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साकेत अग्रवाल

साकेत अग्रवाल

हिंदी की हत्या

हिंदी दिवस पर आइए बात करें उर्दू, अंग्रेजी के कारण होती हिंदी की हानि पर।

हिंदी दिवस पर आइए बात करें उर्दू, अंग्रेजी की घुसपैठ के कारण अपने मूल संस्कृत से दूर होती हिंदी पर

हिंदी फ़िल्में

कादर खान, सलीम-जावेद और इनके जैसे फिल्म पटकथा और संवाद लेखकों ने हिंदी फिल्मों के संवाद उर्दू में लिखकर जनसामान्य को हिंदी से दूर कर दिया। इसका कुप्रभाव ये है कि आजकल की पीढ़ी “तहेदिल, जरूरत और इंतजार” तो जानती है लेकिन “हार्दिक, आवश्यकता और प्रतीक्षा” सुनकर मुंह बना लेती है। विदेश में बैठे हुए अंग्रेज के लिए, यहां तक कि भारतीय मूल के लोगों के लिए आज “दोस्ती” हिंदी शब्द बन गया है जबकि “मित्रता” के विषय में वे जानते ही नहीं है। कहने को तो बॉलीवुड, हिंदी फिल्म जगत है लेकिन हिंदी फिल्मों की पटकथा, संवाद देवनागरी लिपि में लिखने के स्थान पर रोमन लिपि में लिखे जा रहे हैं।

भाषा जेहादी जावेद अख्तर, आजतक के एक कार्यक्रम में सईद अंसारी पर मात्र इसलिए फट पड़े क्योंकि अंसारी बाबू ने “रिश्तों की गर्मी” के स्थान पर “रिश्तों की ऊष्मा” का प्रयोग किया था। आगे चलकर यही भाषा जेहादी जावेद अख्तर, FabIndia द्वारा दीपावली के लिए प्रयोग में लाए गए “जश्न-ए-रिवाज” का पुरजोर बचाव भी कर रहे थे। कहने का तात्पर्य है कि “ऊष्मा” से खार खाने वाले और दीपावली के लिए “जश्न-ए-रिवाज” को सही बताने वाले ही “हिंदी के हत्यारे” है।

समाचार माध्यम

इस कड़ी में समाचार माध्यमों (प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक) का नाम लेना भी बहुत आवश्यक है।हिंदी समाचार के नाम पर बिकने वाले समाचार पत्रों में आप हिंदी के अतिरिक्त उर्दू, अंग्रेजी सबकुछ पाएंगे लेकिन हिंदी आपको ढूंढ़े से भी नहीं मिलेगी। यही हाल इलैक्ट्रोनिक समाचार माध्यमों का है| इनको देखकर/सुनकर लोग “फैसला लेते हैं” निर्णय नहीं, वक्त देखते हैं समय नहीं, शुक्रिया बोलते हैं लेकिन धन्यवाद देना नहीं सीखते |जरिए बनाए जाते हैं माध्यम नहीं। कुछ समय पूर्व, उत्तरप्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य मीडिया से बातचीत कर रहे थे उसमें उन्होंने “समय” शब्द का प्रयोग किया था लेकिन आजतक की ट्वीटर टीम ने समय का “वक्त” कर दिया था। कृतघ्न लोग….. ( जावेद अख्तर वाली घटना और इस घटना का प्रमाण है मेरे पास, एक भी शब्द न तो काल्पनिक है और न ही हवा-हवाई) हिंदी समाचार माध्यमों (प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक दोनों) और बॉलीवुड (जिस आजकल सोशल मीडिया में उर्दूवुड कहा जा रहा है) ने हिंदी को बहुत हानि पहुंचाई है वो भी तब जब इनके घर का चूल्हा ही “हिंदी” के नाम पर जल रहा है।

हिंदी की हत्या पर मौन मत रहिए, विरोध कीजिए हिंदी में जबरन ठूंसे जा रहे अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों का… सोशल मीडिया पर टैग कीजिए समाचार पत्रों को, उनके संपादकों को, न्यूज चैनल के एंकरों को और उनसे हिंदी के शब्दों को महत्व देने के लिए कहिए।

