लेखक -विपुल
लखनऊ सुपरजाइंट्स की टीम प्लेऑफ में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु से हार कर बाहर हो गई ,इसके बेंगलुरु निवासी कप्तान के एल राहुल की धीमी पारी और पहले गेंदबाजी के फैसले ने इस परिणाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।वहीं आईपीएल 2022 की दूसरी नई टीम गुजरात टाइटन्स फाइनल में भी पहुंची और उसके गुजराती कप्तान हार्दिक पांड्या ने टीम की जीत में महत्वपूर्ण योगदान भी दिया।नाबाद रहे|
लखनऊ और गुजरात ,दोनों ही टीमें आईपीएल 2022 में पहली बार शामिल हुई थीं ,तो तुलना बनती ही है।यहां मैं केवल अपने विचार बता रहा हूँ ,आप सहमत या असहमत हो सकते हैं।
शहर बनाम राज्य
पहला फर्क देखिए ,गुजरात टाइटन्स की फ्रेंचाइजी ने अपनी आईपीएल टीम का नाम पूरे राज्य के नाम पर रखा, न कि अहमदाबाद या गांधीनगर के नाम पर ,जिससे पूरे गुजरात के लोग उससे कनेक्ट कर सकें,केवल किसी विशेष शहर के लोग नहीं।
वहीं लखनऊ सुपरजाइंट्स के मालिकों ने अपनी टीम का नाम लखनऊ के नाम पर रखा ,पूरे प्रदेश के नाम पर नहीं।
अब फर्क समझिए ,उत्तर प्रदेश से जनसंख्या की दृष्टि से शायद केवल 10 या 11 देश बड़े होंगे और क्षेत्रफल की दृष्टि से भी।
गोरखपुर से नोएडा सड़क के रास्ते एक दिन में नहीं पहुंच पाओगे।वैसे भी वर्तमान उत्तर प्रदेश अवध, आगरा नामके दो अंग्रेजी हुकुमत के प्रांतों से मिलकर बना है।बुंदेलखंड और जोड़ो ।और लखनऊ शहर कोई दिल्ली, मुम्बई ,बेंगलुरु या कोलकाता जैसा कोई महानगर भी नहीं है कि आसपास के लोग उससे दिल से कनेक्ट कर पाएं।यहाँ कानपुर और लखनऊ वालों की ही नहीं बनती।
नोयडा ,हापुड़ ,गाज़ियाबाद की क्या कहें?और झांसी ,ललितपुर ,उरई ,जालौन वालों को भी लखनऊ कतई अपना सा न लगता।
तो यूपी के बाहर वालों को ये बात बड़ी न लगे, यूपी के मूल निवासियों को ये बात जरूर बुरी लगेगी।
कप्तानी
दूसरे नंबर पर कप्तानी की बात कर लें।
देखिए ,एक प्रतीक होता है, टोकनिज़्म होता है कि हम तुम्हें भाव देते हैं।कई जगह ये चलता है, बीच बाज़ार आपके चाचा या ताऊ मिल जाएं तो आप उनके पांव छूते हो ,उन्हें सम्मान देने को।किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता इससे, न ही पैर नहीं छूने से रिश्ते के सम्मान में कमी आती है, पर ये टोकनिज़्म है।कोई फर्क नहीं पड़ता जब आप लाखों का काम किसी कैटरर्स या टेंट वाले से लेने वाले होते हो ,और टोकन केवल 1100 रुपये देकर आते हो।ये भरोसा होता है।
गुजरात टाइटन्स ने गुजराती हार्दिक पांड्या को कप्तान चुन के गुजरात के लोगों को भरोसा दिया।लेकिन लखनऊ सुपरजाइंट्स के मालिकों ने कप्तान बेंगलुरु के उन के एल राहुल को चुना जो कप्तानी मैटीरियल हैं ही नहीं।
माफ करिये ,राहुल को अगर आप अच्छा कप्तान मानते हैं तो मैं भी खुद को मुंशी प्रेमचंद्र से बड़ा लेखक मान सकता हूँ।
इतने महत्वपूर्ण मैच कभी भी कंप्यूटराइज़ेड एनालिसिस से नहीं जीते जाते,जुनून से, नेचुरल थिंकिंग से जीते जाते हैं।90 की दक्षिण अफ्रीका टीम शायद अब तक की देखी मेरी सर्वश्रेष्ठ वनडे टीम थी।बिल्कुल मशीन जैसी ,हर पार्ट को पता था अपना काम ।भावहीन तरह से खेलते थे जीतते थे।लेकिन 92 का विश्वकप पाकिस्तान इमरान के जुनून से जीता , 96 का विश्वकप श्रीलंका रणतुंगा के जुनून से और 99 विश्वकप ऑस्ट्रेलिया स्टीव वॉग के जुनून से,जीते।दक्षिण अफ्रीका टीम कभी विश्वकप नहीं जीत पाई।
