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लेखक :-विपुल दिनांक 26/02/2002

राजनीति औऱ कूटनीति में अंतर
लेखक :-विपुल

विपुल

राजनीति औऱ कूटनीति में अंतर

राजनीति और कूटनीति में अंतर मुख्यतया ये है कि राजनीति व्यक्ति आधारित होती है जबकि कूटनीति संगठन या संगठनों के संगठन के लिये होती है ।
जैसे नरेन्द्र मोदी राजनीति कर रहे हैं ।यह उनके स्वयं के लाभ के लिये है जिससे उनको सीधा फायदा होता है।
जबकि कूटनीति में किसी व्यक्ति को नहीं बल्कि संगठन या संस्था को फायदा होता है जोकि अमूर्त होती है।और इस संस्था से जुड़ा व्यक्ति फायदा नहीं उठाता, बल्कि संस्था ही फायदा उठाती है।जैसे सैयद अकबरुद्दीन संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के प्रतिनिधि हैं और वो अगर कोई काम करते हैं तो भारत के पक्ष में तो उससे भारत को फायदा होगा , उनको नहीं।
हालांकि बाद में वो परोक्ष रूप में भारत के प्रधानमंत्री से अपने लिये कुछ व्यक्तिगत फायदे ले सकते हैं।

कूटनीति संस्था के लिये ,राजनीति व्यक्ति के लिये

जबकि नरेन्द्र मोदी जो भी करते हैं ,सांसद या विधानसभा चुनाव में प्रचार ,उससे उनको फायदा होता है।पार्टी को नहीं ।उनकी प्रधानमंत्री पद और पार्टी के बेताज बादशाह की छवि पुख्ता होती है।।ब्रांड मोदी ब्रांड बीजेपी से ज़्यादा बड़ा है ,इस वक्त।
आप कहेंगे कि वो पार्टी के लिये करते हैं तो ,लेकिन मोदी बीजेपी छोड़ के नई पार्टी भी तो बना सकते हैं।कांग्रेस भी जॉइन कर सकते हैं ।कौन रोक लेगा ?क्या पूर्व में ऐसे उदाहरण नहीं है।मोरारजी देसाई ,विश्वनाथ प्रताप सिंह हेमन्त बिस्व सरमा उदाहरण हैं, जो पुरानी पार्टी छोड़ नई पार्टी बना या नई पार्टी में जाकर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बने।
ब्रांड नेम
यही राजनीति है जो व्यक्ति विशेष पर आधारित होती है, संगठन पर नहीं।
जबकि सैय्यद अकबरुद्दीन भारत के अलावा किसी अन्य देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते।
ये पहला अंतर है।।
तो राजनीति और कूटनीति में पहला फर्क ये है कि राजनीति व्यक्ति विशेष पर आधारित होती है ।कूटनीति संगठन या संगठनों के संगठन पर आधारित होती है।।

कूटनीति में प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिलते

दूसरा फर्क ये होता है कि राजनीति में व्यक्ति को प्रत्यक्ष लाभ या हानि मिलता है जबकि कूटनीति में संगठन को लाभ या हानि मिलता है ।संगठन से जुड़े व्यक्ति को किसी व्यक्ति को प्रत्यक्ष लाभ या हानि नहीं मिलता ।

कूटनीति में चुप्पी का महत्त्व होता है

तीसरा फर्क ये है कि राजनीति में कहे जाने वाले शब्दों का महत्व होता है, जबकि कूटनीति में न कहे जाने वाले शब्दों या संकेतों का महत्व होता है।।जैसे यूपी चुनाव में भाजपा कह रही है कि हम फ्री बिजली देंगे, हमें वोट दो।
सपा पुरानी पेंशन के लिये कह रही है।जनता को चिल्ला चिल्ला के बता रहे हैं कि हमने क्या किया और क्या करेंगे ?अगर चुप रहेंगे तो राजनीति नहीं कर पाएंगे राजनीतिक दल।
कूटनीति में चुप रहने का ज़्यादा महत्व है।जैसे आज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने वाली मीटिंग में भारत ,चीन और यूएई अनुपस्थित रहे।न रूस के पक्ष में बोले, न खिलाफ ।
लेकिन रूस को भारत ने सन्देश दे दिया कि हम आपके साथ हैं क्योंकि भारत को पता है कि रूस इस प्रस्ताव को वीटो कर देगा।लेकिन आधिकारिक तौर पर भारत पर कोई ये आरोप नहीं लगा सकता कि भारत ने रूस की मदद की
सांप भी मरा, लाठी भी नहीं टूटी।लेकिन रूस और अमेरिका को खुल के सन्देश भी गया कि रूस भारत का दोस्त है ।
उधर पुतिन के यूक्रेन पर हमले के समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का वहां होना भारत को एक संदेश था कि हम पाकिस्तान को कुछ नहीं मानते, चिंता मत करो।
पुतिन का दो सालों में पहली बार s 400 सौदे के लिये रूस से निकल के भारत आना भी एक कूटनीति सन्देश था।
मतलब राजनीति में कहना पड़ता है।कूटनीति में चीज़ें कहनी नहीं पड़ती।
जैसे मोदी उज्ज्वला योजना की उपलब्धि बता बता के तालियां बटोरेंगे हर बार, लेकिन आज की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वोटिंग से अनुपस्थित की चर्चा भारत का संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधि नहीं करना चाहेगा ,क्योंकि भविष्य में पता नहीं किस देश की ज़रुरत पड़ जाए।

कूटनीति में स्थायित्व होता है

अन्तिम बिंदु ये है कि राजनीति में कभी स्थायित्व नहीं होता ,जबकि कूटनीति में स्थायित्व होता है।
मतलब ऐसे समझिए कि विमल कुमार एक सेल्स रिप्रजेंटेटिव हैं विकको कम्पनी के ,जो कानपुर की मार्केट में विकको का माल बेचते हैं।कुछ दिनों बाद विमल ने विकको कम्पनी छोड़ दी और प्रॉक्टर एंड गैम्बल जॉइन कर ली ।और बिरहाना रोड के दुकानदारों को प्रॉक्टर एंड गैम्बल के प्रोडक्ट्स बेचने लगे।दुकानदार विमल को जानता है कि ये बढ़िया व्यक्ति है ,सो वो विमल से प्रॉक्टर एंड गैम्बल का माल भी ले लेगा।उसे कम्पनी नहीं व्यक्ति से मतलब है।कम्पनी कोई हो ,विमल कुमार भरोसेमंद आदमी है।
ये राजनीति है
दूसरी तरफ मुझे बाइक चोरी की एक रिपोर्ट लिखाने नयागंज थाने जाना पड़ता है, जहां तब थानेदार राहुल पंडित है।जांच के दौरान थानेदार ठाकुर शमशेर सिंह होते हैं ,जबकि बाइक मिलते समय जी अय्यर।
लेकिन मुझे हर बार थानेदार की सीट से मतलब है, राहुल पंडित या जी अय्यर से नहीं।जो होगा ,वही काम करेगा।उसकी जिम्मेदारी है और मुझे पुलिस नाम की संस्था पर भरोसा है जो स्थायी है।मुझे व्यक्ति विशेष से मतलब नहीं है और संस्था भी काम करके देगी।
यही कूटनीति है

यही कूटनीति है ।
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लेख में प्रस्तुत विचार लेखक के स्वयं के हैं।

विपुल

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