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लेखक -राहुल दुबे

राहुल दुबे

वामपंथी इतिहास

जब कोई आपसे कहे कि भारत देश जब आजाद हुआ था उसके बाद देश के शुरुआती 5 में से 4 शिक्षा मंत्री मुसलमान थे तो एक आम इंसान यही कहेगा कि इससे क्या फर्क पड़ता है,? लेकिन यही फर्क है जिसको नजरअंदाज करने से हमें आने वाले समय मे अस्तित्व के संकट का सामना करना पड़ सकता है। उन किताबों को जिन्हें हमारे भविष्य का आधार बताया गया है, वहां से हमारे अपने इतिहास को षडयंत्र के तहत किनारे कर दिया गया है। हमारे गौरव, हमारे आदर्श के प्रतीकों को मटियामेट करने का भरसक प्रयास किया है मुग़लिया इतिहासकारों ने ,और ये सिर्फ किताबों तक ही नही बल्कि हर जगह ठूँसा गया है।

हमे किताबों में अनेकों युद्धों के बारे में पढ़ने को मिल जाता है लेकिन ऐसे कई युद्ध हुए इतिहास में जो मुग़लिया इतिहासकारों के एजेंडे को सूट नही करते थे ,इसलिए उन्हें गायब ही कर दिया गया।

कामरूप का युद्ध

ऐसा ही एक युद्ध हुआ था जिसका नाम था कामरूप का युद्ध (Battle of Kam rup) कामरूप( आज का बंगलादेश और भारत का राज्य असम) के राजा पृथुसिंह और बख्तियार ख़िलजी के बीच लड़ा गया था लेकिन इस युद्ध का एक भी प्रसंग साधारण इतिहास की किताबों में नही मिलेगा।

बख्तियार खिलजी

बख्तियार ख़िलजी का जन्म अफगानिस्तान के हेलमंद घाटी में हुआ था और ये मोहम्मद गोरी और कुतुबुद्दीन ऐबक के साथ भारत आया था जहां इसने कठिन परिश्रम के बाद मलिक हसुम अल दिन से विंध्याचल जो यूपी के आज के मिर्जापुर जिले का एक हिस्सा है वहा की ज़मींदारी प्राप्त की थी ।जहाँ से उसने पूर्व में स्थित छोटे-छोटे कमजोर राज्यों पर जीत प्राप्त की।

खिलजी घुरिद साम्राज्य के सैन्य बल का मुख्य था इसने 1200 ईस्वी में बिहार पर जीत प्राप्त की थी इसने अपने बिहार जीत के बाद बौद्ध धर्म को बहुत नुकसान पहुचाया था ।नुकसान उठाने वाले मुख्य साम्राज्य थे ओदंतपुरी और विक्रमशिला ।
इसके साथ ही इसने बंगाल पर भी अपना कब्जा जमा लिया।।

बख्तियार ख़िलजी ने अपने समय मे इस्लाम को मजबूत और हिन्दू और बौद्ध धर्म को कमजोर करने के अलावा कुछ नहीं किया था।बख्तियार ख़िलजी को पता था कि शिक्षा किसी भी धर्म के फलने-फूलने में सबसे अहम पहलू है और इसलिए इसने शिक्षा के बड़े-बड़े केंद्रों को फूंक दिया बख्तियार ख़िलजी ने सबसे पहले नालन्दा विश्वविद्यालय को बर्बाद किया था ।कहा जाता है कि वहाँ उस समय 10 हजार छात्र पढ़ते थे ।

वैद्य राहुल श्रीधर

कहा जाता है कि एक समय बख्तियार खिलजी बहुत बीमार हो गया था और उसके अपने सारे नीम-हकीम असफल थे ।उसको निरोग करने में उसके चमचों ने उसे राहुल श्रीधर के बारे में बताया जो उस समय नालंदा विश्वविद्यालय में आर्युवेद विभाग के विभागाध्यक्ष(HOD) थे और उनकी ख्याति देश-विदेश में हर जगह थी। लेकिन उसकी शर्त थी कि उसका इलाज कोई मुस्लिम हकीम ही करेगा।

लेकिन ये सभी जानते हैं कि जब जान है तो जहान है ।आखिर में थक-हारकर बख्तियार खिलजी ने राहुल श्रीधर को बुलाया और खैर इलाज के समय भी उसकी शर्त थी कि वह भारतीय औषधियों का सेवन नहीं करेगा तो श्रीधर जी ने उससे कहा कि यदि तुम मेरे कहने पर कुछ दिनों के लिए क़ुरान पढ़ सकते हो तो तुम एकदम स्वस्थ हो जाओगे ।

