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लेखक -विजयंत खत्री

Exxcricketer.com

लाल सिंह चड्ढा ,दोबारा और राइट विंग

अभी हाल ही में लाल सिंह चड्डा फ़िल्म बड़े पर्दे पर आयी और कब चली गई पता ही नहीं चला। कुछ तथाकथित “बड़े वाले” पत्तलकारो,…. क्षमा करें, कभी कभी जुबां तुतला जाती हैं। जुबां केसरी खाए रहते है न।… हा हा वही वाला जो खान, कुमार बताते हैं रोज टीवी पर। मतलब वरिष्ठ पत्रकारों ने इसका ठीकरा तथाकथित ट्विटर राइट विंग, जो वास्तव में है ही नहीं, पर फोड़ा। बार बार कहा गया कि फ़िल्म का बायकाट हुआ इसीलिए लोग देखने नहीं गए। जबकि आमिर खान ने मजे मजे मे ये भी अफ़वाह फैलाई थी कि इस कबाड़ को बनाने में उसे चार साल की मेहनत लगी है। पर इस अफ़वाह के बावज़ूद फ़िल्म इतनी बुरी तरह से धड़ाम करते हुए गिरी की रक्षाबंधन भी उसके बोझ तले तब गई और तापसी पन्नु, अनुराग कश्यप की फ़िल्म “दोबारा” तो लाल सिंह चड्डा की पूछ तले ही तब गई।
फ़िल्म पिटने के बाद बॉलीवुड वाले इतने बौखलाए हुए है कि दर्शकों को पीटने की योजना बनाने लगे। यहा तक कि कोई अर्जुन कपूर नामक शख्स, पता नहीं कौन है जनता का बॉयकाट करने की धमकी दे रहा है। काफी न्यूज चैनल पर वाद विवाद भी हुआ कि कैसी मोदी ज़ी….. क्षमा करे यशस्वी मोदी ज़ी के राज मे हिन्दू फ़िल्में नहीं देख रहा है बल्कि अन्य लोगों को भी जाने को मना कर रहा है। कोई अनुराग कश्यप नामक अर्थशास्त्री ये भी बता रहा है कि जनता के पास पैसा नहीं है उनकी फिल्म देखने के लिए। पर बॉलीवुड की असल समस्या क्या है उस पर कोई चर्चा नहीं हुई ना ही न्यूज चैनलो पर ना ही सोशल मीडिया पर।

बॉलीवुड की असल समस्या-


बॉलीवुड की असल समस्या-
बॉलीवुड की असली समस्या है, बॉलीवुड का मौलिक ना होना। बॉलीवुड कितना मौलिक रहा है इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं कि बॉलीवुड मे कल्ट क्लासिक का दर्जा प्राप्त “शोले” फ़िल्म भी जापानी फ़िल्म “सेवन समुराई” पर आधारित है। यही नहीं बॉलीवुड की पुरानी फ़िल्में भी आधी से ज्यादा जापानी, कोरियन, रूसी और ईरानी फ़िल्मों की नकल करके बनाई गई है। वो बॉलीवुड जो कभी सत्यजीत रे, गुरुदत्त जैसे लोगों से भरा था वो समाप्त हो गया। 70-80 के दशक के बाद से लगभग अब तक सभी बॉलीवुड फ़िल्मों की कहानी एक जैसी होती थी। बॉलीवुड की लगभग हर फिल्म की कहानी मे प्रेम प्रसंग, और प्रेमी जोड़ों का विदेशी परिदृश्य मे नाच गाना, नायक द्वारा अपने पिता की हत्या या परिवार का बदला लेना, आखिर 10 मिनट में एक्शन दृश्य और अंत मे खलनायक की हार के साथ सब कुछ सही हो जाना।
बॉलीवुड ने मौलिकता और नए प्रयोग के नाम पर हिन्दू धर्म का खूब मज़ाक बनाया। भारत के दर्शकों ने ये सर्व धर्म बड़ा पाव के नाम पर सहा भी। पर इन्टरनेट क्रांति के बाद लोगों मे जागरुकता आयी और उन्होंने पाया कि मौलिकता के नाम पर जो सामाजिक फ़िल्में बनाई गयी उनमे केवल हिन्दू धर्म, हिन्दू धर्म की परंपराओ पर आघात किया गया। फ़िल्में मे हिन्दू धर्म का चित्रण इस प्रकार किया गया कि हिन्दू धर्म के लोगों को अपने धर्म को लेकर हीन भावना आए। अन्य धर्मों के बारे मे बिल्कुल उल्टा रहा। क्यूँ रहा?…. क्यूँकी वो जानते है कि अपनी गर्दन बचाके भी रखनी है। ट्विटर पर @GemsOfBollywood नमक ट्विटर खाते ने इस बारे मे काफी जागरुकता फैलायी।

