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एजबेस्टन टेस्ट 2022 भारतीय टीम हारी और इसमें विराट कोहली का बड़ा लचर प्रदर्शन था।लोग कोहली को सन्यास लेने की सलाह दे रहे हैं ।क्या कोहली को सन्यास लेना चाहिए ?
मेरी राय कुछ भिन्न है ।

विराट कोहली कैरियर के उस खराब दौर से गुज़र रहे हैं जो बड़े से बड़े खिलाड़ी के जीवन में एक बार आता है।सचिन हों या लारा, नडाल हों या फेडरर।लेकिन बहुत अच्छे खिलाड़ी और महान खिलाड़ी में फर्क इतना ही होता है कि महान खिलाड़ी इन सब खराब दौर से निकल कर फिर खुद को साबित करते हैं ।सचिन और लारा ने ऐसा किया है।फेडरर और नडाल ने भी किया है ऐसा।दुर्भाग्य से विराट के कैरियर का ये खराब दौर कुछ ज़्यादा ही लम्बा खिंच गया है।इसलिए लोग उम्मीद तोड़ रहे हैं कि विराट सचिन, नडाल या फेडरर जैसा करिश्मा कर पाएंगे ।

मुझे नहीं पता मेरा ये लेख कितने लोग पढ़ेंगे।मेरे सोशल मीडिया अकॉउंट को देखकर लोग समझते हैं कि मैं विराट से नफरत करता हूँ।ऐसा नहीं है भाई।हंसी मजाक अलग है।मैं उन चंद लोगों में से हूँ जिन्हें विराट अंडर 19 से पसन्द है।विराट उन चंद भारतीय क्रिकेटर्स में से है जो मानसिक रूप से बहुत मजबूत है, बहुत मेहनती है और सचिन या युवराज जैसी नैसर्गिक प्रतिभा न होने के बावजूद केवल अभ्यास और मेहनत से विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज के पद तक पहुंचा था।

दरअसल विराट नेचुरल बल्लेबाजी प्रतिभा नहीं है, मेहनत से मुकाम पाया है।विराट उस बच्चे जैसा नहीं है ,जो तेज़ दिमाग हो, एक बार में चीज़ समझ जाये, जल्दी याद कर लेता हो, परीक्षा में प्रथम आना जिसके लिये बाएं हाथ का खेल हो।
विराट कोहली उस बच्चे की तरह है जो सामान्य प्रतिभा के बावजूद रोज 4 घण्टे पढ़ाई करके और पूरे मनोयोग से क्लास लेक्चर अटेंड करके होमवर्क भी खुद पूरा करता हो और इसी मेहनत के दम पर लगातार प्रथम आता हो।

और विराट की एकाग्रता कब भंग हुई ?समझना मुश्किल नहीं है।आप सब समझदार हैं।फील्ड में पसीना बहाते खिलाड़ी लड़के को विश्राम भी पसन्द होता है और चॉकलेट भी।लाइमलाइट भी, लोगों की तारीफ भी ,पैसे भी।सब पसन्द होता है।लेकिन ये मिलता तभी है जब आप फील्ड में पसीना बहाएं ,अच्छा प्रदर्शन करें ।तब ये चीजें थोड़ी देर के लिये खिलाड़ी उपयोग करे ,तो कोई भी उंगली नहीं उठाएगा।पर अगर खिलाड़ी मैदान के बाहर की केवल इन्हीं चीजों में पड़ा रहे।मैदान पर प्रदर्शन न करे तो कोच और जनता दोनों उस खिलाड़ी की टांग भी खींचेगे, दोषारोपण भी करेंगे।

विराट का आक्रामक व्यवहार भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को आज भी नापसंद नहीं है।लेकिन जब तथाकथित लिबरल लॉबी के चक्कर में पड़ कर हिन्दू त्यौहारों पर कोहली ज्ञान देने लगे तो आम भारतीय रुष्ट हुआ।इसी दरम्यान बीसीसीआई की कार्यकारिणी भंग थी और भारतीय क्रिकेट चलाने वाले लोग विराट को खुली छूट दिए हुये थे।
विराट में अहंकार बढ़ा, उल्टे सीधे फैसले भी लिये, लेकिन जब तक रन बनाते रहे, चलता रहा।वनडे कप्तानी छिनने के बाद दक्षिण अफ्रीका जाने के पहले की गई प्रेस कांफ्रेंस के द्वारा गांगुली से टकराने की कोशिश ने विराट का फायदा कम नुकसान ज़्यादा किया है।

विराट को समझना चाहिए ,दुनिया पी आर मैनेजमेंट से नहीं चलती और खेल की दुनिया शायद युद्ध और अपराध की दुनिया के बाद सबसे ज़्यादा क्रूर और कठिन है ,शायद उसी के बराबर।

विराट कम से कम 5 साल टेस्ट और खेल सकते हैं ,पर इसके लिये विराट को अपना थोड़ा स्वभाव और थोड़े आस पास के सलाह देने वाले लोग बदलने होंगे ।
पी आर कम्पनियों का चक्कर छोड़ना होगा।केवल क्रिकेट पर फोकस करना होगा।डोमेस्टिक में नई उम्र के लड़कों के साथ खेलना होगा घमंड छोड़ के ।हो सके तो कप्तान भी न बनें डोमेस्टिक में।कॉउंटी खेलें।कॉउंटी में लारा, स्टीव वॉग ,सचिन, द्रविड़, पुजारा सबने खेला है।
और लगातार बल्लेबाजी के अलावा न कुछ सोचे न कुछ करें।

हमें आज भी बल्लेबाज विराट पर भरोसा है।वो रॉ टैलेंट कोहली ,हमें वो वापस चाहिए।और कोहली निश्चित तौर पर वापसी कर सकता है,अगर उसके दिमाग में सिर्फ बल्लेबाजी के अलावा कुछ न हो।


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