बस शर्त इतनी है कि तुम्हे मेरी दी हुई क़ुरान पढ़नी है श्रीधर जी ने बड़ी चालाकी से क़ुरान के हर पृष्ठ पर अपनी आयुर्वेदिक दवाओं का लेपन कर दिया था और जब भी खिलजी पृष्ठ बदलने के लिए अपनी अंगुलियों में थूक लगाता उसके जरिये औषधि इसके शरीर मे चली जाती जिससे धीरे-धीरे बख्तियार ख़िलजी स्वस्थ हो गया।

नालंदा विश्वविद्यालय विध्वंस

बजाय इसके की बख्तियार ख़िलजी राहुल श्रीधर को सम्मानित करता और नालंदा विश्वविद्यालय को सहयोग करता ।उसने नालन्दा विश्वविद्यालय पर आक्रमण करके आग के हवाले कर दिया ।कहा जाता है कि नालन्दा विश्वविद्यालय के तीन ग्रंथालयों में जिनके नाम रत्नसागर, रत्ननिधी, रत्न रंजना थे ,उनमें उस समय करीब 90 लाख अलग-अलग विषयों की किताबें मौजूद थीं।

कहा जाता है कि बख्तियार की सेना के नालंदा विश्वविद्यालय के आग के हवाले करने के बाद वहां के खंडहर से करीब 6 महीने तक धुंआ निकलता रहा था।इस आक्रमण में खिलजी ने हजारों विद्यार्थियों और बौद्ध भिक्षुओं को जिंदा जला दिया था ।सिर्फ इसलिए क्योंकि बख्तियार के अनुसार उसके असाध्य रोग को कोई हिंदुस्तानी वैद्य कैसे ठीक कर सकता था ? इसके बाद उसने ओदंतपुरी और विक्रमशिला विश्वविद्यालय का भी यही हाल किया था ।

लेकिन कहते है न कि हर आतंक का अंत कभी न कभी कभी अवश्य होता है।

कामरूप के राजा पृथु सिंह

कामरूप

जीत के नशे में चूर इस्लामिक आक्रांता बख्तियार ने अपने कदम बंगाल के बुजुर्ग राजा लक्ष्मण सेन को मात देने के बाद कामरूप की तरफ बढ़ाये। कामरूप पहुँचने के रास्ते मे एक वेगवती नदी बहती थी ।वहां के स्थानीय आदिवासी समूह को उसने इस्लाम मे परिवर्तित करवा दिया।उनकी सहायता से बख्तियार ख़िलजी कामरूप की तरफ बढ़ने लगा जहां के राजा पृथु सिंह थे जो सेन वंश के राजा थे ।पृथू सिंह काफी सजग और प्रजाप्रेमी राजा थे, और उन्हें बख्तियार खिलजी के हर आतंक और कदम के बारे में जानकारी थी। बख्तियार ख़िलजी ने कामरूप पर चढ़ाई 12 हजार सैनिकों के साथ की थी ।पृथु सिंह ने बख्तियार को रोकने के लिये कामरूप के सीमा के पास के गांवों को खाली करा दिया और वहां मौजूद फसलों को या तो जला दिया या फिर उन्हें काट के राजा पृथु सिंह की सेना ने अपने पास रख लिया। जब बख्तियार की सेना उन गांवों से होकर निकली तो उन्हें कुछ नही मिला। कैसे भी करके बख्तियार की थकी-हारी सेना कामरूप राज्य की राजधानी तक पहुंची ,जहां राजा पृथु सिंह की सेना को ज्यादा वक्त नही लगा बख्तियार की सेना को पराजित करने में।

अपनी हार से निराश बख्तियार ख़िलजी अपनी जान बचाने के लिए मारा-मारा फिरने लगा और अंत मे उसने एक मन्दिर में शरण ली ।उसी मन्दिर में जिससे वो घृणा करता था।
उस बख्तियार को अपनी जान बचाने के लिए मन्दिर में शरण लेना पड़ा जिसने अपने जीवनकाल में लाखों मन्दिरों का विध्वंस किया था।
राजा पृथु सिंह ने जब बख्तियार को खोजने के लिए तलाशी अभियान चलाया तो अगली सुबह उन्हें पता लगा कि बख्तियार ने एक मंदिर में शरण ले रखी है। उस मंदिर से जब उसे राजा पृथु ने खदेड़ा तो बख्तियार और उसके बचे सैनिकों ने बंगाल भागने की कोशिश की। लेकिन राजा पृथू ने बंगाल की तरफ जाने वाले रास्ते के एकमात्र पुल को भी ध्वस्त कर दिया।