कोहली को कितना भी बुरा भला कहो ,वो जुनूनी कप्तान था, बस दुर्भाग्यशाली रहा।कोहली कम से कम एक आईसीसी खिताब या आईपीएल का हकदार था।कभी टॉस तो कभी बौलिंग धोखा दे गई उसे ।
पर राहुल में न तो जुनून दिखता है, न कप्तानी की समझ।
इतने महत्वपूर्ण प्लेऑफ मैच में टॉस जीतने के बाद गेंदबाजी ली,जबकि इस आईपीएल में लखनऊ टीम बाद में बल्लेबाजी करते हुए शायद ही जीती थी।
दूसरा होल्डर की जगह लुइस को लिया ,जबकि पिच उनके मुताबिक भी तेज गेंदबाजी के लिये अच्छी थी।होल्डर नीचे आकर शॉट भी मार सकता था और गेंदबाजी भी करता।लुइस को ओपनिंग नहीं भेजा तो वन डाउन भी भेजने से किसने रोका था ?जैसा इस मैच में राहुल खेला 79(58), मनीष पांडे भी खेल सकता था।
यूपी रणजी के खिलाड़ी
फिर खिलाड़ियों की बात कर लेते हैं।रिंकू सिंह यूपी रणजी खिलाड़ी ,यश दयाल यूपी रणजी का, कुलदीप यादव ,भुवनेश्वर कुमार ,इन सब को लेने से किसने रोक रखा था ?सुरेश रैना शायद खिलाड़ी और कप्तान दोनों तौर पर ठीक ही रहता।राहुल को केवल रनों से मतलब रहता है।
मेरी लिस्ट में राहुल एक महान मैच विनर खिलाड़ी कभी नहीं रहेगा ,हां रन भले कितने बना ले ,टेक्निकल तौर पर कितना ही अच्छा क्यों न हो।
शिवनारायण चंद्रपाल ने भी 10000 से ज़्यादा रन बनाए हैं ।लेकिन क्या उनकी गिनती लारा जैसे मैच विनर्स के साथ कर सकते हैं ?
वैसे भी इतनी असफलता के बाद भी राहुल को जितने चान्स टीम इंडिया में मिले हैं ,मैंने आज तक नहीं देखे।
धवन और विजय को तो इससे आधे में ही धकिया दिया गया।
सहायक स्टाफ (कोचिंग)
लगे हाथों सपोर्ट स्टाफ की भी बात कर लें।
गंभीर खराब नहीं है, न ही एंडी फ्लावर।
लेकिन मुझे वाकई अच्छा लगता अगर मोहम्मद कैफ ,रिजवान शमशाद, ज्ञानेंद्र पांडे, आशीष, विंस्टन ज़ैदी ,ओबैद कमाल, प्रवीण कुमार जैसे लोग लखनऊ टीम के डग आउट में दिखते।
इनमें क्या कमी थी ?कैफ तो पोंटिंग का सहायक कोच था गत विजेता दिल्ली की टीम में।
ज्ञानेंद्र पांडे वगैरह को भले पैसे न देते ज़्यादा तो भी यूपी के खिलाड़ियों का हौसला बढ़ता।
अंतिम बात ये कि जब से इस टीम के नाम और कप्तान की घोषणा हुई ।एक भी यूपी का खिलाड़ी जब से मुझे इस लखनऊ सुपरजाइंट्स की टीम में जब से नहीं दिखा, उसी दिन से मैंने तो इसे अपनी आईपीएल टीम मानना छोड़ दिया था।आप मानिये,मैं नहीं मानता।
ये कुछ पूंजीपतियों की बनाई ऐसी आईपीएल टीम है जिसे न तो यूपी से जुड़ाव है ,न इसे यूपी के खिलाड़ियों से न कोचेस से मतलब है।न यूपी के मेरे जैसे लोगों को इससे हो पायेगा।
अभी तो ये टीम बाहर है, लेकिन जीत भी गई अगले साल तो मैं तो इसे अपनी टीम नहीं बता सकता।हैदराबाद की टीम में लक्ष्मण ,मुम्बई में सचिन, चेन्नई में श्रीकांत जैसे लोग दिखते रहे हैं।
सहवाग ,गम्भीर और धवन दिल्ली आईपीएल टीम से खेले थे, कुंबले बेंगलुरु से।युवराज पंजाब से ,गांगुली कलकत्ता से।
लखनऊ आईपीएल टीम में एक भी खिलाड़ी या सहायक स्टाफ शायद ही यूपी का दिखता है।
ये मेरी टीम तो नहीं हो सकती क्योंकि मैं यूपी का तो हूँ ,पर लखनऊ का नहीं।
लेखक -विपुल
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बहुत बढ़िया निरीक्षण। उम्दा तरीके से जांच पड़ताल और सबसे बड़ा सवाल कप्तान के चुनने का। के एल राहुल कप्तान के तौर पर बिल्कुल भी सही नही है।लेकिन कंपीटीशन का दौर है, हर विभाग में खुद को आगे रखना है भले ही ये स्वीकार न हो कि आपसे भी काबिल लोग है।
जी बिलकुल |
कप्तानी बहुत महत्वपूर्ण चीज़ है |