीज के नेताओं की जी हुजूरी।
मिजाज उनका बायां हाथ था और खेसारी दाहिना। खेसारी एक पेट्रोल पंप पर काम करने वाला फाइनेंशियल फ्रॉड था जो ओवर टाइम में चरस भी बेचता था। लेकिन खुद को पेट्रोल पंप मालिक बता चूना लगा जाता था लोगों से।
जेबकतरा एसोसिएशन का दिहाड़ी मेंबर सत्तू अब जेबकतरा एसोसिएशन का महामंत्री बन चुका था और मिस्टर सिन्हा के सम्पर्क में था।
मिस्टर सिन्हा बिलावल को भूले नहीं थे अब तक।
ऐसा होता है ।केवल वही लोग समझ पाएंगे ऐसा होता है जिन्होंने कभी सच्चा प्यार किया होगा।
एक रोज अचानक मिस्टर सिन्हा के दिल में हूक उठी अपने प्यार बिलावल के लिए और मिस्टर सिन्हा चल दिये अपने प्यार की तलाश में।
घर पहुंचे और पचास बीघा प्रॉपर्टी में अपना हिस्सा मांगकर पिताजी के जूते खाने के अलावा उन्होंने जो दूसरा काम किया वो था बिलावल झुट्ठो की वर्तमान लोकेशन की तलाश।
और उन्होंने पता लगा ही लिया।
बिलावल झुट्ठो के पिता कासिफ सरदारी ने अपनी बीबी वजीरन की मौत के बाद अपनी चचेरी बहन नजीरन से निकाह कर लिया था और पाकिस्तान चले गए थे बिलावल को लेकर। क्योंकि नजीरन पाकिस्तान में ही रहती थी और पाकिस्तानी विदेश विभाग में काम करती थी।
अपने पॉलिटिकल सोर्सेज से सोर्स लगवा कर मिस्टर सिन्हा ने पाकिस्तान का वीजा भी बनवा लिया और बिलावल तक पहुंच भी गए जो पाकिस्तान में अब एक बड़ा आर्टिस्ट बन चुका था।
लौंडा नाच का।
इस्लामाबाद कल्चरल फेस्टिवल के आयोजन में बिलावल के लौंडा नाच के बाद जब मिस्टर सिन्हा और बिलावल की भेंट हुई तो एक पल तो दोनों एक दूसरे को एकटक देखते रह गये फिर बिलावल ने मिस्टर सिन्हा के हाथ पर ऐसे लिखा जैसे ऑटोग्राफ दे रहे हों।
कार नंबर 5430
पीछे की तरफ
हुंडई ब्लैक।
मिस्टर सिन्हा उस कार के पास पहुंचे। ड्राइवर ने उन्हें बैठने को कहा, कार चली और एक बंगले पर छोड़ कर चली गई।
कुछ देर बाद बिलावल वहीं आया। ये बंगला बिलावल का था।
पप्पी झप्पी और चुम्मी के बाद दोनों खूब रोए एक दूसरे से चिपक चिपक कर।
बिलावल ने मिस्टर सिन्हा से कहा कि वो भी मिस्टर सिन्हा को बहुत याद करता है और उनके साथ जिन्दगी बिताना चाहता है। लेकिन अब संभव नहीं क्योंकि उसका पिता कासिफ पाकिस्तान की राजनीति में है और बिलावल भी चुनाव लड़ने वाला है। अभी भी बिलावल पाकिस्तान की बड़ी हस्ती है।
एक हिंदू संघी से संबंध उसकी राजनैतिक कैरियर समाप्त कर सकते हैं।
मिस्टर सिन्हा कबीर सिंह के कबीर सिंह नहीं थे, धड़कन के देव थे। एक समझदार प्रेमी।
उन्होंने बिलावल की बात समझी और उस एक खूबसूरत मोड़ पर ये रिश्ता ख़त्म करना ही उचित समझा।
बिलावल ने गिफ्ट में मिस्टर सिन्हा को अपनी ब्रा दी और मिस्टर सिन्हा ने अपनी समीज।
और एक दूसरे को दिल में रखने पर कभी न मिलने का वादा कर दोनों अलग हुये।
और बिलावल ने मिस्टर सिन्हा से एक वादा और लिया।
“जैसा चिकना मैंने तुम्हें देखा है, वैसा चिकना तुम्हें कभी कोई और न देखे।”
मिस्टर सिन्हा बिलावल को आज तक नहीं भुला पाए और बिलावल की बात भी मानी।
अब मिस्टर सिन्हा एक गज की दाढ़ी रखते हैं। पटरे वाली नेकर पहनते हैं। समीज की जगह बनियान आ गई है। और चुन्नी की जगह गमछा। लिपिस्टिक की जगह लिप बाम भी।
जब तक पिताजी 50 बीघा जायदाद में हिस्सा नहीं दे देते तब तक पार्ट टाइम जॉब कर रहे हैं।
मुझे तो यकीन नहीं है लेकिन लोग कहते हैं शायद पॉकेटमारी का काम करते हैं।
गैंग तगड़ा है।सत्तू, खेसारी मिजाज और एक कोई केशू करके भी है जिसने इनको ट्विटर पर इंट्रोड्यूस करवा दिया है।
मिस्टर सिन्हा अब चुपचाप एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए काम करते हैं।
पिछ्ले महीने ही फिर इस्लामाबाद गए थे।
बिलावल शायद पाकिस्तानी सरकार में कुछ हो गया है।
खुलेआम खुद को एलजीबीटीक्यू बोलकर एलजीबीटीक्यू समुदाय के हितों के लिए लड़ने वाले लोग बहुत कम हैं।
मिस्टर सिन्हा की इज्ज़त करिये ।
इस कहानी का किसी दाढ़ी वाले बिहारी दक्षिणपंथी से कोई संबंध नहीं है। पूरी काल्पनिक कहानी है।
आपका -विपुल
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