चोरी का संगीत


बात करते है संगीत की, तो बॉलीवुड के संगीतकारों ने जो स्कैम किए अगर ये राजनीति मे होते तो यूपीए-2 सरकार को पीछे छोड़ देते। बॉलीवुड के संगीतकारो ने लगभग हर देश के संगीतकारों की धुनों को चुराया। हमारे अन्नू मालिक जी ने तो इस्राइल के राष्ट्रगान तक को नहीं छोड़ा।

बॉलीवुड क्यों राज कर रहा था ?


आखिर फिर भी बॉलीवुड बिना मौलिकता के क्यूँ इतना प्रसिद्ध हुआ – इसका उत्तर है हिन्दी मनोरंजन के बाजार मे बॉलीवुड का अकेला होना। परंतु इन्टरनेट, सोशल मीडिया के विस्तार के बाद भारतीय जनता को खास कर हिन्दी भाषी लोगों को भारत की अन्य भाषा की फ़िल्में जो हिन्दी में डब फ़िल्में देखी तो उन्हें वो बॉलीवुड से बेहतर लगी। दक्षिण भारतीय सिनेमा ने खास प्रभाव छोड़ा। फिर विदेशी फ़िल्में आसानी से केबल टीवी, बाद मे ओटीटी पर आसानी से उपलब्ध होने लगी तो लोगों ने तुलना करना शुरू किया तो उन्हें पता चला कैसे 80-90 के दशक मे भारत जैसे तीसरे दर्ज़े के देश को बॉलीवुड की चौथे दर्ज़े की मनोरंजक फ़िल्में देखने को मिल रही थी।

बॉलीवुड में कहानी नहीं सितारे महत्वपूर्ण हैं


सामन्यतः अन्य देशों मे फ़िल्म निर्माण के समय फिल्म की कहानी पर ध्यान दिया जाता है और कहानी के हिसाब से अभिनेता चुने जाते हैं। लेकिन बॉलीवुड इस मामले मे विचित्र है यहा पर अभिनेता के हिसाब से फिल्म की कहानी तय होती है।….. ध्यान रहे, इस बात का सल्लू भाई से तो बिल्कुल कोई सम्बंध नहीं है। साथ ही बॉलीवुड में ज्यादा धन फिल्म के निर्माण के बजाय किसी बड़े नामी अभिनेता की फीस देने मे खर्च होता है। यहा तक कि बॉलीवुड में ऐसे अभिनेता, अभिनेत्री भरे पड़े है जिन्हें अभिनय जरा भी नहीं आता पर अपने सरनेम और करण जौहर की वजह से फ़िल्में प्राप्त कर लेते हैं और तथाकथित सेलिब्रिटी बन जाते हैं।
और आज के समय बॉलीवुड की सबसे बड़ी समस्या ये है कि बॉलीवुड के लोग कुए के मेंढक के समान है जिसे लगता है वो अपने इस कीचड़ के गड्ढे का राजा है। अभिनेता, अभिनेत्री, निर्देशक सब भारत के आज के परिदृश्य से जुड़ी फ़िल्में जो लोगों को देखने पर लगे कि “यही तो होता है एक भारतीय के जीवन मे।”. आप पिछले कुछ साल की बॉलीवुड फ़िल्में देख ले क्या किसी फिल्म को देखकर लगा कि वाह क्या फिल्म है?

उपसंहार


अंत मे यही कहना चाहूँगा कि बॉलीवुड और काँग्रेस मे एक समानता है कि दोनों ने भारत मे फर्जी धर्मनिरपेक्षता, भाई-भतीजावाद के नाम पर जो काटा है उससे आज तक देश नहीं उबर पाया है। पर दोनों का समय अब नजदीक है। दोनों को बचाया जा सकता है, बस बागडोर को नए और प्रतिभा से भरे लोगों को सौपना होगा। जमीन से जुड़े विषयो पर आना होगा। पर फ़िलहाल ऐसा सम्भव नहीं लगता है जल्द ही ऐसा होगा। पर अगर जल्द ही कुछ बड़े बदलाव बॉलीवुड और काँग्रेस ने नहीं किए तो भारत को बॉलीवुड और काँग्रेस मुक्त होने से कोई रोक नहीं पाएगा।

लेखक -विजयंत खत्री

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