दक्षिण का विरोध

दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग हिंदी में उर्दू, अंग्रेजी शब्दों को मिलाकर बोलने में गर्व अनुभव करते हैं लेकिन हिंदी बोलने के लिए बोलो तो “नाक मुंह” बनाने लगते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्न पत्र हिंदी और अंग्रेजी संस्करण में छपते हैं लेकिन प्रश्न पत्र में कोई त्रुटि होने पर अंग्रेजी के संस्करण को सही माना जाता है। हिंदी बोलने वाले देश में हिन्दी का इससे बड़ा अपमान और क्या होगा भला? अंग्रेजों को भले ही भगा दिया गया हो लेकिन आज भी भारत का प्रशासनिक तंत्र मानसिक तौर पर अंग्रेजों का दास है। (मेरी समझ से) दक्षिण के बंधुओं का हिंदी विरोध इसी कारण से है कि हिंदी में अंधाधुंध तरीके से मुगली(उर्दू) शब्दों का प्रयोग किया जाने लगा है जबकि अन्य भारतीय भाषाओं जैसे मराठी,भोजपुरी,तमिल,तेलगु,कन्नड़ आदि में अभी भी संस्कृत के शब्दों का बोलबाला है। मुझे ऐसा लगता है कि यदि हिंदी में संस्कृत के शब्दों का प्रयोग किया जाए तब हो सकता है कि दक्षिण का हिंदी विरोध समाप्त हो जाए।

व्यास पीठ का भाषा जेहाद

भाषा जेहाद के कारण हिंदी की हानि कितने प्रभावी और व्यापक तरीके से हुई है इसका उदाहरण है व्यास पीठ पर बैठे हुए कथावाचक जिनके श्रीमुख से हिंदी कम और उर्दू के शब्द अधिकाधिक मात्रा में निकल रहें हैं। “सरकार” वैसे तो फारसी शब्द है लेकिन आजकल भगवान के नाम के बाद “सरकार” शब्द का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। ये दर्शाता है हमारी अज्ञानता को, हमारी मूर्खता को। हम लोग इतने अज्ञानी और मूर्ख हैं कि सरकार के स्थान पर हमें हिंदी का कोई शब्द नहीं मिला। उर्दू बोलते कथावाचकों को सुनकर लगता है कि भाषा जेहादी अपने उद्देश्य में सफल हो रहें हैं। बात भले ही अतिश्योक्ति लगे परंतु ऐसा लगता है कि आज के कथावाचकों से अधिक हिंदी तो #AajTak के एंकर सईद अंसारी बोलते हैं। विडंबना देखिए कि समाचार चैनलों के हिंदू एंकर जहां धड़ल्ले से उर्दू बोलते मिल जाएंगे वहीं सईद अंसारी को आप अधिकतर हिंदी के शब्दों का प्रयोग करते पाएंगे। (वैसे गौरव सावंत भी अच्छी हिंदी का प्रयोग करते हैं) |

भजन

भाषा जेहाद से जिस दूसरे क्षेत्र में हिन्दी की सबसे अधिक हानि हुई है वो क्षेत्र है भजन का |… 80-90 के दशक में बने भजनों और आज के समय बन रहे भजनों में बहुत अंतर आ गया है। 80-90 के दशक के समय बने भजनों में जहां हिंदी अधिक थी वहीं आज के भजनों में उर्दू की अधिकता है। आज के लेखक, गीतकार इत्यादि लिखते समय हिंदी की होती हानि का रत्ती भर भी ध्यान नहीं रखते और धड़ल्ले से उर्दू शब्दों को अपने लेखों और गीतों में प्रयोग में लाते हैं। ये लोग बिना दिमाग लगाए हुए बस भाषा जेहादियों द्वारा लिखी गई भाषाई पटकथा को ही कॉपी पेस्ट कर रहे हैं।

हिंदी कमेंट्री

चलते चलते एक आग्रह है खेल चैनलों से कि हिंदी कमेंट्री के लिए रवि शास्त्री जैसे अंग्रेजो को बैठाना बंद कर दीजिए। अभी एशिया कप के फाइनल मैच के दौरान ये व्यक्ति हिंदी कमेंट्री बॉक्स में बैठकर हिंदी की निर्मम हत्या कर रहा था। हिंदी दिवस पर मात्र शुभकामनाएं देकर खानापूर्ति मत कीजिए अपितु हिंदी को सुदृढ़ करने का संकल्प लीजिए, स्वयं प्रयास कीजिए।

साकेत अग्रवाल

साकेत अग्रवाल

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