अब बख्तियार और उसकी बची सेना के पास दो विकल्प थे ।या तो राजा पृथु सिंह के सामने आत्मसमर्पण करे या फिर नदी में कूद के अपनी जान जोखिम में डाले। बख्तियार और उसके कुछेक सैनिकों ने नदी में कूदने को ही ठीक समझा। वहां से कैसे भी करके बख्तियार और उसके कुछ सैनिक नदी के पार जा सके। वहां से गिरते पड़ते बख्तियार ने बंगाल में आज के दिनाजपुर जिले के पिरपुर गांव में शरण ली।

असम में इस्लाम की शुरूआत

और उधर राजा पृथु ने उसके बचे सैनिकों को ना मारा ना उनका धर्म परिवर्तन करवाया।

उन करीब हजार सैनिकों के ससम्मान कामरूप में ही रहने की व्यवस्था की गई ।कहा जाता है कि असम में इस्लाम के पैठ जमाने की यही शुरुआत थी ।इधर अपने चाचा की हार से खिन्न बख्तियार ख़िलजी के भतीजे अली मर्दान ने उसकी हत्या कर दी ताकि संसार को उसकी ये शर्मिंदगी वाली परास्त के बारे में पता न चले ।ख़ैर आज उसी बख्तियार खिलजी के नाम पर बिहार में एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन का नाम बख्तियारपुर रखा गया है और बिहार के मुख्यमंत्री गर्व से कहते भी हैं कि उस स्टेशन बख्तियारपुर का नाम कभी नहीं बदला जाएगा।

आज भी दिनाजपुर जिले के पीरपुर गांव के लोग बख्तियार खिलजी की याद में लकड़ी के खाट पर नहीं सोते हैं। आज भी वामपंथी और मुगलों के चाटुकारों के द्वारा लिखे गए इतिहास में बख्तियार ख़िलजी को Romanaticise किया जाता है, आज भी हम कुछ लोगो को छोड़कर राजा पृथुसिंह को कोई नही जानता ।कामरूप के युद्ध के बारे में किसी कोई अंदाजा नहीं है,।आज मैंने भी कई जगहों से पढ़ के ,सुन के, ये कामरुप और राजा पृथु सिंह के बारे में लिख दिया है,लेकिन न तो मैं सुपरस्टार हूँ, ना ये कोई बॉलीवुड के ग्लैमर पर लिखा लेख है जिसे हजारो लोग पढ़ेंगे और याद रखेंगे ।

इतिहास जानो,पाठ्यक्रम केवल इस्लाम की गाता है।

इसे मेरे कोई सौ मित्र पढ़ेंगे ।कोई शेयर कर देगा तो कोई मेरी तारीफ ,फिर सब राजा पृथु सिंह को भूल जाएंगे और बख्तियारपुर और बख्तियार ख़िलजी को और उसके वामपंथी इतिहासकारो द्वारा लिखे गए इतिहास को याद रखेंगे।

कोई नालन्दा विश्वविद्यालय के विध्वंस की बात भी करेगा ,तो लोग उसे इस्लामफोबिक घोषित कर देंगे। हमें आज भी मुगलों के काले इतिहास को जबरदस्ती फ़िल्टर करके पढ़ाया जा रहा है।हमने तो पढ़ लिया ,औरों को पढ़ना ।बाकी जब वे पढ़ लेंगे तभी तो वे बौद्धिक मुगल बन पाएंगे !तभी तो हिंदुस्तान के अस्तित्व पर संकट आएगा ! कई राजवंश हैं ,जिन्होंने भारत को विश्वगुरु बनाया। कई युद्ध हुए जिनमें रोमिला थापर, आंद्रे त्रुस्की के घोषित माई बाप मुगलों को सब्जियों की तरह काटा गया था, लेकिन वे आज भी समय के किसी कोठरी में बंद हैं है जिसकी चाभी न जाने किसके पास है ? समय रहते हमें अपने पाठ्यक्रम में जरूरी बदलाव की आवश्यकता है ।वरना हम ऐसे ही अंधेरे में रहेंगें।

खैर हमारा गिलहरी प्रयास सदैव जारी रहेगा! आपसे इतनी ही गुज़ारिश है कि आप हमें अपना समर्थन देते रहें हमारे ऐसे लेखों को शेयर करते रहें ,अपना बहुमूल्य सुझाव हमें देते रहें!

ताकि हम और बेहतर कर सके अपने धर्म और अपने राष्ट्र के लिए।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Exx_cricketer के लिए राहुल दुबे!

लेखक-राहुल दुबे

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4 thoughts on “बख्तियार खिलजी और राजा पृथु सिंह (कामरुप का युद्ध)

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